गुजरात पश्चिमी भारत में स्थित एक राज्य है। इसकी उत्तरी-पश्चिमी सीमा जो अन्तर्राष्ट्रीय सीमा भी है, पाकिस्तान से लगी है। प्राचीनता एवं ऐतिहासिकता की दृष्टि से गुजरात, भारत का अत्यंत महत्त्वपूर्ण राज्य है। इसकी उत्तरी-पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से लगी है। गुजरात का क्षेत्रफल 1,96,024 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ मिले पुरातात्विक अवशेषों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस राज्य में मानव सभ्यता का विकास 5 हज़ार वर्ष पहले हो चुका था। कहा जाता है कि ई. पू. 2500 वर्ष पहले पंजाब से हड़प्पा वासियों ने कच्छ के रण पार कर नर्मदा की उपत्यका में मौजूदा गुजरात की नींव डाली थी। गुजरात ई.पू. तीसरी शताब्दी में मौर्य साम्राज्य में शामिल था। जूनागढ़ के अभिलेख से इस बात की पुष्टि होती है। पाँचवीं शताब्दी में हूणों के आक्रमण के बाद उत्तराखंड से गुर्जरों का इस क्षेत्र में आगमन हुआ। गुजरात पर चौथी-पाँचवीं शताब्दी के दौरान गुप्त वंश का शासन रहा। नौवीं शताब्दी में सोलंकी वंश का शासन रहा। 10 वीं शताब्दी में मूलराज सोलंकी ने आधुनिक गुजरात की स्थापना की। गुजरातवासी वाणिज्य व्यापार में कुशल होते है। विदेशों में बसे असंरथ गुजरातवासियों ने अपने व्यापार कौशल से अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में भी ख्याति अर्जित की है। महात्मा गाँधी का जन्म प्रदेश गुजरात द्रुत गति से औद्योगिक विकास कर रहा है।
गुजरात नाम, गुर्जरत्रा से आया है। गुर्जरों का साम्राज्य 6ठीं से 12वीं सदी तक गुर्जरत्रा या गुर्जर-भूमि के नाम से जाना जाता था। गुर्जर एक समुदाय है। प्राचीन महाकवि राजशेखर ने गुर्जरों का सम्बन्ध सूर्यवंश या रघुवंश से बताया है। कुछ विद्वान् इन्हें मध्य-एशिया से आये आर्य भी बताते हैं। गुर्जरों की भूमि के रूप में गुजरात को जाना जाता है। इस प्रकार गूर्जरराष्ट्र से विकृत होते-होते उसका नामंतरण गुजरात के रूप में हुआ।
गुजरात का इतिहास ईस्वी पूर्व लगभग 2,000 साल पुराना है। यह भी मान्यता है कि भगवान कृष्ण मथुरा छोड़कर सौराष्ट्र के पश्चिमी तट पर जा बसे थे, जो द्वारका अर्थात् प्रवेशद्वार कहलाया। बाद के वर्षों में मौर्य, गुप्त, प्रतिहार तथा अन्य अनेक राजवंशों ने इस प्रदेश पर शासन किया। चालुक्य, सोलंकी राजाओं का शासन काल गुजरात के लिए प्रगति और समृद्धि का युग था। महमूद ग़ज़नवी की लूटपाट के बाद भी चालुक्य राजाओं ने यहाँ के लोगों की समृद्धि और भलाई का पूरा ध्यान रखा। इस गौरवपूर्ण काल के पश्चात् गुजरात को मुसलमानों, मराठों और ब्रिटिश शासन के दौरान बुरे दिनों का सामना करना पड़ा। आज़ादी से पहले आज का गुजरात मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित था-
राज्यों के पुनर्गठन के कारण सौराष्ट्र के राज्यों और कच्छ के केंद्र शासित प्रदेश के साथ पूर्व ब्रिटिश गुजरात को मिलाकर द्विभाषी मुंबई राज्य का गठन हुआ। पहली मई, 1060 को वर्तमान गुजरात राज्य अस्तित्व में आया। गुजरात भारत के पश्चिमी तट पर स्थित है। इसके पश्चिम में अरब सागर, उत्तर में पाकिस्तान तथा उत्तर-पूर्वी सीमा पर राजस्थान, दक्षिण-पूर्वी सीमा पर मध्य प्रदेश और दक्षिण में महाराष्ट्र है।
राजधानी | गांधीनगर |
राजभाषा(एँ) | गुजराती, हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, पंजाबी, मराठी |
स्थापना | 1 मई, 1960 |
जनसंख्या | 60,383,628 |
| घनत्व | 258 /वर्ग किमी |
क्षेत्रफल | 1,96,024 वर्ग किलोमीटर(देश में छठवाँ स्थान) |
भौगोलिक निर्देशांक | 23.2167°N 72.6833°E |
तापमान | 30 °C (औसत) |
| ग्रीष्म | 25 - 15 °C |
| शरद | 15 - 35° C |
वर्षा | 93.2 मिमी |
ज़िले | 33 |
सबसे बड़ा नगर | अहमदाबाद |
बड़े नगर | जूनागढ़, जामनगर, राजकोट, भावनगर, गांधीनगर, वडोदरा |
मुख्य ऐतिहासिक स्थल | सोमनाथ, सौराष्ट्र, लंघनाज, धौलावीरा, खंभात, सुरकोटदा, अन्हिलवाड़, रंगपुर |
मुख्य पर्यटन स्थल | द्वारिकाधीश मंदिर, कच्छ का रण, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, अक्षरधाम मंदिर, लोथल आदि |
लिंग अनुपात | 1000:920 ♂/♀ |
साक्षरता | 79.31% |
| स्त्री | 57.8% |
| पुरुष | 79.7% |
उच्च न्यायालय | गुजरात हाईकोर्ट, अहमदाबाद |
राज्यपाल | आचार्य देवव्रत |
मुख्यमंत्री | भूपेन्द्र पटेल |
विधानसभा सदस्य | 182 |
लोकसभा क्षेत्र | 26 |
राज्यसभा सदस्य | 11 |
राजकीय पशु | गिरसिंह |
राजकीय पक्षी | हंसावर |
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में गुजरात के अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने योगदान दिया है जिसमें से प्रमुख हैं- कस्तूरबा गाँधी, महात्मा गाँधी, अश्विनी कुमार दत्त, सरदार पटेल, जीवराज मेहता, हंसा मेहता, गणेश वासुदेव मावलंकर, विट्ठलदास झवेरभाई पटेल, महादेव देसाई, मनीभाई देसाई आदि।
भारत के स्वतंत्र होने के समय यह प्रदेश मुम्बई राज्य का अंग था। अलग गुजरात का जन्म 1 मई, 1960 को हुआ।
गुजरात को तीन भौगोलिक क्षेत्रों में बाँटा गया है जैसे-
गुजरात की सबसे ऊँची चोटी गिरिनार पहाड़ियों में स्थित गोरखनाथ की चोटी है, जो 1117 मीटर ऊँची है। गुजरात की जलवायु ऊष्ण प्रदेशीय और मानसूनी है। वर्षा की कमी के कारण इस प्रदेश में रेतीली और बलुई मिट्टी पायी जाती है। प्रदेश में पूर्व की ओर उत्तरी गुजरात में वर्षा की मात्र 50 सेमी तक होती है। इसके दक्षिण की ओर मध्य गुजरात में मिट्टी कुछ अधिक उपजाऊ है तथा जलवायु भी अपेक्षयता आर्द्र है। वर्षा 75 सेमी तक होती है। नर्मदा, ताप्ती, साबरमती, सरस्वती, माही, भादर, बनास, और विश्वामित्र इस प्रदेश की सुपरिचित नदियाँ हैं। सरदार सरोवर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध है। नर्मदा नदी पर स्थित यह बाँध 800 मीटर ऊँचा है। नर्मदा नदी पर बनने वाले 30 बांधों में सरदार सरोवर और महेश्वर दो सबसे बड़ी बांध परियोजनाएं हैं, किन्तु इनका हर बार विरोध होता रहा है। इन परियोजनाओं का उद्देश्य गुजरात के सूखाग्रस्त इलाक़ों में पानी पहुंचाना और मध्य प्रदेश के लिए बिजली पैदा करना है। कर्क रेखा इस राज्य की उत्तरी सीमा से होकर गुजरती है, अतः यहाँ गर्मियों में खूब गर्मी तथा सर्दियों में खूब सर्दी पड़ती है। शहरीकरण की प्रक्रिया ने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न कुछ स्वरूप धारण किए हैं। राज्य का सर्वाधिक शहरीकृत क्षेत्र अहमदाबाद-वडोदरा औद्योगिक पट्टी है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-8 के किनारे उत्तर में ऊंझा से दक्षिण में वापी के औद्योगिक मैदान में एक वृहदनगरीय क्षेत्र उभर रहा है। सौराष्ट्र कृषि क्षेत्र में क्रमिक बसाव प्रणाली को देखा जा सकता है, जबकि उत्तर और पूर्व के बाह्य क्षेत्रों में बिखरी हुई छोटी-छोटी बस्तियाँ हैं, जो शुष्क, पर्वतीय या वनाच्छादित क्षेत्र हैं। आदिवासी जनसंख्या इन्हीं सीमांत अनुत्पादक क्षेत्रों में केंद्रित है।
भारत के पश्चिमी तट पर स्थित पश्चिम में अरब सागर, उत्तर तथा उत्तर-पूर्व में क्रमशः पाकिस्तान तथा राजस्थान दक्षिण-पूर्व में मध्य प्रदेश तथा दक्षिण में महाराष्ट्र है।
गुजरात अत्यधिक विषमता वाला राज्य है। इसके पश्चिमी तट और मुंबई (भूतपूर्व बंबई) के उत्तर में नम उर्वर चावल उत्पादक मैदानों से लेकर पश्चिमोत्तर में कच्छ के लगभग वर्षाविहीन लवणीय रेगिस्तान हैं। कच्छ ज़िला दक्षिण में कच्छ की खाड़ी तथा उत्तर व पूर्व में पाकिस्तान व मुख्य भारतीय भूमि से कच्छ के रण द्वारा विभाजित है, जिसका वर्णन लगभग 20,720 वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत एक विशाल लवणीय दलदल के रूप में बेहतर तरीके से किया जा सकता है। वर्षा के मौसम में, चाहे कितनी भी कम वर्षा क्यों न हुई हो, रण में बाढ़ आ जाती है। और कच्छ एक द्वीप में परिवर्तित हो जाता है; शुष्क मौसम में यह आंधियों से भरा एक रेतीला नमकीन मैदान है। कच्छ के दक्षिण में काठियावाड़ (सौराष्ट्र) का एक बड़ा प्रायद्वीप है, जो कच्छ की खाड़ी और खंभात की खाड़ी के बीच में है। यह भी एक बंजर क्षेत्र है, जिसके समुद्र तट से ऊपर उठते हुए केंद्र में विरल झाड़ीदार वनों वाला निचला लहरदार पर्वतीय क्षेत्र है। यहाँ के प्रमुख नगर अपेक्षाकृत उर्वर क्षेत्र में स्थित हैं, जो पहले छोटे-छोटे राज्यों की राजधानी थे। यहाँ की मिट्टी ज़्यादातर निम्न कोटि की है, जो कई प्रकार की प्राचीन रवेदार चट्टानों से व्युत्पन्न है, लेकिन उत्कृष्ट भवन निर्माण में काम आने वाला पोरबंदर का पत्थर राज्य के मूल्यवान उत्पादों में आता है। मौसमी नालों के अलावा नदियाँ नहीं हैं। प्रायद्वीप के दक्षिणी किनारे पर भूतपूर्व पुर्तग़ाली क्षेत्र दीव है। पूर्वोत्तर गुजरात मुख्यत: छोटे मैदानों और छोटी-छोटी पहाड़ियों वाला क्षेत्र है। राज्य का उच्चतम बिंदु गिरनार की पहाड़ी (1,117 मीटर) में है। यहाँ वर्षा कम होती है। और जनवरी में तापमान लगभग हिमांक बिंदु तक पहुंच जाता है, जबकि गर्मी के मौसम में तापमान 48 से दर्ज किया गया है। यहाँ की फ़सलों में मुख्यत: ज्वार-बाजरा और थोड़ी मात्रा में कपास है।
मध्य गुजरात के दक्षिणी हिस्से में वर्षा दर अधिक और तापमान में अंतर कम है; और मिट्टी ज़्यादा उपजाऊ है, जो अंशत: दक्कन क्षेत्र के बैसाल्ट चट्टानों से व्युत्पन्न हुई है। इस क्षेत्र का केन्द्र वडोदरा (बड़ौदा) शहर है, जो पहले एक समृद्ध और शक्तिशाली राज्य की राजधानी था और जिसका दक्षिणी हिस्सा अब वडोदरा ज़िला है। यहाँ की महत्त्वपूर्ण नदी नर्मदा है, जो खंभात की खाड़ी में गिरती है। नर्मदा और तापी (ताप्ती) नदी द्वारा गाद जमा किए जाने के कारण खंभात की खाड़ी की गहराई कम हो गई है और यहाँ के भूतपूर्व बंदरगाहों का पतन हो गया। दक्षिणी गुजरात में भरूच और सूरत ज़िले अपनी उर्वर मिट्टी और उच्च क़िस्म की कपास की फ़सलों के लिए प्रसिद्ध हैं। तापी नदी पूर्व दिशा से गहरी खाइयों से होकर सूरत से गुज़रती है। दक्षिणी गुजरात का पूर्वी हिस्सा पहाड़ी है। वास्तव में, पश्चिमी घाट के उत्तरी विस्तार के कारण वर्षायुक्त ग्रीष्म मानसूनी हवाओं से अत्यधिक बारिश होती है। इससे आगे दक्षिण में पर्वत वनाच्छादित हैं। इसी क्षेत्र में छोटा डेंग ज़िला है। तटीय मैदानों में जलवायु में लगभग समानता रहती है यहाँ 2,000 मिमी के लगभग वर्षा होती है।
गुजरात में वनक्षेत्र मात्र 10 प्रतिशत है, जो मानवीय गतिविधियों के साथ-साथ कम वर्षा को प्रतिबिंबत करती है। अपेक्षाकृत शुष्क क्षेत्रों में झाड़ीदार जंगल पाए जाते हैं, जहाँ बबूल अकाकिया, करील, भारतीय बेर और दातुनी झाड़ियां पाई जाने वाली प्रमुख प्रजातियां हैं। 1,016 मिमी वार्षिक वर्षा दर वाली काठियावाड़ उच्चभूमि और पूर्वोत्तर मुख्यभूमि में सागौन, कत्था, गोंद (बैकलीगम), कीली वृक्ष और बंगाल किनो जैसे पर्णपाती वृक्ष पाए जाते हैं। पर्णपाती वन अपेक्षाकृत नम दक्षिणी और पूर्वी पहाड़ियों में केन्द्रित हैं। इनसे मुलायम टोमेंटोसा (घन-रोम), वेंगाई पादौक (महोगनी जैसा), मालाबार सीमल और हृदयाकार पत्तियों वाले अदीना जैसी कीमती लकड़ियां प्राप्त होती है। काठियावाड़ का पश्चिमी तट शैवाल के लिए जाना जाता है, जबकि पूर्वी तट से पपाइरस या पटेरा पौधा (साइपेरस पपाइरस) पाया जाता है। काठियावाड़ के गिर राष्ट्रीय उद्यान में एशियाई प्रजाति की एकमात्र जाति भारतीय सिंह है। कच्छ के छोटे रण के पास एक अभयारण्य में शेष बचे हुए भारतीय जंगली गधे पाए जाते हैं। अहमदाबाद के निकट का नलसरोवर पक्षी अभयारण्य साइबेरिया के मैदानों व अन्य स्थानों से शीत ऋतु में लगभग 140 प्रकार के प्रवासी पक्षियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इनमें सारस, ब्राह्मणी बत्तख़, सोनचिरैया, पेलिकन, पनकौवा, आइबिस, लकलक (स्टॉर्क), बगुला और वक शामिल हैं। भारत में कच्छ का रण हंसावर (फ़्लेमिंगौ) का एकमात्र प्रजनन स्थल है। गुजरात में समुद्री और मीठे पानी की मछलियां पकड़ी जाती हैं। पकड़ी जाने वाली मछलियों में पॉम्फ़्रे सॉलमन, हिल्सा, ज्यूफ़िश (साइएना), झींगा, बॉम्बे डक (खाद्य मछली) और ट्यूना मछली शामिल हैं।
जलवायु संबंधी प्रतिकूल परिस्थियाँ, मृदा और जल की लवणता और चट्टानी इलाक़े ऐसी भौतिक समस्याएँ हैं, जिन्होंने गुजरात की कृषि गतिविधियों को अवरुद्ध किया। राज्य ज़्यादातर सिंचाई पर निर्भर है। भूजल की उपयोगी को बढ़ाने की आवश्यकता है, क्योंकि भूमिगत जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। यह आवश्यक है कि नर्मदा नहर प्रणाली का परिचालन सिंचाई के लिए हो। मुख्य खाद्य फ़सलों में ज्वार-बाजरा, चावल और गेहूँ शामिल हैं। गुजरात में नक़दी फ़सलों का उत्पादन महत्त्वपूर्ण है। गुजरात कपास, तंबाकू और मूँगफली का उत्पादन करने वाले देश का प्रमुख राज्य है तथा यह कपड़ा तेल और साबुन जैसे महत्त्वपूर्ण उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराता है। दिसम्बर 2002 में राज्य में पंजीकृत चालू फैक्टरियों की संख्या 19,696 थी, जिनमें औसत 8.4 लाख दैनिक मज़दूरों को रोज़गार मिला हुआ था। लघु उद्योग क्षेत्र में सितम्बर 2003 तक राज्य में 2.83 लाख लघु औद्योगिक इकाइयों का पंजीकरण हो चुका था। दिसम्बर 2003 तक गुजरात औद्योगिक विकास निगम ने 241 औद्योगिक संपदाएं स्थापित की थीं। गुजरात पैट्रोलियम के उत्पादन में तीसरा बड़ा क्षेत्र है। यहाँ के मुख्य पेट्रोलियम उत्पादक क्षेत्र खम्भात की खाड़ी अंकलेश्वर, बड़ोदरा, मेहसाना तथा अहमदाबाद हैं। गुजरात राज्य का भारत में कपास और मूँगफली उत्पादन में प्रथम और तम्बाकू उत्पादन में द्वितीय स्थान है। हालांकि ज़्यादातर लोग कृषि में संलग्न हैं, पर यहाँ एक सुगठित और अपेक्षाकृत समद्ध वाणिज्यिक समुदाय भी है, जो व्यापार और वाणिज्य में तरक़्क़ी कर रहा है। व्यापार में संलग्न गुजराती लोग देश भर और विदेशों में भी फैले हुए हैं, भारत की औद्योगिक अर्थव्यवस्था में गुजरात का स्थान अग्रणी है। यह राज्य चूना-पत्थर, मैंगनीज़ जिप्सम, कैल्साइट और बॉक्साइट जैसी खनिज संपदा से समृद्ध है। यहाँ पर लिग्नाइट, क्वार्टज़ युक्त रेत, गोमेद (एगेट) और फ़ेल्सपार के भी भंडार हैं। असम के साथ गुजरात भी एक प्रमुख पेट्रोलियम उत्पादक राज्य है। सोडा ऐश और नमक के मामले में कुल राष्ट्रीय उत्पाद का सर्वाधिक हिस्सा यहीं से आता है। सीमेंट, वनस्पति तेल, रसायन और सूती वस्त्र के उद्योग महत्त्वपूर्ण हैं। औषधि उद्योग वडोदरा, अहमदाबाद और अतुल (वलसाड) में केंद्रित है, जो भारत के कुल उत्पादन के एक बड़े हिस्से का निर्माण करते हैं। कोयाली के निकट स्थित तेल परिशोधनशाला ने आसपास के पेट्रो रसायन उद्योग के तीव्र विकास में भूमिका निभाई है। सहकारी वाणिज्यिक डेयरी उद्योग भी महत्त्वपूर्ण है। दुग्ध उत्पादन में "श्वेत क्रांति" इसी राज्य में हुई थी और यह भारत के बच्चों के लिए दुग्ध खाद्य के कुल उत्पादन का 4/5 हिस्से का उत्पादन करता है। लघु उद्योगों का नियमित विकास महत्त्वपूर्ण है। मज़दूरों की समस्या पर गाँधीवादी मार्ग-सत्य पर दृढ़ निर्भरता, अहिंसा, मध्यस्थता द्वारा समझौता, न्यूनतम माँगें और आख़िरी उपाय के रूप में हड़ताल के प्रयोग-ने गुजरात में औद्योगिक संबंधों पर गहरा प्रभाव डाला है, जिसकी वजह से यह राज्य मज़दूर असंतोष से अपेक्षाकृत स्वतंत्र है। यह प्रदेश डेयरी उद्योग में अग्रणी है। गुजरात के आनन्द में नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड का मुख्यालय है।
राज्य के औद्योगिक ढांचे में धीरे-धीरे विविधता आती जा रही है। यहाँ रसायन, पेट्रो-रसायन, उर्वरक, इंजीनियरिंग,इलेक्ट्रॉनिक्स आदि उद्योगों का विकास रहा है।
धुवारन में एक तापविद्युत केंद्र स्थित है। राज्य को महाराष्ट्र राज्य की तारापुर नाभिकीय ऊर्जा इकाई से भी बिजली की आपूर्ति होती है। नर्मदा नदी पर लंबे समय से निर्माणाधीन और विवाद ग्रसित सरदार सरोवर बांध के सबसे बड़े जलविद्युत उत्पादक बनने की आशा है और इससे विस्तृत सिंचाई सुविधा भी मिलेगी।
राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त राज्यपाल गुजरात के प्रशासन का प्रमुख होता है। मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिमंडल राज्यपाल को उसके कामकाज में सहयोग और सलाह देता है। राज्य में एक निर्वाचित निकाय एकसदनात्मक विधानसभा है। उच्च न्यायालय राज्य की सर्वोपरि न्यायिक सत्ता है, जबकि शहरी न्यायालय, ज़िला व सत्र न्यायाधीशों के न्यायालय और प्रत्येक ज़िले में दीवानी मामलों के न्यायाधीशों के न्यायालय हैं। राज्य को 25 प्रशासनिक ज़िलों में बांटा गया है। अहमदाबाद, अमरेली, बनास कंठा, भरूच, भावनगर, डेंग, गाँधीनगर, खेड़ा, महेसाणा, पंचमहल, राजकोट, साबर कंठा, सूरत सुरेंद्रनगर, वडोदरा, वलसाड, नवसारी, नर्मदा, दोहद, आनंद, पाटन, जामनगर, पोरबंदर, जूनागढ़ और कच्छ, प्रत्येक ज़िले का राजस्व और सामान्य प्रशासन ज़िलाधीश की देखरेख में होता है, जो क़ानून और व्यवस्था भी बनाए रखता है। स्थानीय प्रशासन में आम लोगों को शामिल करने के लिए 1963 में पंचायत द्वारा प्रशासन की शुरुआत की गई।
स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाओं में मलेरिया, तपेदिक, कुष्ठ और अन्य संक्रामक रोगों के उन्मूलन के साथ-साथ पेयजल की आपूर्ति में सुधार और खाद्य सामग्री में मिलावट को रोकने के कार्यक्रम शामिल हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, अस्पतालों और चिकित्सा महाविद्यालयों के विस्तार के लिए भी क़दम उठाए गए हैं।
बच्चों, महिलाओं और विकलांगों, वृद्ध, असहाय, परित्यक्त के साथ-साथ अपराधी भिखारी, अनाथ और जेल से छुटे लोगों की कल्याण आवश्यकताओं की देखरेख विभिन्न राजकीय संस्थाएं करती हैं। राज्य में तथाकथित पिछड़े वर्ग के लोगों की शिक्षा, आर्थिक विकास, स्वास्थ्य और आवास की देखरेख के लिए एक अलग विभाग है।
गुजराती जनसंख्या में विविध जातीय समूह का मोटे तौर पर इंडिक / भारतोद्भव (उत्तरी मूल) या द्रविड़ (दक्षिणी मूल) के रूप में वर्गीकरण किया जा सकता है। पहले वर्ग में नगर ब्राह्मण, भटिया, भदेला, राबरी और मीणा जातियां (पारसी, मूल रूप से फ़ारस से, परवर्ती उत्तरी आगमन का प्रतिनिधित्व करते हैं), जबकि दक्षिणी मूल के लोगों में वाल्मीकि, कोली, डबला, नायकदा व मच्छि-खरवा जनजातिया हैं। शेष जनसंख्या में आदिवासी भील मिश्रित विशेषताएं दर्शाते हैं। अनुसूचित जनजाति और आदिवासी जनजाति के सदस्य प्रदेश की जनसंख्या का लगभग पाँचवां हिस्सा हैं। यहाँ डेंग ज़िला पूर्णत: आदिवासी युक्त ज़िला है। अहमदाबाद ज़िले में अनुसूचित जनजाति का अनुपात सर्वाधिक है। गुजरात में जनसंख्या का मुख्य संकेंद्रण अहमदाबाद, खेड़ा, वडोदरा, सूरत और वल्सर के मैदानी क्षेत्र में देखा जा सकता है। यह क्षेत्र कृषि के दृष्टिकोण से उर्वर है और अत्यधिक औद्योगीकृत है। जनसंख्या का एक अन्य संकेंद्रण मंगरोल से महुवा तक और राजकोट एवं जामनगर के आसपास के हिस्सों सहित सौराष्ट्र के दक्षिणी तटीय क्षेत्रों में देखा जा सकता है। जनसंख्या का वितरण उत्तर (कच्छ) और पूर्वी पर्वतीय क्षेत्रों की ओर क्रमश कम होता जाता है। जनसंख्या का औसत घनत्व 258 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी (2001) है और दशकीय वृद्धि दर 2001 में 22.48 प्रतिशत पाई गई।
सड़क एवं रेल संपर्क अच्छे हैं और तटीय जहाज़ी मार्ग गुजरात के विभिन्न बंदरगाहों को जोड़ते हैं, कांडला एक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह है। राज्य के भीतर और देश के अन्य प्रमुख नगरों के लिए गुजरात से वायुसेना उपलब्ध है।
गुजरात में गिर राष्ट्रीय उद्यान, वेलावदार राष्ट्रीय उद्यान, बंसदा, राष्ट्रीय उद्यान और मेरीन राष्ट्रीय उद्यान मिलाकर कुल चार राष्ट्रीय उद्यान हैं जो कुल 47,967 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए हैं।
उद्यान का नाम | ज़िला | क्षेत्रफल | वन्य जीवों की मुख्य प्रजातियाँ |
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गिर राष्ट्रीय उद्यान | जूनागढ़ | 258.71 वर्ग किमी | एशियाई शेर, तेंदुआ, चीतल, जंगली बिल्ली, लकड़बग्धा, चिंकारा, |
वेलावदार राष्ट्रीय उद्यान | भावनगर | 34.08 वर्ग किमी | तेंदुआ, हिरण, चिंकारा मोर |
बंसदा राष्ट्रीय उद्यान | वलसाड | 23.89 वर्ग किमी | तेंदुआ, हिरण, मोर |
मेरीन राष्ट्रीय उद्यान | जामनगर | 162.89 वर्ग किमी | रगोग, हरा कछुवा, ऑलिव रिडले, घड़ियाल, जलगोह, बाज, |
500 या इससे ज़्यादा जनसंख्या वाले लगभग सभी गाँवों में सात से ग्यारह वर्ष के सभी बच्चों के लिए प्राथमिक पाठशालाएँ हैं। आदिवासी बच्चों को कला और शिल्प की शिक्षा देने के लिए विशेष विद्यालय चलाए जाते हैं। यहाँ अनेक माध्यमिक और उच्चतर विद्यालयों के साथ-साथ नौ विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा के लिए बड़ी संख्या में शिक्षण संस्थान हैं। अभियांत्रिकी महाविद्यालयों और तकनीकी विद्यालयों द्वारा तकनीकी शिक्षा उपलब्ध कराई जाती है। शोध संस्थानों में अहमदाबाद में फ़िज़िकल रिसर्च लेबोरेटरी अहमदाबाद टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज़ रिसर्च एशोसिएशन, सेठ भोलाभाई जेसिंगभाई इंस्टिट्यूट ऑफ़ लर्निंग ऐंड रिसर्च, द इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट, द नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ डिज़ाइन और द सरदार पटेल इंस्टिट्यूट ऑफ़ इकोनॉमिक ऐंड सोशल रिसर्च, वडोदरा में ओरिएंटल इंस्टिट्यूट तथा भावनगर में सेंट्रल साल्ट ऐंड मॅरीन केमिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट शामिल हैं।
विश्वविद्यालय | प्रशिक्षण संस्थान | शोध एवं अनुसंधान केन्द्र |
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गुजराती और हिन्दी राज्य की अधिकृत भाषाएं हैं। दोनों में गुजराती का ज़्यादा व्यापक इस्तेमाल होता है, जो संस्कृत के अलावा प्राचीन भारतीय मूल भाषा प्राकृत और 10 वीं शताब्दी के बीच उत्तरी और पश्चिमी भारत में बोली जाने वाली अपभ्रंश भाषा से व्युत्पन्न एक भारतीय-आर्य भाषा है। समुद्र मार्ग से गुजरात के विदेशों से संपर्क ने फ़ारसी, अरबी, तुर्की, पुर्तग़ाली और अंग्रेज़ी शब्दों से इसका परिचय करवाया। गुजराती में महात्मा गांधी की विलक्षण रचनाएं अपनी सादगी और ऊर्जस्विता के लिए प्रसिद्ध हैं। इन रचनाओं ने आधुनिक गुजराती गद्य पर ज़बरदस्त प्रभाव डाला है। गुजरात में राजभाषा गुजराती भाषा के अतिरिक्त हिन्दी, मराठी और अंग्रेज़ी का प्रचलन है। गुजराती भाषा नवीन भारतीय - आर्य भाषाओं के दक्षिण - पश्चिमी समूह से सम्बन्धित है। इतालवी विद्वान् तेस्सितोरी ने प्राचीन गुजराती को प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी भी कहा, क्योंकि उनके काल में इस भाषा का उपयोग उस क्षेत्र में भी होता था, जिसे अब राजस्थान राज्य कहा जाता है।
गुजरात में अधिकांश जनसंख्या हिन्दू धर्म को मानती है, जबकि कुछ संख्या इस्लाम, जैन और पारसी धर्म मानने वालों की भी है। राज्य नीति हमेशा से ही इसकी जनता की धार्मिक सहिष्णुता के कारण विशिष्ट रही है, हालांकि 20 वीं सदी के उत्तरार्ध में बढ़ते सांप्रदायिक तनाव के कारण दंगे भी हुए हैं।
गुजरात की अधिकांश लोक संस्कृति और लोकगीत हिन्दू धार्मिक साहित्य पुराण में वर्णित भगवान कृष्ण से जुड़ी किंवदंतियों से प्रतिबिंबित होती है। कृष्ण के सम्मान में किया जाने वाला रास नृत्य और रासलीला प्रसिद्ध लोकनृत्य "गरबा" के रूप में अब भी प्रचलित है। यह नृत्य देवी दुर्गा के नवरात्र पर्व में किया जाता है। एक लोक नाट्य भवई भी अभी अस्तित्व में है।
गुजरात में शैववाद के साथ-साथ वैष्णववाद भी लंबे समय से फलता-फूलता रहा है, जिनसे भक्ति मत का उद्भव हुआ। प्रमुख संतों, कवियों और संगीतज्ञों में 15वीं सदी में पदों के रचयिता नरसी मेहता, अपने महल को त्यागने वाली 16वीं सदी की
राजपूत राजकुमारी व भजनों की रचनाकार मीराबाई, 18वीं सदी के कवि और लेखक प्रेमानंद और भक्ति मत को लोकप्रिय बनाने वाले गीतकार दयाराम शामिल हैं। भारत में अन्य जगहों की तुलना में अहिंसा और शाकाहार की विशिष्टता वाले जैन धर्म ने गुजरात में गहरी जड़े जमाई। ज़रथुस्त्र के अनुयायी पारसी 17वीं सदी के बाद किसी समय फ़ारस से भागकर सबसे पहले गुजरात के तट पर ही बसे थे।
इस समुदाय के अधिकांश लोग बाद में बंबई (वर्तमान मुंबई) चले गए। कृष्ण, दयानन्द सरस्वती, महात्मा गाँधी, सरदार पटेल तथा सुप्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी रणजी जैसे व्यक्तित्व ने प्रदेश के समाज को गौरवांवित किया। गुजरात की संस्कृति में मुख्यत: शीशे का काम तथा गरबा एवं रास नृत्य पूरे भारत में प्रसिद्ध है। प्रदेश का सर्वप्रमुख लोक नृत्य गरबा तथा डांडिया है। गरबा नृत्य में स्त्रियाँ सिर पर छिद्रयुक्त पात्र लेकर नृत्य करती हैं, जिस के भीतर दीप जलता है। डांडिया में अक्सर पुरुष भाग लेते हैं परंतु कभी-कभी स्त्री-पुरुष दोनों मिलकर करते हैं। प्रदेश के रहन-सहन और पहनावे पर राजस्थान का काफ़ी प्रभाव देखा जा सकता है। प्रदेश का भवई लोकनाट्य काफ़ी लोकप्रिय है। स्थापत्य शिल्प की दृष्टि से प्रदेश काफ़ी समृद्ध है। इस दृष्टि से रुद्र महालय, सिद्धपुर, मातृमूर्ति पावागढ़, शिल्पगौरव गलतेश्वर, द्वारिकानाथ का मंदिर, शत्रुंजय पालीताना के जैन मंदिर, सीदी सैयद मस्जिद की जालियाँ, पाटन की काष्ठकला इत्यादि काफ़ी महत्त्वपूर्ण हैं। हिन्दी में जो स्थान सूरदास का है गुजराती में वही स्थान नरसी मेहता का है।
मकर संक्रांति के पर्व पर मनाया जाने वाला पतंग उत्सव अपनी रंग-बिरंगी छवि के कारण गुजरात राज्य में अत्यंत लोकप्रिय है और भारत ही नहीं विदेशों में भी अपनी विशिष्ट पहचान बना चुका है। जनवरी माह के मध्य में (14 जनवरी) उत्तरायण पर्व आता है। भगवान भास्कर उत्तरायण को प्रयाण करते हैं, बसंत ऋतु का आगमन होता है, किसानों की खुशी का ठिकाना नहीं रहता क्योंकि फसल पककर तैयार हो जाती है, कटाई का समय आ जाता है। नव धान्य से बने सुस्वादु मिष्टान्न सभी को उत्सव का आनंद देते हैं। गुजरात में इस पर्व को मनाने का निराला रंग है। गुजरातवासी रंग-बिरंगी पतंगों से आसमान भर देते हैं। ये रंग विविधता में एकता, आनंद, उत्साह और परस्पर स्नेह-सौहार्द के प्रतीक हैं। पतंग पतले रंगीन काग़ज़ व बाँस के रेशों से बनाई जाती है। पतंग की डोर माँझा कहलाती है जिसे फिरकी पर लपेटा जाता है। पतंग उड़ाने वाले पहले पतंग पसंद करते हैं, वह ठीक बनी व संतुलित है या नहीं, फिर हवा की दिशा को देखते हुये कुशल हाथों से पतंग को ऊँची उड़ान देते हैं। कुशल उड़ाके आसमान में उड़ती पतंगों में से अपने प्रतिद्वंद्वी को पहचान लेते हैं और फिर शुरू होते हैं पतंग काटने के दाँव-पेंच। पतंग काटने वाले जीत का जश्न मनाते हैं। यह एक ऐसा रंगीन उत्सव है जहाँ बच्चे-बूढ़े, धनी-निर्धन, स्वदेशी-विदेशी सभी भेद-भाव भूलकर अनंत आकाश में एकता के रंग भर देते हैं। गुजरात में राज्य पर्यटन विभाग की ओर से सन् 1989 से प्रतिवर्ष अंतर्राष्ट्रीय पतंग उत्सव अहमदाबाद में आयोजित किया जाता है। बाहरी देशों के मेहमान विभिन्न प्रकार की पतंगें लेकर इस उत्सव में भाग लेते हैं।
गुजरात की वास्तुकला शैली अपनी पूर्णता और अलंकारिकता के लिए विख्यात है, जो सोमनाथ, द्वारका, मोधेरा, थान, घुमली, गिरनार जैसे मंदिरों और स्मारकों में संरक्षित है। मुस्लिम शासन के दौरान एक अलग ही तरीक़े की भारतीय-इस्लामी शैली विकसित हुई। गुजरात अपनी कला व शिल्प की वस्तुओं के लिए भी प्रसिद्ध है। इनमें जामनगर की बांधनी (बंधाई और रंगाई की तकनीक), पाटन का उत्कृष्ट रेशमी वस्त्र पटोला, इदर के खिलौने, पालनपुर का इत्र कोनोदर का हस्तशिल्प का काम और अहमदाबाद व सूरत के लघु मंदिरों का काष्ठशिल्प तथा पौराणिक मूर्तियाँ शामिल हैं। राज्य के सर्वाधिक स्थायी और प्रभावशाली सांस्कृतिक संस्थानों में महाजन के रूप में प्रसिद्ध व्यापार और कला
शिल्प संघ है। अक्सर जाति विशेष में अंतर्गठित और स्वायत्त इन संघों ने अतीत कई विवादों को सुलझाया है और लोकहित के माध्यम की भूमिका निभाते हुए कला व संस्कृति को प्रोत्साहन दिया है।
गुजरात राज्य में की जाने वाली वास्तु शिल्पीय नक़्क़ाशी कम से कम 15वीं शताब्दी से गुजरात भारत में लकड़ी की नक़्क़ाशी का मुख्य केंद्र रहा है। निर्माण सामग्री के रूप में जिस समय पत्थर का इस्तेमाल अधिक सुविधाजनक और विश्वसनीय था, इस समय भी गुजरात के लोगों ने मंदिरों के मंडप तथा आवासीय भवनों के अग्रभागों, द्वारों, स्तंभों, झरोखों, दीवारगीरों और जालीदार खिड़कियों के निर्माण में निर्माण में बेझिझक लकड़ी का प्रयोग जारी रखा। मुग़ल काल (1556-1707) के दौरान गुजरात की लकड़ी नक़्क़ाशी में देशी एवं मुग़ल शैलियों का सुंदर संयोजन दिखाई देता है। 16वीं सदी के उत्तरार्ध एवं 17वीं सदी के जैन काष्ठ मंडपों पर जैन पौराणिक कथाएँ एवं समकालीन जीवन के दृश्य तथा काल्पनिक बेल-बूटे, पशु-पक्षी एवं ज्यामितीय आकृतियाँ उत्कीर्ण की गई हैं; आकृति मूर्तिकला अत्यंत जीवंत एवं लयात्मक है। लकड़ी पर गाढ़े लाल रौग़न का प्रयोग आम था। 19वीं सदी के कई भव्य काष्ठ पुरोभाग संरक्षित हैं, लेकिन उनका अलंकरण पहले की निर्मितियों जैसा ललित और गत्यात्मक नहीं है।
गुजरात के ज़िले |
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अमरेली जिला | अहमदाबाद जिला | आणंद जिला | कच्छ जिला | खेड़ा जिला | गांधीनगर जिला | जामनगर जिला | जूनागढ़ जिला | डांग जिला | दाहोद जिला | नर्मदा जिला | नवसारी जिला | पंचमहल जिला | पाटण जिला | पोरबन्दर जिला | बनासकांठा जिला | भड़ूच जिला | भावनगर जिला | मेहसाणा जिला | राजकोट जिला | वडोदरा जिला | वलसाड़ जिला | साबरकांठा जिला | सुरेन्द्रनगर जिला | सूरत जिला | तापी जिला
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गुजरात के नगर |
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अहमदाबाद | अंकलेश्वर | अम्बाजी | अंजार | आणंद | कच्छ | गांधीनगर | जामनगर | जूनागढ़ | नाडियाड |
पालनपुर | पोरबंदर | पालीताना | गोंडल | दभोई | बल्लभीपुर | बाँधवाँ | खंभात | भावनगर | भुज | मांडवी |
सूरत | कूंडला | वड़ोदरा | खेड़ा | वाघई | राजकोट | महेसाणा | डांग | पाटन | भरूच | अमरेली | उपलेता
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गुजरात के ऐतिहासिक स्थान |
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अश्वबोधतीर्थ | अंधउ | आनंदपुर | इडर | उज्जयंत | उपरकोट | कण्वाश्रम | करणावती | करवान | करवीर | दभोई
| कुवांशी | चारूप | चंदनावती | घोघा बंदरगाह | घुमली | कैरा | टेरा | देशलपुर | धौलावीरा | पडरी |
पंचसर | अदलज | असावल | कोडिनार | धुमली | बाबाप्यारा की गुफ़ाएँ | बाहड़पुर | बाँधवाँ | जीरापल्ली |
दैहक | जसधन | खेड़ ब्रह्मा | गोंडल | दोहद | गलतेश्वर | चंद्रवट | वासन गाँव | चारी | गोप |
खपराखोड़िया | कुशस्थली | वाविहपुर | खंभात | सुदर्शन झील | जरारवाड़ी | चांपानेर | कायावरोहन |
चंद्रगुफ़ा | चंद्र (गुजरात) | बल्लभीपुर | वर्धमानपुर | डाकौर | टंकारा | जीर्णवप्र | त्रंबावती |
चम्पानेर पावागढ़ पुरातात्विक उद्यान | थराड़ | मोढेरा | रूपालनगर | कोटेश्वर | वासण | वायड़ | रैवतक |
ववनिया | लाट | श्रीस्थल | बरवाप्यारा गुफ़ा | नारायणसर | जंबुसार | खोलदियाद | लंघनाज | नैरोना | दिव |
नरमान | शत्रुंजय पहाड़ी | रत्नावती | रैवतोद्यान | रोदा | रामणा | शुकुलिदेश | शैरीस | सुरकोटदा |
हस्तकवप्र | हलोल | वड़नगर | सौराष्ट्र | वीरावल | अज्जाहर | रापर | ऋषितीर्थ | लखराम | श्वभ्र | अनुप |
रंगपुर | शुक्लतीर्थ | अन्हिलवाड़ | कर्णावती | हालार | राडद्रह | सरखेज | यादवस्थली | लोथल | देसलपुर |
रोजदी | वेनीवडार | खर्वी | कुनुतासी | शंखेश्वर | बिल्वेश्वर | अलिना | आभीर | औदम्बरा | देवपत्तन |
प्रभास | भृगुकच्छ | अमरेली | अल्वा | अदालज की बावड़ी
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गुजरात के पर्यटन स्थल | |
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पोरबंदर |
कीर्ति मंदिर | घुमली गणेश मंदिर | दरबारगढ़ महल | नेहरु तारामंडल | पोरबंदर तट | पोरबंदर पक्षी
अभयारण्य | माधवपुर तट | वर्धा वन्यजीव अभयारण्य | सतरनजी चोरो महल | सूर्य मंदिर | हुज़ूर महल
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द्वारका |
द्वारिकाधीश मंदिर | पिंडारक | बेट द्वारका | मोक्ष तीर्थ | रणछोड़ जी मंदिर | नागेश ज्योतिर्लिंग |
द्वारिका मठ | शारदा पीठ संग्रहालय
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कच्छ |
कच्छ का रण | नारायण सरोवर वन्यजीव अभयारण्य | काला डूंगर | कांडला बंदरगाह | प्राग महल | नारायणसर |
कच्छ वन्यजीव अभयारण्य | आशापुरा माता मन्दिर | लखपत
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गांधीनगर |
अक्षरधाम मंदिर | कोबा तीर्थ | इन्द्रोदा गाँव हिरण अभयारण्य | वासन गाँव | अदलज
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अहमदाबाद |
साबरमती आश्रम | जामा मस्जिद | काँकरिया झील | कैलिको संग्रहालय | दादा हरी बावड़ी | नरेन्द्र मोदी
स्टेडियम | अदालज की बावड़ी
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काठियावाड़ |
नवलखा मन्दिर | बाहड़पुर
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बड़ौदा |
चांपानेर
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खेड़ा |
डाकौर
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मोढेरा |
सूर्य मन्दिर
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सूरत |
हजीरा | हजीरा संयंत्र
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डांग |
गीरा जलप्रपात | सापूतारा | वाघई | गंधर्वपुरा | पूर्णा वन्यजीव अभयारण्य | गिरमल जलप्रपात
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साबरकांठा |
शामलाजी
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जामनगर |
ओखा बन्दरगाह
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राजकोट |
वीरपुर
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महेसाणा |
वड़नगर
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अन्य |
सरदार सरोवर बाँध | रानी की वाव | गोल्डन ब्रिज | सूर्या कुंड | देवनी मोरी
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