कुषाण वंश - कुषाण वंश का संस्थापक, इतिहास और पतन के कारण

  Last Update - 2023-06-07

कुषाण वंश (Kushan Empire) : कुषाण वंश का संस्थापक कौन था, कुषाण वंश का इतिहास, कुषाण वंश के बारे में जानकारी, कुषाण वंश के सिक्के, कुषाण वंश के पतन के कारण आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं।

कुषाण वंश का संस्थापक कौन था

कुषाण वंश का संस्थापक कुजुल कडफ़ाइसिस (Kujula Kadphises) था। कुषाण वंश भारत के प्राचीनतम राजवंशों में से एक था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि कुषाण वंश चीन के यूएझी मूल के लोगों से संबंधित था, जिन्होंने बाद में कुषाण संस्कृति को अपनाकर कुषाण वंश की स्थापना की। कुषाण वंश के अधिकतर लोग चीन में स्थित कानसू नामक स्थान पर निवास किया करते थे। ऐसा माना जाता है कि कुषाण वंश चीन की कोयू-ची जाति के थे जिनका कुछ समय उपरांत विभाजन हो गया। कुषाण वंश की स्थापना 15 ईसवी में काबुल, कंधार, यवन, सिंध व पेशावर के राजाओं को पराजित करने के उपरांत हुई थी।

कुषाण वंश का इतिहास

ऐतिहासिक प्रमाणिकता के आधार से यह माना जाता है कि कुषाण वंश का उदय चीन के पश्चिमी भू-भाग से हुआ था। इससे क्षेत्र में अधिकतर “यूएझी” नामक जनजाति का निवास हुआ करता था। ऐसा माना जाता है कि कुषाण वंश से संबंध रखने वाले हुयगानू जाति के लोगों एवं यूएझी राजा के मध्य होने वाले युद्ध के पश्चात हुयगानू जनजाति के लोग ईली नदी के समीप जाकर अपना जीवन यापन करने लगे जिसके बाद वहां रह रहे वहसून नामक कबीलों से उनका दोबारा सामना हुआ। परंतु इस बार वहसून समुदाय के लोगों से उनको हार का सामना करना पड़ा। तत्पश्चात हुयगानू समुदाय ने भारत में प्रवेश किया और ईली नदी के समीपवर्ती क्षेत्रों में बस गए जिसके बाद उन्हें ह्यूची के नाम से जाना जाने लगा। भारत में प्रवेश के पश्चात कुषाण वंश के शासकों ने भारतीय संस्कृति एवं परंपराओं को स्वीकार किया जिसके बाद उन्हें भारत में एक नई पहचान मिली।

कुषाण वंश के बारे में जानकारी

कुषाण वंश युइशि जाति की वह शाखा थी जिसने अन्य चार युइशि राज्यों को हराकर अपना साम्राज्य कायम किया था। कुजुल कडफ़ाइसिस वह राजा था जिसने पाँचों युइशि राज्यों को एकत्रित कर अपनी शक्ति का उत्कर्ष किया। माना जाता है कि कुजुल कडफ़ाइसिस का शासनकाल 15- 60 ईसा के मध्य था। इस दौरान कुजुल कडफ़ाइसिस ने अपने साम्राज्य में तांबे के सिक्के जारी किए एवं स्वयं को महाराज की उपाधि दी। 60 ईसा पूर्व में कुजुल कडफ़ाइसिस के मृत्यु के पश्चात विम कडफ़ाइसिस ने राज्य भार संभाला जो कुजुल कडफ़ाइसिस के पुत्र थे। विम कडफ़ाइसिस ने अपने कार्यकाल में कुषाण वंश को भारत के पंजाब, कश्मीर, मथुरा एवं तक्षशिला जैसे राज्यों में फैला दिया। विम कडफ़ाइसिस कुषाण वंश के पहले ऐसे शासक थे जो भारतीय संस्कृति में अपनी रूचि रखते थे, परंतु विम कडफ़ाइसिस का शासनकाल केवल 18 वर्षों तक ही रहा। इस दौरान उन्होंने महेश्वर, राजाधिराज, महाराजा एवं सर्वलोकेश्वर जैसी कई उपलब्धियां हासिल की।

सम्राट कनिष्क कुषाण वंश के तीसरे कुशल शासक थे जो महाराजा विम कडफ़ाइसिस के पुत्र थे। इन्होंने 78 ईसवी में कुषाण साम्राज्य को संभाला था। सम्राट कनिष्क ने पाकिस्तान एवं आधुनिक पेशावर को अपनी पहली राजधानी बनाया तथा मथुरा को अपनी दूसरी राजधानी बनाया। सम्राट कनिष्क को एकमात्र ऐसा राजा माना जाता है जिनकी तुलना सम्राट अशोक से की जाती है। सम्राट कनिष्क ने कनिष्कपुर नामक सुंदरनगर का निर्माण किया एवं वहां कई प्रकार के स्तूपों का भी निर्माण करवाया। सम्राट कनिष्क ने कई देशों में युद्ध करके चीन पर अपनी विजय कायम की और चीन की विस्तारवादी नीति पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया। इसके साथ ही सम्राट कनिष्क ने बौद्ध धर्म की संस्कृति को पूरे विश्व में फैलाया जिसके कारण बौद्ध धर्म को संसार में एक नई पहचान मिली। सम्राट कनिष्क ने संस्कृत भाषा को अपनी राजभाषा के रूप में अपनाया एवं बौद्ध धर्म के अधिकतर ग्रंथों को संस्कृत भाषा में दोबारा लिखवाया। सम्राट कनिष्क ने अपने शासनकाल में सर्वप्रथम मथुरा में भगवान बुद्ध की मूर्ति का भव्य निर्माण कराया। सम्राट कनिष्क की मृत्यु पेशावर में 151 ईसवी में हुई थी।

कुषाण वंश का साहित्य और कला में योगदान

कुषाण वंश का साहित्य एवं कला में बेहद महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इन्होंने अपने शासनकाल में कई बौद्ध विद्वानों एवं साहित्यकारों को अपने राज्य में आश्रय दिया, जिसके फलस्वरूप विश्व के कई प्रसिद्ध विद्वानों ने कुषाण वंश के शासकों को ज्ञान व शिक्षा प्रदान की। कुषाण वंश के साम्राज्य में कई प्रसिद्ध विद्वान जैसे नागार्जुन, अश्वघोष एवं वसुमित्र निवास किया करते थे। इन बड़े-बड़े विद्वानों ने कुषाण वंश के शासन काल में इतिहास की सबसे प्रचलित में “चरक संहिता” की रचना की जो आयुर्वेद के संबंध में बेहद विशिष्ट रचना मानी जाती है।

कुषाण वंश के सिक्के

कुषाण वंश के विभिन्न राजाओं ने अलग-अलग शासनकाल में कई प्रकार के सिक्कों को जारी किया जैसे :-

तांबे के सिक्के

तांबे के सिक्के राजा कुजुल कडफ़ाइसिस ने 15 - 60 ईसवी के मध्य जारी किए थे जिन पर एक तरफ यूनानी राजा हरमियस एवं दूसरी तरफ कुजुल कडफ़ाइसिस की आकृति बनाई गई थी।

सोने व तांबे के सिक्के

राजा विम कडफ़ाइसिस ने अपने राज्य में सोने व तांबे के सिक्के जारी किए जो यूनानी लिपि एवं खरोष्ठी लिपि में हुआ करते थे। इसके अलावा विम कडफ़ाइसिस ने अपने शासनकाल में त्रिशूल, शिव एवं बैल की आकृति वाले सिक्कों को को भी जारी किया था, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि कुषाण वंश भारतीय संस्कृति में रूचि रखते थे।

कुषाण वंश के पतन के कारण

कुषाण वंश के राजा कनिष्क की मृत्यु के पश्चात कुषाण वंश का पतन शुरू हो गया था। कुषाण वंश प्राचीन काल से ही एक विशाल साम्राज्य था जिसके पतन के कारण निम्नलिखित हैं :-

  • सम्राट कनिष्क की मृत्यु के बाद कुषाण वंश की शासन प्रणाली पूर्णता सैन्य व्यवस्था पर निर्भर हो गई थी जिसके फलस्वरूप कुषाण वंश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ़ नहीं हो सकी।
  • सम्राट कनिष्क की मृत्यु के पश्चात कुषाण वंश के शासकों ने कई छोटे-मोटे राजा की अधीनता को स्वीकार कर लिया जिसके कारण कुषाण साम्राज्य कई भागों में विभाजित हो गया। इसके फलस्वरूप कुषाण वंश के साम्राज्य में एकता की कमी हुई जो आगे चलकर कुषाण वंश के पतन का कारण बनी।
  • कुषाण वंश ने जिन राजाओं की अधीनता को स्वीकार किया था वह कुषाण वंश की प्रजा को परस्पर सुख नहीं दे सकी जिसके कारण कुषाण वंश के शासकों ने राजा के विरोध शुरू कर दिया।
  • सम्राट कनिष्क कुषाण वंश के अंतिम कुशल शासक थे परंतु उनके द्वारा किए गए लोक कल्याण कार्य जनता के लिए प्रभावशाली साबित नहीं हो सके जिसके कारण कुषाण वंश का पतन हो गया।

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