चार्टर एक्ट 1833 -
1813 के चार्टर अधिनियम के पश्चात, भारत में कम्पनी के साम्राज्य में काफी वृद्धि हुई, जिस पर समुचित नियन्त्रण स्थापित करने के लिए ब्रिटिश संसद ने 1814, 1823 तथा 1829 में अधिनियम द्वारा कम्पनी को कुछ अधिकार प्रदान किया, किन्तु ये अधिनियम वांछित सफलता न दे सके। अतः 1833 में तीसरा चार्टर अधिनियम पारित किया गया।
1833 के चार्टर एक्ट पर इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति, उदारवादी नीतियों का क्रियान्वयन तथा लेसेज फेयर के सिद्धान्त की छाप थी। 1833 के चार्टर एक्ट पर ब्रिटिश प्रधानमंत्री ग्रे, बोर्ड ऑफ कंट्रोल के सचिव लार्ड मैकाले तथा विचारक जेम्स मिल, मैकाले बेन्थम का प्रभाव था।
इंग्लैण्ड की औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप उत्पादित सामग्री की मात्रा काफी बढ़ गई थी। इस उत्पादित सामग्री को खपाने के लिए एक बाजार की आवश्यकता थी। साथ ही कच्चे माल की भी मांग बढ़ गयी या आवश्यकता हुई। इसलिए इंग्लैण्ड में मुक्त व्यापार नीति के आधार पर बङी मात्रा में उत्पादित माल हेतु बाजार के रूप में भारत जैसे बङे देश की आवश्यकता थी।
इन्हीं कारणों से ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने अपने व्यापारिक अधिकारों को बढ़ाने के लिए ब्रिटिश संसद से मांग की थी। इनकी मांग के परिणामस्वरूप ही चार्टर एक्ट 1833 (Charter Act 1833) बना था।
ब्रिटिश भारत के केन्द्रीयकरण की दिशा में यह कानून निर्णायक कदम था। ब्रिटिश संसद के इस अधिनियम द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को अगले बीस वर्षों तक भारत पर शासन करने का अधिकार प्रदान कर दिया गया।
चार्टर एक्ट 1833 को भारत सरकार अधिनियम 1833 या सेंट हेलेना अधिनियम 1833 कहा गया। सेंट हेलेना एक द्वीप है (दक्षिण अटलांटिक महाद्वीप में ज्वालामुखी निर्मित द्वीप है।)। इस सेंट हेलेना द्वीप का अंग्रेजों के लिए सामरिक महत्त्व था। यूरोप से व्यापार करने के लिए एशिया और दक्षिणी अफ्रीका से जो जहाज जाते थे उनकी दृष्टि से देखा जाये तो इसका बङा महत्त्व था। इस अधिनियम के तहत सेंट हेलेना द्वीप को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी से ब्रिटिश क्राउन को हस्तान्तरित कर दिया। इसलिए इसे ’सेंट हेलेना एक्ट’ के नाम से जाना जाता है।
1833 का चार्टर एक्ट ब्रिटिश संसद द्वारा 23 अगस्त, 1833 ई. में पारित किया गया।
चार्टर एक्ट 1833 क्या है -
चार्टर एक्ट 1833 ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किया गया एक कानून है जिसके तहत ब्रिटिश भूमि आधिकार व्यवस्था को संशोधित किया गया। यह चार्टर एक्ट भारतीय कंपनी को उसके शासनादिकारों को और विशेषतः अन्यायपूर्ण आचारों को संशोधित करने की अनुमति देता है। इस अधिनियम के माध्यम से ब्रिटिश सरकार ने भारतीय कंपनी को विशेष अधिकार और प्राधिकार देने का प्रावधान किया, जिससे कंपनी को भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापार और शासन के लिए विशेष स्थान प्राप्त हुआ। चार्टर एक्ट 1833 भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और इसे ब्रिटिश साम्राज्यवाद की एक महत्वपूर्ण पहलू के रूप में माना जाता है।
सन् 1833 ई. में ब्रिटिश सरकार द्वारा कम्पनी के नाम एक और अधिकार पत्र जारी किया गया, जिसको सन् 1833 का चार्टर एक्ट कहा जाता है। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने अपने व्यापारिक अधिकारों को बढ़ाने के लिए ब्रिटिश संसद से मांग की थी। इनकी मांग के परिणामस्वरूप ही ब्रिटिश संसद ने चार्टर एक्ट 1833 (Charter Act 1833) बनाया।
1833 के चार्टर एक्ट के मुख्य प्रावधान -
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भारतीय कंपनी के शासन में संशोधन: चार्टर एक्ट 1833 ने भारतीय कंपनी के शासन को संशोधित किया। इसमें कंपनी को नए अधिकार और प्राधिकार प्राप्त हुए और इसे एक ब्रिटिश आपातकालीन सरकार के अधीन रखा गया।
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नयी न्यायपालिका की स्थापना: चार्टर एक्ट 1833 ने एक नई न्यायपालिका की स्थापना की, जिससे न्यायिक प्रणाली को सुधारा गया। नए न्यायाधीशों के नियुक्ति, न्यायालयों की संरचना और कार्यकाल की सीमा जैसे मुद्दों पर ध्यान दिया गया।
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शिक्षा के प्रशासनिक बदलाव: चार्टर एक्ट 1833 ने शिक्षा के क्षेत्र में भी प्रशासनिक बदलाव किए। इसमें एक नई शिक्षा प्रणाली की स्थापना हुई और अंग्रेजी भाषा को मुख्य शिक्षा का माध्यम बनाया गया।
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अंग्रेजी का प्रचार और प्रसार: चार्टर एक्ट 1833 ने अंग्रेजी भाषा को बढ़ावा दिया और इसका प्रचार और प्रसार किया। इससे भारतीय जनता में अंग्रेजी शिक्षा और संस्कृति का प्रभाव बढ़ा और अंग्रेजी का उपयोग आधिकारिक भाषा के रूप में होने लगा।
- भारतीय प्रदेशों तथा राजस्व पर कम्पनी का अधिकार 20 वर्षों के लिए पुनः बढ़ा दिया गया। कम्पनी को एक ट्रस्टी के रूप में प्रतिष्ठित किया गया।
- चार्टर एक्ट 1833 (Charter Act 1833) द्वारा कंपनी के अधीन क्षेत्रों व भारत के उपनिवेशीकरण को वैधता प्रदान कर दी गयी।
- अब तक गवर्नर जनरल को ’बंगाल का गवर्नर जनरल’ कहते थे, लेकिन इस एक्ट के द्वारा उसी गवर्नर जनरल को ’सम्पूर्ण ब्रिटिश भारत का गवर्नर जनरल’ बना दिया गया। बहुल कार्यपालिका यथावत (4 सदस्य नया विधि सदस्य) बंगाल परिषद के सदस्यों में से एक डिप्टी गवर्नर, सपरिषद गवर्नर जनरल का आगरा, बम्बई व मद्रास प्रेसीडेंसियों पर पूर्ण नियंत्रण, संपूर्ण शक्तियां सपरिषद गवर्नर जनरल में समाहित की गई।
- बंगाल, मद्रास, प्रेसीडेंसियों पर पूर्ण नियंत्रण, संपूर्ण शक्तियां सपरिषद गवर्नर जनरल में समाहित की गई। बंगाल, मद्रास, बम्बई प्रेसीडेंसियों को विधायी शक्तियां समाप्त कर दी गई। केन्द्रीय विधान परिषद का निर्माण (सदस्य सपरिषद गवर्नर जनरल) किया गया।
- गवर्नर जनरल में सभी नागरिक और सैन्य शक्तियाँ निहित थीं। इस प्रकार कानून ने पहली बार ऐसी सरकार का निर्माण किया जिसे ब्रिटिश कब्जे वाले संपूर्ण भारतीय क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण था। इस प्रकार इस राजलेख द्वारा देश की शासन प्रणाली का केन्द्रीकरण कर दिया गया।
- 1833 का चार्टर एक्ट भारतीय गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक के समय भारत में लागू किया गया। बंगाल के गवर्नर जनरल को अब से संपूर्ण भारत का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा। ’’लार्ड विलियम बैंटिक संपूर्ण भारत का पहला गवर्नर जनरल बना।’’
- इस कानून ने मद्रास और बंबई के गवर्नरों को विधायिका की शक्ति से वंचित कर दिया। भारत के गवर्नर जनरल की शक्ति से वंचित कर दिया। सपरिषद गवर्नर जनरल को पूरे भारत के लिए कानून बनाने का अधिकार प्रदान किया गया, किन्तु बोर्ड ऑफ कण्ट्रोल इस कानून को अस्वीकृत कर स्वयं कानून बना सकता था। भारत के गवर्नर जनरल को पूरे ब्रिटिश भारत में विधायिका की शक्ति दे दी गई।
- इसके अंतर्गत पहले बनाए गए कानूनों को नियमितकरण कानून कहा गया और नए कानून के तहत बने कानूनों को ’एक्ट या अधिनियम’ कहा गया। ज्ञातव्य है कि इसके पूर्व निर्मित विधियों को ’नियामक कानून’ कहा जाता था।
- भारतीय कानूनों को लिपिबद्ध करने, संचलित करने, संहिताबद्ध करने तथा उसमें सुधार करने के लिए एक विधि आयोग का गठन किया गया।
- किन्तु यह निश्चित किया गया कि भारतीय प्रदेशों का प्रशासन अब ब्रिटिश सम्राट के नाम से किया जायेगा।
- गवर्नर जनरल की परिषद् के सदस्यों की संख्या 1784 में पिट्स इंडिया एक्ट द्वारा घटाकर 3 कर दी गयी लेकिन 1833 एक्ट में वापस उन सदस्यों की संख्या 4 कर दी गयी। ’लार्ड मैकाले’ की अध्यक्षता में ’विधि आयोग’ का निर्माण (1834) कर पूर्व प्रचलित कानूनों का संहिताकरण किया गया।
- पहली बार विधायी कार्यों को अलग करने से गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद् में चार सदस्यीय ’विधि सदस्य’ मनोनीत किया गया। इसका चौथा सदस्य ’लार्ड मैकाले’ को चुना गया। विधि सदस्य केवल परिषद की बैठकों में भाग लेने का अधिकार था, मतदान का नहीं।
- विधि आयोग की रिपोर्ट के आधार पर 1837 में ‘इण्डियन पेनल कोड’ का प्रलेख तैयार किया गया। जिसने बाद में संशोधित होकर 1860 में कानून का रूप धारण कर लिया।
- ईस्ट इण्डिया कम्पनी का नाम बदलकर ’कम्पनी ऑफ मर्चेट्स ऑफ इण्डिया’ कर दिया गया।
- गवर्नर जनरल की परिषद को राजस्व के सम्बन्ध में पूर्ण अधिकार प्रदान किये गये। इस अधिनियम से केन्द्रीय राजकोष का निर्माण किया गया। राजस्व संग्रहण प्रेसीडेंसियों की बजाय केन्द्र द्वारा (सपरिषद गवर्नर जनरल) लिया जाएगा। प्रेसीडेंसियों के व्यय आदि का भार केन्द्रीय राजकोष से किया जाएगा।
- राजस्व वसूली केन्द्र द्वारा की जाएगी। यह वित्तीय विकेन्द्रीकरण को प्रदर्शित करता है। गवर्नर जनरल को सम्पूर्ण देश के लिए एक ही बजट तैयार करने का अधिकार दिया गया।
- सभी कर गवर्नर जनरल की आज्ञा से ही लगाये जाने थे और उसे ही इसके व्यय का अधिकार दिया गया।
- भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की सीमा बढ़ा दिये जाने के कारण गवर्नर जनरल को सभी प्रकार के अधिकार दिये गये।
- प्रान्तों के गवर्नरों को, गवर्नर जनरल की आज्ञा का पालन करना अनिवार्य कर दिया गया।
- गवर्नर जनरल तथा गवर्नरों को अपनी कौंसिल के निर्णय को बदलने का भी अधिकार दिया गया।
- भारत के गवर्नर जनरल को यह अधिकार प्रदान कर दिया गया कि वह समाज में प्रचलित समस्त बुराइयों को दूर करने के लिये सामाजिक अधिनियम का निर्माण करें।
- इस एक्ट के द्वारा पहली बार सिविल सेवकों के चयन के लिए खुली प्रतियोगिता का आयोजन करने का प्रयास किया गया। भारतीयों को किसी पद कार्यालय और रोजगार को हासिल करने से नहीं रोक जाएगा। किन्तु बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की असहमति के कारण लागू नहीं हो सका।
- ईस्ट इंडिया कम्पनी के व्यापारिक अधिकार तथा चाय के साथ व्यापारिक एकाधिकार समाप्त कर दिए गए। कम्पनी की समस्त सम्पत्ति को एक न्यास के रूप में स्थापित कर उसे क्राउन का न्यासी बनाया। भविष्य में राजनीतिक मामलों को देखने के लिए कम्पनी को क्राउन का एक राजनीतिक चार्टर बनाया। कम्पनी को प्रशासनिक एवं राजनैतिक दायित्व सौंपा गया। कम्पनी को विशुद्ध राजनीतिक संस्था के रूप में परिवर्तित कर दिया गया।
- कानूनी तौर पर ईस्ट इंडिया कंपनी की एक व्यापारिक निकाय के रूप में की जाने वाली गतिविधियों को समाप्त कर दिया गया। अब यह विशुद्ध रूप से प्रशासनिक निकाय बन गया। इसके तहत कंपनी के कब्जे वाले क्षेत्र ब्रिटिश राजशाही और उसके उत्तराधिकारियों के विश्वास के तहत ही कब्जे में रह गए। इस अधिनियम ने कम्पनी के डायरेक्टरों के संरक्षण को कम किया।
- चार्टर एक्ट 1833 (Charter Act 1833) ने नौकरशाहों के चुनाव के लिए खुली प्रतियोगिता का आयोजन शुरू करने का प्रयास किया। इसमें कहा गया कि कंपनी में भारतीयों को किसी पद, कार्यालय और रोजगार हासिल करने से न रोका जाए। हालांकि निदेशकों के समूह के विरोध के कारण इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया।
- 1833 के चार्टर एक्ट के द्वारा भारत में ’दास प्रथा’ को विधि विरुद्ध घोषित कर दिया गया तथा अन्ततः 1843 में दास प्रथा को लार्ड एलनबरो के समय में ’दास प्रथा उन्मूलन एक्ट’ लाया गया था। दासता को अवैध घोषित कर दासों की दशा में सुधार की बात की गई। 1833 एक्ट के तहत ब्रिटेन में मानव अधिकार, मुक्त व्यापार और प्रेस की स्वतंत्रता जैसे सुधारों का प्रारंभ भी हुआ।
- इस अधिनियम में भारतीयों के प्रति जाति-धर्म आदि के भेदभाव को समाप्त कर दिये जाने की बात कही गई। अधिनियम की धारा-87 के तहत कम्पनी के अधीन सरकारी पदों के चयन में किसी व्यक्ति को धर्म, जन्मस्थान, मूलवंश या रंग के आधार पर अयोग्य न ठहराये जाने का उपबन्ध किया गया। लेकिन कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स के विरोध के कारण इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया।
- इस एक्ट के द्वारा यूरोपियनों को भारत भ्रमण की अनुमति दे दी गई। अंग्रेजों को बिना अनुमति-पत्र के ही भारत आने तथा रहने की आज्ञा दे दी गई। वे भारत में भूमि की खरीद सकते थे।
- इस चार्टर कानून ने कम्पनी के भारतीय क्षेत्रों में ईसाई पादरियों को भी प्रवेश करने की अनुमति दे दी तथा भारतीय प्रशासन में एक धार्मिक विभाग जोङ दिया।
चार्टर एक्ट 1833 का महत्त्व -
चार्टर एक्ट 1833 का महत्त्व भारतीय इतिहास में बहुत अधिक है। यह एक महत्वपूर्ण कदम था जिसने भारतीय भूमि आधिकार को संशोधित किया और उसे एक ब्रिटिश आपातकालीन सरकार के अधीन रख दिया। इस एक्ट ने भारतीय कंपनी को नियंत्रित करने के लिए नई प्रणाली स्थापित की, जिससे अधिकारी और सामरिक तंत्र को बढ़ावा मिला। चार्टर एक्ट 1833 ने भारतीय साम्राज्य की व्यवस्था को सुधारा, न्यायपालिका को बल मिला और नई कानूनी व्यवस्था की स्थापना की। इसके पश्चात भारतीय साम्राज्य में ब्रिटिश कंपनी का प्रभाव बढ़ा और उसके शासनादिकारों ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में नए प्रशासनिक और न्यायिक बदलाव किए। इस प्रकार, चार्टर एक्ट 1833 ने भारतीय इतिहास के नए युग की शुरुआत की और ब्रिटिश साम्राज्यवाद की मजबूती को स्थापित किया।
- भारत से कम्पनी के व्यापारिक दृष्टिकोण के द्वारा समाप्त कर दिया गया।
- भारत में संविधान निर्माण का आंशिक संकेत दृष्टिगोचर होता है।
- इस एक्ट द्वारा भारत में विधि निर्माण की नींव पङी।
- भारत में कम्पनी के प्रशासनिक कार्यों का श्रीगणेश इसी एक्ट द्वारा हुआ।
- यह एक्ट एक प्रकार से कम्पनी के व्यापार से शासन में परिवर्तन का सूचक है।
- गवर्नर जनरल द्वारा भारत में न्याय व व्यवस्था के पुनर्निर्माण करने के लिए विधि आयोग का गठन किया गया।
- भारत में सरकार का वित्तीय, विधायी व प्रशासनिक रूप से केन्द्रीयकरण करने का प्रयास किया गया। धीरे-धीरे भारत में केंद्रीकृत शासन व्यवस्था का आरम्भ हुआ। इसे भारत का ब्रिटिश शासन में केन्द्रीकरण की दिशा में निर्णायक कदम माना जाता है।
- इस एक्ट से पूर्व भारतीयों को घृणा की दृष्टि से देखा जाता था, लेकिन इस एक्ट द्वारा भारतीयों में जाति, रंग, धर्म आदि के भेदभाव को समाप्त कर दिया गया। इस एक्ट में यह व्यवस्था की गई कि भारतवासियों को उनकी योग्यतानुसार नौकरी प्रदान की जाए। ब्रिटिश भारत के अधीन सभी नागरिकों को बराबरी पर लाने का यह प्रथम प्रयास कहा जा सकता है।
चार्टर एक्ट 1833 का निष्कर्ष –
चार्टर एक्ट 1833 के निष्कर्ष में इसका महत्वपूर्ण स्थान है कि यह एक महत्वपूर्ण कदम था जिसने ब्रिटिश भूमि आधिकार को संशोधित किया। इस अधिनियम द्वारा भारतीय कंपनी को विशेष अधिकार और प्राधिकार प्राप्त हुए, जिससे उसकी शासन प्रणाली में संशोधन हुआ। यह एक परिवर्तनकारी कदम था जो ब्रिटिश साम्राज्यवाद की नींव रखने में मदद करने के साथ-साथ भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण परिवर्तनों का भी कारण बना। इससे पता चलता है कि चार्टर एक्ट 1833 ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण युगानुक्रम की शुरुआत की और इसके पश्चात ब्रिटिश सरकार ने भारतीय साम्राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया।
कम्पनी की गतिविधियों को नियन्त्रित करने हेतु किए गए प्रयासों में सर्वाधिक विस्तृत व प्रभावी प्रावधान चार्टर एक्ट 1833 (Charter Act 1833) में किये गये। इस एक्ट द्वारा कम्पनी ने 20 वर्षो के लिए और अपने व्यापारिक अधिकार बढ़ा लिये। भारत में संविधान निर्माण का आंशिक संकेत इस चार्टर में दिखाई देता है।
चार्टर एक्ट 1833 से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण प्रश्न -
1. बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल कब से कहा जाने लगा ?
उत्तर – चार्टर एक्ट 1833
2. चार्टर एक्ट 1833 को और किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर – सेंट हेलेना एक्ट 1833, भारत शासन अधिनियम 1833
3. चार्टर एक्ट 1833 के द्वारा कार्यकारिणी परिषद के विधि का चैथे सदस्य किसे नियुक्त किया गया ?
उत्तर – लार्ड मैकाले।
4. सम्पूर्ण भारत का प्रथम गवर्नर जनरल कौन बना ?
उत्तर – लार्ड विलियम बैंटिक।
5. भारत में दास प्रथा को कब गैर-कानूनी घोषित किया गया ?
उत्तर – चार्टर एक्ट 1833 में।
6. गवर्नर जनरल काउंसिल के सदस्यों की संख्या फिर से बढ़ाकर कितने सदस्य कर दी गई, जिसे पिट्स इंडिया एक्ट 1784 के तहत कम कर दिया था ?
उत्तर – 4 सदस्य।
7. भारत का पहला विधि आयोग 1833 के चार्टर अधिनियम के तहत स्थापित किया गया था इसके अध्यक्ष किसको बनाया गया ?
उत्तर – लार्ड मैकाले।
8. 1833 के चार्टर एक्ट पर किन-किन व्यक्तियों का प्रभाव था ?
उत्तर – ब्रिटिश प्रधानमंत्री ग्रे, बोर्ड ऑफ कंट्रोल के सचिव लार्ड मैकाले तथा विचारक जेम्स मिल, मैकाले बेन्थम का प्रभाव था।
9. चार्टर एक्ट 1833 कब पारित किया गया ?
उत्तर – यह एक्ट ब्रिटिश संसद द्वारा 23 अगस्त, 1833 ई. में पारित किया गया।
10. भारतीय प्रदेशों तथा राजस्व पर कम्पनी का अधिकार कितने वर्षों के लिए पुनः बढ़ा दिया गया ?
उत्तर – 20 वर्षों के लिए
11. किस एक्ट के द्वारा पहली बार सिविल सेवकों के चयन के लिए खुली प्रतियोगिता का आयोजन करने का प्रयास किया गया ?
उत्तर – चार्टर एक्ट 1833 के द्वारा।
12. किस एक्ट के द्वारा भारत में ’दास प्रथा’ को विधि विरुद्ध घोषित कर दिया गया ?
उत्तर – चार्टर एक्ट 1833 के द्वारा।
13. ’दास प्रथा उन्मूलन’ एक्ट कब लाया गया ?
उत्तर – 1843 में लार्ड एलनबरो के समय में।
14. किस चार्टर कानून ने कम्पनी के भारतीय क्षेत्रों में ईसाई पादरियों को भी प्रवेश करने की अनुमति दे दी ?
उत्तर – चार्टर एक्ट 1833 ने।
15. किस एक्ट के द्वारा कम्पनी के व्यापारिक अधिकार तथा चाय के साथ व्यापारिक एकाधिकार समाप्त कर दिए गए ?
उत्तर – चार्टर एक्ट 1833 के द्वारा।