कर्नाटक का युद्ध – कर्नाटक का युद्ध अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य व्यापार को लेकर हुए संघर्ष थे। अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच तीन कर्नाटक युद्ध हुए। 17वीं तथा 18वीं शताब्दियों में अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य व्यापार को लेकर संघर्ष जारी था। ये दोनों ही व्यापार को बढ़ाने और अधिकाधिक लाभ उठाने हेतु अग्रसर थे।
इसी कारण अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों ने भारतीय राजनीति में भी दखल देना प्रारम्भ कर दिया। जिससे दोनों कम्पनियों के मध्य और कटुता आ गई। अब इनका मुख्य उद्देश्य व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त कर दूसरी कम्पनी को पूर्णतः मार्ग से हटाना हो गया था।
ये दोनों ही कम्पनियाँ यूरोपीय थीं और वहां भी इनके मध्य संघर्ष चलाता ही रहता था। जैसे ही यूरोप में संघर्ष शुरू होता, वैसे ही विश्व के अलग-अलग भाग में दोनों कम्पनियों के मध्य भी संघर्ष शुरू हो जाता था। भारत में आंग्ल-फ्रांसीसी संघर्ष को कर्नाटक युद्ध के नाम से जाना जाता है, ये युद्ध उस समय प्रारम्भ हुआ जब यूरोप में दोनों देशों के मध्य ऑस्ट्रिया पर अधिकार को लेकर संघर्ष शुरू हुआ। भारत में कुल 3 युद्ध लड़े गये जोकि वर्ष 1746-1763 के मध्य हुए। इसके परिणाम स्वरूप फ्रांसीसियों का भारत से पूर्णतः सफाया हो गया।
- अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य हुए कर्नाटक के युद्ध
- प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746-1748)
- द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749-1754)
- तृतीय कर्नाटक युद्ध (1756-1763)
अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य हुए कर्नाटक के युद्ध
प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746-1748)
- इस युद्ध के प्रारम्भ होने के समय फ्रांसीसियों का मुख्यालय पांडिचेरी में था तथा उनके अन्य कार्यालय जिंजी, मसूलीपट्टनम, करिकल, माही, सूरत और चन्द्रनगर में थे।
- अंग्रेजों के मुख्य कार्यालय मद्रास, बम्बई और कलकत्ता में थे।
- 1740 में आस्ट्रिया पर उत्तराधिकार को लेकर यूरोप में अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य संघर्ष शुरू हो गया।
- 1746 में भारत में दोनों कम्पनियों में युद्ध शुरू हो गया।
- इस समय डूप्ले पांडिचेरी का फ्रैंच गवर्नर था और उसके नेतृत्व में फ्रेंच सेना ने अंग्रेजों को परास्त कर मद्रास को जीत लिया।
- प्रथम कर्नाटक युद्ध के दौरान लड़ा गया “सेंट टोमे का युद्ध” स्मरणीय है।
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- सेंट टोमे का युद्ध- यह युद्ध फ्रांसीसी सेना तथा कर्नाटक के नवाब अनवरूद्दीन(1744-1749) के मध्य लड़ा गया। असल में जिस समय दोनों यूरोपीय कम्पनियाँ भारत में युद्ध कर रही थी, उस समय कर्नाटक के नवाब ने दोनों को ही युद्ध बन्द करने तथा देश की शांति व्यवस्था को भंग न करने के लिए आदेशित किया। डूप्ले ने अपनी कूटनीति से नवाब को मद्रास जीत कर देने का आश्वासन दिया। परन्तु बाद में वह अपनी इस शर्त से मुकर गया। जिस कारण नवाब ने अपनी सेना को फ्रांसीसियों से युद्ध हेतु भेजा। डूप्ले की महज 230 फ्रांसीसी और 700 भारतीयों की सेना ने नवाब की 10000 की सेना को परास्त कर अनुशासित यूरोपीय सेना की ढीली और असंगठित भारतीय सेना पर श्रेष्ठता को सिद्ध कर दिया।
- प्रथम कर्नाटक युद्ध यूरोप में 1748 में हुयी “एक्स-ला शापैल” की संधि से समाप्त हुआ। इस संधि से आस्ट्रिया का उत्तराधिकार का विवाद आपसी सहमति से सुलझा लिया गया। इस संधि के अनुसार मद्रास अंग्रेजों को पुनः प्राप्त हुआ।
- इस युद्ध के दौरान दोनों ही दल बराबरी पर रहे परन्तु युद्धों में फ्रांसीसी श्रेष्ठता साफ थी।
द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749-1754)
- कर्नाटक के प्रथम युद्ध में अपनी श्रेष्ठता को सिद्ध कर चुके डूप्ले की राजनीतिक पिपासा जाग चुकी थी।
- डूप्ले अब भारतीय राजनीति में भाग लेकर, अंग्रेजी कम्पनी को पूर्णतः भारत से विस्थापित करने की रणनीति बनाने लगा।
- उसे भारतीय राजनीति में दखल देने का अवसर हैदराबाद तथा कर्नाटक के उत्तराधिकार विवाद से मिला।
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- हैदराबाद- आसफजाह की मृत्यु के बाद, उत्तराधिकार को लेकर नासिर जंग(पुत्र) और उसके भतीजे मुजफ्फरजंग (आसफजाह का पौत्र) के मध्य विवाद खड़ा हो गया था।
- कर्नाटक- कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन तथा उसके बहनोई चन्दा साहिब के मध्य विवाद शुरू हुआ।
- हैदराबाद और कर्नाटक में चल रहे इन विवादों से राजनीतिक बढ़त बनाने हेतु डूप्ले ने हैदराबाद में मुजफ्फरजंग और कर्नाटक में चंदा साहिब का सहयोग किया। अपरिहार्य रूप से अंग्रेजों को नासिर जंग और अनवरूद्दीन का सहयोग करना पड़ा।
- 1749 में फ्रेंच सेना की सहायता से एक युद्ध में अनवरूद्दीन मारा गया तथा चंदा साहिब कर्नाटक का अगला नवाब बना।
- 1750 में नासिर जंग भी फ्रेंच सेना से संघर्ष करता मारा गया और मुजफ्फरजंग हैदराबाद का नवाब बना दिया गया।
- डूप्ले इस समय तक अपनी शक्ति के चरम पर था। पर स्थिति परिवर्तित होने में देर नहीं लगी।
- अनवरूद्दीन का पुत्र मुहम्मद अली युद्ध में बचकर भाग गया था और उसने त्रिचनापल्ली में शरण ली। फ्रांसीसियों ने चन्दा साहिब की सेना के साथ मिलकर दुर्ग को घेर लिया। अंग्रेजों की तरफ से क्लाइव इस घेरे को तोड़ने में असफल रहा तो क्लाइव ने दबाव कम करने के लिए कर्नाटक की राजधानी अर्कटा पर अधिकर कर लिया।
- 1752 में स्ट्रिगर लारेन्स के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने त्रिचनापल्ली को बचा लिया और फ्रांसीसी सेना ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
- फ्रांसीसी अधिकारियों ने त्रिचनापल्ली में हुई हानि के लिए डूप्ले को जिम्मेदार ठहराया और उसे वापस फ्रांस बुला लिया गया।
- 1754 में गोडाहू अगला फ्रांसीसी गवर्नर जनरल बनकर भारत आया।
- 1755 में दोनों कम्पनियों के मध्य संधि हो गई।
तृतीय कर्नाटक युद्ध (1756-1763)
- पूर्व की तरह ही यह युद्ध भी यूरोपीय संघर्ष का ही भाग था।
- इस युद्ध को सप्त वर्षीय युद्ध भी कहा जाता है।
- 1756 में फ्रांसीसी सरकार ने काउन्ट डि लाली को अगला गवर्नर जनरल बना कर भारत भेजा।
- उसने भारत आते ही फोर्ड डेविड को जीत लिया और तंजौर पर 56 लाख रूपये बकाया के विवाद को लेकर युद्ध शुरू कर दिया, परन्तु वो इसमें असफल रहा जिससे फ्रांसीसी ख्याति को हानि पहुँची।
- उधर अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला को पराजित कर बंगाल पर अधिकार कर लिया था। इससे अंग्रेजों की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हो गयी थी।
- 1760 में सर आयर कूट के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने फ्रांसीसियों को वांडिवाश के युद्ध में बुरी तरह पराजित किया।
- 1761 में फ्रांसीसी पराजित होने के पश्चात पांडिचेरी लौट गए। मात्र 8 माह बाद ही अंग्रेजों ने इसे भी जीत लिया और शीघ्र ही माही तथा जिंजी भी अपने अधिकार में कर लिए।
- 1763 में इस युद्ध के अंत में पांडिचेरी एवं कुछ अन्य प्रदेश किला बन्दी न करने की शर्त पर फ्रांसीसियों को लौटा दिए गए।
- इस तरह तृतीय कर्नाटक युद्ध एक निर्णायक युद्ध साबित हुआ और आंग्ल-फ्रांसीसी संघर्ष का समापन हो गया, जिसमें अंग्रेजों की जीत हुयी।
- अब अंग्रेजों को भारत पर पूरी तरह आधिपत्य स्थापित करने के लिए केवल भारतीय शासकों का ही सामना करना शेष था।