प्राचीन भारत (Acient History)
पुरा पाषाण काल- यह काल आखेटक और खाद्य संग्राहक काल के रुप मे भी जाना जाता है। इस काल मे मानव गुफाओ मे रहता था निम्न पुरा पाषाण मे मनुष्य ने कुल्हाडी और बनाना शुरु कर दिया था। इस काल से मनुष्य अग्नि का प्रयोग सीख गया।
मध्य पाषाण काल -
इस काल मे मनुष्य पशु पालक प्रमुख विशेषता लघु पाषाण उपकरण है जो क्वार्टजाइट के स्थान पर एगेट, जेस्पर और चर्ट के बने हुऐ थे। इस काल के मनुष्य ने झोपडिया बनाकर समूह मे रहना शुरु कर दिया था। उसने चक्र या पहिए की खोज कर ली थी।
नव पाषाण काल -
ले मेसुरियर ने सबसे पहले टोंस नदी घाटी मे इस काल के उपकरण को खोजा।मेहरगढ मे कृषि के एवं बसावट के प्रत्यक्ष प्रमाण मिले। चिरांद (बिहार),कोलडीहवा(उत्तर प्रदेश),बुर्जहोम(कश्मीर),इसके प्रमुख क्षेत्र है।इस काल मे पालिश्दार मृदभांड बनने शुरु हो गये थे।
1- कोल्डीहवा मे चावल के प्राचीनतम साक्ष्य मिले है।
2- बुर्जहोम से गर्त आवास मिला है।
3- सराय नाहर राय और महदहा से स्थाई झोपडिया मिली है।
ताम्र पाषाण काल-
तांबा सबसे पहली बार भारत में प्रयोग किया गया। इस काल मे तांबा और पत्थर का साथ साथ प्रयोग हुबा। तांबा संभवत: 5000ई0 पू0 खोजा गया। यह मुख्य रुप से राजस्थान मे प्राप्त् हुआ। भारत मे प्रमुख ताम्र- पाषाण संस्कृतियां निम्नलिखित है:-
कायथ संस्कृति- 2000-1800 ई.पू.
अहाड संस्कृति-1700-1500 ई.पू.
मालवा संस्कृति-1500-1200 ई.पू.
जोर्वे संस्कृति-1400-700 ई.पू.
इस काल के लोग गेहूं धान दाल इत्यादि की खेती तथा पशुपालन करते थे।पश्चिमी महाराष्ट्र मे अहमदनगर के पास जोर्वे, मध्य भारत मे कायथ तथा मालवा पश्चिमी राजस्थान मे अहाड नामक स्थान पर किये गये व्यापक उत्खनन से इस काल के प्रमाण प्राप्त हूए है। कई हडप्पा कालीन नगर जैसे कालीबंगन और बनावली ताम्रपाषाण कालीन है। ताम्रपाषाण कालीन लोगो ने ही बडे-बडे गांवो की स्थापना की। ये खाद्य उत्पादक बन गये।
लौह संस्कृति-
भारत मे लोहे का प्रयोग तांबे के बाद सबसे पहले उपरी गंगा को दोआब, मालवा का पठार और दक्षिण भारत मे महापाषाण कालीन क्षेत्रो मे हुआ। इस संस्कृति का कालक्रम 1000 ई.पू. से 500 ई.पू. का है। लोहे का पहला प्रमाण मेरठ के पास अलमगीरपुर से प्राप्त हुए है 1000 BC में।