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सिंधु घाटी सभ्यता को सिंधु नदी के आसपास बसे होने के कारण ही सिंधु घाटी सभ्यता या सिंधु सभ्यता कहा जाता है, साथ ही इसे हड़प्पा सभ्यता तथा हड्डप्पीयन सभ्यता आदि नामों से भी जाना जाता है। कई विद्वानों का मत है कि सिंधु सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता पुकारना ज्यादा उचित है क्यूंकि हड़प्पा इस सभ्यता का प्रमुख केंद्र है, तो कुछ का मत है क्यूंकि हड़प्पा की खोज सर्वप्रथम की गयी थी, अतः इसे हड़प्पा सभ्यता कहा जाये। सिंधु घाटी सभ्यता को अंग्रेजी भाषा में इंडस वेली सिविलाइज़ेशन (Indus Valley Civilization) नाम से जाना जाता है।
सिंधु सभ्यता अपने समय की सबसे आधुनिक और सुविकसित सभ्यता थी। हड़प्पा सभ्यता के लोग बहुत ही सुनियोजित और सुविकसित कस्बों एवं नगरों में रहा करते थे। जहाँ बड़े-बड़े भवन, सभागार, स्नानागार, कारागार, कच्ची व पक्की ईंटों से बने घर, चौड़ी सड़कें आदि स्थित थे। साथ ही इस सभ्यता के लोग हथियारों, आभूषणों, मूर्तियों और बर्तनों का निर्माण करना जानते थे, इनके निर्माण में तांबे, चाँदी और काँसे आदि का प्रयोग किया जाता था।
सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी। सम्मानित पत्रिका नेचर में प्रकाशित शोध के अनुसार यह सभ्यता कम से कम 8000 वर्ष पुरानी है। यह हड़प्पा सभ्यता और सिंधु-सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जानी जाती है। इसका विकास सिंधु और घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ। मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी और हड़प्पा इसके प्रमुख केन्द्र थे। दिसम्बर 2014 में भिर्दाना को अब तक खोजा गया सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे प्राचीन नगर माना गया।
1826 में चार्ल्स मैसेन ने पहली बार इस पुरानी सभ्यता को खोजा। कनिंघम ने 1856 में इस सभ्यता के बारे में सर्वेक्षण किया। 1856 में कराची से लाहौर के मध्य रेलवे लाइन के निर्माण के दौरान बर्टन बंधुओं द्वारा हड़प्पा स्थल की सूचना सरकार को दी। इसी क्रम में 1861 में अलेक्जेंडर कनिंघम के निर्देशन में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की। 1904 मे लार्ड कर्जन द्वारा जॉन मार्शल को भारतीय पुरातात्विक विभाग का महानिदेशक बनाया गया।
स्थल | उत्खनन वर्ष | निर्देशन |
---|---|---|
हड़प्पा (मोण्टगोमरी जिला, पंजाब प्रान्त, पाकिस्तान) | 1921 ई. | रायबहादुर दयाराम साहनी |
मोहनजोदड़ो (सिन्ध का लरकाना जिला, पाकिस्तान) | 1922 ई. | राखालदास बनर्जी |
सुत्कागेंडोर (बलुचिस्तान, पाकिस्तान) | 1927 ई. | ऑरेल स्टाइन |
चन्हूदड़ो (सिन्ध, पाकिस्तान) | 1931 ई. | एम. जी. मजूमदार |
रंगपुर (अहमदाबाद – काठियावाड़, भारत) | 1951-53 ई. | माधोस्वरूप वत्स, बी. बी. लाल, एस. आर. राव. |
कोटदीजी (सिन्ध, पाकिस्तान) | 1953 ई. | फजल अहमद |
रोपड़ (पंजाब, भारत) | 1953 ई. | यज्ञदत्त शर्मा |
लोथल (अहमदाबाद – काठियावाड़, भारत) | 1954 ई. | एस. आर. राव |
आलमगीरपुर (मेरठ – उत्तर प्रदेश, भारत) | 1958 ई. | यज्ञदत्त शर्मा |
कालीबंगा (गंगानगर – राजस्थान, भारत) | 1961 ई. | बी. बी. लाल |
सुरकोटड़ा (कच्छ – गुजरात, भारत) | 1972 ई. | जगपति जोशी |
बनावली (हिसार – हरियाणा, भारत) | 1973 ई. | आर. एस. बिष्ट |
धौलावीरा (कच्छ – गुजरात, भारत) | 1990 ई. | आर. एस. बिष्ट |
स्थल | हड़प्पा |
अवस्थिति | मांटगोमरी (पाकिस्तान) |
खोजकर्ता का नाम | दयाराम साहनी |
वर्ष | 1921 |
नदी/सागर तट | रावी |
हड़प्पा स्थल का संक्षिप्त विवरण: हड़प्पा इसकी खुदाई वर्ष 1921 में दयाराम साहनी व सहायक माधोस्वरूप वत्स द्वारा करवाई गयी थी। यह पंजाब के मांटगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है। प्राप्त साक्ष्य मुहरें, कब्रिस्तान, मछुआरे का चित्र अंकित बर्तन, बालू पत्थर की बनीं दो मूर्तियाँ, धोती पहने एक मूर्ति, कांसे का सिक्का, शंख से बना बैल, अनाज भण्डारण के कमरे जहाँ से जौ और गेहूँ प्राप्त हुये हैं। कतार में बने श्रमिक आवास आदि। हड़प्पा पूर्वोत्तर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का एक पुरातात्विक स्थल है। यह साहिवाल शहर से 20 किलोमीटर पश्चिम मे स्थित है। सिन्धु घाटी सभ्यता के अनेकों अवशेष यहाँ से प्राप्त हुए है। सिंधु घाटी सभ्यता को इसी शहर के नाम के कारण हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है।
1921 में जब जॉन मार्शल भारत के पुरातात्विक विभाग के निर्देशक थे तब दयाराम साहनी ने इस जगह पर सर्वप्रथम खुदाई का कार्य करवाया था। दयाराम साहनी के अलावा माधव स्वरुप व मार्तीमर वीहलर ने भी खुदाई का कार्य किया था। हड़प्पा शहर का अधिकांश भाग रेलवे लाइन निर्माण के कारण नष्ट हो गया था।
स्थल | मोहनजोदड़ो |
अवस्थिति | लरकाना (पाकिस्तान) |
खोजकर्ता का नाम | राखालदास बनर्जी |
वर्ष | 1922 |
नदी/सागर तट | सिन्धु |
मोहनजोदड़ो स्थल का संक्षिप्त विवरण: मोहन जोदड़ो का सिन्धी भाषा में अर्थ है मुर्दों का टीला यह दुनिया का सबसे पुराना नियोजित और उत्कृष्ट शहर माना जाता है। यह सिंघु घाटी सभ्यता का सबसे परिपक्व शहर है। यह नगर अवशेष सिन्धु नदी के किनारे सक्खर ज़िले में स्थित है। मोहन जोदड़ो शब्द का सही उच्चारण है मुअन जो दड़ो । इसकी खोज राखालदास बनर्जी ने 1922 ई. में की। यह सिंधु नदी के किनारे बसा हुआ है। यह सिन्ध (पाकिस्तान) के लरकाना जिले में मौजूद है। प्राप्त साक्ष्य सूती कपड़े के अंश, महास्नानागार, पुरोहितों के आवास, सभागार, काँसे से बनी नर्तकी की नग्न मूर्ति, ताँबे का ढेर, पशुपति शिव का साक्ष्य, घोड़े के दाँत, सेलखड़ी से बना बाट, चिमनी, साधु की मूर्ति आदि।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जान मार्शल के निर्देश पर खुदाई का कार्य शुरु हुआ। यहाँ पर खुदाई के समय बड़ी मात्रा में इमारतें, धातुओं की मूर्तियाँ, और मुहरें आदि मिले। पिछले 100 वर्षों में अब तक इस शहर के एक-तिहाई भाग की ही खुदाई हो सकी है, और अब वह भी बंद हो चुकी है। माना जाता है कि यह शहर 125 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था तथा इस में जल कुड भी हुआ करता था! स्थिति- पाकिस्तान के सिंध प्रांत का लरकाना जिला।
स्थल | रोपड़ |
अवस्थिति | पंजाब |
खोजकर्ता का नाम | यज्ञदत्त शर्मा |
वर्ष | 1953 |
नदी/सागर तट | सतलज |
रोपड़ स्थल का संक्षिप्त विवरण: रोपड़ अति प्राचीन स्थल है, वर्तमान में इसे रूपनगर के नाम से जाना जाता है नगर का इतिहास सिंधु घाटी की सभ्यता का शहर जाता है। रूपनगर सतलुज के दक्षिणी किनारे पे बसा है। सतलुज नदी के दूसरी ओर शिवालिक के पहाड़ हैं। रूपनगर चंडीगढ़ (सबसे समीप विमानक्षेत्र एवं पंजाब की राजधानी) से लगभग 50 कि.मी. की दूरी पर है। प्राचीन शहर रूपनगर का नाम 11वि सदी के रोकेशर नामक राजा ने अपने पुत्र रूप सेन के उपर रखा था।
स्थल | लोथल |
अवस्थिति | अहमदाबाद (गुजरात) |
खोजकर्ता का नाम | रंगानाथ नाथ राव |
वर्ष | 1954 |
नदी/सागर तट | भोगवा नदी |
लोथल स्थल का संक्षिप्त विवरण: लोथल प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के शहरों में से एक बहुत ही महत्वपूर्ण शहर है। लगभग 2400 ईसापूर्व पुराना यह शहर भारत के राज्य गुजरात के भाल क्षेत्र में स्थित है और इसकी खोज सन 1954 में हुई थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस शहर की खुदाई 13 फ़रवरी 1955 से लेकर 19 मई 1956 के मध्य की थी। लोथल, अहमदाबाद जिले के धोलका तालुका के गाँव सरागवाला के निकट स्थित है। सिंधु घाटी सभ्यता के समय इसके आसपास का कच्छ का मरुस्थल, अरब सागर का एक हिस्सा था। लोथल इसकी खोज वर्ष 1957 में रंगनाथ राव द्वारा की गयी थी। यह स्थल गुजरात के अहमदाबाद जिले में भोगवा नदी के तट पर स्थित है। प्राप्त साक्ष्य अग्निवेदिका, पक्की मिटटी से बना नाँव का नमूना, जहाज बनाने का स्थल, चावल के दाने, फारस की मुहर, हांथी दांत का स्केल, घोड़े की लघु मृणमूर्ति, ममी की आकृति, चक्की (अनाज पीसने के लिये), चालाक लोमड़ी की कहानी के सबुत आदि।
प्राचीन समय में यह एक महत्वपूर्ण और संपन्न व्यापार केंद्र था जहाँ से मोती, जवाहरात और कीमती गहने पश्चिम एशिया और अफ्रीका के सुदूर कोनों तक भेजे जाते थे। मनकों को बनाने की तकनीक और उपकरणों का समुचित विकास हो चुका था और यहाँ का धातु विज्ञान पिछले 4000 साल से भी अधिक से समय की कसौटी पर खरा उतरा था। प्रमुख खोजों में एक टीला, एक नगर, एक बाज़ार स्थल और एक गोदी शामिल है।
स्थल | कालीबंगा |
अवस्थिति | गंगानगर (राजस्थान) |
खोजकर्ता का नाम | अमलानन्द घोष |
वर्ष | 1953 |
नदी/सागर तट | घग्घर |
कालीबंगा स्थल का संक्षिप्त विवरण: कालीबंगा सिंधु भाषा का शब्द है जो काली+बंगा (काले रंग की चूड़ियां) से बना है। काली का अर्थ काले रंग से तथा बंगा का अर्थ चूड़ीयों से है। कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का एक प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्थल है। यहां हड़प्पा सभ्यता के बहुत दिलचस्प और महत्वपूर्ण अवशेष मिले हैं। काली बंगा एक छोटा नगर था।
कालीबंगा इसकी खुदाई वर्ष 1953 में अमलानन्द घोष द्वारा तथा बी. के. थापर द्वारा 1960 में करवाई गयी थी। कालीबंगा का अर्थ होता है “काले रंग की चूड़ियाँ”। यह स्थल राजस्थान के गंगानगर जिले में घग्गर नदी के तट पर स्थित है।
प्राप्त साक्ष्य कच्ची ईटें व अलंकृत ईंटें, बेलनाकार मुहरें (मेसोपोटामिया जैसी), खेती के साक्ष्य जुते हुये खेत जहाँ कालीबंगा से दूर सरसों की फसल और नजदीक पर चने की फसल बोयी जाती थी। लकड़ी के बने पाइप आदि।
यहां एक दुर्ग मिला है। प्राचीन द्रषद्वती और सरस्वती नदी घाटी वर्तमान में घग्गर नदी का क्षेत्र में सैन्धव सभ्यता से भी प्राचीन कालीबंगा की सभ्यता पल्लवित और पुष्पित हुई। कालीबंगा 4000 ईसा पूर्व से भी अधिक प्राचीन मानी जाती है। सर्वप्रथम 1953 ई॰ में अमलानन्द घोष ने इसकी खोज की। बीके थापर व वीवी लाल ने 1961-69 में यहाँ उत्खनन का कार्य किया।
स्थल | चन्हूदड़ो |
अवस्थिति | सिंध (पाकिस्तान) |
खोजकर्ता का नाम | एन. जी. मजूमदार |
वर्ष | 1934 |
नदी/सागर तट | सिन्धु |
चन्हुदड़ो स्थल का संक्षिप्त विवरण: चन्हुदड़ो सिंधु घाटी सभ्यता के नगरीय झुकर चरण से सम्बंधित एक पुरातत्व स्थल है। यह क्षेत्र पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के मोहेंजोदड़ो से 130 किलोमीटर (81 मील) दक्षिण में स्थित है। यह क्षेत्र 4000 से 1700 ईसा पूर्व में बसा हुआ माना जाता है और इस स्थान को इंद्रगोप मनकों के निर्माण स्थल के रूप में जाना जाता है। चाँहुदड़ो इसकी खोज वर्ष 1931 में एन.जी. मजूमदार द्वारा की गयी थी, जिसे पुरातत्वविद मैके ने वर्ष 1935 में आगे बढ़ाया। यह स्थल सिंध (पाकिस्तान) में स्थित है। प्राप्त साक्ष्य वक्राकार ईंटें यह एक मात्र स्थल है जहाँ से वक्राकार ईंटें प्राप्त हुई हैं, बिल्ली का पीछा करते कुत्ते का साक्ष्य, सजने-सवरने के लिये लिपस्टिक का प्रयोग किया जाता था, मनके का कारखाना आदि।
चन्हुदड़ो की पहली बार खुदाई मार्च 1934 में एन॰जी॰ मजुमदार ने करवाई और उसके बाद 1935-36 में अमेरीकी स्कूल ऑफ़ इंडिक एंड इरानियन तथा म्यूज़ियम ऑफ़ फाइन आर्ट्स, बोस्टन के दल ने अर्नेस्ट जॉन हेनरी मैके के नेतृत्व में करवाई।
स्थल | सुत्कांगेडोर |
अवस्थिति | बलूचिस्तान (पाकिस्तान) |
खोजकर्ता का नाम | आरेल स्टाइन |
वर्ष | 1927 |
नदी/सागर तट | दाश्क |
सुत्कांगेडोर स्थल का संक्षिप्त विवरण: सुत्कांगेडोर सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे पश्चिमी ज्ञात पुरातात्विक स्थल है। यह पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में ईरानी सीमा के निकट ग्वादर के पास मकरान तट पर कराची से लगभग 480 किमी दूर पश्चिम में स्थित है। सुत्कांगेडोर की खोज 1875 में मेजर एडवर्ड मॉकलर ने की थी, जिन्होंने छोटे पैमाने पर उत्खनन किया था।
1928 में ऑरेल स्टीन ने अपने गेड्रोसिया दौरे के हिस्से के रूप में क्षेत्र का दौरा किया, और आगे की खुदाई की। अक्टूबर 1960 में, सुत्कांगेडोर को अपने मकरान सर्वेक्षण के एक हिस्से के रूप में जॉर्ज एफ. डेल्स द्वारा अधिक बड़े पैमाने पर खुदाई की गई थी, जो बिना पुआल के पत्थर और मिट्टी की ईंटों से बनी संरचनाओं को उजागर करते थे। सुत्कोगेंडोर इसकी खुदाई वर्ष 1927 में औरेल स्टाईन के द्वारा करवाई गयी थी। यह स्थल बलूचिस्तान में दाश्क नदी के तट पर स्थित है। प्राप्त साक्ष्य मिट्टी की बानी चूड़ियाँ, राख से भरा बर्तन, ताम्बें की कुल्हाड़ी, मनुष्य की हड्डियाँ।
स्थल | कोटदीजी |
अवस्थिति | सिंध (पाकिस्तान) |
खोजकर्ता का नाम | फज़ल अहमद खां |
वर्ष | 1955 |
नदी/सागर तट | सिन्धु |
कोटदीजी स्थल का संक्षिप्त विवरण: कोटदीजी में प्राचीन स्थल सिंधु सभ्यता का एक महत्वपूर्ण अंग था। इस स्थल की व्यवसाय पहले से ही 3300 ईसा पूर्व में प्रमाणित है। अवशेषों में उच्च भूमि और बाहरी क्षेत्र पर दो भागों का गढ़ क्षेत्र शामिल है। पाकिस्तान विभाग के पुरातत्व विभाग ने 1955 और 1957 में कोटदीजी में खुदाई की। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में खैरपुर से लगभग 24 किलोमीटर दक्षिण में, यह मोहनजोदाड़ो के सामने सिंधु के पूर्वी तट पर है।
यह स्थल रोहड़ी पहाड़ियों के तल पर स्थित है जहाँ एक किला (कोट दीजी का किला) 1790 के आसपास ऊपरी सिंध के तालपुर वंश के शासक मीर सुह्रब द्वारा बनाया गया था, जिन्होंने 1783 से 1830 ई. तक शासन किया था। एक तंग संकरी पहाड़ी के रिज पर बना यह किला अच्छी तरह से संरक्षित है। कोटदीजी इसकी खुदाई वर्ष 1955 में एफ.ए. खान द्वारा करवाई गयी थी। यह स्थल मोहनजोदड़ो के समीप स्थित है। प्राप्त साक्ष्य चाँदी के सर्वप्रथम प्रयोग के साक्ष्य, बारहसिंगा का नमूना।
स्थल | आलमगीरपुर |
अवस्थिति | मेरठ |
खोजकर्ता का नाम | यज्ञदत्त शर्मा |
वर्ष | 1958 |
नदी/सागर तट | हिंडन |
आलमगीरपुर स्थल का संक्षिप्त विवरण: आलमगीरपुर सिंधु घाटी सभ्यता का एक पुरातात्विक स्थल है जो यमुना नदी (3300-1300 ईसा पूर्व) के साथ-साथ मेरठ जिले, उत्तर प्रदेश, भारत में स्थित हड़प्पा काल से जुड़ा हुआ है। यह सभ्यता का सबसे पूर्वी स्थल है। इस स्थल को परसाराम-खीरा भी कहा जाता था। आलमगीरपुर इसकी खुदाई वर्ष 1958 में यज्ञदत्त शर्मा द्वारा करवाई गयी थी। यह स्थल उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में हिण्डन नदी के तट पर स्थित है।
स्थल | सुरकोटदा |
अवस्थिति | कच्छ (गुजरात) |
खोजकर्ता का नाम | जगपति जोशी |
वर्ष | 1967 |
नदी/सागर तट | – |
सुरकोटदा स्थल का संक्षिप्त विवरण: सुरकोटदा या सुरकोटडा गुजरात के कच्छ ज़िले में स्थित है। इस स्थल से हड़प्पा सभ्यता के विस्तार के प्रमाण मिले हैं। इसकी खोज 1964 में जगपति जोशी ने की थी इस स्थल से सिंधु सभ्यता के पतन के अवशेष परिलक्षित होते हैं।
यहाँ पर एक बहुत बड़ा टीला था। यहाँ पर किये गये उत्खनन में एक दुर्ग बना मिला, जो कच्ची ईंटों और मिट्टी का बना था। परकोटे के बाहर एक अनगढ़ पत्थरों की दीवार थी। मृद्भाण्ड सैंधव सभ्यता के हैं। यहाँ पर एक क़ब्र बड़े आकार की शिला से ढंकी हुई मिली है। यह क़ब्र अभी तक ज्ञात सैंधव शव-विसर्जन परम्परा में सर्वथा नवीन प्रकार की है। सुरकोटड़ा इसकी खुदाई वर्ष 1964 में जगपति जोशी द्वारा करवाई गयी थी। यह स्थल गुजरात राज्य के कच्छ नामक जगह पर स्थित है। प्राप्त साक्ष्य घोड़े की हड्डियाँ, अनूठी प्रकार की कब्रगाह।
स्थल | रंगपुर |
अवस्थिति | कठियावाड़ (गुजरात) |
खोजकर्ता का नाम | ए. रंगनाथ राव |
वर्ष | 1953-54 |
नदी/सागर तट | सुकभादर |
रंगपुर स्थल का संक्षिप्त विवरण: रंगपुर गुजरात के काठियावाड़ प्रायद्वीप में सुकभादर नदी के समीप स्थित है। इस स्थल की खुदाई वर्ष 1953-1954 में ए. रंगनाथ राव द्वारा की गई थी। यहाँ पर पूर्व हड़प्पा कालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं। रंगपुर से मिले कच्ची ईटों के दुर्ग, नालियां, मृदभांड, बांट, पत्थर के फलक आदि महत्त्वपूर्ण हैं। यहाँ धान की भूसी के ढेर मिले हैं। यह ऐतिहासिक स्थान गोहिलवाड़ प्रांत में सुकभादर नदी के पश्चिम समुद्र में गिरने के स्थान से कुछ ऊपर की ओर स्थित है। इस स्थान से 1935 तथा 1947 में उत्खनन द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष प्रकाश में लाए गये थे।
यहाँ पहली बार की खुदाई के अवशेषों से विद्वानों ने यह समझा था कि ये हड़प्पा सभ्यता के दक्षिणतम प्रसार के चिन्ह हैं, जिनका समय लगभग 2000 ई. पू. होना चाहिए। वर्ष 1944 ई. के जनवरी मास में यहाँ पुरातत्त्व विभाग ने पुनः उत्खनन किया, जिससे अनेक अवशेष प्राप्त हुए। जिनमें प्रमुख थे- अलंकृत व चिकने मृदभांड, जिन पर हिरण तथा अन्य पशुओं के चित्र हैं; स्वर्ण तथा कीमती पत्थर की बनी हुईं गुरियां तथा धूप में सुखाई हुई ईंटे। यहाँ से भूमि की सतह के नीचे नालियों तथा कमरों के भी चिन्ह मिलें हैं।
स्थल | बालाकोट |
अवस्थिति | पाकिस्तान |
खोजकर्ता का नाम | डेल्स |
वर्ष | 1979 |
नदी/सागर तट | अरब सागर |
बालाकोट स्थल का संक्षिप्त विवरण: बालाकोट सिन्धु घाटी की सभ्यता का एक महत्वपूर्ण स्थान है जहाँ खुदाई में ढाई हजार ईसापूर्व की निर्मित एक भट्ठी मिली है जिसमें सम्भवतः सिरैमिक वस्तुओं का निर्मान होता था। बालाकोट पाकिस्तान के उत्तरी भाग में ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रान्त के मानसेहरा ज़िले की काग़ान घाटी में कुनहार नदी (नैनसुख नदी) के किनारे स्थित एक शहर है। यह 2005 कश्मीर भूकम्प में पूरी तरह ध्वस्त हो गया था और फिर इसका साउदी अरब की सहायक संस्थानों की मदद लेकर नवनिर्माण करा गया।
स्थल | सोत्काकोह |
अवस्थिति | पाकिस्तान |
खोजकर्ता का नाम | जॉर्ज एफ. डेल्स |
वर्ष | 1960 |
नदी/सागर तट | अरब सागर |
सोत्काकोह स्थल का संक्षिप्त विवरण: सोत्काकोह पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में पसनी शहर के पास मकरान तट पर एक हड़प्पा स्थल है। यह पहली बार 1960 में अमेरिकी पुरातत्वविद् जॉर्ज एफ. डेल्स द्वारा सर्वेक्षण किया गया था, जबकि मकरान तट के साथ-साथ वनस्पतियों की खोज की गई थी। यह स्थल पसनी से लगभग 15 मील उत्तर में स्थित है।
स्थल | बनवाली |
अवस्थिति | हिसार (हरियाणा) |
खोजकर्ता का नाम | आर. एस. बिष्ट |
वर्ष | 1973-74 |
नदी/सागर तट | – |
बनावली स्थल का संक्षिप्त विवरण: बनावली एक भारतीय राज्य हरियाणा के हिसार जिला स्थित एक पुरातत्व स्थल है जो कि सिन्धु घाटी सभ्यता से सम्बन्धित है। यह कालीबंगा से 120 किमी तथा फतेहाबाद से 16 किमी दूर है। यह नगर रंगोई नदी के तट पर स्थित था। कालीबंगा सरस्वती की निचली घाटी जबकि यह नगर इसकी उपरी घाटी में स्थित था।
स्थल | धोलावीरा |
अवस्थिति | कच्छ (गुजरात) |
खोजकर्ता का नाम | जे.पी. जोशी |
वर्ष | 1967 |
नदी/सागर तट | – |
धोलावीरा स्थल का संक्षिप्त विवरण: गुजरात में कच्छ प्रदेश के उतरीय विभाग खडीर में धोलावीरा गांव के पास पांच हजार साल पहले विश्व का यह प्राचीन महानगर था। उस जमाने में लगभग 50,000 लोग यहाँ रहते थे। 4000 साल पहले इस महानगर के पतन की शुरुआत हुई। सन 1450 में वापस यहां मानव बसाहट शुरु हुई।
यहाँ उत्तर से मनसर और दक्षिण से मनहर छोटी नदी से पानी जमा होता था। हड़प्पा संस्कृति के इस नगर की जानकारी 1960 में हुई और 1990 तक इसकी खुदाई चलती रही। हड़प्पा, मोहन जोदडो, गनेरीवाला, राखीगढ, धोलावीरा तथा लोथल ये छः पुराने महानगर पुरातन संस्कृति के नगर है। जिसमें धोलावीरा और लोथल भारत में स्थित है।
स्थल | मांडा |
अवस्थिति | जम्मू-कश्मीर |
खोजकर्ता का नाम | जे.पी. जोशी |
वर्ष | 1976-77 |
नदी/सागर तट | चिनाब |
मांडा स्थल का संक्षिप्त विवरण: मांडा एक गाँव है और जम्मू और कश्मीर के भारतीय केंद्र शासित प्रदेश में एक पुरातात्विक स्थल है। इसकी खुदाई भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा 1976-77 के दौरान जे.पी. जोशी द्वारा की गई थी। साइट में एक प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के खंडहर हैं।
मांडा, जम्मू से 28 किमी उत्तर पश्चिम में पीर पंजाल रेंज की तलहटी में चिनाब नदी के दाहिने किनारे पर स्थित है और इसे हड़प्पा सभ्यता की सबसे उत्तरी सीमा माना जाता है। इसे सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे उत्तरी स्थल माना जाता है। इसे हिमालय की उप पहाड़ियों से लकड़ी खरीदने और सिंधु घाटी सभ्यता के अन्य शहरों में भेजने के लिए स्थापित स्थल माना जाता है।
स्थल | दैमाबाद |
अवस्थिति | महाराष्ट्र |
खोजकर्ता का नाम | बी॰ पी॰ बोपर्दिकर |
वर्ष | 1990 |
नदी/सागर तट | प्रवरा |
दैमाबाद स्थल का संक्षिप्त विवरण: दैमाबाद गोदावरी नदी की सहायक प्रवरा नदी के तट पर स्थित एक निर्जन गाँव तथा पुरातत्व स्थल है, जो कि भारत के महाराष्ट्र राज्य के अहमदनगर ज़िले में है। यह स्थान बी॰ पी॰ बोपर्दिकर द्वारा खोजा गया था। इस स्थान की भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा तीन बार खुदाई की जा चुकी है।
पहली खुदाई 1958-59 में एम॰ एन॰ देशपांडे के नेतृत्व में हुई। दूसरी खुदाई एस॰ आर॰ राव के नेतृत्व में 1974-75 में हुई। अंतिम खुदाई एस॰ ए॰ सली के नेतृत्व में 1976-79 में हुई। दैमाबाद में हुई खोजों से सिन्धु घाटी सभ्यता के दक्खन के पठार तक विस्तार का निष्कर्ष निकाला गया। दैमाबाद बहुत से कांस्य के सामानों के लिये प्रसिद्ध है, जिसमे से कुछ सिन्धु घाटी सभ्यता के काल के हैं।
स्थल | देसलपुर |
अवस्थिति | गुजरात |
खोजकर्ता का नाम | के. वी. सुन्दराजन |
वर्ष | 1964 |
नदी/सागर तट | – |
देसलपुर स्थल का संक्षिप्त विवरण: गुजरात के भुज ज़िले में स्थित देसलपुर की खुदाई पी.पी. पाण्ड्या और एक. के. ढाके द्वारा किया गया। बाद में सौनदरराजन द्वारा भी उत्खनन किया गया। इस नगर के मध्य में विशाल दीवारों वाला एक भवन था जिसमें छज्जे वाले कमरे थे जो किसी महत्त्वपूर्ण भवन को चिह्नित करता है।
स्थल | भिरड़ाना |
अवस्थिति | हरियाणा |
खोजकर्ता का नाम | भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग |
वर्ष | 2014 |
नदी/सागर तट | सरस्वती नदी |
भिरड़ाना स्थल का संक्षिप्त विवरण: भिरड़ाना भारत के उत्तरी राज्य हरियाणा के फतेहाबाद जिले का एक छोटा सा गाँव है। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के दिसम्बर 2014 के शोध से पता चला है कि यह सिंधु घाटी सभ्यता का अबतक खोजा गया सबसे प्राचीन नगर है जिसकी स्थापना 4540 ईसापूर्व में हुई थी। 2003-2004 में किए गए उत्खनन में इस नगर की खोज हुई थी।
मोहन जोदड़ो की कास्य की नर्तकी की नक़ल जो बर्तन पर उकेरी गयी थी यहाँ से प्राप्त हुई थी। नवपाषाण युग में भिरड़ाना एक छोटा सा ग्राम था, ताम्र पाषाण युग में यहाँ नगर व्यवस्था आई, कांस्य युग के आते आते यह राखीगढ़ी, मोहनजोदड़ो, सुमेर आदि अपने सभी समकालीन महानगरो की तरह एक समृद्ध महानगर बना।
सिंधु घाटी सभ्यता का आर्थिक जीवन कृषि, पशुपालन, व्यापार तथा उद्योग पर आधारित था। सिंधु सभ्यता के निवासियों का मुख्य पेशा कृषि था। कृषि के साथ ही पशुपालन और व्यापार अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार थे।
सिंधु और उसकी सहायक नदियाँ हर वर्ष उर्वरक मिट्टी बहा कर लाया करती थी जिसपर पत्थर और कांस्य से बने उपकरण और औजारों का प्रयोग कर खेती किया करते थे।
सिंधु घाटी सभ्यता का धार्मिक जीवन / हड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन : सिंधु सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन प्रमुखतः मातृ देवी पूजन पर आधारित था। खुदाई में काफी अधिक संख्या में नारी की मूर्तियां मिली हैं जिससे यह ज्ञात होता है कि सैन्धव वासी मातृ देवी की पूजा किया करते थे और परिवार में भी स्त्री के आदेशों का ही अनुसरण किया जाता था।
सिंधु घाटी सभ्यता शिल्प तथा उद्योग धन्धे में कताई-बुनाई, आभूषण, बर्तन और औजार आदि कई वस्तुओं का निर्माण किया करते थे। यातायात के लिए बैलगाड़ी और भैंसागाड़ी का प्रयोग कर देश-विदेश से व्यापार किया करते थे।
सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के लोग कृषि और पशुपालन के साथ-साथ शिल्प कला तथा उद्योग धन्धों में भी बढ़ चढ़कर-रूचि लिया करते थे।
सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के शिल्प कला तथा उद्योग धन्धे —
सिंधु घाटी सभ्यता का सामाजिक जीवन : सिंधु घाटी सभ्यता का सामाजिक जीवन सुखी तथा सुविधापूर्ण था। सिंधु सभ्यता का सामाजिक जीवन का मुख्य आधार परिवार था। सिंधु वासियों में अमीर-गरीब में कोई भेदभाव नहीं था।
सिंधु सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता का सामाजिक जीवन निम्नवत था-
सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना ही सिंधु सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता थी। जालनुमा सड़कें व गालियाँ, सुनियोजित जल निकास प्रणाली एवं पक्की ईंटों का प्रयोग आदि कई विशेषताएँ सिंधु सभ्यता में देखने को मिलती हैं। सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस सभ्यता का सर्वप्रथम अवशेष हड़प्पा से ही प्राप्त हुआ था।
सिंधु घाटी सभ्यता का पतन : सिंधु घाटी सभ्यता का पतन कैसे हुआ या सिंधु घाटी सभ्यता का अंत कैसे हुआ ? सिंधु घाटी सभ्यता का अंत इस सभ्यता के तक़रीबन 1000 हजार साल तक रहने के बाद हुआ। इस सभ्यता का पतन कब और कैसे हुआ इस बारे में विद्वानों के कई मत हैं और कोई भी एक कारण या समय ज्ञात नहीं है।
सिंधु सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण निम्न हैं -
अधिकतर विद्वानो का मत है की इस सभ्यता का पतन बाढ़ के प्रकोप के कारण ही हुआ, हालाँकि सिंधु सभ्यता का विकास नदी घाटी क्षेत्र में ही हुआ था तो इस क्षेत्र में बाढ़ का आना स्वाभाविक था, इसलिए यह तर्कसंगत लगता है कि इस सभ्यता का अंत बाढ़ आने के कारण हुआ हो।
वही कुछ विद्वानो का मत है की केवल बाढ़ आने से इतनी विशाल सभ्यता का पतन नहीं हो सकता है। इसलिए बाढ़ के अलावा और भी कई कारणों जैसे – आग लग जाना, महामारी, बाहरी आक्रमण आदि अन्य कई कारणों से इस सभ्यता के अंत का समर्थन कई विद्वान करते हैं।
विद्वान (विचारक) | विचार (मान्यता) |
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स्टुअर्ट, पिगॉट और गॉर्डन-चाइल्ड | बाहरी आक्रमण (आर्य द्वारा आक्रमण) |
एम.आर साहनी | बाढ़ आना (जलप्लावन) |
मार्शल, एस.आर राव और मैकी | बाढ़ |
जी.एफ हेल्स | घग्गर के बहाव में परिवर्तन के कारण विनाश |
के.वी.आर केनेडी | महामारी |
मार्शल और रायक्स | भू-तात्विक परिवर्तन (Tectonic Disturbances) |
ऑरेल स्ट्रेन और ए.एन घोष | जलवायु में परिवर्तन |
वाल्टर फेयरसर्विस | वनों की कटाई, संसाधनों की कमी और पारिस्थितिकीय असंतुलन |
व्हीलर | व्हीलर ने अपनी किताब प्राचीन भारत में उल्लेख किया है कि सिंधु सभ्यता का पतन वास्तव में बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन, आर्थिक और राजनीतिक बदलावों के कारण हुआ था। |
जॉर्ज डेल्स | जॉर्ज डेल्स ने द मिथिकल नरसंहार ऐट मोहन जोदड़ो में व्हीलर द्वारा दिए गए घुसपैठ के सिद्धांत को नकारते हुए तर्क दिया है कि पाए गए कंकाल हड़प्पा काल से संबंधित नहीं थे और समाधी या दफ़न करने का तरीका हड़प्पा काल से मिलता नहीं है। अतः इस सभ्यता का पतन नरसंहार के कारण नहीं हुआ है। |
इस सभ्यता के लोग शिव की पूजा किरात (शिकारी), नर्तक, धनुर्धर और नागधारी के स्वरूप में करते थे। मातृदेवी (देवी के सौम्य एवं रौद्र रूप की पूजा)। पृथ्वी (एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से पौधा निकलता दिखाया गया है जोकि अवश्य ही पृथ्वी का स्वरूप है)। प्रजनन शक्ति (लिंग) की पूजा। वृक्ष (पीपल और बबुल), पशु (कूबड़ वाला सांड और वृषभ), नाग तथा अग्नि की पूजा भी करते थे।
लोथल में हाथी दांत से बना एक पैमाना प्राप्त हुआ है, मोहनजोदड़ो से सेलखड़ी तथा सीप का बना बाट आदि माप-तोल के यंत्र प्राप्त हुये हैं, जिससे माना जाता है कि सिंधु सभ्यता (हड्डपा सभ्यता) के लोग माप-तोल की इकाई से चित-परिचित थे।
इस सभ्यता के लोग तांबा, सोना, चाँदी, सीसा, टिन आदि धातुओं का प्रयोग करते थे। कुछ पुरातत्वविदों द्वारा माना जाता है की पहली बार चाँदी का प्रयोग सिंधु सभ्यता में ही किया गया था। सबसे अधिक ताँबे का प्रयोग किया जाता था।
प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि सिंधु सभ्यता के लोगों द्वारा परिवहन के लिये बैलगाड़ी और नाव का प्रयोग किया जाता था। हड़प्पा और चाँहूदड़ो से काँसे की बैलगाड़ी प्राप्त हुई है तथा बनवाली में सड़कों पर बने बैलगाड़ी के पहियों के निशान प्राप्त हुये हैं, जिससे यह माना जा सकता है कि इस सभ्यता के लोग आवागमन के लिये बैलगाड़ी का प्रयोग करते होंगे। लोथल से पक्की मिट्टी की नाव तथा मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहरों में नाव के प्रयोग से यह प्रमाणित होता है कि जल मार्ग पर नाव या जहाज का प्रयोग किया जाता था, जिसका प्रमाण नदियों के किनारे बसे लोथल, रंगपुर, बालाकोट, सुत्काकोह आदि प्रमुख बंदरगाह नगर भी हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता का पत्तन नगर (बन्दरगाह) कौन-सा है?
लोथल
पैमानों की खोज ने यह सिद्ध कर दिया है की सिंधु घाटी के लोग माप और तौल से परिचित थे। यह खोज कहाँ पर हुई थी?
हड़प्पा में
सिंधु घाटी की सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या था?
व्यापार
सिंधु घाटी स्थल, कालीबंगन किस प्रदेश में है?
राजस्थान
सिंधु घाटी की प्राचीन संस्कृति और आज के हिंदू धर्म के बीच जैव (ओर्गेनिक) संबंध का प्रमाण किसकी पूजा से मिलता है?
शिव और शक्ति
सिंधु घाटी के लोगों की एक महत्वपूर्ण रचना किसकी मूर्ति थी?
नृत्य करती हूई बालिका
सिंधु घाटी सभ्यता का बंदरगाह वाला नगर था-
लोथल
सिंधु घाटी सभ्यता का विशाल स्नानागार कहाँ पाया गया?
मोहनजोदड़ो
सिंधु घाटी सभ्यता की प्रमुख विशेषता क्या थी?
नगर सभ्यता
सिंधु घाटी के लोग किसकी उपासना करते थे?
पशूपति
प्रश्न: सिन्धु घाटी का विशाल स्नानागार किस स्थान से सम्बन्धित था?
कालीबंगन
रत्नावली
मोहनजोदड़ों ✅
धोलावीरा
प्रश्न: हड़प्पा की सभ्यता किससे संबंधित है?
कांस्य युग से ✅
त्रेता युग से
सत्य युग से
कलयुग से
प्रश्न: सिन्धु-घाटी के लोग किस वृक्ष की पूजा करते है?
आम
पीपल ✅
बरगद
वट
प्रश्न: हड़प्पा के लोगों की समाजिक पद्धित कैसी थी?
उचित पूंजीवादी
उपयुर्क्त दोनों
उचित समतावादी ✅
इनमे से कोई नही
प्रश्न: "हड़प्पा सभ्यता" का सर्वप्रथम खोजकर्ता कौन है?
दयाराम साहनी ✅
इनमे से कोई नही
रखालदास बनर्जी
सर जॉन मार्शल
प्रश्न: सिंधु घाटी सभ्यता का पत्तन नगर (बन्दरगाह) कौन-सा है?
धौलिवारा
मोहन जोदड़ो
लोथल ✅
राखीगढ़ी
प्रश्न: कालिबंगन किस प्रदेश में विद्यमान है?
राजस्थान ✅
हरियाणा
पंजाब
हिमाचल प्रदेश
प्रश्न: पैमानों की खोज ने यह सिद्ध कर दिया है की सिंधु घाटी के लोग माप और तौल से परिचित थे। यह खोज कहाँ पर हुई थी?
कालीबंगन मे
मोहनजोदाडो मे
हड़प्पा में ✅
राखीगढ़ी मे
प्रश्न: हड़प्पा-काल की मुद्राओं के निर्माण में मुख्य रूप से किस द्रव्य का उपयोग किया है?
कांसा
लोहा
टेराकोटा ✅
ताँबा
प्रश्न: मोहनजोदडो का स्थानीय नाम क्या है?
सिंधुप्रेरक
देवभूमि
सुंदर स्थानीय पवन
मरे हुए (मृतकों) का टीला ✅
प्रश्न: सिन्धु घाटी सभ्यता की खोज के साथ किसका नाम जुड़ा था?
इनमे से कोई नही
सर विसेंट स्थिम
सर मोर्टीमर ह्वीलर ✅
सर एलेक्जेंडर कनिंघम
प्रश्न: हड़प्पा के निवासी कैसे थे?
अशिक्षित
जंगली
शिक्षित
शहरी ✅
प्रश्न: हड़प्पा की सभ्यता किस युग की थी?
लौह युग
नवपाषाण युग
कांस्य युग ✅
पुरापाषाण युग
प्रश्न: सिंधु घाटी की सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या था?
लूट-पाट
कृषि
व्यापार ✅
मजदूरी
प्रश्न: सिंधु घाटी स्थल, कालीबंगन किस प्रदेश में है?
राजस्थान ✅
उत्तर प्रदेश में
गुजरात में
मध्य प्रदेश में
प्रश्न: किस द्रव्य-धातु का उपयोग हड़प्पा काल की मुद्राओं के निर्माण में मुख्य रूप से किया गया था?
सोना
चांदी
काँसा ✅
ताँबा
प्रश्न: भारत में खोजा गया सबसे पहला पुराना शहर कौन था?
हड़प्पा ✅
सिंध
पंजाब
मोहनजोदड़ो
प्रश्न: हड़प्पा सभ्यता की खोज किस वर्ष में हुई थी?
1925 ई० में
1922 ई० में ✅
1924 ई० में
1920 ई० में
प्रश्न: सिंधु घाटी की प्राचीन संस्कृति और आज के हिंदू धर्म के बीच जैव (ओर्गेनिक) संबंध का प्रमाण किसकी पूजा से मिलता है?
विष्णु और लक्ष्मी
राम और सीता
शिव और शक्ति ✅
गणेश और कार्तिकेय
प्रश्न: सिंधु घाटी के लोगों की एक महत्वपूर्ण रचना किसकी मूर्ति थी?
बुद्ध
नरसिम्हा
नटराज
नृत्य करती हूई बालिका ✅
प्रश्न: सिन्धु घाटी सभ्यता की मुख्य विशेषता क्या थी?
मोहरें
व्यापार
उनत्त जल निकास प्रणाली
व्यवस्थित्त शहरी जीवन ✅
प्रश्न: सिंधु घाटी सभ्यता का बंदरगाह वाला नगर था-
धोलावीरा
लोथल ✅
कालीबंगन
मोहनजोदड़ो
प्रश्न: सिंधु घाटी सभ्यता का विशाल स्नानागार कहाँ पाया गया?
कालीबंगन
मोहनजोदड़ो ✅
हड़प्पा
धोलावीरा
प्रश्न: सिन्धु घाटी सभ्यता के शहरों की गलियाँ कैसी थी ?
चौड़ी और सीधी ✅
चौड़ी और टेढ़ी
इनमे से कोई नही
सीधी और पतली
प्रश्न: सिंधु घाटी सभ्यता की प्रमुख विशेषता क्या थी?
उजड़ी सभ्यता
बसाई गई सभ्यता
उच्च कोटि की सभ्यता
नगर सभ्यता ✅
प्रश्न: सिंधु घाटी के लोग किसकी उपासना करते थे?
राम
शंकर
पशूपति ✅
विष्णु
प्रश्न: मोहनजोदड़ो में सबसे बड़ा भवन कौन-सा है?
दो मंजिला मकान
विशाल स्नानागार ✅
सस्तंभ हॉल
धान्यागार
प्रश्न: किस जिला में मोहनजोदड़ो स्थित है?
ताजिकिस्तान
लाहौर
कराची
लरकाना (पाकिस्तान कै सिन्ध प्रान्त में) ✅
प्रश्न: सिन्धु घाटी के वासियों द्वारा किसकी खेती रबी फसल के रूप में की जाती थी?
जुट
मक्का
चावल
गेहूँ ✅
प्रश्न: सिंधु घाटी की सभ्यता की नगर योजना की अति विशिष्ट विशेषता क्या थी?
सड़क प्रणाली ✅
नाली प्रणाली
इनमे से कोई नही
विशाल स्नानागार
प्रश्न: सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि कौन-सी है?
खरोष्ठी
गोंडी
अज्ञात ✅
ब्राह्मी
प्रश्न: सिंधु घाटी सभ्यता का गोदी-बाड़ा लोथल यहाँ स्थित है
पंजाब
गुजरात ✅
पाकिस्तान
हरियाणा
प्रश्न: सिंधु घाटी की सभ्यता के लोग किसकी पूजा करते थे?
विष्णु
ब्रह्रा
इंद्र
पशुपति ✅
प्रश्न: मोहनजोदड़ो में सबसे बड़ी इमारत कौन-सी है?
आयताकार भवन
ग्रेट ग्रैनरी ✅
एसेंबली हॉल
ग्रेट बाथ