जैन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत अहिंसा था। अहिंसा, जैन धर्म का मूल आधार है। इसका अर्थ है किसी भी जीव को मन, वचन या कर्म से किसी भी प्रकार का कष्ट न पहुंचाना। यह सिद्धांत सिर्फ मनुष्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि सभी जीवों - पशु, पक्षी, कीट-पतंगों, और यहां तक कि सूक्ष्म जीवों पर भी लागू होता है। जैन धर्म मानता है कि हर जीव में एक आत्मा है, और हर आत्मा में समान रूप से जीने का अधिकार है। अहिंसा के पालन को सुनिश्चित करने के लिए, जैन भिक्षु और उपासक कई सावधानियां बरतते हैं। वे जमीन पर चलते समय ध्यान रखते हैं कि कोई जीव कुचला न जाए, वे पानी को छानकर पीते हैं ताकि कोई सूक्ष्म जीव उसमें न मर जाए, और वे भोजन भी सोच-समझकर करते हैं ताकि अनावश्यक रूप से जीवों का वध न हो। अहिंसा का सिद्धांत जैन धर्म में न केवल एक नैतिक कर्तव्य है, बल्कि मोक्ष प्राप्ति का एक मार्ग भी है। यह माना जाता है कि अहिंसा का पालन करने से कर्मों का संचय कम होता है और आत्मा शुद्ध होती है, जिससे अंततः जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है। इसके अतिरिक्त, जैन धर्म अनेकांतवाद (reality can be perceived differently from different points of view) और अपरिग्रह (non-attachment to material possessions) जैसे अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर भी जोर देता है, जो अहिंसा के सिद्धांत को और अधिक गहराई से समझने और अभ्यास करने में मदद करते हैं।

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