अलाउद्दीन खिलजी की पूरी जानकारी पढ़ें

  Last Update - 2023-06-07

जन्म 1250 ई.
जन्मस्थान पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में
दूसरी मान्यता के अनुसार जन्म 1266-1267 ई. (हाजी-उद-दबीर के अनुसार)
जन्मस्थान कलात, जाबुल प्रान्त, अफगानिस्तान
मृत्यु 2 जनवरी 1316 ई. (49-50 वर्ष)
मृत्यु का कारण जलोदर रोग
मृत्युस्थान दिल्ली, भारत
मकबरा क़ुतुब परिसर, दिल्ली
वास्तविक नाम अली गुरशास्प उर्फ जूना खान खिलजी
बचपन का नाम अली गुरशास्प
अन्य नाम जुना मोहम्मद खिलजी
उपाधि सिकंदर-ए-सानी, यामीन-उल-खिलाफत (खलीफा का नाइब), अमीर-उल-मोमिनीन
पिता शिहाबुद्दीन मसूद
चाचा जलालुद्दीन फिरुज खिलजी
भाई उलुग खान, कुतलुग टिगीन, मुहम्मद
पत्नी मलिका-ए-जहाँ (जलालुद्दीन की बेटी)
मेहरू (अल्प खान की बहन)
कमला देवी (कर्ण बघेल की पूर्व पत्नी)
झत्यपाली (राजा रामचन्द्र देव की बेटी)
धर्म इस्लाम (सुन्नी मुस्लिम)
राजवंश खिलजी राजवंश
बेटे कुतिबुद्दीन मुबारक शाह (मलिका-ए-जहाँ)
खिज्र खान (मेहरू)
शादी खान (कमलादेवी)
शाहिबुद्दीन ओमर (झत्यपाली)
राज्य दिल्ली (उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत)
राज्याभिषेक 22 अक्टूबर 1296 ई.
सेनापति

मलिक काफूर, जफर खाँ, उलूग खाँ, नुसरत खाँ, अलप खाँ

अलाउद्दीन खिलजी का जन्म कब हुआ -

  • अलाउद्दीन खिलजी का जन्म 1250 ई. में पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में हुआ।
  • हाजी-उद-दबीर के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी का जन्म 1266-1267 ई. को कलात, जाबुल प्रान्त, अफगानिस्तान में हुआ।

अलाउद्दीन खिलजी का प्रारम्भिक जीवन -

अलाउद्दीन खिलजी के पिता का नाम शिहाबुद्दीन मसूद था, जो खिलजी वंश के प्रथम शासक जलालुद्दीन खिलजी के भाई थे। अलाउद्दीन खिलजी के बचपन का नाम अली गुरशास्प था। जलालुद्दीन खिलजी अलाउद्दीन खिलजी के चाचा था, उसे बहुत प्यार करते थे। शिहाबुद्दीन मसूद की मृत्यु के बाद उसके चाचा जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने उसका लालन-पालन किया। चाचा के संरक्षण में उसने घुङसवारी एवं तलवाबाजी में निपुणता प्राप्त की।

बचपन में अलाउद्दीन खिलजी ने अच्छी शिक्षा तो प्राप्त नहीं की लेकिन वह अस्त्र-शस्त्र संचालन और अश्व संचालन में दक्ष था। साथ ही वह भविष्य में एक शक्तिशाली योद्धा बना था। सैनिक प्रतिभा से खुश होकर उसके चाचा जलालुद्दीन खिलजी ने अपनी पुत्री मलिका-ए-जहाँ का विवाह उससे कर दिया। अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का दूसरा शासक था। अलाउद्दीन खिलजी खिलजी वंश के सबसे पहले शासक जलालुद्दीन खिलजी का भतीजा और दामाद था। अलाउद्दीन खिलजी अपने खिलजी वंश (Khilji Vansh) का सबसे शक्तिशाली सुल्तान माना जाता था।

अलाउद्दीन ने काजी मुगीसुद्दीन से कहा यद्यपि मुझे कोई ज्ञान नहीं है और न मैंने कोई पुस्तक पढ़ी है फिर भी मैं जन्म से मुलसमान हूँ।

अलाउद्दीन खिलजी का इतिहास -

1290 ई. में जलालुद्दीन फिरोज खिलजी जब दिल्ली के सुल्तान बने, तब उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी को अपने दरबार में अमीर-ए-तुजुक (समारोह में देखरेख करने वाले अधिकारी का प्रधान) का पद दिया। 1291 ई. में जलालुद्दीन खिलजी के शासनकाल में कङा-मानिकपुर के प्रान्तपति (राज्यपाल) मलिक छज्जू ने आक्रमण कर दिया, तब अलाउद्दीन खिलजी ने इस विद्रोह का दमन बङे सफलतापूर्वक किया, जिससे प्रभावित होकर जलालुद्दीन ने उसे कङा-मानिकपुर का प्रान्तपति नियुक्त कर दिया।

1293 ई. में मालवा प्रदेश के भिलसा पर आक्रमण कर उसने अमूल्य सम्पत्ति हासिल की, इस सम्पत्ति से उसने 8000 घुङसवारों की शक्तिशाली सेना तैयार की थी। इस सैनिक अभियान से प्रसन्न होकर अलाउद्दीन को उसके चाचा जलालुद्दीन ने आरिज-ए-ममालुक एवं अवध का सूबेदार बनाया दिया।

जलालुद्दीन फिरोज खिलजी की हत्या -

1296 ई. में जलालुद्दीन खिलजी से पूछे बिना गोपनीय ढंग से अलाउद्दीन ने देवगिरी पर आक्रमण करके विपुल धन-सम्पदा एवं हाथियों की प्राप्ति की। जब अलाउद्दीन खिलजी (Allauddin Khilji) ने देवगिरि को जीता तो उसने जीते हुए माल को लेेने के लिए जलालुद्दीन खिलजी को कङा-मानिकपुर आने (यहाँ का राज्यपाल अलाउद्दीन) के लिए आमंत्रित किया, क्योंकि उस समय अलाउद्दीन के मन में दिल्ली को प्राप्त करने की लालसा थी तथा वह अपने चाचा की हत्या करके दिल्ली पर शासन करना चाहता था।

जलालुद्दीन खिलजी अपने भतीजे अलाउद्दीन पर बहुत विश्वास करता था, इसलिए वह आत्मरक्षा का प्रबंध किये बिना ही नाव से कङा-मानिकपुर पहुँचा। जब जलालुद्दीन खिलजी अपने भतीजे अलाउद्दीन से गले मिल रहा था, तब उसके भाई अलमास वेग ने पीछे से सुल्तान के छुरा मारकर उसकी हत्या कर दी। जलालुद्दीन खिलजी की हत्या 19 जुलाई 1296 ई. को कङा-मानिकपुर में की गई। अलमास वेग को ही अलाउद्दीन ने बाद में उलूग खाँ की उपाधि से विभूषित किया था।

अलाउद्दीन खिलजी का राज्याभिषेक -

जलालुउद्दीन की धोखे से हत्या करने के बाद 19 जुलाई 1296 ई. को कङा-मानिकपुर में ही अलाउद्दीन ने स्वयं को सुल्तान घोषित कर दिया। इसके बाद अलाउद्दीन दिल्ली में अपनी शासन-व्यवस्था को सुदृढ़ करने का प्रयास कर रहा था। इस बीच दिल्ली में जलाउद्दीन की पत्नी मलिका जहाँ ने अपने छोटे पुत्र को रुकनुद्दीन इब्राहिम के नाम से सिंहासन पर बैठा दिया। मलिका जहाँ का पुत्र अर्कली खाँ अपनी माँ से नाराज होकर मुल्तान चला गया। अलाउद्दीन जब दिल्ली पहुँचा, तो रुकनुद्दीन इब्राहिम अलाउद्दीन का सामना करने आगे बढ़ा, लेकिन उसकी धन लोलुप सेना के विश्वासघात के कारण वह पराजित होकर अपनी माँ और विश्वासी अहमद चप के साथ मुल्तान भाग गया।

अलाउद्दीन ने दक्कन से जो संपत्ति प्राप्त की थी, उस संपत्ति को अलाउद्दीन ने अधिकारियों, सेना और दिल्लीवासियों को बांट दी तथा सभी को अपने पक्ष में कर लिया। अलाउद्दीन खिलजी ने 22 अक्टूबर, 1296 ई. को अपना राज्याभिषेक दिल्ली में स्थित बलबन के लाल महल में करवाया और वह दिल्ली का सुल्तान बन गया। सुल्तान बनने के बाद उसने सिकंदर-ए-सानी की उपाधि धारण की। अलाउद्दीन खिलजी ने सिंहासन पर बैठने के बाद अपने दरबार के कुछ व्यक्ति को पद भी प्रदान किये। जिसमें ख्वाजा खतीर को वजीर, सद्रउदीन आरिफ को मुख्य काजी, अलाउलमुल्क को सलाहकार, दादबक और जफर खाँ को सुरक्षा मंत्री बनाया गया।

अलाउद्दीन खिलजी ने सिक्कों पर स्वयं के लिए द्वितीय सिकन्दर का उल्लेख किया। उसने जलालुद्दीन खिलजी के दो पुत्रों अर्कली खाँ और रुक्नुद्दीन इब्राहीम की भी हत्या कर दी। अलाउद्दीन ने गद्दी पर बैठते ही अपने राज्य की सीमाओं को फैलाना शुरू कर दिया।

अलाउद्दीन खिलजी की उपाधियाँ -

  • सिकन्दर-ए-सानी (सिकन्दर द्वितीय)
  • यामीन-उल-खिलाफत (खलीफा का नाइब),
  • अमीर-उल-मोमिनीन
  • विश्व का सुल्तान
  • युग का विजेता
  • पृथ्वी के शासकों का सुल्तान
  • जनता का चरवाहा
  • भारत का समुद्रगुप्त
  • आर.एस. शर्मा ने अलाउद्दीन को भारत का प्रथम मुस्लिम सम्राट कहा है।
  • आशीर्वादी लाल ने अलाउद्दीन की तुलना जर्मनी का बिस्मार्क से की है।
  • स्मिथ अलाउद्दीन के शासनकाल को लज्जापूर्ण बताता है।

अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल के विद्रोह -

अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में चार विद्रोह हुए थे।

  • नव मुसलमानों का विद्रोह (1299 ई.)
  • अकत खां का विद्रोह (1299 ई.)
  • उमर खाँ एवं मंगू खाँ का विद्रोह (1303 ई.)
  • हाजी मौला का विद्रोह (1303 ई.)।

अलाउद्दीन खिलजी का गुजरात अभियान -

अलाउद्दीन खिलजी के खिलाफ पहला विद्रोह नव-मुसलमानों (मंगोल, जो इस्लाम धर्म में परिवर्तित हो गए थे) ने 1299 ई. में सुल्तान के गुजरात अभियान के दौरान किया था। 1299 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सेनापति उलूग खां और नुसरत खां के नेतृत्व में गुजरात पर आक्रमण किया। इसे ही गुजरात अभियान कहा जाता है। इस समय गुजरात का शासक कर्ण बघेल था। इस युद्ध में कर्ण बघेल पराजित होता है और वह वहाँ से भागकर अपनी पुत्री देवलदेवी के साथ देवगिरि के शासक राजा रामचंद्रदेव के यहाँ शरण लेता है। कर्ण बघेल की पत्नी कमलादेवी को बंदी बनाकर दिल्ली भेज दिया गया। उसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने कमलादेवी से विवाह कर लिया। कर्ण बघेल के भागने के बाद शाही सेना ने गुजरात के महत्त्वपूर्ण नगरों को लूटा तथा सोमनाथ मंदिर और पवित्र शिवलिंग को भी खंडित कर दिया।

1. नव मुसलमानों का विद्रोह

जब शाही सेना लूट का सामान लेकर दिल्ली वापस लौट रही थी, तब जालौर में उलूग खां और नुसरत खां ने लूट के सामान में 4/5 भाग (80 प्रतिशत भाग) मांगा। इससे शाही सेना में शामिल नव मुस्लिमों (मंगोल) ने नाराज होकर विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह में अला-उल-द्दीन खिलजी (Ala Ud din khilji) के भतीजे और नुसरत खां के एक भाई को नव मुस्लिमों ने मार दिया। जिस कारण उलूग खां और नुसरत खां ने भी अनेक मंगोलों की हत्या कर दी। मंगोल मुहम्मद शाह एवं कैह्ब्रू ने भागकर हम्मीर देव के पास शरण लेे ली।

दिल्ली में मंगोलों की पत्नियों और बच्चों के प्रति भी अमानवीय व्यवहार किया गया। इस विद्रोह का दमन कर दिया गया। कहा जाता है कि गुजरात अभियान के दौरान नुसरत खां ने मलिक काफूर को 1000 दीनार में खरीदा था। अतः मलिक काफूर को एक हजार दिनारी कहा जाता है। गुजरात विजय के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात का नया सूबेदार उलूग खां को नियुक्त कर दिया।

2. अकत खां का विद्रोह

अलाउद्दीन के खिलाफ दूसरा विद्रोह अलाउद्दीन के भतीजे अकत खां ने 1299 ई. में किया था। अकत खां अलाउद्दीन खिलजी के भाई मुहम्मद का पुत्र था तथा अलाउद्दीन खिलजी का भतीजा था। जब अलाउद्दीन खिलजी रणथम्भौर अभियान पर जा रहा था तब वह तिलपत नामक स्थान पर शिकार करने के लिए रूक गया। इधर अकत खां कुछ नव मुस्लिमों के साथ अलाउद्दीन खिलजी को ढूंढ रहा था। उधर शिकार खेलते-खेलते अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना से दूर हो गया। तभी मौका पाकर अकत खां ने अपने सहयोगियों (मंगोलों) को शेर आया गया कहकर हजारों बाणों से अलाउद्दीन (Allauddin) पर आक्रमण करवा दिया। उसी समय मानिक नामक एक दास ने सुल्तान के सामने आकर बाणों की वर्षा से उसे बचा लिया।

उसके बाद सुल्तान के अंगरक्षक आगे आकर अपनी ढालों से सुल्तान की रक्षा करने लगे और उसके पैदल सैनिकों ने सुल्तान को चारों ओर से घेरा लिया। यह अफवाह फैल दी कि अलाउद्दीन (सुल्तान) मर गया है। तब अकत खां ने अलाउद्दीन को मृतक समझ लिया और अकत खां खेमे नामक स्थान पर जाकर स्वयं को सुल्तान घोषित कर देता है। इसी बीच अलाउद्दीन को जब होश आ गया, तो वह अपने सैनिकों के साथ खेमे पहुँंचा, जब अकत खां ने सुल्तान को जीवित देखा तो वह डरकर अफगानपुर भाग गया। बाद में अकत खां का सुल्तान के सैनिकों ने पीछा किया और उसका सिर काटकर अलाउद्दीन के सामने पेश कर दिया। साथ अकत खां के छोटे भाई कुतलूग खां की भी सैनिकों ने हत्या कर दी। इस प्रकार अलाउद्दीन विजयी रहा और इस विद्रोह का दमन हो गया।

3. उमर खाँ व मंगू खाँ का विद्रोह

अलाउद्दीन खिलजी (Allaudin Khilji) के खिलाफ तीसरा विद्रोह उसके भांजे उमर खाँ और मंगू खां ने 1303 ई. में किया था। उमर खाँ एवं मंगू खाँ अलाउद्दीन खिलजी की बहन के पुत्र थे तथा उसके भांजे थे। उमर खां बदायूं का सूबेदार तथा मंगु खां अवध का सूबेदार था। जब अलाउद्दीन रणथम्भौर पर घेरा डालने के कार्य में व्यस्त था तभी इसी स्थिति का लाभ उठाकर उमर खां एवं मंगू खां ने दिल्ली में विद्रोह कर दिया। तब अलाउद्दीन ने अपने विश्वस्त सैनिकों को दिल्ली भेजकर उस विद्रोह का दमन करवा दिया। सैनिकों ने उन दोनों को बंदी बना लिया और उन्हें रणथम्भौर लाया गया जहां उनका वध कर दिया गया।

4. हाजी मौला का विद्रोह

हाजी मौला का विद्रोह अलाउद्दीन के समय में हुए सभी विद्रोह से सबसे अधिक खतरनाक विद्रोह था तथा 1303 ई. में हुआ चौथा विद्रोह था। हाजी मौला कोतवाल फखरुद्दीन का दास था। लेकिन हाजी मौलाना स्वयं को फखरुद्दीन का उत्तराधिकारी मानता था, वह चाहता था कि फखरुद्दीन की मृत्यु के बाद वह कोतवाल बने। उस समय अलाउद्दीन का काजी (कोतवाल) अलाउलमुल्क था। अलाउलमुल्क की मृत्यु के बाद हाजी मौला कोतवाल का पद चाहता था। लेकिन अलाउद्दीन ने बयाद तिर्मिजी को दिल्ली का कोतवाल नियुक्त कर दिया तथा अयाज को सीरी का कोतवाल नियुक्त कर दिया। इस कारण हाजी मौला सुल्तान से नाराज हो गया।

जब अलाउद्दीन खिलजी रणथम्भौर किले के घेरे में व्यस्त था तभी हाजी मौला ने दिल्ली में विद्रोह कर दिया तथा कोतवाल तिर्मिजी का धोखे से वध कर दिया। साथ ही दिल्ली के कोषागार, शस्त्रागार और बंदी ग्रह पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् उसने अलवी (इल्तुतमिश की एक पुत्री का वंशज) नामक एक व्यक्ति को सुल्तान घोषित कर दिल्ली के सिंहासन पर बैठा दिया। लगभग 1 सप्ताह तक हाजी मौला ने दिल्ली पर अपना कब्जा बनाये रखा और जनता को पीङित करने लगा। लेकिन बाद में अलाउद्दीन के एक वफादार सरदार हमीमुद्दीन ने इस विद्रोह को समाप्त कर दिया और हाजी मौला की हत्या कर दी।

इस प्रकार अलाउद्दीन ने सभी विद्रोह को दबा दिया और उनका सफलतापूर्वक सामना किया था। साथ ही अलाउद्दीन इन विद्रोहों के कारणों का पता लगाया।

राज्य के विद्रोह के दमन के लिए अलाउद्दीन ने चार अध्यादेश जारी किये -

  1. अमीर वर्ग की सम्पत्ति (भूमि) जब्त कर उसे खालसा कृषि योग्य भूमि बनाकर राजस्व में वृद्धि की।
  2. गुप्तचर प्रणाली का गठन किया।
  3. दिल्ली में मद्य निषेध कर दिया।
  4. अमीरों के परस्पर मेल-मिलाप और उनके उत्सवों समारोहों पर रोक लगा दी।

अलाउद्दीन खिलजी का साम्राज्य विस्तार -

Khilji Dynasty Map

अलाउद्दीन खिलजी (Alaudin Khilji) साम्राज्यवादी शासक था। उसने उत्तर भारत के कई राज्यों को जीतकर उन पर शासन किया था तथा दक्षिण में भी उसने कई राज्य जीते थे और साथ ही उनसे वार्षिक कर वसूलकर अपने राजकोष में वृद्धि की थी। अलाउद्दीन अपने साम्राज्य का बहुत अधिक विस्तार किया था।

अलाउद्दीन खिलजी की विजय -

अलाउद्दीन खिलजी के विजयों को दो भागों में बांटा जा सकता है -

  • उत्तर भारत की विजय
  • दक्षिण भारत की विजय

अलाउद्दीन खिलजी की उत्तर भारत विजय-

  • जैसलमेर की विजय (1299 ई.)
  • रणथम्भौर की विजय (1299-1301 ई.)
  • चित्तौङ की विजय (1303 ई.)
  • मालवा की विजय (1305 ई.)
  • सिवाना की विजय (1308 ई.)
  • जालौर की विजय (1311 ई.)
अलाउद्दीन खिलजी की जैसलमेर विजय -

जैसलमेर में अलाउद्दीन खिलजी की सेना के कुछ घोङे जैसलमेर के शासक दूदा और उसके सहयोगी तिलक सिंह ने छीन लिये थे। इसी कारण अलाउद्दीन खिलजी ने विद्रोह कर दिया और 1299 ई. में उनको हरा कर, जैसलमेर को अपने अधीन कर लिया।

अलाउद्दीन खिलजी की रणथम्भौर विजय -

रणथम्भौर पर अलाउद्दीन (Alaudin) द्वारा आक्रमण करने के कुछ कारण थे, जैसे-साम्राज्यवाद की महत्त्वाकांक्षा, दिल्ली के निकट सामरिक महत्त्व, दुर्ग की सुदृढ़ता, तथा गुजरात अभियान में लूटने के सामान के कारण हुए विद्रोह में मंगोल मुहम्मद शाह और कैह्ब्रू ने भागकर रणथम्भौर के शासक हम्मीर देव की शरण ले ली थी। हम्मीर देव ने मुहम्मद शाह और कैह्ब्रू को शरण देकर उनकी रक्षा का वचन दिया था। साथ ही हम्मीर देव ने मुहम्मदशाह को जगाना की जागीर दी थी। लेकिन जब सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी (Sultan Alauddin Khilji) ने मुहम्मद शाह और कैह्ब्रू को वापस लौटने की मांग की, तो हम्मीर देव ने मुहम्मद शाह और कैह्ब्रू को भेजने से इंकार कर दिया था। तब 1299 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने उलुग खां, नुसरत खां और अलप खां के नेतृत्व में सेना रणथम्भौर पर अधिकार करने के लिए भेजी।

शाही सेना ने झाँई का दुर्ग जीत लिया और रणथम्भौर के किले को चारों ओर घेर लिया। हम्मीर देव इस समय मुनिव्रत में व्यस्त था। इसलिए उसने अपने सेनापतियों भीमसिंह व धर्मसिंह को युद्ध के लिए भेज दिया। राजपूत सेना ने शाही सेना पर हमला किया जिसमें अलाउद्दीन खिलजी की सेना पराजित हुई। धर्मसिंह के नेतृत्व में एक दल तो रणथम्भौर चला गया लेकिन भीमसिंह पीछे रह गया। तभी अचानक शाही सेना अलप खां के नेतृत्व में शाही सेना ने भीमसिंह को मार दिया। जब यह सूचना हम्मीरदेव के पास पहुँची, तोे उसने भीमसिंह की मृत्यु के लिए धर्मसिंह को उत्तरदायी ठहराया और हम्मीर ने धर्मसिंह को अंधा कर दिया।

शाही सेना द्वारा झाँई पर अधिकार कर लेने के बाद उलगू खां ने मेहलनसी नामक दूत हम्मीरदेव के पास अलाउद्दीन संदेश लेकर भेजा। इस संदेश में उलूग खां ने पुनः मुहम्मदशाह और कैह्ब्रू को सौंपने के लिए कहा था, साथ ही हम्मीर की बेटी देवलदी के साथ अलाउद्दीन खिलजी के विवाह का प्रस्ताव रखा था। लेकिन हम्मीर देव ने इन प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया था। उलूग खां के संदेश को अस्वीकार करने के कारण उलूग खां ने रणथम्भौर दुर्ग के चारों ओर घेरा डाल दिया तथा मगरबों द्वारा दुर्ग रक्षकों पर पत्थरों की बौछार कर दी। तभी अचानक एक पत्थर नुसरत खांँ को लगा गया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई तथा उलूग खां के नेतृत्व में शाही सेना पराजित हो गई।

जब अलाउद्दीन खिलजी (Ala-ud-din Khilji) को अपनी पराजय की सूचना मिली तो उसने स्वयं रणथम्भौर के लिए प्रस्थान किया। अलाउद्दीन ने रणथम्भौर के चारों ओर मजबूत घेरा डाला लिया। उधर हम्मीर देव के सेनापति रणमल एवं रतिपाल को अलाउद्दीन ने लालच देकर अपनी ओर मिला लिया। इनकी सहायता से सुल्तान के सैनिकों ने दीवारों पर चढ़कर रणथम्भौर पर अधिकार कर लिया। लगभग एक वर्ष की घेराबंदी के बाद 1301 ई. में अलाउद्दीन ने रणथम्भौर किले को जीत लिया। राणा हम्मीर देव लङते-लङते वीरगति को प्राप्त हो गया।

हम्मीर रासो के अनुसार माना जाता है कि हम्मीर की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी रंगदेवी के नेतृत्व में राजपूत महिलाओं ने अग्नि जौहर किया तथा हम्मीर की पुत्री देवलदे ने जल जौहर किया था। जिसे राजस्थान का प्रथम शाका माना जाता है। 11 जुलाई 1301 ई. कोे रणथम्भौर पर अलाउद्दीन खिलजी का अधिकार हो गया। अलाउद्दीन ने रणमल और रतिपाल का भी वध करवा दिया। रणथम्भौर का शासन उलुग खां को सौंपकर अलाउद्दीन दिल्ली वापस लौट गया।

अलाउद्दीन खिलजी की चित्तौड़ विजय -

इस समय मेवाङ का शासक राणा रतनसिंह था। अलाउद्दीन खिलजी द्वारा मेवाङ पर आक्रमण के कारण - साम्राज्य महत्त्वाकांक्षा, दुर्ग सुदृढ़ एवं अभेद्य, सामरिक और भौगोलिक महत्व।

रानी पद्मिनी की कहानी - Rani Padmini ki Kahani

मलिक मुहम्मद जायसी (Malik Muhammad Jayasi) द्वारा लिखी गयी 1540 ई. में पद्मावत के अनुसार अलाउद्दीन (Alauddin ) द्वारा मेवाङ पर आक्रमण करने का एक कारण मेवाङ के शासक रत्नसिंह की सुंदर पत्नी पद्मिनी को प्राप्त करना था। मेवाङ के शासक रत्नसिंह ने राघवचेतन नामक तांत्रिक का अपमान करके उसे महल से निकाल दिया। तब राघवचेतन दिल्ली के शासक अलाउद्दीन के दरबार में चला गया। वहाँ उसने अलाउद्दीन के सामने राजा रत्नसिंह की पत्नी पद्मिनी के सौंदर्य की सुंदरता का वर्णन किया तथा उसे विश्व सुंदरी बताया। अब अलाउद्दीन खिलजी रानी पद्मिनी को देखने के लिए व्याकुल हो जाता है।

तब अलाउद्दीन खिलजी (Alauddin Khilji) ने राजा रत्नसिंह के पास पद्मिनी को देखने का सन्देश भेजा। लेकिन रत्नसिंह ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। तब अलाउद्दीन ने केवल पद्मिनी का चेहरा दर्पण में ही दिखाने का प्रस्ताव रखा तथा युद्ध नहीं करने का वचन दिया। इस प्रस्ताव को रत्नसिंह ने स्वीकार कर लिया। राजमहल में अलाउद्दीन खिलजी और रत्नसिंह के बीच चौसर का आयोजन किया गया। वहाँ एक दर्पण रत्नसिंह के पास रख गया, जब पद्मावती झरोखे पर आई तो उस दर्पण में पद्मावती का चेहरा अलाउद्दीन खिलजी को दिखाई दिया और तब पद्मिनी की सुंदरता को देखते ही

अलाउद्दीन अपने वचन को तोङ दिया तथा पद्मिनी को प्राप्त करने की लालसा से अलाउद्दीन खिलजी ने 28 जनवरी 1303 ई. में एक विशाल सेना लेकर चित्तौङ के किले को घेर लिया। मेवाङ आक्रमण के समय अलाउद्दीन के साथ अमीर खुसरो गये थे। अमीर खुसरो मेवाङ के वैभव को देखते हुए कहा था, हिन्दुओं का स्वर्ग सातवें स्वर्ग से ऊँचा है। शाही सेना ने लगभग आठ माह तक दुर्ग की घेराबन्दी रखी। जिस कारण चित्तौङ दुर्ग में खाद्य सामग्री समाप्त होने लग गई। अब राजपूत सैनिक किले के द्वार खोल कर मुस्लिम सेना पर टूट पङे। राजा

रत्नसिंह के दो शक्तिशाली सेनापति गोरा व बादल वीरतापूर्वक शाही सेना का मुकाबला करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये। साथ ही रत्नसिंह भी इस संघर्ष में वीरगति को प्राप्त हो गये। तभी पद्मिनी ने लगभग 16000 राजपूत महिलाओं के साथ अग्नि जौहर कर लिया। इस जौहर का वर्णन अमीर खुसरो ने अपने ग्रंथ खजाइन-उल-फतुह में किया। बाद में 16 वीं सदी में शेरशाह सूरी के समय मलिक मुहम्मद जायसी ने इसका वर्णन अपने ग्रंथ पदमावत में किया था।

इसके बाद अलाउद्दीन ने कत्लेआम का आदेश दे दिया, जिसमें लगभग 30 हजार राजपूत मारे गये। तभी अमीर खुसरो ने कहा था, एक ही दिन में तीस हजार हिन्दू, सूखी घास के समान काट डाले गये। 26 अगस्त 1303 ई. को चित्तौङ पर अलाउद्दीन खिलजी का अधिकार हो गया। अलाउद्दीन को पद्मिनी को प्राप्त नहीं कर सका और यहीं अलाउद्दीन खिलजी की सबसे बङी हार थी। इस संघर्ष के बाद चित्तौङ की शासन-व्यवस्था अलाउद्दीन खिलजी ने अपने पुत्र खिज्र खां को सौंप दी तथा चित्तौङ का नाम बदलकर खिज्राबाद रख दिया।

मालवा विजय -

अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौङ पर विजय प्राप्त करने के बाद 1305 ई. में आईन-उल-मुल्क के नेतृत्व में सेना मालवा आक्रमण हेतु भेजी। मालवा के शासक महलक देव के सेनापति हरचन्द (कोका-प्रधान नाम से प्रसिद्ध) ने मुस्लिम सेना का वीरतापूर्वक सामना किया और लङता हुआ मारा गया। महलक देव माण्डू की ओर भाग गया। आईन-उल-मुल्क ने माण्डू का दुर्ग भी घेर लिया और महलक देव लङता हुआ मारा गया। 23 नवंबर 1305 को माण्डू के दुर्ग पर अलाउद्दीन का अधिकार हो गया। इसके बाद सुल्तान ने उज्जैन, धारा नगरी एवं चन्देरी आदि नगरों को जीतकर सम्पूर्ण मालवा पर अधिकार कर लिया। आईन-उल-मुल्क को मालवा का सूबेदार नियुक्त कर दिया गया।

सिवाना विजय -

जुलाई, 1308 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने स्वयं सिवाना पर अधिकार करने के लिए आक्रमण कर दिया। उस समय सिवाना का शासक शीतलदेव चौहान था। सिवाणा दुर्ग को जालौर की कुंजी कहा जाता है। पांच माह तक मुसलमान सेना का वीरतापूर्वक मुकाबला करते हुए अंत में राजपूत सेना पराजित हो जाती है तथा शीतलदेव मारा जाता है। अब सिवाना दुर्ग पर अलाउद्दीन का अधिकार हो गया। रानी मेणादे के नेतृत्व में राजपूत महिलाओं ने जौहर किया। कमालुद्दीन गुर्ग को सिवाना का शासक नियुक्त कर दिया गया। सिवाना दुर्ग का नाम खेराबाद कर दिया जाता है।

जालौर विजय -

उत्तरी भारत में अलाउद्दीन (Alauddin) का अंतिम आक्रमण जालौर पर था। जालौर का शासक कान्हङदेव चौहान था। फरिश्ता के अनुसार 1305 ई. में अनाउलमुल्क मुल्तानी को जालौर आक्रमण हेतु भेजा गया, लेकिन कान्हङदेव युद्ध की स्थिति में नहीं था, तब अनाउलमुल्क ने कान्हङदेव को गौरवपूर्ण संधि का आश्वासन दिया। जिससे कान्हङदेव ने अलाउद्दीन की अधीनता स्वीकार कर ली। अनाउलमुल्क ने उसे दिल्ली आने के लिए कहता है। जब कान्हङदेव अपने बेटे वीरमदेव के साथ दिल्ली गया। सुल्तान ने कहा था - हिन्दू राजाओं में कोई ऐसा नहीं है जो उसकी सैनिक शक्ति को चुनौती देने का साहस कर सकें। लेकिन दिल्ली में स्थिति अपमानजनक पाकर कान्हङदेव वापस लौटा गया। जिससे अलाउद्दीन खिलजी नाराज हो गया और सुल्तान ने जालौर आक्रमण की आज्ञा दे दी। जालौर आक्रमण के कारण - साम्राज्य विस्तार, सामरिक महत्त्व, नैणसी के अनुसार फिरोजा-वीरमदेव की प्रेम कहानी।

1311 ई. में अलाउद्दीन ने कमालुद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में जालौर आक्रमण के लिए सेना भेजी। गुर्ग ने जालौर के सेनापति दहिया राजपूत बीका को दुर्ग का लालच देकर अपनी ओर मिला लिया। बीका ने जालौर दुर्ग में प्रवेश करने का गुप्त रास्ता बना दिया। जिस कारण शाही सेना ने राजपूत सेना पर अचानक आक्रमण कर दिया। अचानक आक्रमण की स्थिति को कान्हङदेव संभाल नहीं पाया तथा लङता-लङता वीरगति को प्राप्त हो गया। कान्हङदेव के बेटे वीरमदेव ने स्वयं की गर्दन तलवार से काट दी, लेकिन उसने तुर्कों के साथ जाना स्वीकार नहीं किया। कान्हङदेव की पत्नी रानी जैतलदे के नेतृत्व में राजपूत स्त्रियों ने जौहर किया। अलाउद्दीन ने जालौर दुर्ग का नाम जलालाबाद कर दिया। कान्हङदेव के भाई मालदेव सोनगरा ने अलाउद्दीन खिलजी (Alauddin Khilji Hindi) की अधीनता स्वीकार कर ली।

अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिण भारत विजय -

अलाउद्दीन खिलजी प्रथम मुस्लिम शासक था, जिसने विंध्याचल पर्वत को पार करके दक्षिण भारत को जीतने का प्रयत्न किया। दक्षिण भारत के राज्यों को जीतने का मुख्य ध्येय - धन वसूलना एवं विजय की लालसा थी। अलाउद्दीन दक्षिण भारत के शासकों से अधीनता स्वीकार करवाके वार्षिक कर भेजने हेतु विवश करता था। दक्षिण भारत पर अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण का नेतृत्व उसके प्रसिद्ध सेनापति मलिक काफूर (Malik Kafur) ने किया। जिसको बाद में अलाउद्दीन ने नाइब का सर्वोच्च पद दिया था। अलाउद्दीन खिलजी के समय दक्षिण भारत में चार शक्तिशाली राज्य थे, जिन पर अलाउद्दीन ने विजय प्राप्त की थी।

  • देवगिरी की विजय (1306-07 ई.)
  • वारंगल (तेलंगाना) के काकतीय राज्य पर विजय (1309 ई.)
  • द्वारसमुद्र के होयसल राज्य की विजय (1310 ई.)
  • मदुरा के पांड्य राज्य की विजय (1311 ई.)
  • देवगिरी पर दूसरा आक्रमण (1313 ई.)
(1) देवगिरी की विजय -

कङा के सूबेदार के रूप में अलाउद्दीन खिलजी ने 1294 ई. में देवगिरी पर आक्रमण करके उसके शासक रामचंद्र देव को वार्षिक कर देने के लिए मजबूर किया था। जियाउद्दीन बरनी का मानना है कि देवगिरी के शासक राजा रामचन्द्र देव ने अलाउद्दीन को पिछले 3 वर्षों से एलिचपुर प्रांत का वार्षिक कर भेजना बंद कर दिया था। साथ ही गुजरात के राजा राय कर्णदेव और उसकी पुत्री देवलदेवी को अपने यहाँ शरण दी थी। बकाया राजस्व वसूल करने के लिए तथा रायकर्ण की पुत्री देवलदेवी को दिल्ली लाने के उद्देश्य से अलाउद्दीन ने देवगिरी पर आक्रमण करने का निर्णय लिया था। अलाउद्दीन ने मार्च, 1307 ई. में मलिक काफूर की अधीनता में एक सेना देवगिरी पर आक्रमण करने के लिए भेजी। काफूर के साथ मालवा के सूबेदार आइन उल मुल्क मुल्तानी तथा गुजरात के सूबेदार अलप खान को भी भेजा गया।

राजा कर्ण ने देवलरानी सौंपने से इनकार कर दिया और राजकुमारी को एक सैनिक दल के साथ राजा रामचंद्र देव के पुत्र शुक्र देव के साथ विवाह करने के लिए देवगिरी भेजा। मलिक काफूर ने अलप खां को राजा कर्ण पर आक्रमण करने के लिए भेजा और स्वयं देवगिरी की ओर बढ़ा। दो महीने के कङे मुकाबले के बाद राजा कर्ण पराजित हुआ और जान बचाने के लिए देवगिरी की ओर भागा। अलप खान ने उसका पीछा किया और रास्ते में देवल रानी उसको मिल गई। देवल रानी को दिल्ली भेज दिया गया, जहाँ अलाउद्दीन खिलजी के पुत्र खिज्र खां के साथ उसका विवाह कर दिया गया।

मलिक काफूर (Malik Kafur) ने देवगिरी पर आक्रमण करके उसे आसानी से जीत लिया। मलिक काफूर राजा रामचंद्र देव को बंदी बनाकर दिल्ली ले गया। वहाँ राजा रामचंद्र देव ने सुल्तान की अधीनता स्वीकार कर ली। अलाउद्दीन खिलजी ने रामचंद्र देव के साथ सम्मानजनक व्यवहार किया। इसके अलावा उसे स्वर्णछत्र, 1 लाख स्वर्णटंका तथा गुजरात के नवसारी जागीर सौंप दी और उसे उसका राज्य वापस कर दिया। साथ ही अलाउद्दीन ने रामचंद्र देव को रायरायन की उपाधि दी। रामचन्द्रदेव ने अपनी पुत्री झत्यपाली का विवाह इसी समय अलाउद्दीन खिलजी से कर दिया।

(2) वारंगल (तेलंगाना) के काकतीय राज्य पर विजय -

1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी (Alauddin Khilji) ने काकतीय राजा प्रतापरुद्रदेव पर आक्रमण किया था, लेकिन सुल्तान असफल रहा था। इसी विफलता का कलंक धोने के लिए अलाउद्दीन ने 31 अक्टूबर 1309 ई. को मलिक काफूर को तेलंगाना भेजा। तेलंगाना पर काकतीय वंश के राजा प्रतापरुद्र देव का शासन था, जिसे मुस्लिम इतिहासकारों ने लहरदेव कहा है। दिसम्बर 1309 ई. में मलिक काफूर देवगिरी पहुँच तथा वहाँ के राजा रामचन्द्रदेव ने काफूर की हर संभव सहायता की। जब मलिक काफूर अपने सेना लेकर तेलंगाना जा रहा था, तब रामचन्द्रदेव ने सेना के लिए रसद-सामग्री की व्यवस्था की थी तथा कुछ मराठा सैनिक उसके साथ भेजे थे।

जनवरी 1310 ई. में मलिक काफूर ने अपनी सेना के साथ तेलंगाना की राजधानी वारंगल पहुँचकर दुर्ग का घेरा डाला। प्रतापरुद्रदेव ने आरंभ में तो बहादुरीपूर्ण मुकाबला किया परंतु घेरा लम्बे समय तक चलने के कारण किले के भीतर लोगों की दशा संकटपूर्ण हो जाती। इस स्थिति को देखते हुए प्रतापरुद्रदेव ने अपनी सोने की मूर्ति बनवाकर गले में सोने की जंजीर डालकर आत्म-समर्पण के रूप में मलिक काफूर के पास भेजी।

अमीर खुसरो के अनुसार मलिक काफूर ने अलाउद्दीन की सलाह अनुसार प्रतापरुद्रदेव से सारी सम्पत्ति मांगी। तब प्रतारुद्रदेव ने काफूर को एक सौ हाथी, सात हजार घोङे तथा काफी जवाहरात और ढले हुए सिक्के समर्पित कर दिये।

इतिहासकार खाफी खाँ के अनुसार, विश्व विख्यात कोहिनूर हीरा भी प्रतापरुद्र देव ने इसी अवसर पर मलिक काफूर को भेंट किया। काफूर सारा माल लेकर दिल्ली चला गया। वहाँ काफूर ने कोहिनूर हीरा अलाउद्दीन खिलजी को दे दिया और खिलजी ने अपने पुत्र को दे दिया।

(3) द्वारसमुद्र के होयसल राज्य की विजय -

होयसल की राजधानी द्वारसमुद्र थी। यहाँ का शासक वीर वल्लाल तृतीय था। अलाउद्दीन ने दक्षिण के तीसरे शक्तिशाली राज्य होयसल पर आक्रमण करने के लिए 18 नवंबर, 1310 ई. में मलिक काफूर और ख्वाजा हाजी के नेतृत्व में दिल्ली से एक विशाल सेना भेजी। 4 फरवरी, 1311 ई. में मलिक काफूर देवगिरी पहुंचा। इस समय देवगिरी के राजा रामचंद्र देव की मृत्यु हो चुकी थी और उनके स्थान पर उनका पुत्र संकरदेव वहाँ का शासक था। मलिक काफूर को संकरदेव की वफादारी पर विश्वास नहीं था इसलिए उसने अपनी एक रक्षा सेना दिल्ली के मार्ग को सुरक्षित रखने के लिए रखवा दी। वहाँ से आगे बढ़कर मलिक काफूर 14 फरवरी, 1311 ई. में होयसलों की राजधानी द्वारसमुद्र पहुँचकर दुर्ग को घेर लेता है। इस समय द्वारसमुद्र का शासक राजा वीर वल्लाल तृतीय अपने पङौसी पाण्ड्य राज्य मदुरा पर आक्रमण करने हेतु गया हुआ था (वीर पाण्ड्य और सुन्दर पाण्ड्य नामक दो पाड्यो में गद्दी के लिए संघर्ष के दौरान)। जब उसे काफूर के आक्रमण की सूचना मिली जो वह अपनी द्वारसमुद्र लौटा।

राजा वीर वल्लाल ने वीरतापूर्वक युद्ध किया परंतु उसकी पराजय हुई। तब उसने काफूर के साथ संधि कर ली। वह व्यक्तिगत रूप से काफूर के सामने उपस्थित हुआ और उसने सुल्तान की अधीनता स्वीकार कर ली। उसे युद्ध का भारी हर्जाना चुकाना पङा तथा साथ ही वार्षिक कर देने का भी उसने वादा किया। उसने मलिक काफूर को सम्पूर्ण संपत्ति तथा एक होयसल युवराज को दिल्ली भेज दिया। काफूर के दवाब डालने पर उसने पाण्ड्य राज्य का मार्ग बताने की स्वीकृति भी दे दी।

(4) मदुरा के पांड्य राज्य की विजय -

द्वार समुद्र से मलिक काफूर पांड्य राज्य पहुंचा। उस समय पाण्ड्य राज्य में वीर पांड्य एवं सुंदर पांड्य नामक दो भाइयों में सत्ता प्राप्ति का संघर्ष चल रहा था। सुंदर पांड्य अपने भाई वीर पांड्य से पराजित होकर दिल्ली चला गया और वहाँ अलाउद्दीन खिलजी (Khilji Vansh History in Hindi) से उसने अपना राज्य प्राप्त करने के लिए सहायता मांगी। इसी परिस्थिति का फायदा उठाकर अलाउद्दीन ने मलिक काफूर को पांड्य राज्य पर आक्रमण करने का आदेश दिया। मलिक काफूर एक विशाल सेना लेकर 14 अप्रैल, 1311 ई. को पांड्यों की राजधानी मदुरा पहुँच गया। तभी वीर पांड्य भाग गया। वीर पांड्य का पीछा करते-करते मलिक काफूर रामेश्वरम तक पहुंच गया था। परंतु वह वीर पांड्य को पकङने में सफल नहीं हुआ।

लेकिन वहाँ काफूर ने नगर को लूट लिया और मंदिरों को नष्ट कर दिया। अपनी विजय के बाद मलिक काफूर 18 अक्टूबर, 1311 ई. में दिल्ली लौट गया और अपने साथ अपार लूट का सामान लेकर गया था। जिसमें 612 हाथी, 20,000 घोङे, 96 हजार मण सोना, जवाहरात और मोतियों के कुछ संदूक थे। यह धन की दृष्टि से मलिक काफूर का सबसे सफल अभियान था। इस प्रकार मथुरा के पांड्यों का सारा धन तुर्कों के हाथों में आ गया।

(5) देवगिरी पर दूसरा आक्रमण -

देवगिरी के राजा रामचंद्र देव की 1312 ई. में मृत्यु हो गई। उसका पुत्र शंकरदेव देवगिरी का शासक बना। उसने स्वतंत्र शासक के रूप में रहना प्रारंभ कर दिया। शंकर देव को पराजित करने के लिए देवगिरी पर द्वितीय अभियान किया गया। वारंगल के शासक प्रतापरुद्र देव के द्वारा राजस्व एकत्र करने के लिए किसी को दिल्ली से भेजने का अनुरोध भी इस अभियान क एक कारण था। 1313 ई. में मलिक काफूर ने देवगिरी पर आक्रमण किया। शंकर देव ने उसका कङा मुकाबला किया परंतु पराजित हुआ और मारा गया। काफूर ने देवगरी को अपना मुख्यालय अबना लिया। इसी अभियान में उसने तेलंगाना एवं होयसल के अनेक नगरों पर आक्रमण करके आतंक और लूट का वीभत्स तांडव मचाया। 1315 ई. में मलिक काफूर दिल्ली लौटा गया।

अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण भारत के राज्यों में से पाण्ड्य राज्य को छोङकर सभी ओर अपनी अधीनता स्थापित कर दी। दक्षिण के राज्यों से अकूत धन लूट कर दिल्ली लाया गया। उत्तर भारत के राज्यों के विपरीत दक्षिण के राज्यों को दिल्ली सल्तनत में नहीं मिलाया गया। उनसे केवल वार्षिक कर देने एवं अधीनता स्वीकार करने की शर्त पर उनका राज्य उन्हें लौटा दिया गया।

अलाउद्दीन की दक्षिण विजय के बारे में डाॅ. के एस. लाल ने कहा था कि, दक्षिण भारत के प्रदेशों को साम्राज्य में सम्मिलित किए बिना ही अलाउद्दीन की महत्त्वाकांक्षा पूरी हो गयी। रामचन्द्र और वल्लाल देव जैसे महान् राजा दिल्ली आए, उन्होंने सुल्तान के प्रति स्वयं सम्मान प्रकट किया, उनके कोष ले लिए गए, साम्राज्य के गौरव में वृद्धि हुई और सल्तनत का कोष दक्षिण की सम्पत्ति से भर गया।

अलाउद्दीन खिलजी के निर्माण-कार्य -

  • अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ई. में अलाई दरवाजा का निर्माण कराया, जिसमें 7 द्वार थे। अलाई दरवाजा प्रारम्भिक तुर्की कला का एक श्रेष्ठ नमूना माना जाता है।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने सीरी का किला, हजार खंबा महल (Hazar Khamba Mahal) और हौज खास का निर्माण करवाया था।

अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु कब हुई -

अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु 2 जनवरी 1316 ई. को जलोदर रोग की वजह से दिल्ली (भारत) में हो गयी। कहा जाता है कि अलाउद्दीन के जीवन का अंतिम समय अनेक कठिनाईयों से भरा हुआ था। अलाउद्दीन खिलजी की कब्र (Tomb of Alauddin Khilji) कुतुबमीनार के कुतुब परिसर, दिल्ली में है।

अलाउद्दीन खिलजी की शासन व्यवस्था -

अलाउद्दीन खिलजी के राजनीतिक आदर्श -

  • अलाउद्दीन खिजली की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह थी कि उसने राजनीति को धर्म से कभी प्रभावित नहीं होने दिया।
  • उसने खलीफा की सत्ता को मान्यता दी लेकिन प्रशासन में उनके हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया।
  • यामीन-उल-खिलाफत नासिरी-अमीर-उल-मुमनिन, (खलीफा का नायब) की उपाधि ग्रहण की।
  • अलाउद्दीन ने शासन में न तो इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों का सहारा लिया न उलेमा वर्ग से सलाह ली और न ही खलीफा के नाम का सहारा लिया। वह निरंकुश राजतन्त्र में विश्वास करता था।
  • अलाउद्दीन ने बलबन के जातीय उच्चतावादी नीति का त्याग किया और योग्यता के आधार पर पदों का वितरण किया।
  • बरनी के अनुसार, एक बुद्धिमान वजीर के बिना राजत्व व्यर्थ है तथा सुल्तान के लिए एक बुद्धिमान वजीर से बढ़कर अभिमान और यश का दूसरा स्रोत नहीं है और हो भी नहीं सकता।
  • अलाउद्दीन ने राजधानी के आर्थिक मामलों की देख-रेख के लिए दीवाने-ए-रियासत नामक एक नवीन विभाग की स्थापना की। दीवाने-ए-रियासत व्यापारी वर्ग पर नियंत्रण रखता था।
  • मुहतसिब जनसाधारण के आचार का रक्षक तथा देखभाल करने वाला था। वह बाजारों पर भी नियंत्रण रखता था और नाप तौल का निरीक्षण करता था।
  • अलाउद्दीन ने गुप्तचर पद्धति को पूर्णतया संगठित किया। इस विभाग का मुख्य अधिकारी वरीद-ए-मुमालिक था। उसके अन्तर्गत अनेक वरीद (संदेशवाहक या हरकारे) थे।
  • वरीद के अतिरिक्त अलाउद्दीन ने अनेक सूचनादाता नियुक्त किये जो मुनहियंन या मुन्ही कहलाते थे।
  • खालसा अथवा रक्षित प्रदेशों का शासन केन्द्र द्वारा किया जाता था। अमीर और शहना इसका शासन संभालते थे। दिल्ली के आस पास के प्रदेश इस पद्धति के अन्तर्गत आते थे।

अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार -

  • एक विशाल सेना के रख रखाव को देखते हुए अलाउद्दीन ने आर्थिक सुधार लागू किये। जिसका विस्तृत वर्णन जियाउद्दीन बरनी ने अपनी पुस्तक तारीख-ए-फिरोज शाही में किया है। अलाउद्दीन ने अपने राज्य की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ तरीके से चलाया था।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने बाजार नियंत्रण प्रणाली शुरू की। अलाउद्दीन खिलजी के बाजार नियंत्रण के बारे में विस्तृत जानकारी तारीख-ए-फिरोजशाही (बरनी) से मिलती है, इसके अलावा अमीर खुसरो के खजाइनुलफुतूह इसामी की फुतूहसलातीन तथा इब्नबतूता के रेहला नामक ग्रंथ से भी इस बारे में जानकारी मिलती है।
  • बरनी ने अलाउद्दीन के बाजार नियंत्रण का उद्देश्य राजकोष पर अतिरिक्त बोझ डाले बिना सैनिक आवश्यकताओं को पूरा करना बताया। बरनी के विचार का के.एस. लाल और इरफान ने भी समर्थन किया।
  • अमीर खुसरो के अनुसार अलाउद्दीन के बाजार नियंत्रण का उद्देश्य आम प्रजा को राहत पहुँचाना था। इसका समर्थन के.ए. निजामी और वी.पी. सक्सेना ने किया।
  • अलाउद्दीन ने मुल्तानी व्यापारियों को सरकारी ऋण उपलब्ध करवाया ताकि वे व्यापारियों से उपलब्ध मूल्य पर कपङे खरीदें और उसे बाजार लाकर निर्धारित मूल्य पर बेंच दें।
  • जाब्ता (जाविता) भूमि की पैमाइश के आधार पर लगान का निर्धारण करना था यह सबसे प्रथम एवं कठिन अधिनियम था।
  • अलाउद्दीन ने बिस्वा को पैमाइश की मानक इकाई निर्धारित किया गया।
  • प्रति बिस्वा उपज के आधे भाग को राज्य के हिस्से या लगान के रूप में निर्धारित किया गया।
  • अलाउद्दीन के समय में कीमतों के सस्तेपन से अधिक महत्त्वपूर्ण था, बाजार में निश्चित कीमतों की स्थिरता। यह उसके राज्य की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी।
  • अलाउद्दीन ने राशनिंग-व्यवस्था भी लागू की थी।
  • मौसम के आकस्मिक परिवर्तनों का सामना करने के लिए अलाउद्दीन ने शासकीय अन्न भण्डार बनाए। इन गोदामों का अनाज केवल आपातकालीन स्थितियों में निकाला जाता था।
  • अलाउद्दीन ने मलिक कबूल को शहदा या बाजार का अधीक्षक नियुक्त किया।
  • सराय-ए-अदल (न्याय का स्थान) निर्मित वस्तुओं तथा बाहर के प्रदेशों, अधीनस्थ राज्यों तथा विदेशों से आने वाले माल का बाजार था। विशेष रूप से यह सरकारी धन से सहायता प्राप्त बाजार था।
  • बीस गज का अच्छी श्रेणी का लट्ठा एक टंका में बिकता था। यही एक वस्तु है जिसकी माप बरनी देता है।
  • अलाउद्दीन ने मूल्यों का निर्धारण मनमाने ढंग से न कर उत्पादन लागत के अनुसार किया था।

कर प्रणाली -

  • अलाउद्दीन ने उपज का पचास प्रतिशत भूमिकर (खराज) के रूप में निश्चित किया।
  • अलाउद्दीन भारत का पहला मुस्लिम शासक था जिसने भूमि की वास्तविक आय पर राजस्व निश्चित किया।
  • मसाहत मापन की पद्धति के अन्तर्गत समस्त भूमि पर पचास प्रतिशत की एकीकृत दर से लगान वसूल किया जाता था।
  • बलबन और इल्तुतमिश ने भू-राजस्व को उपज की एक तिहाई दर से अधिक नहीं लिया था।
  • राजस्व नकद एवं अनाज दोनों रूपों में वसूल किया जाता था।
  • राजस्व के अतिरिक्त अलाउद्दीन ने आवास कर (घरीकर) तथा चराई कर (दुधारू पशुओं पर) भी लगाया। करी या करही एक अन्य कर था।
  • जजिया - गैर मुसलमानों से लिया जाने वाला कर था। यह स्त्रियों, बच्चों, विक्षिप्तों और अपंगो पर नहीं लगाया जाता था।
  • खुम्स से राज्य को पाँचवां हिस्सा मिलता था और शेष 4/5 हिस्सा सैनिकों में बाँट दिया जाता था किन्तु अलाउद्दीन तथा मुहम्मद बिन तुगलक ने नियम का उल्लंघन करते हुए खुम्स का 4/5 भाग राज्य के भाग के रूप में लिया।
  • जकात - केवल मुसलमानों से लिया जाने वाला एक धार्मिक कर था। यह सम्पत्ति का 40 वाँ भाग (ढाई प्रतिशत) था।
  • उसने सैनिकों को नकद वेतन दिया। ऐसा करने वाला वह दिल्ली का पहला सुल्तान था। उसके समय में सैनिकों की भर्ती सेना मंत्री (आरिज-ए-मुमालिक) द्वारा की जाने लगी।
  • उसके राजस्व एवं लगान व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य एक शक्तिशाली और निरंकुश राज्य की स्थापना करना था।
  • अलाउद्दीन की बाजार व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य सैनिकों के वेतन में कमी न होकर वस्तुओं के मूल्यों को बढ़ने से रोकना था।
  • अलाउद्दीन खिलजी के समय में विशाल प्रदेशों को खालिसा भूमि में परिवर्तित कर दिया गया।
  • खालिसा-भू क्षेत्रों से लगान राज्य द्वारा वसूल किया जाने लगा।
  • अलाउद्दीन ने राजस्व व्यवस्था से भ्रष्टाचार और लूट को खत्म करने के लिए एक नये विभाग दीवान-ए-मुस्तखराज की स्थापना की।
  • अलाउद्दीन ने न तो मुक्ता-प्रथा समाप्त की और न खूती प्रथा (जमींदारी प्रथा)। उसने केवल स्वामियों के विशेषाधिकार को समाप्त कर दिया।
  • भूमि की पैमाइश कराकर सरकारी कर्मचारियों द्वारा लगान वसूल करने की व्यवस्था सर्वप्रथम अलाउद्दीन ने आरम्भ की।
  • उसने अमीर खुसरो तथा अमीरहसन देहलवी को संरक्षण प्रदान किया।

अलाउद्दीन खिलजी से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रश्न -

1. अलाउद्दीन खिलजी का जन्म कब हुआ था ?

उत्तर - 1250 ई. (पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में)

हाजी-उद-दबीर के अनुसार जन्म - 1266-1267 ई. (कलात, जाबुल प्रान्त, अफगानिस्तान)

2. कौनसा शासक अपने चाचा की हत्या करके सिंहासन पर बैठा था ?

उत्तर - अलाउद्दीन खिलजी

3. अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान कब बना ?

उत्तर - 22 अक्टूबर 1296 ई.

4. अलाउद्दीन खिलजी का राज्याभिषेक कहाँ हुआ ?

उत्तर - दिल्ली में स्थित बलबन के लाल महल में

5. अलाउद्दीन खिलजी के शासन का समय रहा है ?

उत्तर - 1296-1316 ई.

6. सिकंदर-ए-सानी की उपाधि किसने धारण की थी ?

उत्तर - अलाउद्दीन खिलजी

7. पद्मावत किसकी रचना है ?

उत्तर - मलिक मुहम्मद जायसी

8. दक्षिण भारत को दिल्ली सल्तनत में मिलाने वाला पहला शासक कौन था ?

उत्तर - अलाउद्दीन खिलजी

9. गुजरात अभियान के दौरान 1000 दिनार में खरीद कर किसे लाया गया था ?

उत्तर - मलिक काफूर

10. अलाउद्दीन खिलजी को सर्वप्रथम कौन सा पद मिला ?

उत्तर - अमीर-ए-तुजुक

11. किस विजय के दौरान नुसरत खां की मृत्यु हुई थी ?

उत्तर - रणथम्भौर विजय के दौरान

12. अलाउद्दीन खिलजी का प्रसिद्ध सेनापति कौन था जिसने दक्षिण भारत अभियान का नेतृत्व किया था ?

उत्तर - मलिक काफूर

13. इस्लामी वास्तुकला का रत्न किसे कहा जाता है ?

उत्तर - अलाई दरवाजा

14. अलाउद्दीन के बचपन का नाम क्या था ?

उत्तर - अली गुरशास्प

15. दिल्ली सल्तनत के शासन में विद्रोहियों को शांत करने के लिए कौनसा शासक अध्यादेश लेकर आया था ?

उत्तर - अलाउद्दीन खिलजी

16. अलाउद्दीन की गुजरात विजय के समय गुजरात का शासक कौन था ?

उत्तर - राजा कर्णबघेल

17. अलाई दरवाजा कहाँ है ?

उत्तर - कुतुब परिसर, दिल्ली

18. अलाउद्दीन खिलजी ने किस हिन्दू शासक को रायरायन की उपाधि दी ?

उत्तर - रामचंद्र देव

19. चित्तौङ का नाम बदलकर अलाउद्दीन क्या रखा था ?

उत्तर - खिज्राबाद

20. हिन्दुओं का स्वर्ग सातवें स्वर्ग से भी ऊँचा है उपयुक्त पंक्ति अमीर खुसरो ने किस किले के बारे में व्यक्त किया?

उत्तर - चित्तौङगढ़

21. अलाउद्दीन खिलजी के साथ कौन फारसी विद्वान चित्तौङ पर आक्रमण के समय गया था ?

उत्तर - अमीर खुसरो

22. अलाई दरवाजा का निर्माण किसने कराया था ?

उत्तर - अलाउद्दीन खिलजी

23. विंध्याचल की पहाङियों को पार करने वाला प्रथम तुर्क सुल्तान था ?

उत्तर - अलाउद्दीन खिलजी

24. किसके शासनकाल में सर्वाधिक मंगोल आक्रमण हुए ?

उत्तर - अलाउद्दीन खिलजी

25. अलाउद्दीन के दरबारी कवि कौन थे ?

उत्तर - अमीर खुसरो

26. अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु कब हुई थी ?

उत्तर - 2 जनवरी 1316 ई.

27. अलाउद्दीन खिलजी ने सेना में कौन सी प्रथा शुरू की ?

उत्तर - हुलिया रखने की प्रथा

28. खिलजी वंश के किस शासक ने सबसे अधिक लंबे समय तक शासन किया ?

उत्तर - अलाउद्दीन खिलजी

29. जलालुद्दीन खिलजी के शासन में अलाउद्दीन क्या था ?

उत्तर - कङा मानिकपुर का सूबेदार

30. कोहिनूर अलाउद्दीन को किस शासक से प्राप्त हुआ था ?

उत्तर - प्रतातरुद्र देव

31. अलाउद्दीन खिलजी द्वारा चित्तौङ पर आक्रमण करने का क्या कारण था ?

उत्तर - रानी पद्मिनी को प्राप्त करना

32. बाजार नियंत्रण पद्धति किस शासक की देन है ?

उत्तर - अलाउद्दीन खिलजी

33. दीवान-ए-मुस्तखराज की स्थापना किसने की ?

उत्तर - अलाउद्दीन खिलजी

34. दीवाने-ए-रियासत क्या था ?

उत्तर - व्यापारी वर्ग पर नियंत्रण रखता था।

35. खुम्स का भाग सैनिक लेते थे ?

उत्तर - 4/5 भाग

36. अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौङ के किले पर अधिकार कब कर लिया था ?

उत्तर - 26 अगस्त 1303 ई.

37. अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा उपज का कितने प्रतिशत भूमि-कर के रूप में निश्चित किया था ?

उत्तर - उपज का 50 प्रतिशत हिस्सा

38. अलाउद्दीन के द्वारा लगाए गए दो नवीन कर कौन से थे ?

उत्तर - मकान घर (घरही) व चराई कर (चरही)

39. विश्व का सुल्तान किसे कहा जाता है ?

उत्तर - अलाउद्दीन खिलजी को

40. अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर किले पर कब अधिकार कर लिया था ?

उत्तर - 11 जुलाई 1301 ई. को

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