चन्देल राजवंश का इतिहास एवं महत्वपूर्ण तथ्यों की सूची:
चन्देल वंश:
चन्देल वंश गोंड जनजातीय मूल का प्रसिद्ध राजपूत वंश था, जिसने 8वीं से 12वीं शताब्दी तक स्वतंत्र रूप से राज किया। प्रतिहारों के पतन के साथ ही चंदेल 9वीं शताब्दी में सत्ता में आए। चंदेल वंश के शासकों का बुंदेलखंड के इतिहास में विशेष योगदान रहा है। उन्होंने लगभग चार शताब्दियों तक बुंदेलखंड पर शासन किया। उनका साम्राज्य उत्तर में यमुना नदी से लेकर सागर (मध्य प्रदेश, मध्य भारत) तक और धसान नदी से विंध्य पहाड़ियों तक फैला हुआ था। सुप्रसिद्ध कालिंजर का क़िला, खजुराहो, महोबा और अजयगढ़ उनके प्रमुख गढ़ थे। चंदेलकालीन स्थापत्य कला ने समूचे विश्व को प्रभावित किया उस दौरान वास्तुकला तथा मूर्तिकला अपने उत्कर्ष पर थी। खजुराहो के मंदिर इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं।
चन्देल वंश (साम्राज्य) का इतिहास:
चन्देल वंश गोंड जनजातीय मूल का राजपूत वंश था, जिसने उत्तर-मध्य भारत के बुंदेलखंड पर कुछ शताब्दियों तक शासन किया। गोंड (जनजाति), भारत की एक प्रमुख जनजाति हैं। गोंड भारत के कटि प्रदेश - विंध्यपर्वत, सतपुड़ा पठार, छत्तीसगढ़ मैदान में दक्षिण तथा दक्षिण-पश्चिम में गोदावरी नदी तक फैले हुए पहाड़ों और जंगलों में रहनेवाली आस्ट्रोलायड नस्ल तथा द्रविड़ परिवार की एक जनजाति, जो संभवत: पाँचवीं-छठी शताब्दी में दक्षिण से गोदावरी के तट को पकड़कर मध्य भारत के पहाड़ों और जंगलों में फैल गई। आज भी मोदियाल गोंड जैसे समूह हैं जो जंगलों में प्राय: नंगे घूमते और अपनी जीविका के लिये शिकार तथा वन्य फल मूल पर निर्भर हैं। गोंडों की जातीय भाषा गोंडी है जो द्रविड़ परिवार की है और तेलुगु, कन्नड़, तमिल आदि से संबन्धित है।
चन्देल वंश की स्थापना तथा शासक:
जेजाकभुक्ति के प्रारम्भिक शासक गुर्जर प्रतिहार शासकों के सामंत थे। इन्होनें खजुराहो को अपनी राजधानी बनाया। नन्नुक चन्देल वंश का पहला राजा था। उसके अतिरिक्त अन्य सामंत थे- वाक्पति, जयशक्ति (सम्भवतः इसके नाम पर ही बुन्देलखण्ड का नाम जेजाक भुक्ति पड़ा) विजय शक्ति, राहिल एवं हर्ष।
चन्देल राजवंश के शासकों की सूची:
- नन्नुक (831 - 845 ई.) (संस्थापक)
- वाक्पति (845 - 870 ई.)
- जयशक्ति चन्देल और विजयशक्ति चन्देल (870 - 900 ई.)
- राहिल (900 - ?)
- हर्ष चन्देल (900 - 925 ई.)
- यशोवर्मन (925 - 950 ई.)
- धंगदेव (950 - 1003 ई.)
- गंडदेव (1003 - 1017 ई.)
- विद्याधर (1017 - 1029 ई.)
- विजयपाल (1030 - 1045 ई.)
- देववर्मन (1050-1060 ई.)
- कीरतवर्मन या कीर्तिवर्मन (1060-1100 ई.)
- सल्लक्षणवर्मन (1100 - 1115 ई.)
- जयवर्मन (1115 - ?)
- पृथ्वीवर्मन (1120 - 1129 ई.)
- मदनवर्मन (1129 - 1162 ई.)
- यशोवर्मन द्वितीय (1165 - 1166 ई.)
- परमार्दिदेव अथवा परमल (1166 - 1203 ई.)
खजुराहो के नागर-शैली के मंदिर एवं कला:
चंदेल शासन परंपरागत आदर्शों पर आधारित था। चंदेलों को उनकी कला और वास्तुकला के लिए जाना जाता है। उन्होंने विभिन्न स्थानों पर कई मंदिरों, जल निकायों, महलों और किलों की स्थापना की। उनकी सांस्कृतिक उपलब्धियों का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण खजुराहो में हिंदू और जैन मंदिर हैं। तीन अन्य महत्वपूर्ण चंदेला गढ़ जयपुरा-दुर्गा (आधुनिक अजैगढ़), कलंजरा (आधुनिक कालिंजर) और महोत्सव-नगर (आधुनिक महोबा) थे। हम्मीरवर्मन को वीरवर्मन द्वितीय द्वारा सफल किया गया था, जिनके शीर्षक उच्च राजनीतिक स्थिति का संकेत नहीं देते हैं। परिवार की एक छोटी शाखा ने कलंजारा पर शासन जारी रखा: इसके शासक को 1545 ईस्वी में शेरशाह सूरी की सेना ने मार डाला। महोबा में एक और छोटी शाखा ने शासन किया: दुर्गावती, इसकी एक राजकुमारी ने मंडला के गोंड शाही परिवार में शादी की। कुछ अन्य शासक परिवारों ने भी चंदेला वंश का दावा किया। नीचे खजुराहो के नागर-शैली के मंदिर एवं कला की सूची दी गई है-
- कंदरीया महादेव मंदिर
- लक्ष्मण मंदिर
- विश्वनाथ मंदिर
- कंदरीय महादेव मंदिर
- पार्श्वनाथ मंदिर, खजुराहो
- खजुराहो का दुलहदेव मंदिर
- अजयगढ़ महल
- खजुराहो का प्रतापेश्वर मंदिर
- अजयगढ़ मंदिर
- कुलपहाड़ का यज्ञ मण्डप आदि
चन्देल वंश (साम्राज्य) का अंत:
चंदेल राजा नंद या गंड ने लाहौर में तुर्कों के ख़िलाफ़ अभियान में एक अन्य राजपूत सरदार जयपाल की मदद की, लेकिन ग़ज़ना (ग़ज़नी) के महमूद ने उन्हें पराजित कर दिया था। 1023 ई. में चंदेलों का स्थान बुंदेलों ने ले लिया। 1203 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने परार्माददेव को पराजित कर कालिंजर पर अधिकार कर लिया और अंततः 1305 ई. में चन्देल राज्य दिल्ली में मिल गया।