1596ई. मे डच नागरिक देहस्तमान पहली बार भारत आया था। 20 मार्च 1602ई. को डच ईस्ट इण्डिया कंपनी की स्थापना हुई ।डचो ने अपने कारखाने मुसलीपट्टनम (1605ई.) पुलीकट (1610ई.), सूरत (1616ई.) करिकल (1645ई.) चिन्सुरा (1659र्इ.) एवं कोचीन (1663ई.) मे स्थापित किये। 17वीं श्ताब्दी मे भारत मे मसाले के व्यापार मे उनका एकाधिकार हो गया। औरंगजेब द्वारा गोलकुंडा पर अधिकार कर लेने से पूर्वी किनारे पर डचों के व्यापार को धक्का लगा। शिवाजी की सूरत लूट (1664ई.) मे भी उन्हे क्षति उठानी पडी। 1759ई. मे वेदारा के युध्द मे अंग्रेजो ने डचों को बुरी तरह से पराजित किया।
पुलीकट मे डचों की फैक्ट्री का नाम ग्रेल्डिया था।
पुलीकट से डच पैगोडा नामक स्वर्ण सिक्के जारी करते थे।
मछलीपत्तनम से डच लोग नील का निर्यात करते थे। उसके बाद बालासो मे स्थापित की। डचों ने बंगाल मे चिनसूरा मे गुस्तावुल नामक किला बनवाया।
डेनमार्क
डेनिश व्यापारियों ने तंजौर जिले के ट्रेकोवार मे अपना उपनिवेश स्थापित किया। 1616ई. मे उन्होने सेरामपुर पर अधिकार कर इसे अपना मुख्यालय बनाया। इन्होने 1854ई. मे अपने भारतीय उपनिवेश अंग्रेजों को बेच दिये।