ओडिशा भारत का एक प्रान्त है जो भारत के पूर्वी तट पर बसा है। ओडिशा उत्तर में झारखण्ड, उत्तर पूर्व में पश्चिम बंगाल दक्षिण में आंध्र प्रदेश और पश्चिम में छत्तीसगढ़ से घिरा है तथा पूर्व में बंगाल की खाड़ी है। भौगोलिक लिहाज़ से इसके उत्तर में छोटा नागपुर का पठार है जो अपेक्षाकत कम उपजाऊ है लेकिन दक्षिण में महानदी, ब्राह्मणी, कालिंदी और वैतरणी नदियों का उपजाऊ मैदान है। यह पूरा क्षेत्र मुख्य रूप से चावल उत्पादक क्षेत्र है।
ओडिशा राज्य प्राचीन समय में कलिंग के नाम से विख्यात था। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी (261 ई.पू.) में मौर्य सम्राट अशोक ने कलिंग विजय करने के लिए एक शक्तिशाली सेना भेजी थी, जिसका कलिंग के निवासियों ने जमकर सामना किया। सम्राट अशोक ने कलिंग तो जीता, परन्तु युद्ध के भीषण संहार से सम्राट का मन में वितृष्णा पैदा हो गई और अशोक की मृत्यु के बाद कलिंग फिर से स्वाधीन हो गया। ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में खारवेल राजा के अधीन कलिंग एक शक्तिशाली साम्राज्य बन गया। खारवेल की मृत्यु के बाद ओडिशा की ख्याति लुप्त हो गई। चौथी शताब्दी में विजय पर निकले समुद्रगुप्त ने ओडिशा पर आक्रमण किया और इस प्रदेश के पांच राजाओं को पराजित किया। सन् 610 में ओडिशा पर शशांक नरेश का अधिकार हो गया। शशांक के निधन के बाद हर्षवर्धन ने ओडिशा पर विजय प्राप्त की।
सातवीं शताब्दी में ओडिशा पर गंग वंश का शासन रहा। सन् 795 में महाशिवगुप्त यजाति द्वितीय ने ओडिशा का शासन भार संभाला और ओडिशा के इतिहास का सबसे गौरवशाली अध्याय शुरू हुआ। उन्होंने कलिंग, कनगोडा, उत्कल और कोशल को मिलाकर खारवेल की भाँति विशाल साम्राज्य की नींव रखी। गंग वंश के शासकों के समय में ओडिशा राज्य की बहुत उन्नति हुई। इस राजवंश के शासक राजा नरसिंह देव ने कोणार्क का विश्व भर में प्रसिद्ध सूर्य मंदिर बनवाया था। 16 वीं शताब्दी के लगभग मध्य से 1592 तक ओडिशा पांच मुस्लिम राजाओं द्वारा शासित रहा। सन् 1592 में अकबर ने ओडिशा को अपने अधीन कर अपने शासन में शामिल कर लिया। मुग़लों के पतन के पश्चात् ओडिशा पर मराठों का अधिकार रहा। सन् 1803 में ब्रिटिश राज से पहले ओडिशा मराठा शासकों के अधीन रहा। 1 अप्रैल सन् 1936 को ओडिशा को स्वतंत्र प्रांत बनाया गया। स्वतंत्रता के बाद ओडिशा तथा इसके आसपास की रियासतों ने भारत सरकार को अपनी सत्ता सौंप दी। रियासतों (गवर्नर के अधीन प्रांतों) के विलय संबंधी आदेश 1949 के अंतर्गत जनवरी 1949 में ओडिशा की सभी रियासतों का ओडिशा राज्य में सम्पूर्ण विलय हो गया। ओडिशा के कलिंग, उत्कल और उद्र जैसे कई प्राचीन नाम हैं, परन्तु यह प्रदेश मुख्यत: भगवान जगन्नाथ की भूमि के लिए प्रसिद्ध है। भगवान जगन्नाथ ओडिशा के सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन से बहुत गहरे जुडे हुए हैं। विभिन्न समय में ओडिशा के लोगों पर जैन, ईसाई और इस्लाम धर्मो का प्रभाव पडा।
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में उडीसा के अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने योगदान दिया है जिसमें से प्रमुख हैं- सुभाष चंद्र बोस | गोपबंधु दास | हरे कृष्ण मेहताब | जगबंधु बख्शी |
उड़ीसा राज्य 17.780 और और 22.730 अक्षांश और 81.37 पूर्व और 81.53 पूर्व देशांतर के बीच पड़ता है। भौगोलिक रूप से यह राज्य उत्तर-पूर्व में पश्चिम बंगाल, उत्तर में झारखंड, पश्चिम में छत्तीसगढ़ और दक्षिण में आंध्र प्रदेश और पूर्व में बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है। राज्य का तटीय क्षेत्र लगभग 450 किलोमीटर तक है और इस क्षेत्र में यह 155, 707 वर्गकिलोमीटर तक आगे बढ़ गया है। यह भारत के कुल 4.87 % क्षेत्र के बराबर है। राज्य को सामान्यत: चार भौगोलिक क्षेत्रों में बांटा जा सकता है। ये हैं -
ओडिशा उष्णकटिबंधीय आर्द्र-शुष्क़ (उष्णकटिबंधीय सवाना घास के मैदान) जलवायु प्रदेश में स्थित है। कटक में औसत तापमान लगभग 26° से. रहता है। जनवरी सबसे सर्द महीना है, जिसमें औसत तापमान 20° से. रहता है, लेकिन मई, जो सबसे गर्म महीना है, में औसत तापमान 33° से. तक बढ़ जाता है। ऊँचाई पर स्थित पहाड़ियाँ ग्रीष्म ऋतु की गर्मी से राहत देती हैं, जो मध्य भूभाग के बेसिन में ख़ास तौर पर असह्म हो जाती हैं। वर्षा दसिण-पश्चिम मॉनसून (जून से अक्टूबर) के महीनों में होती है। राज्य में औसत वार्षिक वर्षा लगभग 1,800 मिमी है, जो पूर्वी घाट में और भी अधिक होती है। चिल्का झील के तटीय इलाक़े सबसे शुष्क हैं, जहाँ औसत वार्षा 939 मिमी है।
नाम | कलिंग, उत्कल, उत्कलरात, उड्र, ओद्र, ओद्रबिश |
राजधानी | भुवनेश्वर |
राजभाषा(एँ) | उड़िया भाषा |
स्थापना | 1 अप्रॅल, 1936 |
जनसंख्या | 3,68,04,660 |
| घनत्व | 236/वर्ग किमी |
क्षेत्रफल | 1,55,707 वर्ग किमी |
भौगोलिक निर्देशांक | 20°09′N 85°30′E |
तापमान | 25° C (औसत) |
| ग्रीष्म | 35-40° C (अधिकतम) |
| शरद | 3-4° C (न्यूनतम) |
वर्षा | 150 सेमी मिमी |
ज़िले | 30 |
सबसे बड़ा नगर | भुवनेश्वर |
मुख्य पर्यटन स्थल | कोणार्क, पुरी, लिंगराज मन्दिर, सूर्य मंदिर कोणार्क |
लिंग अनुपात | 1000:972 ♂/♀ |
साक्षरता | 63.08% |
| स्त्री | 50.51% |
| पुरुष | 71.35% |
राज्यपाल | गणेशी लाल |
मुख्यमंत्री | नवीन पटनायक |
विधानसभा सदस्य | 147 |
लोकसभा क्षेत्र | 21 |
राज्यसभा सदस्य | 10 |
ओडिशा की अर्थव्यवस्था में कृषि की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। ओडिशा की लगभग 80प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्य में लगी है, हालांकि यहाँ की अधिकांश भूमि अनुपजाऊ या एक से अधिक वार्षिक फ़सल के लिए अनुपयुक्त है। ओडिशा में लगभग 40 लाख खेत हैं, जिनका औसत आकार 1.5 हेक्टेयर है, लेकिन प्रति व्यक्ति कृषि क्षेत्र 0.2 हेक्टेयर से भी कम है। राज्य के कुल क्षेत्रफल के लगभग 45 प्रतिशत भाग में खेत है। इसके 80 प्रतिशत भाग में चावल उगाया जाता है। अन्य महत्त्वपूर्ण फ़सलें तिलहन, दलहन, जूट, गन्ना और नारियल है। सूर्य के प्रकाश की उपलब्धता में कमी, मध्यम गुणवत्ता वाली मिट्टी, उर्वरकों का न्यूनतम उपयोग और मानसूनी वर्षा के समय व मात्रा में विविधता होने के कारण यहाँ उपज कम होती है और इसकी गिनती देश के ग़रीब राज्यों में होती है।
चूंकि बहुत से ग्रामीण लगातार साल भर रोज़गार नहीं प्राप्त कर पाते, इसलिए कृषि- कार्य में लगे बहुत से परिवार गैर कृषि कार्यों में भी संलग्न है। जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति कृषि भूमि की उपलब्धता कम होती जा रही है। भू- अधिगृहण पर सीमा लगाने के प्रयास अधिकांशत: सफल नहीं रहे। हालांकि राज्य द्वारा अधिगृहीत कुछ भूमि स्वैच्छिक तौर पर भूतपूर्व काश्तकारों को दे दी गई है।
चावल ओडिशा की मुख्य फ़सल है। 2004 - 2005 में 65.37 लाख मी. टन चावल का उत्पादन हुआ। गन्ने की खेती भी किसान करते हैं। उच्च फ़सल उत्पादन प्रौद्योगिकी, समन्वित पोषक प्रबंधन और कीट प्रबंधन को अपनाकर कृषि का विस्तार किया जा रहा है। अलग -अलग फलों की 12.5 लाख और काजू की 10 लाख तथा सब्जियों की 2.5 लाख कलमें किसानों में वितरित की गई हैं। राज्य में प्याज की फ़सल को बढावा देने के लिए अच्छी किस्म की प्याज के 300 क्विंटल बीज बांटे गए हैं जिनसे 7,500 एकड ज़मीन प्याज उगायी जाएगी। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत गुलाब, गुलदाऊदी और गेंदे के फूलों की 2,625 प्रदर्शनियाँ की गईं। किसानों को धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने के लिए ओडिशा राज्य नागरिक आपूर्ति निगम लि. (पी ए सी), मार्कफेड, नाफेड आदि एजेंसियों के द्वारा 20 लाख मी. टन चावल ख़रीदने का लक्ष्य बनाया है। सूखे की आशंका से ग्रस्त क्षेत्रों में लघु जलाशय लिए 13 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में 2,413 लघु जलाशय विकसित करने का लक्ष्य है।
बडी, मंझोली और छोटी परियोजनाओं और जल दोहन परियोजनाओं से सिचांई क्षमता को बढाने का प्रयास किया गया है-
उद्योग प्रोत्साहन एवं निवेश निगम लि., औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड और ओडिशा राज्य इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम ये तीन प्रमुख एजेंसियां राज्य के उद्योगों को आर्थिक सहायता प्रदान करती है। इस्पात, एल्यूमीनियम, तेलशोधन, उर्वरक आदि विशाल उद्योग लग रहे हैं। राज्य सरकार लघु, ग्रामीण और कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए छूट देकर वित्तीय मदद दे रही है। 2004 - 2005 वर्ष में 83,075 लघु उद्योग इकाई स्थापित की गयी।
औद्योगिक विकास करने के लिए रोज़गार के अवसर और आर्थिक विकास दर को बढाने के लिए ओडिशा उद्योग (सुविधा) अधिनियम, 2004 को लागू किया है जिससे निवेश प्रस्तावों के कम समय में निबटारा और निरीक्षण कार्य हो सके। निवेश को सही दिशा में प्रयोग करने के लिए ढांचागत सुविधा में सुधार को प्राथमिकता दी गई है। सूचना प्रौद्योगिकी में ढांचागत विकास करने के लिए भुवनेश्वर में एक निर्यात संवर्द्धन औद्योगिक पार्क स्थापित किया गया है। राज्य में लघु और मध्यम उद्योगों को बढाने के लिए 2005 - 2006 में 2,255 लघु उद्योग स्थापित किए गये, इन योजनाओं में 123.23 करोड़ रुपये का निवेश किया गया और लगभग 10,308 व्यक्तियों को काम मिला।
श्रमिकों और उनके परिवार के सदस्यों को सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाएं दी गई हैं। उद्योगों में लगे बाल मज़दूरों को मुक्त किया गया और औपचारिक शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए राष्ट्रीय बाल श्रमिक परियोजना के अंतर्गत प्रवेश दिया गया। राज्य भर में 18 ज़िलों में 18 बालश्रमिक परियोजनाएं क्रियान्वित हैं। लगभग 33,843 बाल श्रमिकों को राष्ट्रीय बाल श्रमिक परियोजना द्वारा संचालित स्कूलों में प्रवेश दिलाया गया है और 64,885 बाल श्रमिकों को स्कूली शिक्षा के माध्यम से मुख्यधारा में जोडने का प्रयास किया गया। श्रमिकों को दिया जाने वाला न्यूनतम वेतन बढाया गया।
ओडिशा के औद्योगिक संसाधन उल्लेखनीय हैं। क्रोमाइट, मैंगनीज़ अयस्क और डोलोमाइट के उत्पादन में ओडिशा भारत के सभी राज्यों से आगे है। यह उच्च गुणवत्ता के लौह- अयस्क के उत्पादन में भी अग्रणी है। ढेंकानाल के भीतरी ज़िले में स्थित महत्त्वपूर्ण तालचर की खानों से प्राप्त कोयला राज्य के प्रगलन व उर्वरक उत्पादन के लिए ऊर्जा उपलब्ध कराता है। स्टील, अलौह प्रगलन और उर्वरक उद्योग राज्य के भीतर भागों में केंद्रित हैं, जबकि अधिकांश ढलाईघर, रेल कार्यशालाएँ, काँच निर्माण और काग़ज़ की मिलें कटक के आसपास महानदी के डेल्टा के निकट स्थित है। जिसका उपयोग उपमहाद्वीप की सर्वाधिक महत्त्वाकांक्षी बहुउद्देशीय परियोजना, हीराकुड बाँध व माछकुड जलविद्युत परियोजना द्वारा किया जा रहा है। ये दोनों बहुत सी अन्य छोटी इकाइयों के साथ समूचे निचले बेसिन को बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और बिजली उपलब्ध कराते है।
बड़े उद्योग मुख्यत: खनिज आधारित हैं, जिनमें राउरकेला स्थित इस्पात व उर्वरक संयंत्र, जोडो व रायगड़ा में लौह मैंगनीज़ संयत्र, राज गांगपुर व बेलपहाड़ में अपवर्तक उत्पादन कर रहे कारख़ाने, चौद्वार (नया नाम टांगी चौद्वार) में रेफ्रिजरेटर निर्माण संयंत्र और राजगांगपुर में एक सीमेंट कारख़ाना शामिल हैं। रायगड़ा व चौद्वार में चीनी व काग़ज़ की तथा ब्रजराजनगर में काग़ज़ की बड़ी मिलें हैं; अन्य उद्योगों में वस्त्र, कांच ऐलुमिनियम धातुपिंड व केबल और भारी मशीन उपकरण शामिल हैं।
सूचना प्रौद्योगिक में राज्य में संतोष जनक प्रगति हो रही है। भुवनेश्वर की इन्फोसिटी में विकास केंद्र खोलने का प्रयास चल रहा है। ओडिशा सरकार और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ गवर्नेंस तथा नेशनल इन्फार्मेटिक्स सेंटर ने संयुक्त रूप एक पारदर्शी और कुशल प्रणाली शुरू की है। राज्य मुख्यालय को ज़िला मुख्यालयों, सब डिवीजन मुख्यालयों, ब्लाक मुख्यालयों से जोडने के लिए ई-गवर्नेंस पर आधारित क्षेत्र नेटवर्क से जोडा जा रहा है। उड़िया भाषा को कंप्यूटर में लाने के लिए भारतीय भाषाओं के लिए प्रौद्योगिकी विकास कार्यक्रम के अंतर्गत उडिया भाषा का पैकेज तैयार किया जा रहा है।
राज्य की कृषि नीति में आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकी का प्रयोग करते हुए, दूध, मछली और मांस उत्पादन के विकास को विशेष रूप से विकसित करने का प्रयास करके कुल दुग्ध उत्पादन 36 लाख लीटर प्रतिदिन अर्थात् 3 लाख लीटर से अधिक तक पहुँचा दिया गया है। डेयरी उत्पादन के विकास के लिए ओडिशा दुग्ध फेडरेशनमें राज्य के सभी 30 ज़िलों को सम्मिलित गया है। फेडरेशन ने दुग्ध संरक्षण को बढाकर 2.70 लाख लीटर प्रतिदिन तक कर दिया है। स्टैप कार्यक्रम के तहत फेडरेशन द्वारा 17 ज़िलों में महिला डेयरी परियोजना चल रही है। राज्य में 837 महिला डेयरी सहकारी समितियां हैं, जिनमें 60,287 महिलाएं कार्यरत हैं।
ओडिशा की समृद्ध कलात्मक विरासत है और इसने भारतीय कला एवं वास्तुशिल्प के सर्वश्रेष्ठ उदाहरणों का सृजन किया है। भित्तिचित्रों पत्थर व लकड़ी पर नक़्क़ाशी देव चित्र (पट्ट चित्रकला के नाम से विख्यात) और ताड़पत्रों पर चित्रकारी के माध्यम से कलात्मक परंपराएं आज भी क़ायम हैं। हस्तशिल्प कलाकार चांदी में बेहद महीन जाली की कटाई की अलंकृत शिल्प कला के लिए विख्यात हैं।
जनजातीय इलाकों में कई प्रकार के लोकनृत्य है। मादल व बांसुरी का संगीत गांवो में आम है। ओडिशा का शास्त्रीय नृत्य ओडिसा 700 वर्षों से भी अधिक समय से अस्तित्व में है। मूलत: यह ईश्वर के लिए किया जाने वाला मंदिर नृत्य था। नृत्य के प्रकार, गति, मुद्राएं और भाव-भंगिमाएं बड़े मंदिरों की दीवारों पर, विशेषकर कोणार्क में शिल्प व उभरी हुई नक़्क़ासी के रूप में अंकित हैं, इस नृत्य के आधुनिक प्रवर्तकों ने इसे राज्य के बाहर भी लोकप्रिय बनाया है। मयूरभंज और सरायकेला प्रदेशों का छऊ नृत्य (मुखौटे पहने कलाकारों द्वारा किया जाने वाला नृत्य) ओडिशा की संस्कृति की एक अन्य धरोहर है। 1952 में कटक में कला विकास केंद्र की स्थापना की गई, जिसमें नृत्य व संगीत के प्रोत्साहन के लिए एक छह वर्षीय अवधि का शिक्षण पाठयक्रम है। नेशनल म्यूजिक एसोसिएशन (राष्ट्रीय संगीत समिति) भी इस उद्देश्य के लिए है। कटक में अन्य प्रसिद्ध नृत्य व संगीत केन्द्र है: उत्कल संगीत समाज, उत्कल स्मृति कला मंडप और मुक्ति कला मंदिर।
ओडिशा के अनेक अपने पारंपरिक त्योहार हैं। इसका एक अनोखा त्योहार अक्टूबर या नवंबर (तिथि हिंदू पंचांग के अनुसार तय की जाती है) में मनाया जाने वाला बोइता बंदना (नौकाओं की पूजा) अनुष्ठा है। पूर्णिमा से पहले लगातार पांच दिनों तक लोग नदी किनारों या समुद्र तटों पर एकत्र होते हैं और छोटे-छोटे नौका रूप तैराते हैं। जो इसका प्रतीक है कि वे भी अपने पूर्वजों की तरह सुदूर स्थानों (मलेशिया, इंडोनेशिया) की यात्रा पर निकलेंगे। पुरी में जगन्नाथ (ब्रह्मांड का स्वामी) मंदिर है, जो भारत के सर्वाधिक प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यहाँ होने वाली वार्षिक रथयात्रा लाखों लोगों को आकृष्ट करती है। यहाँ से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर भगवान सूर्य के रथ के आकार में बना कोणार्क मंदिर है। यह मंदिर मध्यकालीन उड़िया संस्कृति के उत्कृष्ट उदाहरणों में से एक है।
1947 से पहले ओडिशा में संचार सुविधाएं अविकसित थीं, लेकिन इसमें से रजवाड़ों के विलय और खनिज संसाधनों की खोज से अच्छी सड़कों के संजाल की आवश्यकता महसूस की गई। अधिकांश प्रमुख नदियों पर पुल निर्माण जैसे बड़े विनिर्माण कार्यक्रम ओडिशा सरकार द्वारा शुरू किए गए। महानदी के मुहाने पर पारादीप में सभी मौसमों के लिए उपयुक्त, गहरे बंदरगाह का निर्माण किया गया है। यह बंदरगाह राज्य के निर्यात, विशेषकर कोयले के निर्यात का केंद्र बन गया है।
राज्य में विकास दर बढाने के लिए परिवहन की अनेक योजनाओं को क्रियान्वित किया जा रहा है-
31 मार्च 2004 तक राज्य में 2,287 किलोमीटर लंबी बडी रेल लाइनें और 91 किलोमीटर छोटी लाइनें थी।
भुवनेश्वर में हवाई अड्डे का आधुनिकीकरण का कार्य हो रहा है। यहाँ से दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, नागपुर और हैदराबाद के लिए सीधी उड़ानें हैं। इस समय राज्य भर में 13 हवाई पट्टियां और 16 हेलीपैड की व्यवस्था है।
पारादीप राज्य का एक मात्र मुख्य बंदरगाह है। गोपालपुर को पूरे साल काम करने वाले बंदरगाह के रूप में विकसित करने का कार्य प्रगति पर है।
राज्य के आर्थिक विकास में पर्यटन के महत्त्व को समझते हुए मीडिया प्रबंधन एजेंसियों और पर्व प्रबंधकों को प्रचार एवं प्रसार का कार्य दिया गया है। ओडिशा को विभिन्न महत्त्वपूर्ण पर्यटन परिजनाओं - धौली में शांति पार्क, ललितगिरि, उदयगिरि तथा लांगुडी के बौद्ध स्थलों को ढांचागत विकास और पिपिली में पर्यटन विकास का काम किया जाएगा। (पुरी) भुवनेश्वर का एकाग्र उत्सव, कोणार्क का कोणार्क पर्व के मेलों और त्योहारों के विकास के लिए प्रयास किया जा रहा है।
ओडिशा पर्यटन विभाग ने बैंकॉक, मास्को, लंदन, कुआलालंपुर, कोच्चि, कोलकाता, रायपुर आदि के भ्रमण व्यापार के आयोजनों में भाग लिया। पर्यटन क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहन देने के लिए 373 मार्गदर्शकों (गाइडों) को प्रशिक्षण दिया गया।
उड़ीसा अब ओडिशा हो गया
उड़ीसा का नाम ओडिशा किए जाने संबंधी विधेयक को लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी गुरुवार को मंजूरी दे दी गई। उड़ीसा विधानसभा में 28 अगस्त 2008 को इसका प्रस्ताव पारित किया गया था जिसे बाद में केन्द्र को भेज दिया गया था। केन्द्रीय गृह मंत्री पी.चिदम्बरम ने राज्यसभा में उड़ीसा (वैकल्पिक नाम) विधेयक, 2010 और उडिया भाषा का नाम बदलकर ओडिशा करने के लिए संविधान (113 वां संशोधन) विधेयक,2010 पेश किया। दोनों विधेयकों को राज्यसभा ने पारित कर दिया। लोकसभा पिछले साल नवम्बर में ही इन्हें पारित कर चुकी है। राज्यसभा में विधेयक पेश करते हुए चिदम्बरम ने कहा कि संविधान की पहली अनुसूची में शामिल उड़ीसा का नाम बदलकर ओडिशा हो जाएगा।
उड़ीसा के पर्यटन स्थल | |
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पुरी |
जगन्नाथ मंदिर | चिल्का झील | अथरनाला ब्रिज | गुंडिचा मन्दिर | पुरी तट | गोवर्धन मठ
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भुवनेश्वर |
हाथीगुम्फ़ा | नीलगिरि गुफ़ाएँ | रानीगुफ़ा | उदयगिरि और खण्डगिरि गुफ़ाएँ | लिंगराज मन्दिर |
मुक्तेश्वर मंदिर | राजारानी मन्दिर | बिन्दुसागर झील | भारती मठ मन्दिर
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कोणार्क |
सूर्य मंदिर | चंद्रभागा समुद्रतट | पुरातत्त्व संग्रहालय
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कटक |
बाराबती क़िला
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बालेश्वर |
चांदीपुर तट
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जगतसिंहपुर |
पारादीप बंदरगाह | स्मृति उद्यान | समुद्री बीच
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मयूरभंज |
खिचिंग
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अन्य |
बढ़घाघरा जलप्रपात
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उड़ीसा के नगर |
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कटक | कोरापुट | बालासौर | जोशीपुर | पुरी | फूलबाणी | बलांगीर | बालेश्वर | भुवनेश्वर | ढेंकानाल |
संबलपुर
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उड़ीसा के ऐतिहासिक स्थान |
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अटक बनारस | अमित तोसल | गंधराड़ी | अश्वत्थामा पर्वत | आराम | उड्डियानपीठ | उत्कल | कंचनपुर | कुचाई | उदयगिरि और खण्डगिरि | खुर्दा | गिरिकोटूर | कोट्टूरगिरि | कोंगोद | गोहिराटिकिरी | गोपालपुर | चारित्र | कुमारीगिरी | लंगुड़ी | धौली | समुद्रतटपुरी | हाथीगुम्फ़ा शिलालेख | शिशुपालगढ़ | ओड़गाँव | ययतिनगर | वाराणसी कटक | ललितगिरि | धवलगिरि | सप्तिपारा | जाजनगर | जौगड़ | तोसली | समापा | रानीगुफ़ा | एकाम्रकानन | इराम हत्याकांड | खिचिंग |
उड़ीसा राज्य के ज़िले |
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अंगुल जिला | कंधामल जिला | कटक जिला | कालाहांडी जिला | केन्द्रपाड़ा जिला | कोरापुट जिला | क्योंझर जिला | ख़ुर्द जिला | गंजम जिला | गजपति जिला | जगतसिंहपुर जिला | जाजपुर जिला | झारसुगड़ा जिला | ढेकानल जिला | देवगढ़ जिला | नयागढ़ जिला | नवरंगपुर जिला | नवापाड़ा जिला | पुरी जिला | बाउध जिला | बारगढ़ जिला | बालासोर जिला | बोलनगीर जिला | भद्रक जिला | मयूरभंज जिला | मलकानगिरि जिला | संबलपुर जिला | सुन्दरगढ़ जिला | सोनपुर जिला |