स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

  Last Update - 2023-06-07

जन्म - 12 जनवरी 1863
जन्मस्थान - कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
मृत्यु - 4 जुलाई 1902
मृत्युस्थान - बेलूर मठ (कोलकाता)
मृत्यु के कारण - मस्तिष्क की नसों के फटने से
वास्तविक नाम - नरेंद्रनाथ दत्त
बाल्यावस्था का नाम - वीरेश्वर
उपनाम - आधुनिक राष्ट्रवाद के आध्यात्मिक पिता
काॅलेज - प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी (कोलकता), जनरल असेंबली इंस्टीट्यूशन (स्काॅटिश चर्च काॅलेज, कोलकाता)।
पिता - विश्वनाथ दत्त (कोलकाता हाईकोर्ट में वकालत)
माता - भुवनेश्वरी देवी (धार्मिक घरेलू महिला)
दादा का नाम - दुर्गाचरण दत्त (संस्कृत व पारसी के विद्वान)
वैवाहिक स्थिति - अविवाहित
शैक्षणिक योग्यता - कला में स्नातक (1884)
धर्म - हिन्दू
जाति - कायस्थ

स्वामी विवेकानंद का जन्म कब हुआ था -

स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) जी का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता के सिमलिया मोहल्ले में पश्चिम बंगाल में हुआ था। इनका जन्म एक पारम्परिक बंगाली परिवार में हुआ था तथा ये कुल 9 भाई बहन थे। विद्वानों के मत के अनुसार स्वामी विवेकानंद जी का जन्म मकर संक्रांति की तिथि को हुआ था। स्वामी विवेकानंद के जन्म के समय उन्हें वीरेश्वर कहते थे, लेकिन बाद में नामकरण के बाद इनको नरेन्द्रनाथ दत्त कहकर पुकारा जाता था। इनके पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता हाईकोर्ट में वकील के पद पर थे। स्वामी विवेकानंद के दादा दुर्गाचरण दत्त संस्कृत व पारसी भाषा के विद्वान थे। बचपन से ही नरेन्द्र अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के थे। अपने दोस्तों के साथ विवेकानन्द काफी शरारतें किया करते थे। साथ ही वे अपने अध्यापकों के साथ भी शरारत करते थे।

स्वामी विवेकानन्द (Swami Vivekanand) की माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थी और उनके घर में रोजना ही पूजा-पाठ होता था। उनकी माता भुवनेश्वरी देवी कथावाचकों से पुराण, रामायण, महाभारत आदि की कथा सुनती थी। इनके घर में नियमित रूप से भजन-कीर्तन होता था, जिससे परिवार के धार्मिक और आध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव से नरेन्द्रनाथ नाथ दत्त का मन बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार ले चुका था। धार्मिक वातावरण और माता-पिता के संस्कारों के कारण नरेन्द्र नाथ दत्त के मन में ईश्वर के बारे में जानने, ईश्वर के दर्शन और उसे प्राप्त करने की लालसा आ गई थी। कई बार नरेन्द्र अपने माता-पिता से भी ईश्वर के बारे में प्रश्न पूछ लेते थे, जिससे सुनकर उनके माता-पिता भी हैरान हो जाते थे।

स्वामी विवेकानंद ने शिक्षा कहाँ से प्राप्त की -

  • नरेन्द्र नाथ दत्त (Narendranath Dutt) की शिक्षा का प्रारंभ 1871 ई. में हुआ था। जब 1871 ई. में नरेंद्रनाथ दत्त आठ साल के थे, तब उन्होंनेे ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में दाखिला लिया जहाँ वे पहली बार स्कूल गए थे।
  • इसके बाद 1877 में नरेंद्र का परिवार रायपुर चला जाता है।
  • फिर 1879 में उनको परिवार कलकत्ता में वापस आ गया था तभी वह प्रेसीडेंसी काॅलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए थे।
  • उनकी वेद, उपनिषद, भगवद् गीता, रामायण, महाभारत और पुराणों के अध्ययन में काफी रुचि थी।
  • इनको आंग्ल, बांग्ला भाषा का विशेष ज्ञान था।
  • इन्होंने स्नातक की उपाधि 1884 में स्काॅटीश-चर्च काॅलेज, कलकत्ता से प्राप्त की थी।
  • इसी वर्ष 1884 में स्वामी विवेकानंद जी के पिता का निधन हुआ था।

स्वामी विवेकानन्द की पुस्तकें -

  • ज्ञानयोग (1899)
  • कर्मयोग (1896)
  • राजयोग (1896)
  • भक्तियोग
  • गंगा से वोल्गा तक
  • पूरब से पश्चिम तक
  • मैं समाजवादी हूँ
  • वेदांत फिलोसोफी।

स्वामी विवेकानन्द ने अपनी शिक्षाओं को अपने इन समाचार पत्रों के माध्यम से प्रकाशित किया।

स्वामी विवेकानंद के समाचार पत्र -

  • प्रबुद्ध भारत (मासिक, अंग्रेजी भाषा)
  • उद्बोधन (बंगाली भाषा)।

स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस से कब मिले -

नरेन्द्रनाथ दत्त 1881 में रामकृष्ण परमहंस (Ramakrishna Paramahamsa) से मिले थे और उनको अपना गुरू बना लिया था। श्री रामकृष्ण जी दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पुजारी थे। ये हिन्दू, इस्लाम, ईसाई धर्म के ज्ञाता थे। ये एक आध्यात्मिक गुरू है। इन्होंने चिंतन, सन्यास तथा भक्ति के परम्परागत तरीकों से धार्मिक मुक्ति प्राप्त करने का प्रयास किया। रामकृष्ण परमहंस सभी धर्मों को सत्य मानते थे, वे मूर्तिपूजा में विश्वास करने के साथ-साथ उसे शाशक्त व ईश्वर प्राप्ति का साधन मानते थे। रामकृष्ण परमहंस ने तांत्रिक, वैष्णव और अद्वैत साधना द्वारा निर्विकल्प समाधि की स्थिति प्राप्त की और परम हंस कहलाये। रामकृष्ण ने अपनी भाव समाधियों में देवी माता काली, कृष्ण, ईसामसीह तथा बुद्ध के दर्शन किये थे।

रामकृष्ण परमहंस (Ramakrishna Paramahamsa) की विचार थी कि मानव सेवा ही सबसे बङा धर्म है। रामकृष्ण करुणा नहीं बल्कि मानव की सेवा को ही ईश्वर के रूप में मानते थे। यहीं से नरेन्द्रनाथ दत्त को वेद, वेदान्त एवं आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हो जाता है। स्वामी विवेकानंद जी के ज्ञान के कारण श्री रामकृष्ण जी उनको शुक्र, देव, नारायण, ऋषि आदि पदवी से पुकारते थे।

16 अगस्त 1886 में रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के पश्चात् विवेकानंद जी ने अपने गुरू के संदेशों का प्रचार प्रसार किया था। सन् 1886 में रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने बङे पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में स्थितियों का ज्ञान हासिल किया। उन्होंने इस कार्य हेतु अपना जीवन समर्पित करते हुए सांसारिक जीवन से संन्यास ले लिया। संन्यास ग्रहण करने के बाद नरेन्द्रनाथ ने समूचे भारत वर्ष का भ्रमण किया और भ्रमण के दौरान मिले अनुभवों को व्यक्त करते हुए कहा कि मैं जिस प्रभु में विश्वास करता हूँ, वह सभी आत्माओं का समुच्चय है और सर्वोपरि भी, मेरा प्रभु पतितों, पीङितों और सभी प्रजातियों में निर्बलों का रक्षक उद्धारक है।

नरेंद्र को विवेकानंद नाम किसने दिया -

  • अजीत सिंह खेतङी (राजस्थान) के शासक थे। नरेन्द्रनाथ दत्त 7 अगस्त 1891 को प्रथम बार खेतङी आए।
  • खेतङी महाराज अजीतसिंह ने नरेन्द्रनाथ दत्त को विवेकानन्द नाम दिया था। इन्होंने स्वामी विवेकानन्द को अपना गुरू बनाया।
  • 21 अप्रैल 1893 को स्वामी जी के दूसरी बार खेतङी पहुँचने पर उन्हें शिकागो में आयोजित विश्वधर्म सम्मेलन (11 सितम्बर 1893 ई.) में भाग लेने हेतु अजीत सिंह ने उन्हें आर्थिक सहायता दी थी।
  • स्वामी विवेकानन्द की वेशभूषा साफा व भगवा चोगा अजीत सिंह की ही देन है।
  • 12 दिसंबर 1897 को खेतङी नरेश ने स्वामी विवेकानन्द के सम्मान में खेतङी के पन्नालाल शाह तालाब पर प्रीतिभोज देकर उनके सम्मान में समूचे खेतङी को रोशनी की जगमगाहट से सजाया। इसी श्रद्धा भक्ति से ओतप्रोत हो कर स्वामी जी ने खेतङी को अपना दूसरा घर कहा था।

शिकागो धर्म सम्मेलन -

  • विश्व धर्म सम्मेलन अमेरिका के शिकागो शहर में 11 सितम्बर 1893 में हुआ था।
  • स्वामी विवेकानन्द ने विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था।
  • यूरोप-अमेरिका के लोग उस समय भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे।
  • वहाँ लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानन्द को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही न मिले। परन्तु एक अमेरिका प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोङा समय मिला।
  • जब स्वामी जी ने सभा का संबोधन अमेरिका के भाईयों और बहनों कह कर शुरू किया तो वहाँ उपस्थित सभा जनों ने खङे होकर दो मिनट तक तालियों से उनका स्वागत किया था।
  • उस परिषद् में उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गये।
  • वहाँ उनके भक्तों का एक बङा समुदाय बन गया।
  • वहाँ के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्धुत ज्योति प्रदान की।
  • स्वामी विवेकानन्द की भाषण-शैली तथा ज्ञान को देखते हुए वहाँ के मीडिया ने उन्हें साइक्लाॅनिक हिन्दू का नाम दिया।

शिकागो सम्मेलन में विवेकानन्द का भाषण -

  • जिस प्रकार सारी धाराएँ अपने जल को सागर में लाकर मिला देती हैं, उसी प्रकार मनुष्य के सारे धर्म एक ही ईश्वर की ओर ले जाते है।
  • पृथ्वी पर हिन्दू धर्म के समान कोई भी अन्य धर्म इतने उदात्त रूप में मानव की गरिमा का प्रतिपादन नहीं करता।
  • मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूँ जिसने संसार को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति, दोनों ही शिक्षा दी है।

इनके भाषण की कुछ विद्वानों ने भी प्रशंसा की थी।

अमेरिका के न्यूयार्क हेराल्ड ने लिखा - शिकागो धर्म सम्मेलन में विवेकानन्द ही सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हैं। उनका भाषण सुनने के बाद लगता है कि भारत जैसे समुन्नत राष्ट्र में ईसाई प्रचारकों का भेजा जाना कितनी मूर्खता की बात है।

न्यूयार्क क्रिटिक ने लिखा - वे ईश्वरीय शक्ति प्राप्त वक्ता है। उनके सत्य वचनों की तुलना में उसका सुन्दर बुद्धिमत्तापूर्ण चेहरा पीले और नारंगी वस्त्रों से लिपटा हुआ कम आकर्षक नहीं।

रोम्यांरोला ने लिखा संसार का कोई भी धर्म मनुष्यता की गरिमा को इतने ऊंचे स्वर में सामने नहीं लाता जितना कि हिन्दू धर्म।

इसके बाद स्वामी विवेकानन्द ने अमेरिका एवं इंग्लैण्ड में जाकर हिन्दू धर्म एवं संस्कृति का प्रचार किया। इस धर्म सम्मलेन में विवेकानन्द ने विश्व में विख्याति प्राप्त कर ली।

विवेकानन्द जी विश्व धर्म सम्मेलन के बाद 3 वर्ष तक अमेरिका में रहे थे। स्वामी विवेकानन्द ने 1896 में अमेरिका के न्यूयाॅर्क में वेदान्त सोसायटी की स्थापना की। 1896 में ही विवेकानन्द ने केलीफोर्निया में शांति आश्रम की स्थापना की। 1897 में स्वामी जी भारत लौट आए।

रामकृष्ण मिशन की स्थापना -

भारत आने के बाद स्वामी विवेकानन्द जी ने 1 मई 1897 को कलकत्ता के समीप वैलूर में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इसकी स्थापना उन्होंने अपने गुरू रामकृष्ण परमहंस की स्मृति में की थी। रामकृष्ण परमहंस के विचारों व उपदेशों के अनुरूप गठित यह एक मिशन था। इस मिशन के अनुयायी संन्यासी कहलाए।

रामकृष्ण मिशन के भारत में 2 मुख्यालय थे - (1) वेल्लूर (कलकत्ता), (2) मायावती (अलमोङा, उत्तराखण्ड)। जिसका उद्देश्य था वेदांत प्रचार और लोक सेवा, साधु-सन्यासियों को संगठित कर समाज सेवा करना आदि। रामकृष्ण मिशन का मत मानव सेवा ही ईश्वर सेवा है। इस मिशन के माध्यम से स्वामी विवेकानन्द ने वेदान्त-दर्शन की शिक्षाओं का प्रचार किया। अमरीका में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाएँ स्थापित कीं।

रामकृष्ण मिशन में कार्यरत संन्यासी जन साधारण के कष्टों के निवारण, रोगियों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना अनार्थों की देखभाल आदि के माध्यम से सक्रिय समाज सेवा के प्रति समर्पित थे। स्वामी विवेकानंद ने कहा कि मोक्ष संन्यास से नहीं बल्कि मानव मात्र की सेवा से प्राप्त होता है। उनके अनुसार धर्म की चर्चा तब तक नहीं करनी चाहिए जब तक कि देश से गरीबी और दुःखों का निवारण न हो जाए। स्वामी जी ने अपनी पुस्तक मैं समाजवादी हूँ में भारत के उच्चवर्ग से अपने पद और सुविधाओं का परित्याग करते हुए निम्नवर्ग के साथ मेल-जोल करने का आह्वान किया।

रामकृष्ण मिशन ने आध्यात्मिक एवं वेदांत के सिद्धांतों का प्रचार किया जिससे हिंदू धर्म की प्रतिष्ठा बढ़ी। संस्था का ध्येयवाक्य है - आत्मनो मोक्षार्धं जगद् हिताय च। रामकृष्ण मिशन ने मुर्शिदाबाद (बंगाल) में फैले फ्लेग पीङित लोगों की सेवा की। शिक्षा, दुखी एवं मनुष्य की निःस्वार्थ सेवा, राष्ट्रीय एकात्मता के कार्य किये।

रामकृष्ण मिशन के तहत ही भारत में दो मठों की स्थापना की गई -

बैलूर मठ की स्थापना -

  • 9 दिसम्बर 1898 को कलकत्ता में स्वामी विवेकानन्द ने बैलूर मठ की स्थापना की।

अद्वैत आश्रम -

  • स्वामी विवेकानन्द जी के द्वारा 19 मार्च 1899 को उत्तराखण्ड राज्य के मायावती शहर में अद्वैत आश्रम की स्थापना की।

विवेकानन्द के बारे में महत्त्वपूर्ण तथ्य -

  • भारत में विवेकानन्द मठ कन्याकुमारी (तमिलनाडु) में स्थित है। 1899 में वह पुनः अमेरिका गए, फिर 1900 में पुनः भारत लौट आए। सन् 1900 में पेरिस में आयोजित द्वितीय विश्व धर्म सम्मेलन में भी स्वामी विवेकानन्द ने भाग लिया था।
  • उन्होंने स्पेंसर की पुस्तक एजुकेशन बंगाली में अनुवाद किया। साथ ही उन्होंने संस्कृत ग्रंथों तथा बंगाली साहित्य को भी सीखा।
  • स्वामी जी अपने शुरुआती दौर में विदेशों में वे द इंडियन मांक के नाम से मशहूर हुए।
  • अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जायेगा। यह स्वामी विवेकानंद का दृढ़ विश्वास था।
  • अनेक अमरीकी विद्वानों ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया।
  • वे सदा अपने को गरीबों का सेवक कहते थे।
  • भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द के कारण ही पहुँचा।
  • कन्याकुमारी में निर्मित उनका स्मारक आज भी स्वामी विवेकानंद की महानता की कहानी बया कर रहा है।
  • स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिन को 1984 के बाद भारत में 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • स्वामी विवेकानन्द को 19 वीं शताब्दी के नव राष्ट्रवाद का जनक भी कहा जाता है।
  • सुभाष चन्द्र बोस का कथन - जहाँ तक बंगाल का संबंध है, हम विवेकानन्द को आधुनिक राष्ट्रीय आंदोलन का आध्यात्मिक पिता कह सकते हैं।
  • वेलेन्टाईन शीराॅल ने विवेकानन्द के उद्देश्यों को राष्ट्रीय आंदोलन का एक प्रमुख कारण माना है।
  • रवीन्द्रनाथ टैगोर का कथन - यदि कोई मनुष्य भारत को समझना चाहता है तो उसे स्वामी विवेकानन्द को अवश्य पढ़ना चाहिए।
  • रामकृष्ण मिशन को 1996 में डाॅ. अम्बेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार एवं 1998 में अंतर्राष्ट्रीय गाँधी शांति पुरस्कार मिला।

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु कब हुई थी -

स्वामी विवेकानंद का देहावसान 4 जुलाई 1992 को मस्तिष्क की नश फटने के कारण हुआ था।

स्वामी विवेकानंद का नारा -

”उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये।”

स्वामी विवेकानंद के विभिन्न विषयों से संबंधित विचार

स्वामी विवेकानंद के राजनीतिक विचार -

  • राष्ट्रवाद का धार्मिक एवं आध्यात्मिक सिद्धान्त
  • मानववाद
  • अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्यों पर बल
  • आदर्श राज्य की कल्पना या सामाजिक एकीकरण सम्बन्धी चिन्तन
  • विश्वबन्धुत्व के समर्थक।

(1) राष्ट्रवाद का धार्मिक एवं आध्यात्मिक सिद्धान्त

  • विवेकानन्द धर्म को राष्ट्रीय जीवन रूपी संगीत का स्थायी स्वर मानते थे। विवेकानन्द ने धर्म और संस्कृति की दुहाई देकर भारतीयों में अपने गौरवमय अतीत के प्रति एक प्यार जगा दिया, उनमें स्वाभिमान की अग्नि प्रज्वलित कर दी। विश्व के सम्मुख भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता की श्रेष्ठता और सर्वोपरिता की साहसी घोषणा करने से उन हिन्दुओं में नवीन प्रेरणा और शक्ति का संचार हुआ जो यूरोपीय संस्कृति एवं सभ्यता के सम्मुख अपने को हेय समझते थे। इससे भारतीयों में आत्म-गौरव का उदय हुआ जिससे राष्ट्रीय पुनरुत्थान के मार्ग के प्रशस्त होने में निर्दिष्ट सहायता प्राप्त हुई।

(2) मानववाद

  • स्वामी विवेकानंद के चिन्तन का दूसरा प्रमुख आधार मानववाद था। जिसका विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है -

(अ) स्वतंत्रता का सिद्धांत - विवेकानन्द ने मनुष्य की सम्पूर्ण एवं सर्वव्यापक स्वतऩ्त्रता पर बल दिया। उन्होंने चिन्तन और कार्य की स्वतन्त्रता पर बल देते हुए कहा कि जिस क्षेत्र में यह नहीं है, उस क्षेत्र में मनुष्य जाति और राष्ट्र का पतन होगा। उन्हीं के शब्दों में भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वतन्त्रता की ओर अग्रसर होना तथा दूसरों को इस ओर अग्रसर होने में सहायता देना सबसे बङा सत्कर्म है। जो सामाजिक नियम स्वतन्त्रता की सिद्धि में बाधक हों, उन्हें तुरन्त समाप्त कर देना चाहिए। स्वतन्त्रता यह मांग करती है कि सब व्यक्तियों को संपदा, शिक्षा और ज्ञान अर्जित करने के असीम अवसर हों। स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए स्वामीजी ने सब तरह के अन्याय का विरोध करने की प्रेरणा दी।

(ब) निर्भयता का सिद्धान्त - स्वामी विवेकानन्द ने यह संदेश दिया कि भारतवासी शक्ति, निर्भीकता और आत्मबल के आधार पर ही विदेशी सत्ता से लोहा ले सकते हैं और अपने राष्ट्र को स्वाधीन करा सकते हैं।

(स) व्यक्ति के गौरव में विश्वास - विवेकानन्द मनुष्य के नैतिक गुणों, व्यक्ति के गौरव के पोषक थे। राष्ट्र का निर्माण व्यक्तियों की इकाइयों के मिलने से होता है, अतः यदि इन इकाइयों में अच्छे गुणों का विकास होगा - मानव में सम्मान और पुरुषत्व की भावना का जागरण होगा तभी राष्ट्र सच्चे रूप में शक्तिशाली बन सकेगा। विवेकानन्द ने एकाधिक अवसर पर स्पष्ट कहा - मानव स्वभाव के गौरव को कभी न भूलो, हममें से प्रत्येक व्यक्ति यह घोषणा करे कि मैं परमेश्वर हूँ। विवेकानन्द ने गम्भीरतम आस्था प्रकट की। विवेकानन्द के अनुसार राष्ट्र व्यक्तियों से ही बनता है।

(3) अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्यों पर बल

  • विवेकानन्द ने अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्यों पर अधिक बल दिया है। वे चाहते थे कि सभी व्यक्ति और समूह अपने कर्तव्यों और दायित्वों के पालन में ईमानदार हों।

(4) आदर्श राज्य की कल्पना या सामाजिक एकीकरण सम्बन्धी चिन्तन

  • स्वामी विवेकानन्द के शब्दों में, मानवीय समाज पर चारों वर्ण - पुरोहित, सैनिक, व्यापारी और मजदूर बारी-बारी से राज्य करते हैं। हर अवस्था का अपना गौरव और अपना दोष होता है।
  • जब ब्राह्मण का राज्य होता है, तब जन्म के आधार पर भयंकर पृथक्ता रहती है। पुरोहित स्वयं और उनके वंशज नाना प्रकार के अधिकारों से सुरक्षित रहते हैं उनके अतिरिक्त किसी को कोई अधिकार नहीं होता और उनके अतिरिक्त किसी को शिक्षा देने का अधिकार नहीं होता। इस विशिष्ट काल में विद्याओं की नींव पङती है, यह इसका गौरव है। ब्राह्मण मन को उन्नत करता है, क्योंकि मन द्वारा ही वह राज्य करता है।
  • क्षत्रिय राज्य क्रूर और अन्यायी होता है, परन्तु उनमें पृथक्ता नहीं रहती और उनके काल में कला और सामाजिक शिष्टता उन्नति के शिखर पर पहुँच जाती है।
  • उसके बाद वैश्य-राज्य आता है। उनमें कुचलने और खून चूसने की मौन शक्ति अत्यन्त भीषण होती है। उसका लाभ यह है कि व्यापारी सब जगह जाता है इसलिए वह पहली दोनों अवस्थाओं में एकत्रित किये हुये विचारों को फैलाने में सफल होता है। इस काल में यद्यपि पृथक्ता में और कमी आती है तथापि सभ्यता में गिरावट आ जाती है।
  • स्वामी विवेकानन्द के अन्तिम मजदूरों के राज्य का वर्णन करते हुए लिखा है कि इस राज्य में भौतिक सुखों का समान वितरण होगा लेकिन सभ्यता निम्न स्तर पर पहुँच जायेगी। साधारण शिक्षा का प्रचार-प्रसार तो होगा लेकिन असामान्य प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति कम होते जायेंगे।
    इस प्रकार स्वामी विवेकानन्द ने चारों वर्णों के राज्यों की अच्छाइयों और बुराइयों को पृथक-पृथक् गिनाया है फिर कहा है कि आदर्श राज्य वह है जिसमें इन चारों वर्णों के राज्यों की अच्छाइयाँ एक साथ सम्मिलित हो जायें, अर्थात् जिसमें ब्राह्मण काल का ज्ञान, क्षत्रिय - काल की सभ्यता, वैश्य काल का प्रचार भाव और शूद्र काल की समानता एक साथ रखी जा सके।

(5) विश्वबन्धुत्व के समर्थक

  • स्वामी विवेकानन्द विश्व-बन्धुत्व के समर्थक थे। उन्होंने सार्वदेशिक धर्मों की चर्चा की है। यद्यपि वे भारत, उसके समाज तथा उसके धर्म से असीम प्रेम करते थे, उसके उत्थान के उत्कट अभिलाषी थे, तथापि वे किसी अन्य धर्म या समाज से घृणा नहीं करते थे। वे मानव-मानव के भेद के विरोधी थे।

स्वामी विवेकानंद के सामाजिक विचार -

  • समाजवादी चिन्तन
  • अस्पृश्यता का विरोध
  • बाल-विवाह का विरोध
  • दलितों का उत्थान
  • शिक्षा सम्बन्धी विचार

(1) समाजवादी चिन्तन

  • स्वामी विवेकानन्द के विचारों में समाजवाद के तत्त्व समाहित थे। उनका कहना था कि राष्ट्र के गौरव की रक्षा महलों में नहीं हो सकती, उसके लिए हमें झोंपङियों की दशा सुधारनी होगी, गरीबों को उनके दीन-हीन स्तर से ऊँचा उठाना होगा। उन्होंने भारत की निर्धनता, अशिक्षा व अज्ञानता को एक कलंक माना और कहा कि जन-साधारण को ऊँचा उठाये बिना कोई भी राजनीतिक उत्थान सम्भव नहीं है।

(2) अस्पृश्यता का विरोध

  • स्वामी विवेकानन्द उन वर्गगत तथा जातिगत श्रेष्ठता के विचारों तथा अत्याचार का उन्मूलन करना चाहते थे जिन्होंने हिन्दू समाज को शिथिल तथा विघटित तथा स्वरित कर दिया था। उन्होंने भारत में व्याप्त अस्पृश्यता तथा रूढ़िवादिता पर कटु प्रहार किया।

(3) बाल-विवाह का विरोध

  • स्वामी विवेकानन्द ने बाल-विवाह का विरोध किया।
  • विवेकानन्द ने बाल-विवाह की भर्त्सना की और कहा, बाल-विवाह से सामयिक सन्तानोत्पत्ति होती है और अल्पायु में सन्तान धारण करने के कारण हमारी स्त्रियाँ अल्पायु होती हैं, उनकी दुर्बल और रोगी सन्तानें देश में भिखारियों की संख्या बढ़ाने का कारण बनती हैं।

(4) दलितों का उत्थान

  • स्वामी विवेकानन्द जाति-प्रथा के विरोधी थे, लेकिन एक यथार्थवादी विचारक के रूप में वे यह भी मानते थे कि उसे समूल नष्ट करना असम्भव है। इसलिए मूल वर्ण-व्यवस्था को पुनर्जीवित करें तथा निम्नतर वर्गों को ऊपर उठाकर उच्चतर वर्गों के स्तर पर लाया जाए। उन्होंने इसके लिए सन्देश दिया कि निम्नतर जातियों को स्वीकृति दो।

(5) शिक्षा सम्बन्धी विचार

  • स्वामी विवेकानन्द अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली के प्रबल आलोचक तथा गुरुकुल शिक्षा पद्धति के समर्थक थे। शिक्षा पाठ्यक्रम में उन्होंने धार्मिक ग्रन्थों के अध्ययन को अनिवार्य बताया। उनका मूल लक्ष्य एक विशुद्ध भारतीय शिक्षा पद्धति का निर्माण करना था। सम्पर्क भाषा के रूप में वे अंग्रेजी के अध्ययन को वैज्ञानिक प्रगति की जानकारी के लिए आवश्यक मानते थे।
  • इस प्रकार विवेकानन्द ने सामाजिक व्यवस्था में आमूल परिवर्तन का आह्वान किया तथा घोषणा की कि वे सामाजिक नियम जो इस स्वतन्त्रता के विकास में आङे आते हैं, हानिकर हैं और उन्हें शीघ्र खत्म करने के लिए कदम उठाये जाने चाहिए।

राष्ट्रवाद पर स्वामी विवेकानंद के विचार -

  • राष्ट्रवाद का धार्मिक एवं सांस्कृतिक सिद्धान्त
  • राष्ट्र की महत्ता के प्रतिपादक
  • भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता की श्रेष्ठता एवं सर्वोपरिता की घोषणा
  • उग्र राष्ट्रवाद के पक्षपाती
  • राष्ट्रीय आत्म-चेतना के उद्दीपक
  • राष्ट्रीय उन्नति एवं जागरण के प्रेरक
  • भारतीय राष्ट्रवाद के नैतिक आधारों की स्थापना

(1) राष्ट्रवाद का धार्मिक एवं सांस्कृतिक सिद्धान्त

  • विवेकानंद के अनुसार प्रत्येक राष्ट्र का जीवन किसी एक प्रमुख तत्त्व की अभिव्यक्ति होता है। भारत का वह तत्त्व धर्म है। भारत में धर्म ने एकता और स्थिरता को बनाए रखने वाली रचनात्मक शक्ति का कार्य किया। इसलिए भारत में दृढ़ और स्थायी राष्ट्रवाद का निर्माण धर्म के आधार पर ही किया जा सकता है। उनकी दृष्टि में नैतिक और आध्यात्मिक प्रगति के शाश्वत नियम ही धर्म है। इस प्रकार उन्होंने राष्ट्रवाद का धार्मिक एवं सांस्कृतिक सिद्धान्त प्रतिपादित किया।

(2) राष्ट्र की महत्ता के प्रतिपादक

  • विवेकानन्द ने भारत राष्ट्र की महत्ता को प्रतिपादित करते हुए उन्होंने यह प्रेरणा दी है कि भारत को अपने अध्यात्म से पश्चिम को विजित करना होगा। उनके ही शब्दों में, एक बार पुनः भारत को विश्व की विजय करनी है। उसे पश्चिम की आध्यात्मिक विजय करनी है। उन्होंने तरुण भारत को प्रेरित किया कि वह भारत के आध्यात्मिक उद्देश्यों में विश्वास रखे।
  • उनके दर्शन के आधार पर आगे चलकर वह उन तरुण बुद्धिजीवियों के परम्परानिष्ठ राष्ट्रवाद का निर्माण हुआ जो अपने वर्गों से सम्बन्ध विच्छेद कर चुके थे और जिन्होंने अपने को गुप्त समुदायों के रूप में संगठित किया तथा ब्रिटिश शासन को उखाङ फेंकने के लिए हिंसा और आतंक का समर्थन किया। आध्यात्मिक श्रेष्ठता द्वारा विश्व को विजय करने के इस रोमांसपूर्ण स्वप्न ने उन तरुण बुद्धिजीवियों में भी नयी चेतना जाग्रत कर दी जिनकी दयनीय आर्थिक स्थिति ने उन्हें व्याकुल कर रखा था।

(3) भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता की श्रेष्ठता एवं सर्वोपरिता की घोषणा

  • स्वामी विवेकानन्द ने भारतीय धर्म और संस्कृति की श्रेष्ठता की घोषणा कर अपने गौरवमय अतीत के प्रति एक प्यार जगा दिया और उनमें स्वाभिमान की अग्नि प्रज्वलित कर दी। इससे उन हिन्दुओं में नवीन प्रेरणा और शक्ति का संचार हुआ जो यूरोपीय सभ्यता एवं संस्कृति के सम्मुख अपने को हेय समझते थे। इससे भारतीयों के मन में आत्म-गौरव का सशक्त भाव उदित हुआ जिससे राष्ट्रीय पुनरुत्थान के मार्ग के प्रशस्त होने में निर्दिष्ट सहायता प्राप्त हुई।

(4) उग्र राष्ट्रवाद के पक्षपाती

  • स्वामी विवेकानन्द उग्र राष्ट्रवाद के पक्षपाती थे। उन्होंने इसी उग्र राष्ट्रवाद के अंतर्गत भगिनी निवेदिता को आक्रामक हिन्दूवाद का उपदेश दिया और भगिनी निवेदिता ने विवेकानन्द के आक्रामक हिन्दूवाद को उग्र राष्ट्रवादी आन्दोलन में प्रयुक्त किया।

(5) राष्ट्रीय आत्म-चेतना के उद्दीपक

  • स्वामी विवेकानन्द भारतीय राष्ट्रीय आत्म-चेतना के प्रेरक रहे हैं। उन्होंने जिस सक्रिय प्रतिरोध का मार्ग भारतीयों के लिए प्रशस्त किया, वह आगे चलकर भारतीय राजनीतिक आन्दोलन का प्रमुख हथियार बना। उनके अभय सन्देश से भारत की पददलित, सामाजिक दृष्टि से बहिष्कृत एवं पौरुषहीन जनता को जीवनदान मिला तथा आत्म-चेतना प्राप्त हुई।

(6) राष्ट्रीय उन्नति एवं जागरण के प्रेरक

  • स्वामी विवेकानन्द राष्ट्र की आर्थिक दुर्दशा से परिचित थे, उन्होंने इसको सुधारने के लिए समय-समय पर अनेक प्रयत्न किये। उनका विश्वास था कि भारत की आर्थिक समृद्धि से भारत स्वयं राजनीतिक स्वतन्त्रता का उद्देश्य पूरा कर सकेगा। इसी कारण उन्होंने समाजवादी विचारधारा का अनुसरण किया।

(7) भारतीय राष्ट्रवाद के नैतिक आधारों की स्थापना

  • स्वामी विवेकानन्द ने भारतीय राष्ट्रवाद के नैतिक आधारों की नींव डाली।
  • एच. एच. दास और पी. एस. एन. पात्रो के अनुसार विवेकानन्द ने भारतीय राष्ट्र के पुनरुत्थान के लिए राष्ट्रीय संश्लिष्टता (एकता) के नैतिक आधारों पर जोर दिया। उसने राष्ट्र के चरित्र निर्माण के लिए वेदान्त के इन्जेक्शन लगाये।
  • इस प्रकार शक्ति के लिए शक्तिशाली समर्थन का अर्थ था - राष्ट्र के पुनः निर्माण का रास्ता निश्चित करना। उन्होंने नैतिक (आत्मिक) शक्ति के बीज-वपन द्वारा राष्ट्र के पुनरुत्थान पर जोर दिया।

युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद के विचार -

  • भारतीय युवकों में आत्म-विश्वास की प्रेरणा
  • युवकों में वीरता और भारतीयता की प्रेरणा
  • सामाजिक यथार्थवाद

(1) भारतीय युवकों में आत्म-विश्वास की प्रेरणा

  • स्वामी विवेकानन्द ने भारतीय युवकों में आत्म-विश्वास की प्रेरणा प्रदान की। उन्होंने युवकों को भारत की राजनीतिक दासता से मुक्ति प्राप्त करने का आह्वान करते हुए कहा कि हम तभी शक्तिशाली बन सकते हैं, जबकि हम अद्वैत के दर्शन का साक्षात्कार कर लें, सबकी एकता के आदर्श की अनुभूति कर लें और कर लें अपने में विश्वास। ……….क्या कारण है कि हम तैंतीस करोङ लोगों पर पिछले एक हजार वर्ष से मुट्ठीभर विदेशी शासन करते आए हैं? क्योंकि उन्हें अपने में विश्वास था और हमें नहीं है।

(2) युवकों में वीरता और भारतीयता की प्रेरणा

  • स्वामी विवेकानन्द ने युवकों में या भारत की जनता में वीरता, निर्भयता और भारतीयता का सन्देश दिया।

(3) सामाजिक यथार्थवाद

  • स्वामी विवेकानन्द ने नवीन भारत के निर्माण में सामाजिक यथार्थवाद का आधार लिया। उन्होंने उच्च वर्गों की कुटिलता, अहंकार तथा धूर्तता की भर्त्सना की।
  • स्वामी विवेकानन्द ने कहा कि उच्च वर्गों तुम अपने को शून्य में विलीन कर दो और तिरोहित हो जाओ और अपने स्थान पर नये भारत का उदय होने दो।
  • इन जन-साधारणों ने हजारों वर्षों तक उत्पीङन सहन किया है और बिना शिकायत किये और बङबङाये सहन किया है जिसके परिणामस्वरूप उनमें आश्चर्यजनक सहनशक्ति उत्पन्न हो गई है। वे अनन्त दुःखों को सहते आये हैं जिसने उन्हें अविचल शक्ति प्रदान कर दी है। वे अनन्त दुःखों को सहते आये हैं जिसने उन्हें अविचल शक्ति प्रदान कर दी है। मुट्ठीभर दानों पर जीवित रह कर वे संसार को झकझोर सकते हैं, उन्हें रोटी का आधा टुकङा ही दे दीजिए और फिर तुम देखोगे कि सारा विश्व भी उनकी शक्ति को संभालने के के लिए पर्याप्त नहीं होगा।
  • इस प्रकार स्पष्ट है कि स्वामी विवेकानंद ने भारतीय युवा को स्वतन्त्रता, आत्माभिमान, राष्ट्रीय एकता, निर्भयता तथा सामाजिक समानता का सन्देश दिया। विवेकानंद ने योग , राजयोग तथा ज्ञानयोग जैसे ग्रंथों की रचना करके युवा जगत को एक नई राह दिखाई है जिसका प्रभाव युगों-युगों तक छाया रहेगा।

स्वामी विवेकानंद से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न -

1. स्वामी विवेकानन्द का जन्म कहां हुआ था ?
उत्तर - कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)


2. स्वामी विवेकानंद का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर - 12 जनवरी 1863


3. स्वामी विवेकानंद की माता का नाम क्या था ?
उत्तर - भुवनेश्वरी देवी


4. स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम क्या था ?
उत्तर - विश्वनाथ दत्त


5. स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम क्या था ?
उत्तर - नरेंद्र नाथ दत्त


6. स्वामी विवेकानंद के गुरु कौन थे ?
उत्तर - रामकृष्ण परमहंस


7. अमेरिका का शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन कब हुआ ?
उत्तर - 11 सितम्बर 1893


8. स्वामी विवेकानंद ने 1893 में अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म परिषद में भारत की ओर से किस धर्म का प्रतिनिधित्व किया था?
उत्तर - सनातन धर्म


9. स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना कब की ?
उत्तर - 1 मई 1897


10. भारत सरकार द्वारा स्वामी विवेकानंद की जन्म जयंती को प्रति वर्ष किस दिन के रूप में मनाया जाता है ?
उत्तर - राष्ट्रीय युवा दिवस (12 जनवरी को)


11. स्वामी विवेकानंद की प्रसिद्ध पुस्तकें कौन सी है ?
उत्तर - कर्मयोग, राजयोग, ज्ञान योग, भक्ति योग।


12. स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस से पहली बार कब मिले थे ?
उत्तर - 1881


13. स्वामी विवेकानंद जी के पिता का निधन कब हुआ था ?
उत्तर - 1884


14. स्वामी विवेकानंद को विवेकानंद नाम किसने दिया ?
उत्तर - खेतङी महाराज अजीत सिंह


15. स्वामी विवेकानंद की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर - 4 जुलाई 1902


16. अमेरिका के शिकागो में विवेकानंद जी ने सभा का संबोधन किन शब्दों से शुरू किया ?
उत्तर - अमेरिका के भाईयों और बहनों


17. स्वामी विवेकानन्द ने वेदान्त सोसायटी की स्थापना कब की ?
उत्तर - 1896 में अमेरिका के न्यूयाॅर्क में।


18. रामकृष्ण मिशन के भारत में 2 मुख्यालय कहाँ स्थापित किये गये ?
उत्तर - (1) वेल्लूर (कलकत्ता), (2) मायावती (अलमोङा, उत्तराखण्ड)।


19. रामकृष्ण मिशन के तहत ही भारत में किन दो मठों की स्थापना की गई ?
उत्तर - बैलूर मठ (1898), अद्वैत आश्रम (1899)।


20. पेरिस में आयोजित द्वितीय विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानन्द ने किस वर्ष भाग लिया था ?
उत्तर - सन् 1900


21. स्वामी विवेकानंद की मृत्यु का कारण क्या था ?
उत्तर - मस्तिष्क की नश फटने के कारण


22. 19 वीं शताब्दी के नव राष्ट्रवाद का जनक किसे कहा जाता है ?
उत्तर - स्वामी विवेकानन्द को


23. यदि कोई मनुष्य भारत को समझना चाहता है तो उसे स्वामी विवेकानन्द को अवश्य पढ़ना चाहिए। यह कथन किसका है ?
उत्तर - रवीन्द्रनाथ टैगोर


24. विवेकानन्द को आधुनिक राष्ट्रीय आंदोलन का आध्यात्मिक पिता किसने कहा था ?
उत्तर - सुभाष चन्द्र बोस ने


25. शिकागो धर्म सम्मेलन में विवेकानन्द ही सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हैं। उनका भाषण सुनने के बाद लगता है कि भारत जैसे समुन्नत राष्ट्र में ईसाई प्रचारकों का भेजा जाना कितनी मूर्खता की बात है। यह कथन किसका है ?
उत्तर - अमेरिका के न्यूयार्क हेराल्ड का

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