"जिसने मोक्ष प्राप्त किया हो" जैन सिद्धों की तीर्थंकर श्रेणी में आता है। जैन धर्म में सिद्धों की श्रेणी: जैन धर्म में, मोक्ष प्राप्त आत्माओं को 'सिद्ध' कहा जाता है। सिद्धों को उनकी उपलब्धियों और भूमिका के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जाता है। तीर्थंकर: तीर्थंकर वे सिद्ध होते हैं जो अपने जीवनकाल में धर्म की स्थापना करते हैं और दूसरों को मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं। वे एक 'तीर्थ' (घाट या मार्ग) बनाते हैं, जिससे संसारी प्राणी भवसागर पार कर सकें। जैन धर्म में 24 तीर्थंकर माने जाते हैं, जिनमें ऋषभदेव पहले और महावीर अंतिम तीर्थंकर थे। तीर्थंकर केवल मोक्ष प्राप्त आत्माएं ही नहीं होतीं, बल्कि वे धर्म के मार्गदर्शक और शिक्षक भी होते हैं। अन्य सिद्ध: तीर्थंकरों के अलावा, अन्य सिद्ध भी होते हैं जिन्होंने मोक्ष प्राप्त किया है, लेकिन उन्होंने तीर्थंकरों जैसी भूमिका नहीं निभाई। वे अपने व्यक्तिगत प्रयासों से मोक्ष प्राप्त करते हैं। संक्षेप में: इसलिए, जबकि सभी तीर्थंकर सिद्ध होते हैं, सभी सिद्ध तीर्थंकर नहीं होते। तीर्थंकर सिद्धों की एक विशिष्ट श्रेणी है जो धर्म की स्थापना और मार्गदर्शन के लिए जिम्मेदार है। आपके मूल उत्तर में "तीर्थंकर" शब्द का प्रयोग उचित है, क्योंकि तीर्थंकर मोक्ष प्राप्त आत्माएं होती हैं, लेकिन अतिरिक्त विवरणों से इस श्रेणी की विशिष्टता और महत्व को और स्पष्ट किया जा सकता है।

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