बहुदलीय व्यवस्था क्या है
जहाँ सत्ता की होङ में दो दलों से ज्यादा हो तथा वो दल स्वयं या दूसरे दलों से गठबंधन करके सरकार बनाने और चलाने के प्रबल दावेदार बनते हों तो उसे बहुदलीय व्यवस्था (Bahudaliya Vyavastha) कहते है। जहाँ दो से अधिक दल राजनीति में सक्रिय होते हैं, वहाँ बहुदलीय व्यवस्था (Bahudaliya Vyavastha) होती है। बहुदलीय प्रथा वाले देशों में प्रायः किसी दल को बहुमत नहीं मिल पाता। अतः कोई एक दल सरकार नहीं बना सकता।
बहुदलीय व्यवस्था किसे कहते हैं
वह प्रणाली जिसमें कई दलों और पार्टियों की प्रधानता पायी जाती है। सभी दल सरकार बनाने की प्रतिस्पर्धा में लगे रहते है। कई दलों को मिलाकर सांझा सरकार बनती है। इसे ही बहुदलीय प्रणाली (Multi Party System) कहते है।
बहुदलीय व्यवस्था की परिभाषा
प्रो. एन. आर. देशपाण्डे के अनुसार, ऐसी सरकार को लगातार विपरीत दिशाओं में खींचा जाता है और दल-बदलुओं के कारण सदैव सरकार के गिरने का खतरा बना रहता है।
सार्टोरी के अनुसार, यहाँ पर किसी को भी पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं होता है और ना ही भविष्य में चुनावी प्रतिनिधि की गारण्टी दी जा सकती है। इस सरकार की स्थिरता हमेशा संदेहास्पद रहती है। यद्यपि दुनिया के कुछ देशों में सफल गठबंधन की सरकारों को देखा गया है। फिर भी इटली जैसे देशों का अनुभव अत्यधिक बुरा रहा है।
बहुदलीय व्यवस्था वाले देश
- फ्रांस
- ऑस्ट्रेलिया
- इटली
- इजरायल
- हाॅलैण्ड
- जर्मनी
- जापान
- भारत
- स्विट्जरलैंड
- पुर्तगाल
- स्पेन
- पाकिस्तान
- ब्राजील
- मैक्सिको
- आयरलैण्ड
- कनाडा
- डेनमार्क
- न्यूजीलैण्ड
- अफ्रीका ।
यूरोप के अधिकांश राज्यों में तथा अफ्रीका और एशिया के नवोदित स्वतंत्र हुए देशों में प्रायः बहुदलीय पद्धति है। बहुदलीय पद्धति का एक अद्भुत उदाहरण फ्रांस में मिलता है। वीमर संविधान में भी बहुत से दल थे, परन्तु प्रत्येक दल के विरोध में शेष समस्त दल संगठित होकर एक संयुक्त दल के रूप में कार्य करते थे।
भारत में भी बहुदलीय प्रणाली क्रियाशील रही है। भारत में इतने अधिक दल हैं कि उनकी संख्या निश्चित करना ही कठिन है। प्रथम आम चुनाव के बाद लोकसभा में 23 दलों के प्रतिनिधि पहुँचे। भारत मेें कई दलों के रहते हुए भी केन्द्र में मार्च, 1977 तक एक दल का ही बहुमत रहा।
जब किसी बहुदलीय व्यवस्था में अनेक पार्टियाँ चुनाव लङने और सत्ता में आने के लिए आपस में हाथ मिला लेती हैं तो इसे गठबंधन या मोर्चा कहा जाता है। जैसे 2004 के संसदीय चुनाव में भारत में ऐसे तीन प्रमुख गठबंधन थे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन और वाम मोर्चा।
अक्सर बहुदलीय व्यवस्था (Multi Party System) बहुत घालमेल वाली लगती है और देश को राजनीति अस्थिरता की तरफ ले जाती है। पर इसके साथ ही इस प्रणाली में विभिन्न हितों और विचारों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिल जाता है।
जिस समाज में अनेक दलें सरकार बनाने के लिए प्रतिस्पर्धा करती है, उस समाज में बहुदलीय व्यवस्था होती है। बहुदलीय व्यवस्था में यदि संसदीय व्यवस्था को अपनाया जाता है तो कोई भी राजनीतिक दल अकेले ही मंत्रिमंडल का निर्माण करने की स्थिति में नहीं होता है और मिले-जुले मंत्रिमंडल का निर्माण किया जाता है। वर्तमान में भारत में यही स्थिति विद्यमान है।
भारत भी एक ऐसा देश है जहां अनेक दल सरकार बनाने के लिए कोशिश करते हैं। बहुदलीय वाले समाजों में मतदाताओं के पास अधिक विकल्प होते हैं, जिनके द्वारा वे किसी भी दल को अपने मत द्वारा सरकार बनाने में सफल करते हैं जो उनके कल्याण कार्य करने में सक्षम प्रतीत होते हैं।
इस पद्धति में (बहुदलीय व्यवस्था वाली पद्धति में), संसद में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त ना होने की वजह से स्थाई सरकार बनाना संभव नहीं होता है। इस परिस्थिति में सरकार बनाने के लिए अन्य दलों में सहयोग लेते हैं, मदद लेते हैं। इस प्रकार की सरकार को बहुदलीय व्यवस्था वाली सरकार कहते हैं।
बहुदलीय व्यवस्था नए मुद्दों के राजनीतिकरण का आधार बनती है। यह उन देशों में बहुत लोकप्रिय है जो फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली के बाद आनुपातिक प्रतिनिधित्व चुनावी प्रणाली अपनाये हुए है। इस व्यवस्था में सभी दलों को सरकार बनाने के पर्याप्त अवसर मिलते है।
इस व्यवस्था में अगर कोई दल सरकार बनाने के लिए आवश्यक वोट प्राप्त नहीं करता तो वह अन्य पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना सकता है इसे गठबंधन की सरकार कहा जाता है। यह व्यवस्था किसी भी दल के ध्रुवीकरण का दमन करके गठबंधन की सरकार के साथ-साथ केन्द्रवाद को भी बढ़ावा देती है।
बहुदलीय व्यवस्था के गुण
बहुदलीय व्यवस्था के गुणों का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है
(1) निरंकुश बहुमत से मुक्ति
बहुदलीय प्रणाली में द्वि-दलीय व्यवस्था की बहुमत की तानाशाही से मुक्ति मिल जाती है। इसमें मिले-जुले मंत्रिमंडल का निर्माण होता है, जो कभी स्वेच्छाचारी या तानाशाही का रूप धारण नहीं कर सकता। शासन-कार्य हमेशा आदान-प्रदान और समझौते की भावना से चलता है। साझा अथवा मिली-जुली सरकारें कभी भी निरंकुश नहीं हो सकती।
(2) पसंदगी का व्यापक क्षेत्र
बहुदलीय व्यवस्था में पसंदगी का क्षेत्र अनेक दलों के माध्यम से व्यापक हो जाता है। इसमें मतदाताओं को उन दलों के प्रत्याशियों को मत देने का अधिक अवसर मिलता है जो उनके विचारों के अधिक निकट होते हैं। इसमें मतदाताओं की स्वतंत्रता का दायरा बढ़ जाता है। जनता की राय में बदलाव लाने के लिए बहुदलीय व्यवस्था अधिक उत्तरदायी है।
(3) राष्ट्र दो विरोधी गुटों में नहीं बंटता
इस दल-पद्धति वाले देश, दो विरोधी गुटों में बंटने से बच सकते हैं। दलीय अनुशासन की भावना कठोर न होने के कारण, बहुदलीय पद्धति वाले देशों में दलबंदी की भावना को बढ़ा-चढ़ाकर प्रदर्शित नहीं किया जाता।
(4) सभी वर्गों व हितों का व्यवस्थापिका में प्रतिनिधित्व
बहुदलीय व्यवस्था में समाज के सभी वर्गों और हितों को विधानमण्डल में प्रतिनिधित्व का अवसर मिल जाता है। इस प्रकार राष्ट्र के सभी वर्गों के विचारों को वहाँ सुना जा सकता है। बहुदलीय पद्धति वाले देशों की विधायिका और कार्यपालिका में किसी एक या दो दलों की प्रधानता नहीं रहती, बल्कि सभी दल समकक्ष होते हैं। विधायिका तथा कार्यपालिका में कई दलों को प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है। इस भाँति विभिन्न वर्गों तथा हितों को शासन में पूर्ण प्रतिनिधित्व मिल जाता है।
(5) प्रशासन में योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति
बहुदलीय शासन प्रणाली में संयुक्त मंत्रिमंडल होने से भिन्न-भिन्न दलों के योग्य व्यक्तियों को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाता है।
(6) बहुदलीय व्यवस्था की प्रकृति पारदर्शी
बहुदलीय व्यवस्था की प्रकृति बहुत पारदर्शी है क्योंकि प्रकृति में समावेशी और समाज के कई वर्गों की जरुरतों के लिए उत्तरदायी है। बहुदलीय व्यवस्था में जनता या उम्मीदवारों से कुछ भी नहीं छुपाया जाता है। क्योंकि यह कई दलों वर्गों के मेल जोल से बनी व्यवस्था है। समाज के सभी दलों के प्रति उत्तरदायी है।
(7) संसदीय शक्ति का ह्रास नहीं
विधायिका की शक्तियों का वास्तविक निखार बहुदलीय व्यवस्था में ही आता है, क्योंकि मिली-जुली सरकार आसानी से विधायिका को भंग कराने की धमकी नहीं दे सकती है। मिली-जुली सरकार का अस्तित्व विधायिका की सद्भावना पर ही निर्भर है।
बहुदलीय व्यवस्था के दोष
(1) निर्बल तथा अस्थिर शासन
बहुदलीय मंत्रिमंडल स्वाभाविक रूप से निर्बल तथा अस्थिर होता है। बहुदलीय मंत्रिमंडल ऐसे व्यक्तियों का समूह होता है जिनमें सिद्धान्तों, प्रोग्रामों, नीतियों और विचारों में कोई एकरूपता नहीं पायी जाती। ऐसा मंत्रिमंडल यदि संयुक्त रहता भी है तो भी वह प्रभावपूर्ण ढंग से कार्य नहीं कर पाता है। बहुदलीय व्यवस्था से कई दलों की मिली-जुली सरकारों का निर्माण होता है।
कई दलों की मिली-जुली सरकारें खिचङी अथवा भानुमती के कुनबे के समान होती है। मिली-जुली सरकारें कई दलों से मिलकर बनती हैं। अतः उनके विचारों में साम्य और समन्वय स्थापित करना कठिन हो जाता है। जब किसी वैचारिक या नीति संबंधी प्रश्न पर इन दलों में झगङा होता है, तो साझा मंत्रिमंडल शीशे की भाँति टूट जाते हैं।
भारत के राज्यों में चतुर्थ आम चुनाव के बाद उत्तरप्रदेश, बिहार आदि राज्यों में ऐसी ही साझा सरकारें बनी थीं जो एकदम अस्थिर रहीं। केन्द्र और राज्यों में मार्च 1977 के आम चुनावों के बाद निर्मित जनता सरकारें भी बहुदलीय मेल का परिणाम होने के कारण अस्थिर सिद्ध हुई। बहुदलीय व्यवस्था के कारण ही फ्रांस को एक लम्बे समय तक राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजरना पङा था।
(2) नीति की अनिश्चितता
बहुदलीय प्रणाली में सरकारों की अस्थिरता के कारण नीति की अनिश्चितता होती है जिसका शासन के समस्त स्वरूप पर बुरा प्रभाव पङता है। अतः सरकारों के शीघ्र परिवर्तन के कारण नीतियों की अनिश्चितता उत्पन्न होती है और दीर्घकालीन नीतियों का निर्माण सम्भव नहीं हो पाता, जबकि आर्थिक विकास के लिए दीर्घकालीन नीतियों का निर्माण अनिवार्य होता है।
(3) विघटनकारी प्रवृत्तियों को बढ़ावा
दलों की बहुलता विघटनकारी प्रवृत्तियों को बढ़ावा देती है। भिन्न-भिन्न मत रखने वालों में अलगाव के तत्त्व गहरे पैठ जाते हैं जो फूट डालकर नये छोटे-छोटे दलों को जन्म देते हैं।
(4) उत्तरदायित्व का अभाव
बहुदलीय व्यवस्था में उत्तरदायित्व को निश्चित करना कठिन हो जाता है। इसमें प्रत्येक दल श्रेय तो प्राप्त करना चाहता है लेकिन त्रुटियों के लिए प्रत्येक दल दूसरे घटक दल को उत्तरदायी ठहराता है।
(5) कार्यपालिका की दुर्बल स्थिति
बहुदलीय शासन वाले देशों में कार्यपालिका दुर्बल होती है। प्रधानमंत्री को कई दलों को साथ लेकर चलना पङता है। उसे विभिन्न दलों को प्रसन्न रखते हुए, उनमें तालमेल स्थापित करना पङता हैै। यदि कोई भी दल किसी भी समय सरकार का समर्थन करना बन्द कर दे, तो सरकार का पतन हो जाता है।
(6) कार्यकुशलता में कमी
बहुदलीय व्यवस्था के अन्तर्गत राजनीतिक दलों के नेतृत्व का ध्यान सरकार तोङने, गठजोङ करने तथा किसी भी प्रकार से सरकार बनाने की ओर रहता है। बहुदलीय साझा सरकारें अपनी शक्ति और श्रम राजनैतिक कार्यों में ही नष्ट करती रहती हैं। मंत्रीगण कुर्सी बचाने की चिन्ता में व्यस्त रहते हैं और इस प्रकार प्रशासन की उपेक्षा हो जाती है। ऐसी स्थिति में प्रशासनिक कुशलता में कमी आती है और नौकरशाही का प्रभाव बढ़ जाता है।
(7) स्वार्थी नीतियों का प्रभुत्व
बहुदलीय पद्धति में सरकार जनता के निर्णय का परिणाम न होकर, चालाक और स्वार्थी राजनीतिज्ञों के पारस्परिक गठजोङ का परिणाम होती है। इससे शासन में स्वार्थी नीतियों का प्रभुत्व रहता है।
(8) नीति निर्माण में कठिनाई
बहुदलीय व्यवस्था में सरकार के कई राजनीतिक दल होते है जिससे नीति निर्माण में कठिनाई होती है। कई दलों के कारण सरकार के द्वारा बनाई गई नीति का विरोध अन्य दलों द्वारा किया जा सकता जिसके कारण नीति निर्माण में परेशानी होती है।
(9) राष्ट्र अनेक समूहों में विभाजित
बहुदलीय प्रणाली के कारण राष्ट्र परस्पर अनेक विरोधी गुटों में विभाजित हो जाता है। विभिन्न राजनीतिक दल अपनी विचारधाराओं के आधार पर देश के नागरिकों को विभिन्न वर्गों विभाजित कर देते हैं।
बहुदलीय व्यवस्था का निष्कर्ष
द्विदलीय पद्धति में मतदाता प्रत्यक्ष रूप से इस बात का निर्णय करते हैं कि देश में किस दल का शासन होना चाहिए अर्थात् किस नीति का पालन होना चाहिए। इसके विपरीत बहुदलीय पद्धति वाले देशों के मिले-जुले मंत्रिमंडलों में कोई निश्चित नीति नहीं होती और न कोई सामान्य कार्यक्रम। बहुदलीय प्रणाली में मतदाता प्रायः व्यक्ति विशेष को मत देते हैं, दल को नहीं। इसमें अल्प मत वाले स्वार्थी व्यक्ति अधिक संख्या में निर्वाचित हो जाते हैं, जिनके व्यक्तिगत स्वार्थ इतने अधिक और सशक्त होते हैं कि वे अपने स्वार्थों के आगे राष्ट्रीय हित का भी बलिदान कर देते हैं।