खानवा युद्ध मुगल सम्राट जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर एवं मेवाड़ के शासक महाराजा संग्राम सिंह (राणा सांगा) के बीच 17 मार्च 1527 में लड़ा गया था। खानवा का युद्ध गम्भीरी नदी के किनारे लड़ा गया था, भरतपुर-धौलपुर रोड पर रूपवास के निकट गांव खानवा में खानवा का युद्ध लड़ा गया था। यह युद्ध मुगलों एवं मेवाड़ के राजपूतों के बीच लड़ा गया पहला युद्ध था। इस युद्ध में बाबर ने राणा सांगा को पराजित कर अपनी जीत दर्ज कराई थी।
खानवा युद्ध में राणा सांगा की सेना में 7 उच्च श्रेणी के राजा, 104 सरदार एवं 9 राव ने भी भाग लिया। पानीपत के युद्ध के बाद खानवा युद्ध बाबर द्वारा लड़ा गया दूसरा सबसे बड़ा युद्ध था। बाबर संपूर्ण भारत में अपना कब्जा करना चाहता था वही दूसरी ओर राणा सांगा तुर्क-अफगान राज्य के अवशेष पर एक हिंदू राज्य की स्थापना करना चाहते थे जिसके परिणाम स्वरूप दोनों सेनाओं में खानवा युद्ध आरंभ हुआ। खानवा युद्ध को असल में महत्वाकांक्षाओं का युद्ध कहा जाता है।
खानवा युद्ध के कारण
राज्य स्थापित करना
राणा सांगा अफगानों की सत्ता को समाप्त कर अपना राज्य स्थापित करना चाहते थे जिसके कारण खानवा युद्ध लड़ा गया। राणा सांगा का मानना था कि बाबर एशियाई लुटेरों की तरह ही लूटपाट करके दिल्ली पर अपना कब्जा जमाना चाहता है। जिसके लिए राणा सांगा को खानवा युद्ध करना पड़ा।
धार्मिक कारण
पानीपत युद्ध के परिणाम के बाद राणा सांगा ने अपना साम्राज्य विस्तार करना आरंभ कर दिया और रणथम्भौर के पास खंडार दुर्ग सहित लगभग 200 स्थानों पर अपना अधिकार कर लिया। राणा सांगा स्वयं को हिंदू धर्म का रक्षक मानते थे और हिंदुत्व को बढ़ावा देना चाहते थे। दूसरी तरफ बाबर इस्लामी शासन को बनाए रखने के लगभग हर संभव प्रयास करता था।
समझौतों का उल्लंघन
बाबर और राणा सांगा के बीच एक समझौते के अंतर्गत बाबर पंजाब की ओर से एवं राणा सांगा आगरा की ओर से इब्राहिम पर आक्रमण करेगा। परंतु राणा सांगा की ओर से इस संधि का उल्लंघन किया गया जिसके परिणामस्वरूप बाबर ने राणा सांगा को युद्ध करने की चुनौती दी।
महत्वाकांक्षा
राणा सांगा और बाबर दोनों ही अपने-अपने धार्मिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के प्रति महत्वाकांक्षी थे जिसके फलस्वरूप दोनों की ओर से युद्ध की तैयारियां होने लगी थी।
राजपूत अफगान गठबंधन
राणा सांगा ने महमूद लोदी एवं हसन खां मेवाती को खानवा युद्ध के लिए अपने पक्ष में कर लिया जो बाबर के लिए अत्यधिक खतरनाक सिद्ध हो सकते थे। खानवा युद्ध के लिए कई अफगान राणा सांगा के पास अपनी-अपनी सेनाओं को लेकर पहुंचने लगे जिससे बाबर की चिंताएं और बढ़ गई।
खानवा युद्ध के परिणाम
खानवा युद्ध देश के निर्णायक युद्धों में से एक माना जाता है। इस युद्ध के परिणाम अत्यंत महत्वपूर्ण एवं दूरगामी सिद्ध हुए। इस युद्ध में राणा सांगा की पराजय हुई जो संपूर्ण भारत के लिए घातक सिद्ध हुई। इस युद्ध के परिणाम स्वरूप राजपूतों की एकता समाप्त हो गई जिसके कारण अगले 200 वर्षों तक राजपूत शासक एवं राजपूत संघ का निर्माण नहीं हो सका। खानवा युद्ध में राणा सांगा की हार को राजपूतों की हार माना जाता है। खानवा युद्ध के पश्चात राजपूत-अफ़गानों के संयुक्त राष्ट्रीय मोर्चे का भी अंत हुआ।
खानवा के युद्ध के बाद बाबर को वीर शासक के नाम से जाना जाने लगा तथा उसका साम्राज्य पूरे देश में फैल गया। इस युद्ध के बाद बाबर ने मुस्लिम संस्कृति को प्रभावशाली तरीके से पूरे भारत में सम्मिलित किया। खानवा युद्ध के परिणाम स्वरूप राजस्थान में राजनीतिक परिस्थितियां बदल गयी जिससे आगे चलकर राजस्थान पर मुगलों का एकाधिपत्य स्थापित हो सका। कहा जाता है कि खानवा के युद्ध में मुगलों को राजपूतों की रण-चातुर्य एवं सैन्य व्यवस्था को देखने का अवसर मिला जिससे सबक लेकर बाबर ने भविष्य में राजस्थान पर कभी आक्रमण करने का विचार नहीं किया। परंतु मुगल साम्राज्य में राजस्थान की स्वतंत्रता, कला, विद्या एवं राजस्थान की संस्कृति पर अंकुश लगा दिया जिससे राजस्थान का स्वरूप ही बदल गया। मुगल साम्राज्य की स्थापना के बाद राजस्थान के निवासियों के आचार-विचार, वेशभूषा, खानपान एवं रहन-सहन के तरीकों पर भी प्रभाव डाला जिसके कारण हिंदू-मुस्लिम संस्कृतियों पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ा।