पर्यावरण क्या है - परिभाषा, महत्व और प्रभाव

  Last Update - 2024-02-03

पर्यावरण क्या है -

पर्यावरण हमारे आसपास का सब कुछ है जो हमें घेरता है। यह मनुष्य, पशु, पौधे, वनस्पति, जल, हवा, मिट्टी, और सभी प्राणियों का जीवन स्थान है। पर्यावरण हमें ऊर्जा, आहार, जल, वायु, और सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में मदद करता है। हमारे जीवन की समृद्धि और कल्याण के लिए पर्यावरण का संरक्षण महत्वपूर्ण है।

पर्यावरण के तत्वों में वायु, जल, मिट्टी, वनस्पति, पशु-पक्षी, मानव और जीवजंतु शामिल होते हैं। हर एक तत्व का अपना महत्वपूर्ण योगदान होता है और इनकी संतुलित अवस्था सभी के लिए जरूरी है।

पर्यावरण की देखभाल के लिए हमें स्वच्छता बनाए रखनी चाहिए, प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग करना चाहिए, जल संरक्षण करना चाहिए, पर्यावरणीय जीवनशैली अपनानी चाहिए और पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ानी चाहिए।

पर्यावरण संरक्षण हमारे सभी की जिम्मेदारी है, और हमें साथ मिलकर इसे सुरक्षित रखना चाहिए ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण में जीवन बिता सकें।

पर्यावरण से तात्पर्य है वह वातावरण जिससे सम्पूर्ण जगत या ब्रह्माण्ड या जीव जगत घिरा हुआ है। हमारे चारों ओर जो प्राकृतिक, भौतिक व सामाजिक आवरण है वहीं वास्तविक अर्थों में पर्यावरण (Environment) कहलाता है।

जीव जिस वातावरण या परिस्थितियों में रहता है, उसे उसका पर्यावरण कहा जाता है। पर्यावरण जीवों को प्रभावित करता है तथा जीव पर्यावरण को प्रभावित करते है। पर्यावरण में जीवधारियों के लिए आवश्यक हवा, पानी, खाद्यान्न, आवास तथा प्रकाश जैसी मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध होती है।

पर्यावरण किसी एक तत्त्व का नाम न होकर उन समस्त दशाओं या तत्त्वों का योग है, जो मानव के जीवन व विकास को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं।

पर्यावरण से आप क्या समझते हैं -

  • पर्यावरण भौतिक दशाओं का ऐसा योग होता है जिसमें जैविक समुदाय रहता है। ये भौतिक दशाएँ हमेशा परिवर्तनशील रहती हैं तथा इनके मध्य रहने वाले सभी जैविक घटक अपने उद्भव, विकास तथा कार्य-प्रणाली के अन्तर्गत इन दशाओं से प्रभावित रहते हैं तथा पर्यावरण के साथ अनुकूलन के तहत इसे भी प्रभावित करते हैं।
  • स्पष्ट है कि पर्यावरण जैविक तथा अजैविक घटकों का सामंजस्य स्थल भी है जहाँ पर्यावरण के भौतिक घटक स्थल, वायु, जल, मृदा तथा प्राकृतिक वनस्पति एवं जीव-जन्तु परस्पर समायोजन के द्वारा पर्यावरण सन्तुलित रखते हैं।
  • इस प्रकार जीवधारियों के विकास क्रम को प्रभावित करने वाली सभी परिस्थितियों, दशाओं, कारकों, प्रणालियों तथा प्रभावों का योग पर्यावरण (Paryavaran Kya Hai) कहलाता है। पर्यावरण न केवल जीवधारियों को अपने प्रभावों से आवृत्त करता है अपितु उनकी क्रियाओं के लगातार सक्रिय रहने पर स्वयं भी प्रभावित होता है।

पर्यावरण का अर्थ -

  • पर्यावरण शब्द परि + आवरण से मिलकर बना है।
  • परि का शाब्दिक अर्थ होता है - चारों ओर और आवरण का शाब्दिक अर्थ होता है - घेरा ।
  • इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रकृति का हमारे चारों ओर घेरा ही पर्यावरण है और इसके अंतर्गत आने वाले पादप, प्राणी, मृदा, जल, वायु आदि सभी पर्यावरण के अभिन्न अंग है। इन्हीं से मिलकर पर्यावरण का सृजन होता है।
  • पर्यावरण को अंग्रेजी भाषा में Environment कहते है।
  • पर्यावरण शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच भाषा के शब्द Environer से हुई है, जिसका अर्थ होता है - पङोस ।
  • हमारे आस-पङोस में पाए जाने वाले लोग, वस्तुएँ, स्थान और प्रकृति पर्यावरण कहलाते हैं।

पर्यावरण किसे कहते हैं -

  • हमारे आस पास पाए जाने वाले सभी वस्तुएँ पेङ-पौधे, जीव जंतु, नदी, तालाब, हवा, मिट्टी, तथा मनुष्य एवं उसके क्रियाएँ इन सभी के समूह को पर्यावरण (Environment) कहते हैं।
  • पर्यावरण वह परिवृत्ति है जो मानव को चारों ओर से घेरे हुए है तथा उसके जीवन एवं क्रियाओं पर प्रभाव डालती है।

पर्यावरण की परिभाषा -

फिटिंग के अनुसार, जीवों के पारिस्थितिकी का योग पर्यावरण है अर्थात् जीवन की पारिस्थितिकी के समस्त तथ्य मिलकर पर्यावरण कहलाते हैं।

टाॅसले के अनुसार, प्रभावकारी दशाओं का वह सम्पूर्ण योग जिसमें जीव रहते हैं, पर्यावरण कहलाता है।

सी.सी. पाई के अनुसार, मनुष्य एक विशेष स्थान पर विशेष समय पर जिन सम्पूर्ण परिस्थितियों से घिरा हुआ है इसे पर्यावरण कहा जाता है।

बोरिंग के अनुसार, एक व्यक्ति के पर्यावरण में वह सब कुछ सम्मिलित किया जाता है जो उसके जन्म से मृत्यु पर्यंन्त प्रभावित करता है।

हर्सकोविट्स के अनुसार, पर्यावरण उन सभी बाहरी दशाओं और प्रभावों का योग है जो कि प्राणी के जीवन और विकास पर प्रभाव डालते है।

मैकाइवर के अनुसार, पृथ्वी का धरातल और उसकी सारी प्राकृतिक दशाएँ- प्राकृतिक संसाधन, भूमि, जल, पर्वत, मैदान, खनिज पदार्थ, पौधे, पशु तथा सम्पूर्ण प्राकृतिक शक्तियाँ जो कि पृथ्वी पर विद्यमान होकर मानव जीवन को प्रभावित करती हैं, भौगोलिक पर्यावरण के अन्तर्गत आती हैं।

कोश के अनुसार, चारों तरफ की उन बाहरी दशाओं का सम्पूर्ण योग, उसके अन्दर एक जीव अथवा समुदाय रहता है या कोई वस्तु उपस्थित रहती है, पर्यावरण कहलाता है।

एनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ ब्रिटेनिका के अनुसार, पर्यावरण उन सभी बाह्य प्रभावों का समूह है जो जीवों को भौतिक एवं जैविक शक्ति से प्रभावित करते रहते हैं तथा प्रत्येक जीव को आवृत्त किये जाते हैं।

डेविज के अनुसार, मनुष्य के सम्बन्ध में पर्यावरण से अभिप्राय भूतल पर मानव के चारों ओर फैले उन सभी भौतिक स्वरूपों से है। जिसके वह निरन्तर प्रभावित होते रहते हैं।

गिलबर्ट के अनुसार, वातावरण उन समाग्रता का नाम है, जो किसी वस्तु को घेरे रहते है तथा उसे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है।

निकोलस के अनुसार, पर्यावरण उन सभी बाहरी दशाओं तथा प्रभावों का योग होता है जो प्रत्येक प्राणी के जीवन विकास पर प्रभाव डालता है।

जे. एस. राॅस के अनुसार, पर्यावरण एक बाहरी शक्ति है, जो हमें प्रभावित करती है।

डडले स्टेम्प के अनुसार, पर्यावरण प्रभावों का ऐसा योग है जो किसी जीव के विकास एवं प्रकृति को प्रभावित तथा निर्धारित करता है।

पर्यावरण की विशेषताएँ -

  • पर्यावरण जैविक और भौतिक तत्त्वों का योग है। भौतिक एवं जैविक तत्त्व किसी भी पर्यावरण में परस्पर एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं लेकिन समग्र रूप में ये तत्त्व पर्यावरण के अविभाज्य समूह की रचना करते हैं।
  • पर्यावरण की प्रादेशिक स्थिति में सीमाकारी योगदान देने वाले भौतिक घटक अपनी प्रभावकारी दशाओं के द्वारा जैविक घटकों को प्रभावित करते हैं जिसकी अनुक्रिया उनके लक्षणों में परिलक्षित होती है।
  • पर्यावरण के भौतिक तत्व अपार शक्ति के भण्डार है जो जैविक तत्त्वों को सक्रियता प्रदान करते है।
  • पर्यावरण में विशिष्ट भौतिक प्रक्रिया क्रियाशील रहती है इसी कारण जैव जगत सक्रिय है।
  • पर्यावरण सभी जीव-जन्तु एवं मानव के लिए अनुकूलित वातावरण तैयार करता है।
  • पर्यावरण का प्रभाव सभी जीवों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों रूपों में पङता है।
  • पर्यावरण गतिशील होता है।

Paryavaran in Hindi

  • प्रकृति ने पर्यावरण को एक ऐसा स्वपोषण क्रम प्रदान किया है जिसके द्वारा पर्यावरण स्वतः सन्तुलित बना रहता है तथा इस सन्तुलन के कारण ही जैविक तत्त्व भरण-पोषण कर पाते हैं।
  • पर्यावरण (Information About Environment in Hindi) सम्पूर्ण प्रकृति में समान दशाओं के अन्तर्गत विकसित नहीं होता है अपितु इसमें स्थानिक विविधता पायी जाती है। इस विविधता के अन्तर्गत ही विभिन्न पारिस्थितिक तंत्र विकसित होते हैं। इस विविधता के अन्तर्गत ही विभिन्न पारिस्थितिक तंत्र विकसित होते हैं। इस विविधता का प्रमुख कारण पर्यावरण के भौतिक तत्त्वों यथा - अवस्थिति, उच्चावच, जलवायु, मृदा, जल राशियाँ तथा वनस्पति का क्षेत्रीय वितरण है।
  • जीव जगत के एक स्वतंत्र आवास के रूप में पर्यावरणीय तत्त्वों में स्थानिक विविधता पाई जाती है लेकिन फिर भी सम्पूर्ण पर्यावरण में पार्थिव एकता पायी जाती है। पर्यावरण का प्रत्येक तत्त्व दूसरे तत्त्व से स्वतंत्र न होकर किसी न किसी रूप में संयोजित रहता है। इस संयोजन में जलवायु की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
  • पर्यावरण जीवधारियों का आवस्य-क्षेत्र होता है।
  • पर्यावरण प्राकृतिक संसाधनों का भण्डार है।

पर्यावरण के प्रकार -

  1. जल पर्यावरण : जल पर्यावरण जल स्रोत, नदी, झील, तालाब, और समुद्र जैसी जलीय संरचनाओं को सम्मिलित करता है। इसमें पानी की गुणवत्ता, प्रदूषण, और जल संरक्षण के मुद्दे शामिल होते हैं।
  2. वायु पर्यावरण : वायु पर्यावरण हवा की गुणवत्ता, वायुमंडल, वातावरणीय प्रदूषण, और वायुमंडलीय परिवर्तन के साथ संबंधित होता है।
  3. भूमि पर्यावरण : भूमि पर्यावरण में मिट्टी, भूमि का प्रबंधन, भूमि प्रदूषण, और भूमि संरक्षण सम्मिलित होते हैं।
  4. वन पर्यावरण : वन पर्यावरण वनस्पति, वन में जीवन, वन संरक्षण, और वनों का प्रबंधन सम्मिलित करता है।
  5. जैव विविधता : जैव विविधता में जीवजंतु और पौधों की विविधता, जीवजंतु रक्षा के मुद्दे, और प्राकृतिक संरक्षण के मामले शामिल होते हैं।
  6. प्राकृतिक पर्यावरण
  7. मानव निर्मित पर्यावरण
  8. भौतिक पर्यावरण

प्राकृतिक पर्यावरण से आप क्या समझते हैं -

  • इसके अन्तर्गत पर्यावरण का वह हिस्सा आता है जो प्रकृति हमें प्रदान करती हैं।
  • मानव को प्रभावित करने वाली प्राकृतिक शक्तियों, प्रक्रियाओं तथा तत्त्वों को प्राकृतिक वातावरण में समाहित किया जाता है। इन शक्तियों के द्वारा पृथ्वी पर अनेक वातावरणीय तत्त्व उत्पन्न होते हैं जिनका प्रत्यक्ष प्रभाव मानवीय क्रियाकलापों को प्रभावित करता है।
  • इसके अन्तर्गत जैविक एवं अजैविक दोनों परिस्थितियाँ सम्मिलित है।
  • जैविक तत्त्वों में पेङ-पौधे, सूक्ष्म जीव, जीव-जंतु, शैवाल अपघटक, प्राकृतिक वनस्पति, मनुष्य आते है।
  • अजैविक तत्त्वों में जल, तापमान, हवा, तालाब, नदी, महासागर, पहाङ, झील, वन, रेगिस्तान, ऊर्जा, उच्चावच, घास के मैदान, उत्सर्जन, मिट्टी, वायु, अग्नि, ऊष्मा इत्यादि।

मानव निर्मित पर्यावरण -

  • इसके अन्तर्गत मानव द्वारा निर्मित वस्तु आती है।
  • मानव द्वारा अपने पौरुष, ज्ञान-विज्ञान, तकनीकी, उद्यम, कौशल और कल्पना शक्ति के बल पर भौतिक पर्यावरण के साथ क्रिया कर जिस परिवेश का निर्माण किया जाता है, वह मानव निर्मित पर्यावरण कहलाता है।
  • इसके अन्तर्गत मानव की परस्पर क्रियाएँ, उनकी गतिविधियाँ एवं उनके द्वारा बनाई गई रचनाएँ सम्मिलित हैं।
  • इसके अन्तर्गत सामाजिक मान्यताएँ, संस्थाएँ, लोकरीतियाँ, रीति-रिवाज, पुलिस, कानून, सरकार, व्यवसाय, उद्योग, राजनीतिक-सामाजिक-शैक्षणिक संस्थाएँ, अधिवास, कारखाने, यातायात के साधन, वन, उद्यान, श्मशान, कब्रिस्तान, मनोरंजन स्थल, शहर, कस्बा, खेत, कृत्रिम झील, बांध, इमारतें, सङक, पुल, पार्क, अन्तरिक्ष स्टेशन आते है।

भौतिक पर्यावरण -

  • प्रकृति से बनाये गये कारक जिन पर प्रकृति का सीधा नियन्त्रण है।
  • इसमें मानव का कोई हस्तक्षेप नहीं है।
  • इसके अन्तर्गत जलमण्डल, स्थलमण्डल और वायुमण्डल का अध्ययन किया जाता है।
  • स्थलरूप, जलीय भाग, जलवायु, मृदा, शैल तथा खनिज पदार्थ आदि का भी इसमें अध्ययन किया जाता है।

जैविक पर्यावरण -

  • जैविक पर्यावरण की उत्पत्ति मानव और जीव-जन्तुओं के द्वारा हुई है।
  • मानव एक सामाजिक प्राणी है जिस कारण वह सामाजिक, भौतिक तथा आर्थिक गतिविधियों से जुङा रहता है। इसमें समस्त जीव प्रणाली शामिल होते हैं। इन सब के बीच के संबंध को परिस्थितिकी कहते हैं जो कि संतुलन बनाए रखने की प्रक्रिया है।
  • इसमें पेङ-पौधे, जन्तु, सूक्ष्म जीव, मानव आदि का अध्ययन किया जाता है।

पर्यावरण के घटक -

पर्यावरण के तीन घटक होते हैं -

  1. जैविक घटक : जैविक घटक पर्यावरण में जीवित जीवों, वनस्पतियों, और माइक्रोऑर्गेनिज्मों को सम्मिलित करते हैं। ये घटक प्राकृतिक जीवन के अस्तित्व और पर्यावरणीय संतुलन के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
  2. अजैविक घटक : अजैविक घटक पर्यावरण में जल, वायु, मिट्टी, पत्थर, धातु, प्लास्टिक, और अन्य अवैज्ञानिक तत्त्वों को सम्मिलित करते हैं। इन घटकों का प्रयोग ऊर्जा उत्पादन, जल संरचना, और प्रदूषण के प्रभाव को नियंत्रित करने में होता है।
  3. ऊर्जा घटक : ऊर्जा घटक पर्यावरण में ऊर्जा के स्रोत, उपयोग, और प्रभाव को सम्मिलित करता है। इसमें सौर ऊर्जा, वायु ऊर्जा, जल ऊर्जा, जलवायु ऊर्जा, और इंधन ऊर्जा जैसे घटक शामिल होते हैं। ये घटक हमें ऊर्जा के उत्पादन और उपयोग के साथ संबंधित बनाते हैं।

जैविक घटक -

जैविक घटक में सभी सजीव प्राणी आते है। विभिन्न जीव-जन्तु और पशु, मनुष्य के आर्थिक कार्यों को प्रभावित करते हैं। जन्तु अपनी आवश्यकतानुसार प्राकृतिक वातावरण से अनुकूलन कर लेते हैं या अनुकूल वातावरण में प्रवास कर जाते हैं, फिर भी इन पर पर्यावरण का प्रत्यक्ष प्रभाव दिखता है। समान दशाओं वाले वातारण के प्रदेशों में जन्तुओं में भिन्नता पायी जाती है, यथा - थार व अरब के रेगिस्तान में पाये जाने वाले ऊँट भिन्नता रखते हैं।

पृथ्वी पर जीव-जन्तुओं का वितरण वनस्पति की उपलब्धता के अनुसार है जिसको जलवायु, मृदा, उच्चावच आदि तत्त्व नियंत्रित करते हैं। प्रकृति के प्रत्येक जीवधारी एक-दूसरे को किसी न किसी तरह से प्रभावित करते है। ये जैविक घटक पूर्णतः अपने आप पर निर्भर नहीं रहते है अपने अस्तित्व के लिए इन्हें दूसरों पर आश्रित रहना होता है। ये परस्पर एक वर्ग के सदस्य के रूप में व्यवहार करते हैं, यथा - भोजन, वृद्धि, गति इत्यादि।

जैविक घटक तीन प्रकार के होते हैं -

  1. उत्पादक
  2. उपभोक्ता
  3. अपघटक।

जैविक घटक के उदाहरण - Jaivik Ghatak Ke Udaharan

  • जीव-जंतु
  • पेङ-पौधे
  • शैवाल
  • अपघटक
  • वनस्पति
  • मानव
  • सूक्ष्म जीव
  • परजीवी।

अजैविक घटक -

पर्यावरण के अजैव घटकों के अन्तर्गत जल, वायु, मृदा, ताप, धरातल आदि को शामिल किया गया है। अवस्थिति एक महत्त्वपूर्ण कारक है। यह स्थिर होती है लेकिन समय के साथ सापेक्षिक महत्ता बदलती रहती है। उच्चावच भी एक महत्त्वपूर्ण घटक है। सम्पूर्ण पृथ्वी का धरातल या उच्चावच विविधता से युक्त है। जलवायु पर्यावरण का नियन्त्रक घटक है क्योंकि इसका प्रभाव पर्यावरण के अन्य कारकों यथा-प्राकृतिक वनस्पति, मृदा, जलराशियों, जीव-जन्तुओं आदि पर सबसे अधिक होता है। प्राकृतिक वनस्पति के अन्तर्गत सघन वनों से लेकर कटीली झाङियाँ, घास एवं छोटे पौधे जो कि प्राकृतिक परिस्थितियों में पल्लवित हों, सम्मिलित किये जाते हैं।

  • अजैविक घटक में सभी निर्जीव प्राणी आते हैं।
  • भौतिक कारक - तापमान, वायुभार, आर्द्रता, हवा, वर्षा, ऊर्जा, जलवायु, ज्वालामुखी, भूकम्प, बाढ़, सूर्य, प्रकाश, मृदा, वायुमण्डल।
  • कार्बनिक कारक - प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, यूरिया, ह्यूमस, लिपिड।
  • अकार्बनिक कारक - जल, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन हाइड्रोजन, अमोनिया, फाॅस्फेट, पोटेशियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम, फाॅस्फोरस, खनिज लवण, चट्टान, मिट्टी आदि।
  • महासागर - सागर, नदी, झील, झरना, तालाब, समुद्र, भूमिगत जल, हिमानी या ग्लेशियर।
  • महाद्वीप - पहाङ, मैदान, मरुस्थल, पर्वत, पठार, दलदल, वन।

ऊर्जा घटक -

  • ऊर्जा पर्यावरण का ऐसा महत्त्वपूर्ण घटक है जिसके बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। सजीव प्राणियों के प्रजनन, भरण-पोषण, पुर्नउत्पादन के लिए ऊर्जा बहुत ही आवश्यक है।
  • ऊर्जा घटक दो प्रकार की होती है - सौर ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा ।

पर्यावरण के क्षेत्र -

पर्यावरण को चार क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है -

  1. स्थलमंडल : स्थलमंडल क्षेत्र पर्यावरण के भूमिकात्मक और सांस्कृतिक पहलुओं को सम्मिलित करता है। इसमें भूमि, वन, वन्य जीवन, और मानवीय गतिविधियों के अध्ययन का समावेश होता है।
  2. जलमंडल : जलमंडल क्षेत्र पर्यावरण के जल संसाधन, जल उपयोग, जल संरक्षण, और जल प्रदूषण के बारे में जानकारी प्रदान करता है। इसमें नदियाँ, झीलें, तालाब, और मानवीय जल संरचनाओं का अध्ययन होता है।
  3. वायुमंडल : वायुमंडल क्षेत्र पर्यावरण के वायुमंडलिक प्रकृति, जलवायु, वायुमंडलीय प्रदूषण, और वायु गुणवत्ता के बारे में जानकारी प्रदान करता है। यह आकाशमंडल से संबंधित गतिविधियों और मानवीय प्रभावों का अध्ययन करता है।
  4. जैव मंडल : जैव मंडल क्षेत्र पर्यावरण के जीवविज्ञानिक और जैविक महत्व के पहलुओं को सम्मिलित करता है। यह वन्य जीवन, प्राकृतिक संरचना, और जैविक संसाधनों का अध्ययन करता है।

स्थलमंडल (Lithosphere)

  • भू-पर्पटी का वह कठोर भाग जो पृथ्वी की सतह से लगभग 65 किमी. नीचे तक फैला हो, स्थल मण्डल कहलाता है।
  • इस मंडल में धरातल का लगभग 29 प्रतिशत भाग आता है।
  • इस परत की ऊपरी सतह पर अवसादों का एक आवरण पाया जाता है।
  • स्थल मण्डल पर आधार शैल तथा वनस्पति आवरण के मध्य का पतला आवरण महत्त्वपूर्ण जैविक भट्टी की तरह कार्य करता है क्योंकि यह मृदा संघटक/मृदा पर्यावरण जहाँ एक तरफ तो जैविक जीवों का आवास प्रदान करता है वहीं दूसरी ओर पोषक भण्डार गृह की तरह कार्य करके, पौधों को जल व पोषक तत्त्व प्रदान करता है।
  • लगभग एक तिहाई भाग स्थलमंडल है इस मंडल में सेल एवं खनिज पाए जाते हैं तथा इस मंडल में पर्वत, पठार, मैदान, घाटी पाए जाते हैं।

जलमण्डल (Hydrosphere)

  • पृथ्वी पर पाए जाने वाले जल के क्षेत्र को जलमंडल कहते हैं।
  • पृथ्वी का लगभग दो तिहाई भाग जल से घिरा हुआ है।
  • इसके अन्तर्गत महासागर, नदियाँ, झील, तालाब आदि आते हैं।
  • पृथ्वी के लगभग 71 प्रतिशत भाग पर जल है।
  • पृथ्वी के 36 करोङ किमी. क्षेत्र पर जल का विस्तार है।
  • पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का 97.5 प्रतिशत जल महासागरीय जल है तथा केवल 2.5 प्रतिशत जल ही ताजे पानी के रूप में विद्यमान होता है।
  • जलमण्डल पर जल भूपृष्ठीय जल, भूमिगत जल व सागरीय जल के रूप में पाया जाता है।

(अ) भूपृष्ठीय जल - पृथ्वी की बाह्य सतह पर पाया जाने वाला जल, भूपृष्ठीय जल कहलाता है। जैसे - झील, तालाब, सरिता, हिमद्रवित जल।

(ब) भूमिगत जल - धरातल के नीचे सुराख एवं खाली जगहों पर एकत्रित होने वाला जल, भूमिगत जल कहलाता है। भूमिगत जल भण्डारों को एक्वीफर (जल भरण निकाय) कहते हैं। कार्बोनेट, चूना पत्थर से भरे जल भण्डार को, कठोर जल भरण निकाय (हार्ड एक्वीफर) कहते हैं।

वायुमंडल (Atmosphere)

  • पृथ्वी के चारों ओर विस्तृत गैसीय आवरण को वायुमण्डल कहते हैं, जो कि कई किलोमीटर तक विस्तृत है।
  • वायुमंडल कई गैसों का मिश्रण हैं - नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड आदि।
  • पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण वायुमण्डल सदैव पृथ्वी के साथ जुङा रहता है।
  • वायुमंडल की ऊँचाई धरातल से 800 किमी. मानी गई है, इसके बाद इसकी ऊँचाई 1300 किलोमीटर बतायी गई है।
  • वायुमंडल में धूल के कण एवं जलवाष्प पाया जाता है।
  • पृथ्वी के औसत तापमान (35oC) को बनाए रखने में वायुमण्डल का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
  • यह मंडल सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करता है।
  • वायुमंडल जलवायु और मौसम में परिवर्तन करता है।

पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर जाने पर प्राप्त स्तरों को निम्न भागों में बाँटा गया है -

  • क्षोक्षमण्डल
  • समताप मण्डल
  • मध्य मण्डल
  • तापमण्डल
  • बहिर्मण्डल।

जैवमण्डल (Biosphere)

  • जैवमंडल पृथ्वी का वह संकीर्ण क्षेत्र है, जहाँ स्थलमण्डल, जलमण्डल एवं वायुमण्डल मिलकर जीवन को अनुकूलित बनाते हैं।
  • यह जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान करता है।
  • जैवमंडल के अंतर्गत स्थलमंडल, जलमंडल, वायुमंडल के सभी जीवों को शामिल किया जाता है।
  • जैवमंडल में सभी प्रकार के जलीय, स्थलीय, नभचर, जीव एवं पेङ-पौधे सम्मिलित हैं।
  • जैवमंडल का विस्तार समुद्र के भीतर 10.4 Km तक गहरा, पृथ्वी पर 8.2 Km , वायुमण्डल में 10 Km तक जीवन पाया जाता है।

निष्कर्ष - हमारा पर्यावरण हमारे जीवन का अहम भाग होता है और हम ये नहीं ठुकरा सकते कि हमारा जीवन बिना प्राकृतिक संसाधनों के असंभव है। एक अच्छे जीवन की कल्पना एक अच्छे वातावरण और शुद्ध पर्यावरण की वजह से होता है। हमें पर्यावरण को बचाने के लिए अधिक से अधिक वृक्ष लगाना चाहिए। आजकल कई पर्यावरणीय समस्याएँ जैसे प्रदूषण , जलवायु परिवर्तन इत्यादि के कारण मनुष्य की जीवनशैली प्रभावित होती है। अतः पर्यावरण को स्वच्छ एवं सुरक्षित रखना प्रत्येक मनुष्य का कर्त्तव्य है।

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