पानीपत का प्रथम युद्ध
अप्रैल, 1526 ई. में पानीपत का प्रथम युद्ध पानीपत नामक स्थान में ज़हीर उद्दीन मोहम्मद बाबर एवं इब्राहिम लोदी के मध्य लड़ा गया था। पानीपत वह स्थान है जहां बारहवीं शताब्दी के बाद के सभी निर्णायक युद्ध लड़े गए थे। पानीपत के प्रथम युद्ध के बाद ही भारत में बाबर द्वारा मुगल साम्राज्य की नींव रखी गई। पानीपत का युद्ध उन सभी लड़ाइयों में एक थी जिसमें मुगलों द्वारा बारूद, आग्नेयास्त्रों और तोपों का प्रयोग किया गया था। पानीपत के प्रथम युद्ध के कारण निम्नलिखित है –
पानीपत के युद्ध के कारण
पानीपत के प्रथम युद्ध का प्रमुख कारण बाबर द्वारा बनाई गई महत्वाकांक्षी योजनाएं थी। बाबर दिल्ली सल्तनत के लोदी वंश के शासक इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली पर अधिकार स्थापित करना चाहता था। 12 अप्रैल, 1526 ई. को बाबर व इब्राहिम लोदी की सेनाएं पानीपत के मैदान में आमने-सामने आ गईं जिनके मध्य 21 अप्रैल को युद्ध प्रारंभ हुआ।
पानीपत के प्रथम युद्ध के परिणाम
- पानीपत का प्रथम युद्ध इतिहास का एक निर्णायक युद्ध था जिसमें लोदियों की पराजय हुई और बाबर की जीत हुई। इस युद्ध के पश्चात पूरी तरह समाप्त हो गया एवं दिल्ली और पंजाब से उनकी सत्ता पूरी तरह से समाप्त हो गई।
- पानीपत के प्रथम युद्ध के पश्चात सबसे निर्णायक परिणाम यह रहा की लोदी वंश के साथ-साथ दिल्ली सल्तनत का भी पतन हो गया। इस युद्ध के परिणामों को देखते हुए लेनपूल ने स्पष्ट करते हुए कहा कि ”पानीपत का युद्ध दिल्ली के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ और उनका राज्य तथा बल नष्ट-भ्रष्ट हो गया।”
- इस युद्ध में बाबर की विजय हुई तथा युद्ध समाप्त होने के बाद उसको दिल्ली से अपार धन की प्राप्ति हुई जिसको उसने अपनी प्रजा एवं सैनिकों में बाँट दिया था।
- पानीपत के प्रथम युद्ध के पश्चात अफगानों को अपनी सैनिकों की अयोग्यता का अहसास हुआ जिसके बाद उनमें अपनी सेना को मजबूत बनाने का निर्णय लिया और तेजी से अपनी शक्ति का संगठन करते हुए सेना को मजबूत बनाने का प्रयास करना आरंभ कर दिया।
- बाबर द्वारा पंजाब पर पहले ही अधिकार कर लिया गया था और युद्ध के पश्चात उसने दिल्ली और आगरा में भी अधिकार कर लिया। अपनी सभी कठिनाइयों को दूर करके बाबर एक विशाल साम्राज्य का स्वामी बन गया और उसने भारत में 1526 ई. में एक नए साम्राज्य मुगल साम्राज्य की स्थापना की।
- पानीपत के युद्ध के बाद मुगलों ने भारत में धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की जिसमें उन्होंने धर्म को राजनीति से अलग करके सभी धर्मों के व्यक्तियों के साथ समानता के व्यवहार को अपनाया।
पानीपत का द्वितीय युद्ध -
5 नवंबर, 1556 ई. को पानीपत का द्वितीय युद्ध उत्तर भारत के हिंदू शासक सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य (हेमू) और अकबर के सैनिकों बीच पानीपत के मैदान में लड़ा गया। पानीपत के द्वितीय युद्ध में अकबर की विजय हुई और यह अकबर के सेनापति जमान एवं बैरन खां के लिए एक निर्णायक युद्ध रहा। पानीपत के द्वितीय युद्ध में हेमू की हार हुई और वह युद्ध भूमि में ही मारा गया इससे अफगान शासन का अंत हुआ और मुगलों को एक नया रास्ता मिल गया। पानीपत के द्वितीय युद्ध होने के कारण निम्नलिखित है –
पानीपत के द्वितीय युद्ध के कारण
हेमू ने अपने स्वामी के लिए लगभग 24 युद्ध लड़े थे जिनमें से 22 युद्धों में उसको सफलता मिल गई। आगरा एवं ग्वालियर पर अधिकार करते हुए 7 अक्टूबर, 1556 ई. को हेमू तुगलकाबाद पहुंचा जहाँ उसने मुगल तर्दी बेग को परास्त करके दिल्ली पर अधिकार कर लिया था।
हेमू की इस सफलता को देख अकबर एवं उसके सहयोगी चिंतित होने लगे और उन्हें काबुल वापस जाने का भय होने लगा। इस विषम परिस्थिति को देख बैरम खां ने अकबर को परिस्थिति से लड़ने के लिए तैयार किया जिसके उपरांत अकबर ने भी अपनी ओर से युद्ध को स्वीकार किया और पानीपत का द्वितीय युद्ध आरंभ हो गया।
पानीपत के द्वितीय युद्ध के परिणाम
- हेमू अपने सैन्य बल से युद्ध में जीत की ओर बढ़ ही रहा था कि अकबर की सेना ने हेमू की आँख में तीर मार दिया जिससे हेमू बुरी तरह घायल हो गया। घायल हेमू को युद्ध में न देखकर हेमू की सेना में हलचल मच गई और यह घटना युद्ध में जीत ओर बढ़ते हुए हेमू की हार का कारण बन गयी।
- पानीपत के द्वितीय युद्ध के पश्चात दिल्ली और आगरा पर अकबर ने अधिकार कर लिया। इसके अलावा दिल्ली के तख़्त के लिए मुगलों और अफगानों के मध्य चलने वाला संघर्ष अंतिम रूप से मुगलों के पक्ष में हो गया और दिली का तख़्त अगले तीन सौ वर्षों तक मुगलों के अधीन रहा।
पानीपत का तृतीय युद्ध
पानीपत का तृतीय युद्ध 1761 ई. में अफ़गानी अहमदशाह अब्दाली एवं मराठों के बीच हुआ था जिसमें अहमदशाह की जीत हुई और मराठों की पराजय हुई। पानीपत के तृतीय युद्ध को 18वीं शताब्दी का सबसे बड़ा युद्ध माना गया था। पानीपत के तृतीय युद्ध के दौरान मुगल शक्ति क्षीण हो चुकी थी और मराठाओं के साम्राज्य इतना शक्तिशाली था कि हर जगह उनका ही बोलबाला था सभी को यह विश्वास था कि मराठाओं की जीत निश्चित है परन्तु कुछ कारणों की वजह से अहमदशाह अब्दाली की विजय हुई। पानीपत के तृतीय युद्ध होने का कोई विशेष कारण था अपितु ऐसे बहुत से कारण थे जिसकी वजह से यह युद्ध हुआ, वे कारण निम्नलिखित है –
पानीपत के तृतीय युद्ध के कारण
भारत में औरंगजेब कट्टर इस्लामी शासकों में से एक था उसने अपने शासनकाल में धर्म से संबंधित अत्याचार न केवल हिन्दुओं पर किए बल्कि शिया मुसलमानों पर भी पर भी कई अत्याचार किए। औरंगजेब के इन अत्याचारों का प्रभाव सबसे अधिक उत्तर भारत में देखने को मिला। अतः प्रजा पर इन अत्याचारों एवं अमानवीय कार्यों का परिणाम यह रहा की भारतीयों में संघर्ष करने की क्षमता घट गई और उन्होंने युद्ध के दौरान दिल्ली शासकों का साथ नहीं दिया।
मराठों द्वारा 1759-60 ई. में पंजाब को जीत लिया गया था इसके पश्चात अहमदशाह द्वारा पंजाब पर सबसे पहला आक्रमण किया गया अतः मराठों एवं अहमदशाह अब्दाली में युद्ध होना स्वाभाविक था जिसने पानीपत के तृतीय युद्ध का रूप लिया।
1748 ई. में मुगल सम्राट की मृत्यु हो जाने पर उसके वजीर एवं रुहेली में संघर्ष होने लगे वजीर ने मराठों की सहायता से रुहेलों को हरा दिया जिसके बाद रुहेलों ने अहमदशाह से मदद मांगी। उस दौरान पंजाब के कुछ राजपूतों ने भी अहमदशाह को मराठों के विरोध में लड़ने के लिए बुलाया जिसका परिणाम यह हुआ कि अहमदशाह एवं मराठों के मध्य पानीपत में युद्ध छिड़ गया।
जब अहमदशाह ने भरतपुर के राजा सूरजमल जाट से भेंट मांगी तो सूरजमल ने अहमदशाह से यह कहा कि उत्तर भारत से मराठों को भगाकर अपनी वीरता एवं स्वयं को शासक सिद्ध करें उसके बाद ही वे भेंट देने के लिए तैयार होंगे। सूरजमल की इस चुनौती ने अहमदशाह को मराठों के विरुद्ध युद्ध करने के लिए ललकारा जो पानीपत के युद्ध का कारण था।
1760 ई. के युद्ध में पंजाब के दत्ता जी सिंधिया की मृत्यु हो गई और मराठों ने विशाल सेना अब्दाली पर आक्रमण करने के लिए और बदला लेने के लिए भेजी। अहमदशाह अब्दाली और मराठों के बीच संघर्ष पानीपत के तृतीय युद्ध का कारण बना।
पानीपत के तृतीय युद्ध के परिणाम
- पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की पराजय होने से संपूर्ण मराठा साम्राज्य की शक्ति एवं प्रतिष्ठा समाप्त हो गई और इस युद्ध में मराठों को इतनी हानि हुई यहाँ के प्रत्येक परिवार में से एक सदस्य की मृत्यु हो गई थी। इसके अलावा मराठों का जिन क्षेत्रों में नियंत्रण था वह समाप्त हो गया और उन पर अंग्रेज अपना प्रभाव डालने लगे।
- पानीपत के युद्ध के पश्चात मराठा सरदार सिंधियाँ, होल्कर, गायकवाड़, भोंसले ये सभी अपनी-अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने का प्रयास करने लगे जिससे मण्डल तो समाप्त हुआ ही साथ में मराठा संगठन भी टूट गया और मराठों का अस्तित्व समाप्त होने लगा।
- पानीपत के तृतीय युद्ध के पश्चात नजीबुद्दीन दिल्ली का वास्तविक स्वामी बन गया और शाहआलम द्वितीय अहमदशाह और नजीब पर निर्भर था। शाहआलम मुगल सम्राट था और वह मराठों एवं मुगलों के मध्य इस प्रकार से घिर गया कि उसकी स्थिति अच्छी नहीं रही, इससे पहले मुगल सम्राटों की ऐसी स्थिति कभी नहीं देखी गई थी।
- पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की हार हुई और अहमदशाह अब्दाली की जीत परन्तु इस युद्ध के बाद अहमदशाह की शक्ति बहुत कम हो गई जिसका फायदा अफगानों ने उठाकर उस पर आक्रमण कर दिया। अहमदशाह अफगानों का सामना न कर पाया और उसका अस्तित्व समाप्त होता हुआ नजर आया।
- पानीपत के तृतीय युद्ध के बाद मुगल एवं मराठे दोनों ही बहुत कमजोर पड़ गए थे जिसके बाद पंजाब में सिक्खों का उदय हुआ और उन्होंने अब्दाली की स्थापित सत्ता का विरोध करना आरम्भ कर दिया। इसके अलावा यहाँ ब्रिटिश सत्ता का उदय होना आरंभ हुआ और ब्रिटिशों ने मुगल सम्राट की कमजोरियों का फायदा उठाकर उनसे सत्ता छीनने का प्रयास करना शुरू कर दिया। 1761 ई. के पश्चात अंग्रेजों ने फुट डालकर भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना कर दी।
पानीपत के तृतीय युद्ध के कारण ( panipat ke tritiya yuddh ke karan ) : पानीपत का तृतीय युद्ध 14 जनवरी, वर्ष 1761 को पानीपत नामक स्थान पर लड़ा गया। पानीपत दिल्ली से लगभग 95.5 किमी की दूरी में स्थित है। पानीपत का युद्ध और अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली जिन्हें शाह दुर्रानी के नाम से भी जाना जाता था, के मध्य लड़ा गया था।
इस युद्ध में अहमद शाह अब्दाली का साथ दोआब के रोहिला अफगान और अवध के नवाब शुजा-उद-दौला ने दिया था। पानीपत के तृतीय युद्ध को 18वीं शताब्दी का सबसे बड़ा युद्ध माना जाता था क्योंकि इस युद्ध में दो सेनाओं के मध्य लड़ने वाले सैनिकों की सबसे ज्यादा मृत्यु हुई थी। पानीपत के तृतीय युद्ध एक लंबे समय तक चलने वाला युद्ध था, जिसमें मराठों की हार हुई, और अहमदशाह दुर्रानी की जीत हुई।
पानीपत के तृतीय युद्ध का समय का समय था, इस युद्ध में मराठों की हार हुई और हार को न सह पाने की वजह से वर्ष 1761 में बालाजी की मृत्यु हो गई।
पानीपत के तृतीय युद्ध के कारण -
दत्ताजी सिंधिया की हत्या -
दत्ताजी सिंधिया की हत्या पानीपत के तृतीय युद्ध का प्रमुख कारण रही। वर्ष 1760 के युद्ध में पंजाब में दत्ताजी सिंधियां की मृत्यु हो गई, जिसका परिणाम यह हुआ की मराठों द्वारा अपनी विशाल सेना अब्दाली पर आक्रमण करने और उनसे बदला लेने के लिए भेजी, जिसने पानीपत के तृतीय युद्ध को जन्म दिया।
मराठों की नीति -
दिल्ली का सम्राट निर्बल था, परन्तु फिर भी उसने अपने सूबेदारों को मराठों के खिलाफ भड़काकर उन्हें लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया, जिसका परिणाम यह रहा की दिल्ली सम्राट पर मराठों ने आक्रमण कर उसे पहले से भी ज्यादा कमजोर बना दिया। अतः मुगल सम्राट इस स्थिति को स्वीकार नहीं कर पाया और उसे अहमदशाह का आक्रमण स्वर्ण अवसर लगा इसी का परिणाम ही पानीपत के तृतीय युद्ध का कारण रहा।
मराठा राजपूत शत्रुता -
मराठों द्वारा दिल्ली को पराजित किए जाने के पश्चात उन्होंने राजपूतों की आंतरिक समस्याओं में हस्तक्षेप करना शुरू किया। उन्होंने उनसे चौथ और सरदेशमुख कर वसूल किए । इन्हीं संघर्षों ने भारत की एकता को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो पानीपत के तृतीय युद्ध का प्रमुख कारण रहा।
धर्मान्ध मुस्लिम राज्य द्वारा अत्याचार -
भारत में कट्टर इस्लामी द्वारा अपने शासन में धर्मान्ध अत्याचारों के माध्यम से न केवल हिन्दुओं पर बल्कि शिया मुस्लिमों पर भी अत्याचार किए। इन अत्याचारों का प्रभाव सर्वाधिक उत्तर भारत के क्षेत्रों में देखने को मिला। अंततः भारतीयों की संघर्ष की क्षमता कम हो गई और उन्होंने युद्ध के समय दिल्ली सरकार का साथ नहीं दिया।
नादिरशाह और अहमदशाह के अत्याचार -
वर्ष 1739 में नादिरशाह ने मुगल सम्राट पर आक्रमण कर दिया। उसने सम्राट के सैनिकों, राजनीतिक और आर्थिक शक्तियों के साथ सम्पूर्ण नागरिकों को भी रोंद कर रख दिया था। जिसमें कई सूबेदार सम्राट से शक्तिशाली थे। यही कारण था की मराठों ने सम्राट को अपने अधीन करने का प्रयास किया। नादिरशाह के पश्चात अफगानिस्तान का शासक अहमदशाह अब्दाली बना जिसने मुगल शक्ति पर आक्रमण करके संपूर्ण मुग़ल साम्राज्य के जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया।
पंजाब की समस्याएं -
वर्ष 1759-60 में मराठों द्वारा पंजाब को जीत लिया गया और अहमद शाह ने सबसे पहले पंजाब पर आक्रमण कर दिया। इन परिस्थितियों के कारण मराठों और अहमदशाह के मध्य युद्ध होना स्वाभाविक था। अतः 1 नवंबर 1760 को अहमदशाह और मराठों की सेनाएँ पानीपत के मैदान में युद्ध के लिए उतर आई।
सूरजमल जाट द्वारा दी गई चुनौती -
अहमदशाह द्वारा सूरजमल जाट से भेंट मांगने पर सूरजमल ने अहमदशाह को यह कहकर ललकारा की आप उत्तर भारत से मराठों को भगाकर अपनी वीरता दिखाएँ और खुद को शासक सिद्ध करें, तभी वे उनको भेंट दे सकेंगे। अतः इस चुनौती ने अहमदशाह को युद्ध करने के लिए मजबूर कर दिया जिससे उन्हें मराठों से युद्ध लड़ना पड़ा।
ये सभी महत्वपूर्ण कारण थे जिनकी वजह से पानीपत के तृतीय युद्ध का आरम्भ हुआ। पानीपत के सभी युद्धों - , , इन सभी युद्धों के होने का कारण पानीपत शहर कभी नहीं रहा वह केवल एक स्थान था जहाँ ये सभी युद्ध लड़े गए थे।