वैश्वीकरण | भूमंडलीकरण क्या है – Globalization Meaning in Hindi

  Last Update - 2023-06-07

वैश्वीकरण क्या है -

  • वैश्वीकरण अंग्रेजी शब्द Globalization (ग्लोबलाइजेशन) का हिन्दी रूपान्तरण है, जिसे भूमंडलीकरण भी कहा जाता है।
  • ग्लोबलाइजेशन शब्द की सर्वप्रथम चर्चा जान नेसविर की पुस्तक से मिलती है।
  • ग्लोबलाईजेशन (1998) समाजशास्त्री मेलकाॅम वाटर्स द्वारा लिखित पुस्तक है।
  • वैश्वीकरण दो शब्दों से मिलकर बना है विश्व + एकीकरण इन दो शब्दों में विश्व का मतलब है पृथ्वी पर मौजूद विभिन्न देश तथा एकीकरण का मतलब है आपसी सहयोग और एक छत के नीचे आकर एक दूसरे की मदद करना।

वैश्वीकरण का अर्थ -

किसी वस्तु, सेवा, विचार पद्धति, पूँजी, बौद्धिक सम्पदा अथवा सिद्धान्त को विश्वव्यापी करना अर्थात् विश्व के प्रत्येक देश का अन्य देशों के साथ अप्रतिबन्धित आदान-प्रदान करना।

वैश्वीकरण/भूमंडलीकरण से आप क्या समझते हैं -

वैश्वीकरण (Globalization) विभिन्न देशों के लोगों, कंपनियों और सरकारों के बीच बातचीत और एकीकरण की प्रक्रिया है। वैश्वीकरण में संपूर्ण विश्व को एक बाजार का रूप प्रदान किया जाता है। वैश्वीकरण से आशय विश्व अर्थव्यवस्था में आये खुलेपन, बढ़ती हुई आत्मनिर्भरता तथा आर्थिक एकीकरण के फैलाव से है। इसके अंतर्गत विश्व बाजारों के मध्य पारस्परिक निर्भरता उत्पन्न होती है।

व्यवसाय देश की सीमाओं को पार करके विश्वव्यापी रूप धारण कर लेते हैं। वैश्वीकरण के द्वारा ऐसे प्रयास किए जाते है। कि विश्व के सभी देश व्यवसाय एवं उद्योग के क्षेत्र में एक दूसरे के साथ सहयोग एवं समन्वय स्थापित करें। एक व्यक्तिगत स्तर पर, वैश्वीकरण जीवन के मानक और जीवन की गुणवत्ता दोनों को प्रभावित करता है। व्यवसाय स्तर पर, वैश्वीकरण संगठन के उत्पादन जीवन चक्र और संगठन की बैलेंस शीट को प्रभावित करता है। वैश्वीकरण के समर्थकों में जगदीश भगवती का नाम प्रमुख है।

वैश्वीकरण/भूमंडलीकरण किसे कहते हैं -

देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करना ही वैश्वीकरण (Globalization) कहलाता है। स्थानीय या क्षेत्रीय वस्तुओं या घटनाओं का विश्व स्तर पर रूपांतरण होने की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण (Globalization) है।

एक अवधारणा के रूप में वैश्वीकरण की बुनियादी बात है - प्रवाह।

वैश्वीकरण में प्रवाह निम्न प्रकार के होते हैं -

  • विश्व के एक हिस्से के विचारों का दूसरे हिस्सों में पहुँचना।
  • पूँजी का एक से ज्यादा जगहों पर सुगमतापूर्वक जाना।
  • वस्तुओं का कई देशों में निर्बाध रूप से पहुँचना।
  • व्यापार और बेहतर आजीविका की तलाश में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में लोगों की सुगम आवाजाही।

अतः वैश्वीकरण से विश्वव्यापी पारस्परिक जुङाव होता है जो ऐसे प्रवाहों की निरंतरता से पैदा होता है। वैश्वीकरण दुनिया को कुछ सूचनाओं और तकनीक के माध्यम से जोङने वाली प्रक्रिया मात्र ही नहीं है अपितु यह एक अन्तरराष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सूत्र में बाँधने वाली प्रक्रिया भी है।

वैश्वीकरण/भूमंडलीकरण की परिभाषा -

प्रो.एस.के. दुबे के अनुसार, वैश्वीकरण के अंतर्गत वे सभी शैक्षिक, सामाजिक एवं आर्थिक क्रियाएँ आती है, जो मानव कल्याण से संबंधित होती है।

प्रो. के मनस्वी के अनुसार, उदारीकरण आर्थिक विकास एवं निजीकरण के सामंजस्य की विश्वस्तरीय प्रक्रिया को वैश्वीकरण कहते हैं।

प्रो. टी. राघवन के अनुसार, विश्व की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक एवं मानवीय समस्याओं का समाधान जब विश्व के एक वैचारिक मंच पर होती है, तब वैश्वीकरण का संकेत मिलता है।

श्रीमती राजकुमारी शर्मा के अनुसार, वैज्ञानिक प्रगति, आर्थिक समानता एवं मानव कल्याण के लिए किए गए विश्वस्तरीय प्रयास वैश्वीकरण की परिधि में आते है।

प्रो. दीपक नैय्यर के अनुसार, आर्थिक क्रियाओं का किसी देश की राजनैतिक सीमाओं के बाहर तक विस्तार करने को वैश्वीकरण कहते हैं।

गिडेन्स के अनुसार, विभिन्न लोगों और दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों के बीच में बढ़ती हुई अन्योन्याश्रिता या पारस्परिकता ही वैश्वीकरण है।

डाॅ. विमल जालान के शब्दों में, वैश्वीकरण शब्द का प्रयोग कई अर्थों में हुआ है। एक अर्थ तो शाब्दिक है कि अब राष्ट्र में भौगोलिक दूरी व्यर्थ हो चुकी है। दुनिया काफी छोटी हो चुकी है और कोई भी देश अपना नुकसान करके ही शेष दुनिया से अलग-थलग रह सकता है। वैश्वीकरण का दूसरा अर्थ ठीक उलटा लिया जा रहा है। इसके अनुसार यह देसी हितों के स्थान पर दूसरे देशों और बहुराष्ट्रीय नियमों के हितों को ऊपर रखने वाले नीतिगत परिवर्तन का नाम है।

शब्दकोश के अनुसार, भूमंडलीकरण राष्ट्रों के बीच आर्थिक अन्तर्निभरता बढ़ाने वाली वह प्रक्रिया है जो उत्पादों व सेवाओं के सीमापार विनिमय, मुक्त अन्तर्राष्ट्रीय पूँजी प्रवाह तथा व्यापक स्तर पर प्रौद्योगिक के विसरण को निर्देशित करती है। वैश्वीकरण के लिए आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया को आधार बनाया गया है।

आर्थिक उदारीकरण का तात्पर्य आर्थिक नीतियों एवं प्रक्रियाओं के सरलीकरण से है। भारत में आर्थिक उदारीकरण व वैश्वीकरण की प्रक्रिया 1991 में प्रारम्भ की गई थी। इसका जनक मनमोहनसिंह को माना जाता है।

वैश्वीकरण का जनक कौन है -

  • सन् 1992 में समाजशास्त्री राॅबर्टसन ने वैश्वीकरण (Globalization) का प्रयोग समाजशास्त्र में किया था। इसलिए समाजशास्त्री राॅबर्टसन को वैश्वीकरण का जनक माना जाता है।
  • वैश्वीकरण की व्याख्या में समाजशास्त्री गिलपिन ने राजनीतिक कारकों को प्रमुखता दी है।
  • आधुनिक समाजशास्त्री एंथोनी गिडेन्स का वैश्वीकरण के सैद्धान्तीकरण में महत्त्वपूर्ण योगदान है।

वैश्वीकरण के मुख्य अंग कितने हैं -

वैश्वीकरण के चार अंग है-

  1. सामाजिक व आर्थिक संबंधों का विश्वभर में विस्तार।
  2. अर्थव्यवस्था में खुलापन लाना (मुक्त बाजार का सिद्धान्त)।
  3. सूचना प्रौद्योगिकी व इलेक्ट्राॅनिक मीडिया इसका कारण है। जिससे संपूर्ण विश्व वैश्विक गाँव (ग्लोबल विलेज) में बदल गया।
  4. श्रम, पूंजी व तकनीक का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वतंत्र प्रवाह होता है।

वैश्वीकरण का इतिहास -

वैश्वीकरण कोई आज की प्रक्रिया नहीं यह प्रक्रिया चक्रवर्ती सम्राटों के काल की है। प्राचीन काल में राजा के काल में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार होते थे और एक देश से दूसरे देश पर व्यापार होता था। यह वैश्वीकरण की प्रक्रिया प्राचीनकाल से चली आ रही है।

वैश्वीकरण की इस प्रक्रिया को हम कुछ उदाहरण द्वारा देख सकते है -

  • ईसा पूर्व 3000 साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता और सुमेरियन सभ्यता के बीच व्यापारिक संबंध रहे थे।
  • ईसा की पहली शताब्दी में चीन के हान राजवंश के एशिया तथा यूरोपीय देशों के साथ व्यापारिक संबंध थे।
  • भारत के व्यापारिक संबंध हजारों सालों से पूर्वी और पश्चिमी समुद्र पार देशों से चल रहे हैं।
  • गुप्त काल तक सहारा मध्य एशिया बौद्ध संस्कृति के प्रभाव में है। इस काल में यूनान, मिस्र, रोम, ईरान और अब सीरिया और श्रीलंका से भारत का निर्बाध व्यापार होने लगा था। पूरब की ओर भारत के जहाज कंबोडिया, स्याम, सुमात्रा, मलाया तथा चीन तक जाते थे।
  • मध्यकाल में इस्लाम का उदय और विस्तार हुआ था तथा यहूदी और मुस्लिम व्यापारी दुनिया के विभिन्न भागों व्यापार के लिए गये थे।
  • 17 वीं शताब्दी में वैश्वीकरण एक कारोबार बन गया जब डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई।
  • 19 वीं शताब्दी में औद्योगिकरण के कारण उत्पादों की संख्या और गुणवत्ता में वृद्धि हुई। उत्पादों को बेचने के लिए यूरोपीय बाजारों का निर्माण हुआ।
  • आधुनिक रूप में 1990 के दशक में अगर देखा जाए तो यह एक नया मोङ आया जब वैश्वीकरण ने पूरे विश्व को एक साथ जोङने का कार्य किया।

बीसवीं शताब्दी में वैश्वीकरण -

  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्र देशों का उदय हुआ और संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई।
  • आधुनिक वैश्वीकरण अर्थशास्त्रियों व्यापारिक हितों और राजनीतिज्ञों के नियोजन का परिणाम है।
  • ब्रेटन वुड्स सम्मेलन अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की स्थापना की गई थी।
  • General Agreement on Tariffs and Trade GATT - 1995 में विश्व व्यापार संगठन की स्थापना की गई। जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार अवरोधों में कमी आई।

वैश्वीकरण के कारण -

(1) संचार व सूचना क्रांति

  • वैश्वीकरण का मुख्य स्रोत संचार एवं सूचना का तीव्र होना है। 1990 के बाद के वर्षों में संचार क्षेत्र में सूचना क्रांति ने उपग्रह, टेलीविजन, इन्टरनेट आदि के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को समस्त विश्व के साथ जोङ दिया है। सूचनाओं से व्यक्ति की सोच प्रभावित हुई है। इसने लोगों की संकीर्ण राष्ट्रीय भावनाओं को कमजोर किया है।
  • आज विश्व का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहाँ संचार और सूचना तकनीकी ने अपना अस्तित्व पेश न किया हो और राजनीति, अर्थशास्त्र एवं समाज का कोई ऐसा पक्ष नहीं है जो कि कम्प्यूटर, तकनीक के प्रभाव से मुक्त हो। आज प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित व्यक्तियों को मदद देने में तकनीक लाभदायक है। इसलिए लोग वैश्वीकरण (Globalization) के बारे में चिंतन करने लगे है।

(2) शीत युद्ध का अंत

  • द्वितीय युद्ध के पश्चात् तत्कालीन सोवियत संघ तथा अमेरिका के मध्य शीत युद्ध आरम्भ हुआ था, यह युद्ध विचारगत था। सोवियत संघ साम्यवाद का प्रतीक था और अमेरिका उदारवादी लोकतंत्र का समर्थक था। किन्तु दिसम्बर 1991 में सोवियत संघ के पतन के साथ ही शीत युद्ध समाप्त हो गया।
  • अब अमेरिका शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया। अमेरिका वैश्वीकरण एवं पूँजीवाद का समर्थक था। विश्व के अधिकांश राष्ट्र में लोकतंत्र के मूल्यों को स्वीकार किया गया तो वैश्वीकरण (Globalization) की प्रक्रिया को बढ़ा मिला।

(3) पूर्व सोवियत संघ का पतन

  • पूर्व सोवियत संघ के पतन के कारण अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में अनेक नई प्रवृत्तियों ने जन्म लिया तथा अनेक प्रचलित प्रवृत्तियों का अन्त हुआ। सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् रूसी राज्य उसका उत्तराधिकारी बना। रूसी गणराज्य ने अनेकों आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक माध्यमों से संयुक्त राज्य अमेरिका एवं पश्चिमी देशों पर अपनी निर्भरता प्रदर्शित की। उसकी इसी निर्भरता के कारण सोवियत संघ के विघटन ने वैश्वीकरण की प्रवृत्ति को जन्म दिया।

(4) पूँजीवाद का प्रभाव

  • पूंजीवाद ने जिस तरह साम्यवाद को हराकर अपनी प्रभुता कायम की उससे यह स्पष्ट हो गया कि उच्च आर्थिक विकास के लिए शासन-व्यवस्था में स्थायीत्व लाने के लिए लोकतांत्रिक उदारवाद पर आधारित पूंजीवाद ही सर्वमान्य धारणा है।
  • पूंजीवाद के प्रभाव ने राष्ट्रों को पूंजीवाद पर आधारित अर्थव्यवस्था को अपनाने के लिए प्रेरित किया। जिसके परिणामस्वरूप वैश्वीकरण का उदय हुआ।

(5) नवीन विश्व व्यवस्था के प्रतिमान की आवश्यकता

  • शीत युद्ध के समाप्त होने से उसके साथ ही पुरानी विश्व व्यवस्था भी नष्ट हो गई थी, परन्तु समस्याएँ वैसी ही बनी रही। ऐसी समस्याओं के हल के लिए एक ऐसे विश्व संरचना के माॅडल की आवश्यकता थी, जो कि भविष्य में युद्धों को रोक सके, शांति की स्थापना कर सके और राष्ट्रों के विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने के लिए प्रेरित करे।
  • गरीबी को दूर करे, पर्यावरण को सन्तुलित रखने के लिए, अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों की अवहेलना को रोक सके तथा अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद को समाप्त कर सके। इन समस्त समस्याओं को दूर करने के लिए जिस नये विश्व संरचना के माॅडल को विकल्प माना गया उसे वैश्वीकरण का नाम दिया गया।

वैश्वीकरण की विशेषताएं -

  • भूमंडलीकरण में सामाजिक और आर्थिक संबंधों का विश्वभर में विस्तार सम्मिलित है। यह विस्तार कुछ आर्थिक नीतियों (जैसे उदारीकरण) द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है। भारत ने 1991 में उदारीकरण व आर्थिक सुधार की नीति अपनाई है।
  • भूमंडलीकरण की प्रक्रिया मुक्त बाजार के मुख्य सिद्धान्त पर आधारित है। इसमें सर्वप्रथम अर्थव्यवस्था में खुलापन लाने का प्रयास किया जाता है।
  • वैश्वीकरण के लिए सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी एक अपरिहार्य कारण है। संचार के साधनों विशेषकर इलैक्ट्राॅनिक मीडिया ने संपूर्ण विश्व को एक वैश्विक गाँव (Global village) के रूप में बदल दिया है।
  • वैश्वीकरण में राष्ट्रीय सीमाओं से बाहर जाकर विभिन्न वैश्विक मुद्दों पर सहमति बनाने तथा एकजुटता के साथ वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा दिया जाता है।
  • इसमें नियमों, विनियमों, नीतियों तथा प्रक्रियाओं का सार्वभौमिकीकरण तथा उनमें सामंजस्य लाने का प्रयास होता है।
  • इसमें व्यापार को न्यूनतम करने के प्रयास किए जाते है ताकि विभिन्न देशों में वस्तुओं और सेवाओं का निर्बाध रूप से आवागमन हो सके।
  • इसमें देशों के मध्य श्रम, पूँजी व तकनीक का स्वतंत्र प्रवाह होता है।
  • वैश्वीकरण राष्ट्रों की राजनीतिक सीमाओं के आर-पार आर्थिक लेन-देन की प्रक्रियाओं और उनके प्रबन्धन का प्रवाह है।
  • कम्प्यूटर और इन्टरनेट के द्वारा तेजी से दुनिया को जोङा जा रहा है।
  • श्रम बाजार का विश्वव्यापी होना।

वैश्वीकरण के लाभ -

  • वैश्वीकरण (Vaishvikaran) से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रोत्साहित होगा और परिणामतः विकासशील देश बिना अंतर्राष्ट्रीय ऋणग्रस्तता कायम किए अपने विकास के लिए पूँजी प्राप्त कर सकेंगे।
  • वैश्वीकरण विकासशील देशों को उन्नत देशों द्वारा विकसित की गई उन्नत तकनीक के प्रयोग में सहायता प्रदान करता है।
  • वैश्वीकरण से ज्ञान का तेजी से प्रसार होता है और इसके परिणामस्वरूप विकासशील देश अपने उत्पादन और उत्पादिता के स्तर को उन्नत कर सकते है।
  • वैश्वीकरण से परिवहन एवं संचार की लागत कम हो जाती है।
  • देश अपने आधिक्य उत्पादन को अन्य देशों को मुक्त रूप से निर्यात कर विदेशी मुद्रा अर्जित कर सकते हैं।
  • हवाला बाजार पर नियंत्रण होता है।
  • विदेशी मुद्रा भण्डार में वृद्धि होती है।
  • सकल घरेलू उत्पाद (जी डी पी) में वृद्धि होती है।

वैश्वीकरण की हानियाँ -

  • वैश्वीकरण (Vaishvikaran) का संस्थागत ढाँचा भेदभावपूर्ण है।
  • भारत का व्यापार घाटा तीव्र गति से बढ़ा है।
  • वैश्वीकरण ने कटु प्रतियोगिता को जन्म दिया है। यह प्रतियोगिता शक्तिशाली बहुराष्ट्रीय निगमों और कमजोर भारतीय उद्यमों के बीच होने के कारण भारतीय उद्यम समाप्त होते जा रहे है। भारत के वैश्वीकरण का अर्थ है - हाथियों के झुण्ड में एक चूहे का घुसना ।
  • अन्तर्मुखी नीतियों के कारण कई देश भूमण्डलीकरण की धारा से नहीं जुङ पाये।
  • वैश्वीकरण की दौङ में अमीर एवं विकसित देशों की जीत हुई है।
  • छोटे-मोटे काम करने वाले, जोखिम व उठाने वाले नुकसान में रहे हैं।
  • वैश्वीकरण के चलते राष्ट्रों और लोगों के आय स्तरों के बीच की खाई बढ़ी है।
  • आय की विसमताएं बढ़ी है तथा आर्थिक सत्ता का केन्द्रीकरण हुआ है।
  • बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने कर्मचारियों को अधिक वेतन तथा सुविधाएँ देकर आर्थिक असमानता बढ़ा रही है।
  • कम मजदूरी वाली नौकरियों में श्रम का स्त्रीकरण।
  • बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के आने से स्थानीय कम्पनियों को नुकसान हुआ है।
  • कम मजदूरी वाली नौकरियों में श्रम का स्त्रीकरण।
  • देश में आधुनिक मशीनों की स्थापना से कम श्रमिकों की आवश्यकता होगी, साथ ही कारखानों में छँटनी होगी और वे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होंगे।
  • ग्रामों व शहरों के बीच असमानताएँ बढ़ी है।
  • गरीबी को कम करने की प्रक्रिया का मंद हो जाना।
  • किसानों द्वारा आत्म हत्याएँ।
  • बाजार के पक्ष में कल्याणकारी राज्य को कमजोर करना।
  • श्रम और पर्यावरणीय मानकों की अनदेखी की जाती है।
  • बौद्धिक क्षमताओं का प्रवसन।
  • कृषि क्षेत्र आर्थिक सुधारों से वंचित है।
  • खाद्यान्नों तथा तेल कीमतों में वृद्धि हुई है।
  • कृषि क्षेत्र आर्थिक सुधारों से वंचित है।
  • खाद्यान्नों तथा तेल कीमतों में वृद्धि हुई है।
  • बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की कार्य प्रणाली से स्थानीय कम्पनियों को नुकसान पहुँचा है।
  • आय की विषताएँ बढ़ी हैं, धनी और अधिक धनवान तथा निर्धन और अधिक निर्धन होते जा रहे हैं।
  • वैश्वीकरण के युग में विकासशील देशों में रोजगार की स्थिति बेहतर हो गई है।
  • रोजगार वृद्धि दर जो 1983-94 के दौरान 2.04 % प्रतिवर्ष थी, गिरकर 1994-2000 के दौरान 0.98 % हो गई है।
  • इसका मुख्य कारण कृषि रोजगार वृद्धि दर का कम हो जाना था।
  • अनुसूचित जातियों व जनजातियों में गरीबी में कमी बहुत मन्द गति से हुई है।
  • वन भूमि एवं वनों पर जनजातियों के स्वाभाविक अधिकार बढ़ी तेजी से भारतीय एवं बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा हथियाये जा रहे हैं।
  • अधिकांश भारतीय कम्पनियाँ बहुराष्ट्रीय की तुलना में बहुत छोटी हैं, इसके पास न तो पर्याप्त साधन हैं और न ही तकनीकी है।
  • भारतीय कम्पनियों की पूंजी लागत भी इन कम्पनियों की तुलना में बहुत अधिक है।

वैश्वीकरण के सकारात्मक प्रभाव -

  • वैश्वीकरण के कारण पूरी दुनिया में वस्तुओं के व्यापार में इजाफा हुआ। पहले अलग-अलग देश अपने यहाँ होने वाले आयात पर प्रतिबंध लगाते थे लेकिन अब यह प्रतिबंध कम हो गये हैं।
  • वैश्वीकरण (Vaishvikaran) ने ग्रामीण जीवन के भी विविध पक्षों को प्रभावित किया है। गाँव से नगरों की ओर प्रवास की दर भी तेजी से बढ़ी है।
  • उद्योग-धन्धों के विकास के साथ सेवा क्षेत्र में भी अवसर बढ़े हैं।
  • भूमण्डलीकरण के दौरान विकसित राष्ट्रों से अल्प विकसित तथा विकासशील राष्ट्रों की ओर पूंजी का प्रवाह बढ़ा है।
  • नये-नये अवसर उपलब्ध होने लगे हैं।
  • संस्कृति के भूस्थानीकरण की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।
  • भूस्थानीकरण का अर्थ - भूमण्डलीय के साथ स्थानीय का मिश्रण। यह एक ऐसी रण नीति है जो अक्सर विदेशी फर्मों द्वारा अपना बाजार बढ़ाने के लिए स्थानीय परम्पराओं के साथ व्यवहार में लायी जाती है।
  • वैश्वीकरण के कारण संस्कृति का भूस्थानीयकरण हुआ है।
  • वैश्वीकरण नेे निजीकरण को बढ़ावा दिया है। सरकारी क्षेत्रों पर निर्भरता कम हुई है। उद्योग धंधों के विकास के साथ सेवा क्षेत्र में भी अवसर बढ़े है।
  • वैश्वीकरण ने विश्व व्यापार के क्षेत्र में अनेक सुविधाओं को जन्म दिया है, वैश्वीकरण के कारण मुद्रा की प्रत्यावर्तन।
  • राजनैतिक सहयोग से अंतर्राष्ट्रीय व क्षेत्रीय संगठन का विकास होता है।
  • वैश्वीकरण के कारण संस्कृति एवं शिक्षा का प्रचार प्रसार तीव्र गति से हो रहा है और पूरे विश्व में एक संस्कृति विकसित हो रही है।
  • वैश्वीकरण ने ग्रामीण जीवन के भी विविध पक्षों को प्रभावित किया है। गाँवों से नगरों की ओर प्रवास की दर भी तेजी से बढ़ी है। गाँवों में नगरीय जीवन के अनेक व्यवहार प्रतिमानों को देखा जा सकता है।
  • कल्याणकारी राज्य की जगह न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य की अवधारणा को बढ़ावा मिलता है।
  • वैश्वीकरण से वस्तुओं के निर्यात में वृद्धि होती है।
  • वैश्वीकरण ने परम्परागत व्यवस्थाओं में व्यापक बदलाव ला दिया है। समाज में प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण उत्पन्न हो गया है।
  • वैश्वीकरण के कारण व्यापार से सरकारी नियंत्रण समाप्त हो गया है और विभिन्न देशों की वस्तुओं का उपयोग संभव हुआ है।
  • वैश्वीकरण ने व्यक्ति की आर्थिक क्षमताओं में वृद्धि की है। इससे तकनीकी ज्ञान का महत्त्व बढ़ रहा है।
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था में शामिल होने पर राज्यों में उत्तरदायित्व की भावना बढ़ती है तथा अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील नीतियों का निर्धारण किया जाता है ताकि जनकल्याण सुनिश्चित हो सके। इससे लोकतांत्रिक मूल्यों के संरक्षण को बल मिलता है।
  • विभिन्न देशों के निवेशक विभिन्न देशों में अब निवेश करने के लिए स्वतंत्र हैं आज भारत के पूँजीपति वैश्वीकरण के कारण ही विभिन्न देशों में पूंजी का निवेश कर रहे है।
  • वैश्वीकरण के कारण राजनीतिक सहयोग के लिए अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संघ व संगठन विकसित हुए है। इस संबंध में यूरोपीय संघ, आसियान, सार्क आदि उल्लेखनीय है।

वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभाव - 

  • वैश्वीकरण (Globalization) के युग में विकासशील देशों में रोजगार की स्थिति बदतर हो गई है। रोजगार वृद्धि दर जो 1983-94 के दौरान 2.04 % प्रतिवर्ष थी, गिरकर 1994-2000 के दौरान 0.98 % हो गई। इसका मुख्य कारण कृषि रोजगार में वृद्धि दर का नकारात्मक हो जाना था जो कुल श्रमिकों के लगभग 65 % को रोजगार उपलब्ध कराती है। इसके साथ-साथ सामुदायिक, सामाजिक एवं वैयक्तिक सेवाओं की वृद्धि दर में तीव्र गिरावट आई और 1994 में यह 0.55 % हो गई जबकि यह 1983-94 में 2.9 % थी। इसका मुख्य कारण कृषि की उपेक्षा और सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगार के बोझ को कम करना था। इसके लिए एक ओर नई भर्ती पर लगातार पाबन्दी लगा दी गई तो दूसरी तरफ सार्वजनिक क्षेत्र में सेवानिवृत्ति के कारण खाली पद भी नहीं भरे गए।
  • विकसित राष्ट्रों द्वारा विशेषकर श्रम और पर्यावरणीय मानकों की अनदेखी की जाती है। विश्व व्यापार संगठन में पर्यावरण को क्षति पहुँचाते हुए मुक्त व्यापार को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • आय की विषमताएँ बढ़ी है। धनी और अधिक धनवान तथा निर्धन और अधिक निर्धन होते जा रहे हैं। आर्थिक सत्ता का केन्द्रीयकरण हो रहा है।
  • मजदूर संघों की सौदा शक्ति बहुत कम हो गई है, और श्रम विवादों का समाधान करते समय सामूहिक सौदेबाजी की अपेक्षा रियायती सौदेबाजी का प्रचलन हो गया है।
  • वैश्वीकरण के बाद गरीबी कम होने की दर पहले की अपेक्षा मंद हो गई है। वैश्वीकरण की नीतियों ने पहले से ही औद्योगीकृत एवं विकसित राज्यों की कहीं अधिक सहायता की और पिछङे राज्यों की उपेक्षा की। इससे असमान विकास हुआ व आय की असमानताएँ बढ़ी। असमान विकास गरीबी में कमी की मंद दर का मुख्य कारण रहा।
  • विकसित देशों द्वारा अपनाए गए दोहरे मानदण्डों के परिणामस्वरूप भारत में किसानों द्वारा भारी संख्या में आत्महत्याएँ की गई। पश्चिम देशों ने गरीब देशों को व्यापार अवरोधकों को समाप्त करने के लिए मजबूर किया है परन्तु अपने अवरोधक जारी रखे है। विकसित देशों ने कृषि को सब्सिडी देना लगातार जारी रखा है।
  • भूमंडलीकरण (Bhumandalikaran) की शक्तियों के परिणामस्वरूप कम मजदूरी वाली नौकरियों में स्त्री रोजगार की वृद्धि हुई है, ऐसा विशेषकर एशिया में विनिर्माण क्षेत्र में हुआ है। इससे पूँजीपति वर्ग ने अपनी श्रम लागतें कम कर लाभ को बढ़ाया है।
  • अनुसूचित जातियों व जनजातियों में गरीबी में कमी बहुत मंद गति से हुई है। वन भूमि एवं वनों पर जनजातियों के स्वाभाविक अधिकार बढ़ी तेजी से भारतीय एवं बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा हथियाए जा रहे है और इसके परिणामस्वरूप जनजातियों की आय एवं रोजगार पर दुष्प्रभाव पङा है। वैश्वीकरण और उदारीकरण के नतीजे के तौर पर जनजातियों के सिलसिलेवार शोषण की प्रक्रिया को छूट मिल गई है जिसके लिए सुधार प्रक्रिया औचित्य प्रदान करती है।
  • वैश्वीकरण के कारण बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के आगमन के कारण भारतीय कम्पनियाँ व फर्मों को गलाकाट प्रतिस्पर्धा का सामना करना पङ रहा है। अधिकांश भारतीय कम्पनियाँ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की तुलना में बहुत छोटी है। इनके पास न तो पर्याप्त साधन हैं और न ही क्षमता व तकनीक। भारतीय कम्पनियों की पूँजी लागत भी इन कम्पनियों की तुलना में बहुत अधिक है।
  • वैश्वीकरण में यह दलील दी जाती है कि राज्य का कार्यभाग न्यूनतम होना चाहिए परन्तु इसके साथ बाजार का कार्यभाग अधिकतम होना चाहिए। परन्तु इसके परिणामस्वरूप राष्ट्र राज्यों की संप्रभुता में ह्रास की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। बहुराष्ट्रीय निगमों, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के दबाव के अधीन कुछ निर्णय लिए जा रहे है जैसे सार्वजनिक उद्यमों का निजीकरण व प्रत्यक्ष विदेशी व्यापार को कई क्षेत्रों के लिए खोलना आदि। इसके परिणामस्वरूप छोटे और मध्यम उद्यमों को धक्का लगा है और कुछ बन्द हो गए है जिसके नतीजे के रूप में बेरोजगारी बढ़ी है। वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप भारत के अग्रगामी राज्यों और पिछङे राज्यों में असमानता की खाई चौड़ी हो गई है और सामाजिक समूहों में अमीर और गरीब वर्गों के बीच असमानताएँ बढ़ी है।
  • खाद्यान्नों तथा तेल कीमतों में वृद्धि हुई है।
  • अंतर्मुखी नीतियों के कारण कई देश भूमंडलीकरण के दौरान विकास की मुख्य धारा से नहीं जुङ पाए है।
  • वैश्वीकरण ने श्रमिकों को संगठित क्षेत्र से धकेल कर असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की फौज में शामिल कर दिया।
  • विश्व में बेरोजगारी की दरें बढ़ी है विशेषकर लातिन अमेरिका और कैरेबियन देशों और दक्षिण-पूर्वी व पूर्वी एशिया में।
  • गाँवों और शहरों के बीच असमानताएँ बढ़ी है।
  • कृषि क्षेत्र आर्थिक सुधारों से वंचित है।

वैश्वीकरण के आयाम -

वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव -

(1) निर्यात में वृद्धि

  • भारत में वस्तुओं का निर्यात जो 1990 में 17.97 अरब डाॅलर था वह 2005 में बढ़कर 95.10 अरब डाॅलर हो गया अर्थात् इस अवधि में इसकी औसत वार्षिक वृद्धि दर 7.6% हो गई। सेवा क्षेत्र निर्यात में भारत का निष्पादन कहीं अधिक बेहतर हुआ है। सेवा क्षेत्र निर्यात जो 1990 में 4.6 अरब डाॅलर था बढ़कर 2005 में 56.1 अरब डाॅलर हो गया अर्थात् इस अवधि में इसकी औसत वार्षिक वृद्धि दर 18.1% थी।
  • भारत से वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात जो 1990 में 22.58 अरब डाॅलर था बढ़कर 2005 में 151.2 अरब डाॅलर हो गया अर्थात् इसमें 13.5% की वृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप भारत का वस्तुओं व सेवाओं के विश्व निर्यात में हिस्सा 1990 में 0.52% से बढ़कर 2005 में 1.17% हो गया।

(2) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि

  • वैश्वीकरण से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि हुई है। 1990-91 में शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मात्र 9.7 करोङ डाॅलर था लेकिन 2006-07 में यह बढ़कर 2208 करोङ डाॅलर के रिकाॅर्ड स्तर पर पहुंच गया जो कुल विदेशी निवेश का 75.9% था इस प्रकार वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने विदेशियों, कम्पनियों एवं विनियोक्ताओं में भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रति विश्वास उत्पन्न किया है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया से सम्पूर्ण विश्व में मुक्त बाजार व्यवस्था का प्रचलन बढ़ा है तथा उपभोक्तावाद को बढ़ावा मिला है।
  • वैश्वीकरण के कारण पूरी दुनिया में वस्तुओं के व्यापार में इजाफा हुआ है। पहले अलग-अलग देश अपने यहाँ होने वाले आयात पर प्रतिबंध लगाते थे लेकिन अब ये प्रतिबंध कम हो गए हैं। दुनियाभर में अब पूँजी की आवाजाही पर भी प्रतिबंध पहले की तुलना में कम हो गए हैं। धनी देश के निवेशकर्ता अपना धन अपने देश की जगह कहीं और निवेश कर सकते हैं। वैश्वीकरण के चलते अब विचारों के सामने राष्ट्र की सीमाओं की बाधा नहीं रही, उनका प्रवाह अबाध हो उठा है।
  • इंटरनेट और कम्प्यूटर से जुङी सेवाओं का विस्तार इसका एक उदाहरण है। आर्थिक वैश्वीकरण से खुलेपन के कारण ज्यादा से ज्यादा आबादी की खुशहाली बढ़ी है। पारस्परिक निर्भरता की रफ्तार तेज हुई है। वैश्वीकरण के फलस्वरूप विश्व के विभिन्न भागों में सरकार, व्यवसाय और लोगों के बीच जुङाव बढ़ रहा है। वैश्वीकरण से हवाला बाजार पर नियंत्रण हो गया है। अधिकांश देशों में वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था में सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि दर बढ़ी है।

(3) विदेशी मुद्रा भण्डार में वृद्धि

भारत में 1990-91 में ये भंडार मात्र 1.1 अरब डाॅलर थे, जो नवम्बर 2007 तक बढ़कर 264.7 अरब डाॅलर हो गए है। इस प्रकार विदेशी मुद्रा भंडारों में 20 गुणा से भी अधिक वृद्धि हुई है।

(4) विश्व के ज्यादातर देशों कि अर्थव्यवस्था एक दूसरे से जुङते जा रही है। जिससे एक दूसरे को सहयोग मिल रहा है, देशों की अर्थव्यवस्था का विकास हो रहा है न केवल बङे बल्कि विकासशील देशों का भी विकास हो रहा है।

(5) अर्थव्यवस्था को निर्भर बनाने के लिए स्वतंत्र रूप से व्यक्ति, वस्तु, पूँजी, श्रम तकनीकों का स्वतंत्र आदान-प्रदान हो रहा है।

(6) वैश्वीकरण के द्वारा विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं के विकास करने के लिए वैश्विक स्तर पर पूँजी ज्ञान प्रयोग की वस्तु इत्यादि का स्वतंत्र रूप से आदान-प्रदान हो रहा है जो कि वैश्वीकरण का एक सकारात्मक परिणाम है। साथी श्रम और वस्तु में विशेष प्रभाव पङा है। अगर एक देश के अंतर्गत किसी वस्तु का निर्माण नहीं होता तो वैश्वीकरण के सहारे आज उस देश में उस वस्तु की पूर्ति आसानी से हो जा रही है। साथ ही साथ इस कारण से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बहुत ऊँचाइयों पर बढ़ता जा रहा है।

(7) व्यापारिक प्रतिबंध है वस्तुओं की खरीद और ब्रिज पर लगने वाले कर साथ ही अन्य प्रकार के कार्यों में भी वृद्धि ना करते हुए उसे कटौती करने का प्रयास किया है। वैश्वीकरण के कारण इस तरह दुनिया में व्यापार उम्र में बहुत तेजी आई है और एक ऐसा देश जो किसी वस्तु का निर्माण नहीं भी करता है। वह इस व्यापार की सहारे आज उन वस्तुओं का आसानी से उपभोग कर पा रहा है।

(8) वैश्वीकरण के कारण डब्ल्यूटीओ (W.T.O), आईएमएफ (I.M.F) और डब्ल्यूबी (W.T.O) ने विश्व की विभिन्न महत्त्वपूर्ण संस्थाओं में अपना स्थान पूरा किया है और यह संस्थाएँ विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं को उबारने में मदद करनी है। क्योंकि अगर किसी देश में व्यापारिक प्रतिबंध लगे हैं या फिर उस देश के साथ कोई व्यापार करना नहीं चाहता तो यह संस्थाएँ उन देशों को ऋण देती है साथ ही उन्हें के साथ व्यापार करने में विभिन्न देशों को उनसे जुङने में भी मदद करती है साथ ही यह संस्थाएँ उस देश की आर्थिक विकास करने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाते हैं।

वैश्वीकरण के राजनीतिक प्रभाव -

  • वैश्वीकरण के प्रभाव के बावजूद भी राज्यों की शक्तियाँ कम नहीं हुई है। राज्य अपनी इच्छानुसार कार्य को करने या न करने का निर्णय लेते है।
  • लोकतंत्र मानवाधिकार सुशासन आदि पर बेहतर प्रभाव हुआ है। राज्य के शासन चलाने में बहुत ही आसानी और लाभ मिली है जो देश पहले मानव अधिकारों का सम्मान नहीं करते थे। लोकतंत्र को नहीं मानते थे या उस देश की शासन व्यवस्था अच्छी नहीं थी तो वैश्वीकरण के आने से इन क्षेत्रों में भी लगातार बदलाव आ रहा है।
  • वैश्वीकरण के कारण अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं एवं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हस्तक्षेप से राज्य कमजोर हुए है।
  • महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाने में मदद मिली है।
  • राज्य का दायरा कमजोर हो रहा है वह जनकल्याण कार्यों में कटौती कर रहा है। जैसे - टीएनसी एफडीआई के जरिए वह विदेशी कंपनियों पर निर्भर हो रहा है और साथ ही साथ उनकी मनमानीयों को मानना पङ रहा है। अगर राज्य ऐसा नहीं करता तो विदेशी कंपनियाँ देश छोङकर जाने की बात करती है जिससे देश को हानि होती हैं।
  • आधुनिक तकनीक एवं प्रौद्योगिकी की मदद से राज्य अपने नागरिकों को लाभदायक एवं सही सूचनाएँ प्रदान करने में सफल हुए हैं।
  • कल्याणकारी राज्य अब एक अधिक न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य में बदल रहा है।
  • बाजार आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं को तय करता है।
  • राज्य अब कुछ कामों तक अपने को सीमित रखता है जैसे - काूनन और व्यवस्था, नागरिकों को सुरक्षा देना।
  • आधुनिक तकनीक से राज्य आंध्र प्रशासन में सुधार कर सकते हैं।
  • वैश्वीकरण के कारण राज्य नीतियों को कुशलता से लागू कर सकते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय निगमों का पालन, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ जैसे - अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व व्यापार संगठन (WTO) के कारण राज्य की शक्ति में कमी आई है।
  • विश्व को राजनीति, राष्ट्रीय सुरक्षा प्रदान करने में इन अन्तर्राष्ट्रीय अभिकत्र्ताओं की भूमिका बढ़ती जा रही है।
  • वैश्वीकरण के कारण अब आर्थिक गतिविधियाँ पर राज्यों का नियंत्रण नहीं रहा है।
  • आर्थिक, सामाजिक प्राथमिकताओं का निर्धारण बाजार के द्वारा होने लगा न कि राज्य के द्वारा।
  • आर्थिक साम्राज्यवाद को बढ़ावा मिला है बेशक वस्तुएँ वैश्वीकरण के कारण कम और सस्ते दामों पर मिल रही है पर अब जाने अनजाने में हमें उन पर निर्भर रहना पङ रहा है और परिवहन नेटवर्क कंपनियाँ (TNCs) और बहुराष्ट्रीय निगम (MNCs) के आदि होते जा रहे है।
  • राष्ट्रीय राज्य की अवधारणा में परिवर्तन आया है। अब राज्य लोककल्याणकारी राज्य के साथ आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं का प्रमुख निर्धारक तत्त्व बन गया है।
  • तकनीकी दृष्टि से सुदृढ़ राष्ट्रों का जीवन स्तर बढ़ा है।
  • सूचनाओं के तीव्र आदान-प्रदान से नागरिकों का जीवन सहज हुआ है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय ने अपनी नियंत्रित नीतियों के स्थान पर व्यापार में खुलेपन को प्रोत्साहन दिया है।

वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव -

  • वैश्वीकरण से सांस्कृतिक समरूपता आती है। सांस्कृतिक समरूपता वैश्वीकरण का एक पहलू है। वैश्वीकरण से हर संस्कृति कहीं ज्यादा अलग और विशिष्ट होती जा रही है। इस प्रक्रिया को सांस्कृतिक विभिन्नीकरण कहते है।
  • विभिन्न राष्ट्रों के बीच सम्पर्क की सघनता ने परसंस्कृति से जुङाव रखते हुए दूसरे देश की संस्कृति को ग्रहण करने लगते है। इससे पश्चिमी व भारतीय संस्कृति का समन्वयात्मक स्वरूप सामने आ रहा है। जैसे - भारत ने जींस का पहनावा, अंग्रेजी बोलना जैसे तरीकों को अपनाया है।
  • इसका प्रभाव जीवनशैली, खानपान, रहन-सहन, पहनावे, भाषा शैली आदि में दिखाई देने लगा है। एकाकी परिवार प्रणाली को बढ़ावा मिला है।
  • वैश्वीकरण का सकारात्मक पक्ष यह भी है कि प्रौद्योगिकी के विकास व प्रवाह से एक नवीन विश्व संस्कृति के उदय की प्रबल सम्भावनाएँ बन गई है। इन्टरनेट, सोशल मीडिया, फैक्स, उपग्रह तथा केबल टीवी ने विभिन्न राष्ट्रों के मध्य विद्यमान सांस्कृतिक बाधाओं को हटाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • वैश्वीकरण से पश्चिम के पूंजीवादी आदशों और उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा मिला है।
  • वैश्वीकरण के कारण रूढ़िवादिता का अंत हुआ है।
  • सांस्कृतिक वैश्वीकरण से विदेशी त्योहारों का भी प्रचार व प्रसार देखने को मिला है जिसकी वजह से अब एकरूपता देखने को मिली है।
  • वैश्वीकरण के कारण विकासशील देशों की संस्कृतियाँ यूरोपीय तथा अमेरिका की संस्कृति के अनुसार डलती जा रही है।
  • फास्ट फूड कल्चर पश्चिमी देशों विशेषकर अमेरिका की ही देन है इसे सांस्कृतिक साम्राज्यवाद भी कहा जा सकता है।
  • भारत का शास्त्रीय संगीत भी अनेक देशों में पसंद किया जाता है यह सब केवल वैश्वीकरण के कारण ही संभव हो पाया है।
  • वर्तमान समय में सभी देशों की सांस्कृतियाँ आपस में घुलनशील हो गई है उदाहरण के लिए लोग उन त्योहारों को भी धूमधाम से मनाने लगे जो उनके नहीं है जैसे - न्यू ईयर, क्रिसमस आदि।
  • वैश्वीकरण से भारत में पश्चिमी संस्कृति बढ़ने लगी है। जैसे - पिज्जा, बर्गर, नीली जींस, माॅल ये सभी पश्चिमी संस्कृति के संकेत है।
  • वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव वैश्वीकरण से तीसरी दुनिया के देशों के बीच में खतरा उत्पन्न हो गया है।

सांस्कृतिक प्रवाह को बढ़ाने वाले माध्यम -

(अ) सूचनात्मक सेवाएँ -

  • ईमेल व इन्टरनेट से सूचनाओं का आदान-प्रदान बढ़ा है।
  • इलेक्ट्राॅनिक क्रान्ति ने सूचनाओं को जनतान्त्रिक बना दिया है।
  • विचारों एवं धारणाओं का आदान-प्रदान आसान हुआ है।
  • सूचना तकनीकी के विस्तार से डिजिटल क्रान्ति आई है।
  • अविकसित, अर्द्धविकसित देशों में सूचना सेवाओं पर राज्य का नियंत्रण है।
  • एक विशिष्ट समूह द्वारा सूचना माध्यमों पर आधिपत्य कर लेना अलोकतान्त्रिक है।

(ब) समाचार सेवाएँ -

  • सी. एन.एन., बी.बी.सी., अल जजीरा आदि सैकङों अन्तर्राष्ट्रीय चैनलों का विश्वव्यापी प्रसारण हो रहा है जिसने वैश्वीकरण को अधिक प्रभावी बना दिया है।

वैश्वीकरण के संदर्भ में प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय नीतियाँ -

व्यापार एवं प्रशुल्कों पर सामान्य समझौता

गैट - GATT (General Agreement on Tariff & Trade)

  • 1947 में 2 3 देशों ने गैट (GATT ) समझौते पर हस्ताक्षर किए। भारत गैट के संस्थापक सदस्यों में से एक था। 1994 में गैट के सदस्यों की संख्या 118 तक पहुँच गई। गैट के माध्यम से प्रयास किया गया कि प्रशुल्क दरों एवं मात्रात्मक प्रतिबन्ध में कमी द्वारा तथा संरक्षणात्मक सरकारी नीतियों को हतोत्साहित करके अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहित किया जाए।
  • अगर कोई देश किसी अन्य देश में उत्पादित किसी भी वस्तु को कोई लाभ, समर्थन या सुविधा प्रदान करता है। तो यह लाभ या सुविधा स्वतः और तुरन्त इस वस्तु के उत्पादक अन्य सभी देशों को बिना शर्त प्राप्त हो जाएगी।
  • गैट के सदस्यों की कुल 8 बैठकें/दौर हुए है।
  • प्रथम बैठक हवाना - 1947
  • आठवीं बैठक उरूग्वे - 1986-95

विश्व व्यापार संगठन - W.T.O. (World Trade Organization)

  • स्थापना - 1 जनवरी 1995
  • मुख्यालय - जिनेवा (स्विट्जरलैण्ड)
  • डब्ल्यू टी ओ को गेट का उत्तराधिकारी कहा जाता है। यह सबसे नवीन संगठन है।
  • यह विश्व का सबसे बङा व्यापारिक संगठन है।
  • वर्तमान में डब्ल्यू टी ओ में देशों की संख्या 164 है व 164 वां देश अफगानिस्तान है। जो 29 जुलाई 2016 को इसका सदस्य बना।
  • डब्ल्यू टी ओ का अध्यक्ष - राॅबर्टो एजेवेडो
  • डब्ल्यू टी ओ का उद्देश्य - देशों के बीच व्यापार की देखरेख करना एवं व्यापार की समस्याओं को हल करना।
  • व्यापार से जुङे बौद्धिक सम्पदा अधिकार डब्ल्यू टी ओ से जुङे समझौते का मुख्य हिस्सा है।
  • बौद्धिक सम्पदा अधिकारों में 7 क्षेत्र आते है -
    1. काॅपीराइट
    2. ट्रेडमार्क
    3. भौगोलिक संकेत
    4. औद्योगिक डिजाइनें
    5. पेटेंट
    6. इंटीग्रेडेट सर्किट् के ले-आउट की डिजाइनें
    7. अघोषित सूचनाएँ।
  • भारत में पेटेंट कानून 1970 में बना। जिसे 2005 में लागू किया गया।

साफ्टा - South Asian Free Trade Agreement

  • यह समझौता सार्क के सदस्य देशों (भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव, भूटान व अफगानिस्तान) द्वारा किया गया जो 1 जुलाई 2006 से लागू हो गया।
  • इसका उद्देश्य - मुक्त व्यापार को और अधिक सुदृढ़ बनाना।

उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता - North America free trade Agreement

  • उत्तरी अमेरिका के देश संयुक्त राज्य अमरीका, कनाडा व मैक्सिको के मध्य आंतरिक व्यापार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 12 अगस्त 1992 को यह संगठन स्थापित किया गया।

आसियान - Association of South East Asian Nations

  • अगस्त, 1967 में बैंकाक (थाइलैंड) में सदस्य देशों के मध्य आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक विकास को प्रोत्साहन देने तथा व्यापार व विनियोग में सहयोग बढ़ाने हेतु यह संगठन स्थापित किया गया।
  • जकार्ता (इंडोनेशिया) में इसका मुख्यालय है।
  • 10 देश - इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलपींस, सिंगापुर, थाइलैंड, वियतनाम, लाओस, म्यांमार व कम्बोडिया इसके सदस्य हैं।
  • भारत को आसियान में पूर्ण वार्ताकार का दर्जा प्राप्त है।

आसियान रीजनल फोरम - ASEAN Regional Forum

  • जुलाई, 1993 आसियान के सदस्य देशों द्वारा स्थापित। चीन भी इसका सदस्य है।

यूरोपीय संघ - European Union

  • 1 नवम्बर, 1993 को इसकी स्थापना दिसम्बर, 91 की मास्ट्रिचच संधि के तहत की गई।
  • यूरोपीय संघ ने 1 जनवरी, 1999 से यूरो मुद्रा लागू की है।

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