सल्तनत काल
सल्तनत काल की महत्वपूर्ण रचनायें
पुस्तक | लेखक | विषय |
ताजूल मासिर | हसन निजामी | कुतुबुद्दीन ऐबक से लेकर इल्तुतमिश के शासनकाल तक का इतिहास |
तबकाते नासिरी | मिनहाजुद्दीन सिराज | यह पुस्तक सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद को समर्पित कर लिखी गई |
खजाई उल फुतूह | अमीर खुसरो | अलाउद्दीन के दरबारी इतिहासकार के रुप में |
आशिकी | अमीर खुसरो | देवल रानी (गुजरात के शासक की पुत्री) और अलाउद्दीन के पुत्र खिज्र खां के बीच प्रेम सम्बन्धो का उल्लेख |
तारीख ए फिरोजशाही | बरनी | बलबन से लेकर फिरोज तुगलक के शासन काल का इतिहास |
फतवा-ए-जहांदारी | बरनी | इस पुस्तक मे राज्य की नीति के सम्बन्ध मे विचार व्यक्त किये गये है |
तारीख-ए-फिरोजशाही | शम्से सिराज |
फिरोज तुगलक के शासन काल से सम्बन्धित |
फुतूहाते फिरोजशाही | फिरोज तुगलक |
अध्यादेशों का संग्रह |
सल्तनतकालीन साहित्य एवं स्थापत्य
- सल्तनतकालीन प्रमुख साहित्यकारों मे अल्बरुनी मिनहाजुद्दीन-सिराज,शम्से-सिराज,जियाउद्दीन बरनी तथा अमीर खुसरो शामिल थें
- अल्बरुनी महमूद गजनवी के साथ भारत आया था उसने 11वीं शताब्दी के भारत की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति का वर्णन अपनी पुस्तक तारीख-उल-हिन्द (किताब उल हिन्द) मे किया है यह पुस्तक अरबी भाषा मे लिखी गई है
- सद्रहसन निजामी ने ताज-उल-मासिर की रचना की। यह कुतुबुद्दीन ऐबक का दरबारी कवि था।
- तारीखे फिरोजशाही जियाउद्दीन जियाउद्दीन बरनी द्वारा लिखित है जिसमे बलबन से फिरोज तुगलक तक के शासन का वर्णन है
- सल्तनत का प्रारंभिक इतिहास तबकाते नासिरि मे मिलता है जो मिनहाजुद्दीन सिराज की कृति है ।
- तुगलक काल के बाद का इतिहास तारीखे मुबारकशाही मे मिलता है जिसे इतिहासकार याहिया बिन अहमद सरहिन्दी ने लिखा है
- खडी बोली हिन्दी का विकास सल्तनत काल मे हुआ। इसका श्रेय अमीर खुसरो को जाता है। अमीर खुशरो का जन्म एटा के पास हुआ था। यह बलबन से गयासुद्दीन तुगलक तक के सभी सुल्तानों के दरबार मे रहा था और अनेक किताबों की रचना की जिनमे नूहसिफर,आशिकी, तुगलकनामा, खजाइन-उल-फुतूह( अलाउद्दीन का वर्णन) प्रमुख थी।
- अमीर खुसरो ने वीणा तथा ईरानी तम्बूरा से सितार का निर्माण किया ।
- पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि चन्दबरदाई ने पृथ्वीराज रासो सारंगघर ने हम्मीर काव्य तथा हम्मीर रासो की रचना की।
- महोबा के चन्देल शासक परमर्दिदेव और आल्हा तथा ऊदल की कहानी आल्हाखण्ड की रचना जगनिक ने की।
- सल्तनत काल मे स्थापत्य कला के क्षेत्र मे भी कुछ नये प्रयोग हुए जिन्हे इण्डो-इस्लामिक या इण्डो साटसेनिक शैली कहा गया। यह हिन्दू मुस्लिम शैली थी जिसमे भारतीय और ईरानी शैलियों का मिश्रण हुआ।
- इस दौरान इमारतों मे नुकीले महराबों,गुम्बदों तथा उंची मीनारो का प्रयोग हुआ
- मकबरे निर्माण की परम्परा इसी दौरान प्रारम्भ हुई। सुल्तानो,अमीरों तथा सूफी संतो की मजार पर मकबरे बनने लगे।
- मकबरे बनाने की कला अरब मे भारत आई और इसके प्रयोग से बडी और मजबुत इमारतें बनने लगीं।
- इमारतों की साज-सज्जा मे फूल-पत्तियों, ज्यामितीय आकार तथा कुरान की आयतों का प्रयोग होने लगा। बाद मे हिन्दू साज-सज्जा की वस्तुओं जैसे-घंटियां, कमल,स्वास्तिक का प्रयोग भी होने लगा।यह संयुक्त कला ‘अरबस्क विधि’ कहलाई। सल्तनत कालीन कुछ प्रमुख इमारतें निम्नलिखित है-
कुतुबमीनार- कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206 ई. मे अपने गुरु कुतुबुद्दीन बख्तियार खिलजीकी याद मे इसका निर्माण दिल्ली के पस महरौली मे करवाया। इसका निर्माण इल्तुतमिश के द्वारा 1231ई. मे पूरा हुआ। पर्सी ब्राउन के अनुसार यह इस्लाम शक्ति के उद्घोष के रुप मे स्थापित कराई गई ।
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद - इस मस्जिद का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1192ई. मे तराइन के दूसरे युद्ध की विजय के बाद इस्लाम की विजय के उपलक्ष्य मे राय पिथोरा मे करवाया। इल्तुतमिश तथा अलाउद्दीन ख्लिजी ने इसका विस्तार करवाया। यह भारत में निर्मित पहली तुर्की मस्जिद है।
अढाई दिन का झोपडा - कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा अजमेर मे निर्मीत यह इमारत वास्तव मे एक मस्जिद है। यह मस्जिद कुव्वत उल इस्लाम से भी लगभग दुगुने आकार की है। इसका विस्तार भी इल्तुतमिश ने करवाया।
अलाई दरवाजा - यह कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद का चौथा दरवाजा है जिसका निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने 1310-11 ई. मे करवाया।
सल्तन कालीन अन्य इमारतें
भवन | निर्माता |
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद | कुतुबुद्दीन ऐबक |
कुतुब मीनार | ऐबक व इल्तुतमिश |
अढाई दिन का झोपडा | ऐबक |
दरगाह मुइनुद्दीन चिश्ती | इल्तुतमिश |
सीरी का किला | अलाउद्दीन खिलजी |
अलाई दरवाजा | अलाउद्दीन खिलजी |
दरगाह शेख निजामुद्दीन | खिज्र खां |
अदीना मस्जिद | सिकन्दर शाह |
अटाला मस्जिद | इब्राहिम शाह शर्की |
चॉद मीनार (चार मीनार) | अहमदशाह बहमनी |
कीर्ति स्तम्भ (विजय स्तम्भ) | राणा कुम्भा |
सल्तनत कालीन प्रशासनिक व्यवस्था
दीवान-ए-इसराफ | लेखा, परीक्षक विभाग। |
दीवान-ए-विजारत | राजस्व । |
आरिजे-मुमालिक | सेना का प्रधान । |
दीवाने मुस्तखराज | वित्त विभाग । |
सद्र उस सद्र | धार्मिक मामले । |
मुस्तौफी | महालेखा परीक्षक । |
बरीद-ए-मुमालिक | गुप्तचर । |
बारबक | राजदरबार का प्रबंध देखने वाला । |
सर-ए-जहांदार | सुल्तान के व्यक्तिगत अंगरक्षको का प्रधान । |
अमीर-ए-आखुर | घुडसाल का प्रधान । |
बहमनी साम्राज्य (1347-1518ई. )
- संस्थापक-अलाउद्दीन हसन बहमन शाह(हसनगंगू) 1347-1358
- अंतिम- शिहाबुद्दीन मुहम्मद (दक्षिण की लोमडी) 1482-1518
बहमनी के 5 स्वतंत्र राज्य
वंश | राजधानी | स्थापना |
इमादशाही | बरार | 1484ई. |
आदिलशाही | बीजापुर | 1489ई. |
निजामशाही | अहमदनगर | 1490ई. |
कुतुबशाही | गोलकुण्डा | 1512ई. |
रीदशाहीब | बीदर |
1526ई. |
विजय नगर साम्राज्य (1336-1652ई.)
संगम वंश(1336-1485ई.)
संस्थापक- | हरिहर प्रथम | 1336-1356 |
बुक्का प्रथम | 1356-1377 | |
देवराय प्रथम | 1406-1422 | |
देवराय द्वितीय | 1422-1446 | |
सालुव वंश | 1484-1505ई. | |
संस्थापक- | नरसिंह सालुव | 1485-1491 |
तुलुव वंश | 1505-1507ई. | |
संस्थापक- | वीर नरसिंह | 1505-1509ई. |
कृष्णदेवराय | 1509-1529ई. |
अरिविडु वंश (1570-1652)
संस्थापक- | तिरुमल | 1570-1572 |
श्रीरंग | 1572-1585ई. |
भक्ति आंदोलन
उत्तर भारत मे भक्ति आन्दोलन का प्रचार दो संप्रदायों सगुण संप्रदाय और निर्गुण संप्रदाय के द्वारा किया गया।
निर्गण संप्रदाय के संप्रदाय के संत निम्न है-
- रामानंद (14वीं -15वी शताब्दी) को भक्ति आन्दोलन को उत्तर भारत में लाने का श्रेय प्राप्त है। यह आचार्य रामानुज पिढी के ये पहले संत थें। इनके 12 शिष्यो मे चार निम्न जाति के थें कबीर-जुलाहा,रैदास-चमार, सेन-नाई तथा धन्ना-जाट।
- कबीरदास (1398-1518) ने निराकार ईश्वर तथ ईश्वर की एकता को महत्ता दी। इन्होने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर जोर दिया। इन्होने हिन्दु-मुस्लिम एकता पर जोर दिया।इनके शिष्य’भागदास’ ने ‘बीजक’ का संकलन किया। इनकी मृतयु मगहर में हुई।
- गुरु नानक(1469-1539ई. )का जन्म लाहौर के पास तलवंडी नामक स्थान मे हुआ था। यह सिकखों के प्रथम गुरु थें। इन्होने आदिग्रंथ का संकलन किया। गुरुनानक के बाद निम्न गुरु हुए-
- गुरु अंगद(1538-1552ई.) गुरुमुखी लिपि के जनक
- गुरु अमरदास (1552-1574ई.)गद्दियों की स्थापना, लंगर की स्थापना
- गुरु रामदास(1552-1574ई.) गुरु पद वंशानुगत, अमृतसर की स्थापना(1577)
- गुरु अर्जुनदेव (1581-1606ई.)गुरु ग्रंथ साहब का संकलन, आध्यात्मिक कर लगाया एवं स्वर्ण मंदिर की नींव डाली। जहांगीर द्वारा 1606ई; मे फांसी की सजा दी गई।
- गुरु हरगोविन्द सिंह (1606-1645ई.)जहांगीर द्वारा कैद की सजा दी गयी (1611तक)
- गुरु हरराय (1645-1661ई.) अकाल तख्त की स्थापना( सिक्खो का सैन्यीकरण
- गुरु हरकिशन (1661-1664ई.) अल्पव्यस्कता में ही मृत्यु
- गुरु तेगबहादुर (1664-1675ई.) प्रशासनिक पद कबुल किया। इस्लाम धर्म न कबुल करने के कारण औरंगजेब द्वारा फांसी।
- गुरु गोविन्द सिंह (1675-1708ई.) अंतिम गुरु, खालसा पंथ की स्थापना, पाहुल नामक त्योहार प्रारंभ।
- दादू दयाल (1544-1603ई.) ने अहमदाबाद में भक्ति आंदोलन का प्रचार किया। इन्होने कबीर के उपदेशो को व्यावहारिक रुप दिया। यह ब्रम्ह संप्रदाय के संस्थापक थे।
- जगजीवन दास ने बाराबंकी क्षेत्र मे भक्ति आंदोलन का प्रचार किया। यह सतनामी संप्रदाय के प्रवर्तक थे। निर्गण संत होने के बावजूद कृष्ण की उपासना पर जोर दिया। इनके उल और करणदास दो शिष्य थे।
- बाबा मलूक दास (इलाहाबाद) गरीबदास रैदास तथा सुंदरदास निर्गण संप्रदायक के प्रमुख स्रोत थे।
- ज्ञानदेव ने तेरहवी शताब्दी मे महाराष्ट्र धर्म कहा गया ये विठोवा के पुजारी थे। भागवत गीता पर इन्होने ज्ञानेश्वरी नामक भाष्य लिखा। इन्हे ज्ञानेश्वर भी कहा जाता है
- नामदेव चौदहवीं शताब्दी के महाराष्ट्र के सन्त थे। नामदेव पेशे से दर्जी थ। इन्होन मराठों के राजनैतिक उत्थान के लिए कार्य किया।
- एकनाथ सोलहवीं शताब्दी के सन्त थें। इन्होने जाति-विभेदो का विरोध किया। यह बरकरी संप्रदाय से संबंधित थे।
- तुकाराम सत्रहवी शताब्दी के महाराष्ट्र के पंढरपुर के संत थे। यह विट्वल के महान उपासक थे तथा बरकरी संप्रदाय से संबंधित थें। यह शिवाजी के समकालीन थे।
- समर्थ गुरु रामदास ने दासबोध नामक ग्रंथ की रचना की। यह शिवाजी के गुरु भी थें ।
- रामनुज ग्यारहवीं शताब्दी के सन्त थे। इन्होने विशिष्टाद्वैतवाद के सिध्दांत का प्रतिपादन किया ।
- माधवाचार्य तेरहवी शताब्दी के संत थे। इन्होने द्वैत-दर्शन संप्रदाय का प्रतिपादन किया। इनके अनुसार जगत एक भ्रम नही बल्कि एक वास्तविकता है।
- निम्बार्क ने द्वैताद्वैत के सिध्दांत का प्रतिपादन किया। इनके अनुसार ब्रम्हा सत्ता स्वयं को आत्मा और जगत मे रुपातरित करती है, इसलिए वह ब्रम्हा से भिन्न है ।
- बल्लभाचार्य पंद्रहवी तथा सोलहवी शताब्दी के संत थें। इन्होने शुध्द-अद्वैत मत का प्रतिपादन किया। यह कृष्ण के उपसक थे। इसके अनुसार गृहस्थ आश्रम मे रहते हुए भी भक्ति मार्ग के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति संभव है । वल्लभ का मत पुष्टिमार्ग या दया के मार्ग के नाम से भी जाना जाता था।
प्रमुख मत एवं उसके प्रवर्तक
द्वैतवाद | माधवाचार्य |
शैव विशिष्टाद्वैतवाद | श्रीकंठ |
वीर शैव विशष्टाद्वैतवाद | श्रीपति |
भेदाभेदवाद | भास्कराचार्य |
अचिन्त्यभेदाभेदवाद | बलदेव |
विशिष्टाद्वैतवाद | रामानुजाचार्य |
द्वैताद्वैतवाद | निम्बकाचार्य |
शुद्ध द्वैतवाद | वल्लभाचार्य |
सगुण संप्रदाय के संत
चैतन्य (1486-1533) ने बंगाल के नदिया जिले मे भक्ति आंदोलन में संकीर्तन प्रणाली को प्रचलित किया। यह गौरांग महाप्रभु के नाम से जाने जाते थें। यह जयदेव और विद.यापति की परंपरा से भी जुडे हुए थें तथा इन्हे कृष्ण का अवतार भी माना जाता था। इनके गुरु ईश्वरपुरी थें।
सूरदास (1483-1563) दक्षिण भारत के संत बल्लभाचार्य के शिष्य थें। इन्होने सूरसागर तथा सूर सारावली ग्रंथ की रचना की।
मीराबाई (1498-1569ई.) सिसौदिया वंश की बहु थीं यह कृष्ण की उपासिका थी इन्होने राजस्थान मे कृष्ण का प्रचार किया
तुलसीदास (1532-1623) ने राम भक्ति का प्रचार किया। इन्होने रामचरितमानस, विनय पत्रिका, कवितावली, गीतावली, रत्नावली, पार्वती मंगल, जानकी मंगल जानकी मंगल आदि ग्रंथो की रचना की।
शंकरदेव (1532-1523) ने असम मे भक्ति आन्दोलन का प्रचार किया। यह शरण संप्रदाय या महापुरुषीय संप्रदाय कि प्रवर्तक थे।
इस्लाम की मूर्तिभंजक नीति, निम्न वर्ग की आर्थिक स्थिति मे सुधार ने लोगो की सामाजिक उपेक्षाओं को जगाया, इस्लाम के सृजनात्मक प्रभाव एवं एकेश्वरवाद एवं समानता की भावना के कारण भक्ति आन्दोलन का उदय हुआ। ब्रजभाषा, खडी बाली, राजस्थानी, बंगाली, पंजाबी, अरबी आदि भाषाओ में भक्ति आन्दोलन के संतो ने उपदेश दिये, जिनसे आगे चलकर आधुनिक भारतीय भाषा का विकास हुआ।
प्रमुख संप्रदाय एवं उसके प्रवर्तक
रामवत संप्रदाय | रामानंद |
उदासी संप्रदास | श्री चंद(गुरु नानक के पुत्र) |
विश्नोई संप्रदाय | जंभनाथ |
श्री संप्रदाय | रामानुज |
ब्रम्हा संप्रदाय | माधवाचार्य |
हरिदासी संप्रदाय | माधवाचार्य |
सूफी संत
सूफी शब्द की उत्पत्ति अरबी शब्द सफा से हुई है जिसका अर्थ पवित्रता और विशुध्दता होता है । कुछ विद.वानो का मत है कि सफा शब्द का अर्थ भेड के बाल होता है । सूफी लोग भेंड की उन का वस्त्र पहनते थे। इसलिए सूफी कहलाये। भारत में सूफी मत का विकास तुर्की राज्य की स्थापना के बाद हुआ। सूफी मत के मानने वाले एक ही ईश्वर मे विश्वास करते थे और भौतिक जीवन के त्याग पर विशेष बल देते थे। इन्होने कर्मकाण्डो का घोर विरोध किया और शांति, अहिंसा तथा धार्मिक सहिष्णुता पर विशेष बल दिया। वहादतुल वुजूद अथवा आत्मा–परमात्मा की एकता का सिद्धांत सूफी मत का आधार था। भारत में सूफी धर्म कई संप्रदायों मे बंटा हुआ था जिसे सिलसिला कहा जाता था। ये सिलसिले दो वर्गों मे विभाजित थे।
- बा-शरा अर्थात इस्लामी विधी(शरा) का अनुकरण करने वाला।
- बे-शरा अर्थात जो इस्लामी विधी से बंधे हुए नहीं थे।
पहली महिला सूफी संत रबिया थी।
पीर-गुरु, मुरीद-शिष्य, वली-उत्तराधिकारी को कहते थें।
खानकाह का अर्थ है- सूफी संत के रहने की जगह।
सिलसिला | काल एवं संत | संस्थापक |
चिश्ती | 12वीं शताब्दी शिष्य-कुतुबुद्दीन बख्त्यार काकी निजामुद्दीन औलिया अमीर खुसरो, शेख बुरहानुद्दीन | ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती |
सुहरावर्दी | 12वीं श्ताब्दी (संगीत और शानों शौकत पसंद) | शिहाबुद्दीन सुहरावर्दीग (भारत मे बहाउद्दीन जकारिया) |
शत्तारी | 15वीं शताब्दी | शेख अब्दुल कादिर |
नक्शवंदी | 16वी शताब्दी | ख्वाजावाकी विल्लाह |
फिरदौसी | 16वी शताब्दी | बदरुद्दीन |
विदेशी यात्री
यात्री | देश | शासक |
निकालो कोंटी | इटली | देवराय प्रथम |
अब्दुर्रज्जाक | फारस | देवराय व्दितीय |
नूनिज | पुर्तगाल | मल्लिकार्जुन |
पायस | पुर्तगाल | कृष्णदेवराय |
बारबोसा | पुर्तगाल | कृष्णदेवराय |
मुगल वंश (1526-1540तथा 1555-1707)
जहीरुद्दीन बाबर | 1526-1530ई. |
हूमायॅू | 1530-1540ई. तथा 1555-1556ई. |
अकबर | 1556-1605ई. |
जहांगीर | 1605-1627ई. |
शाहजहॉ | 1627-1658ई. |
औरंगजेब | 1658-1707ई. |
सूरवंश (1540-1555ई.)
शेरशाह सूरी | 1540-1545ई. |
इस्लाम शाह | 1545-1553ई. |
आदिल शाह | 1553-1555ई. |
शेरशाह का प्रशासन
शेरशाह ने अलाउद्दीन खिलजी की शासन पद्धति के आधार पर अफगान राज्य की स्थापना की। इसके काल मे पॉच प्रमुख विभाग थे
दीवान-ए-विजारत | भू-राजस्व |
दीवान-ए-आरिज | सैन्यविभाग |
दीवान-ए-रिसालत | धार्मिक |
दीवान-ए-कजा | न्याय |