बेरोजगारी क्या है – अर्थ ,परिभाषा और प्रकार

  Last Update - 2023-06-05

बेरोजगारी का अर्थ –

  • बेरोजगारी उस समय विद्यमान कहीं जाती है जब किसी व्यक्ति में कार्य करने की क्षमता होती है और आजीविका के लिए काम पाने में असमर्थ रहता है या इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि एक शारीरिक व मानसिक रूप से सक्षम व्यक्ति जो काम करने का इच्छुक है लेकिन उसे काम या रोजगार नहीं मिल पाता है। वह व्यक्ति वर्तमान मजदूरी दर पर काम करने को तैयार है परन्तु उसे काम नहीं मिल पाता है। तो उसे बेरोजगारी कहते है।
  • बेरोजगारी देश की एक आर्थिक तथा सामाजिक समस्या है। जिसके अन्तर्गत कार्यशील जनसंख्या का कोई भी समूह कार्य करना चाहता है किन्तु उसे कार्य नहीं मिल पाता है।

बेरोजगारी किसे कहते है –

जब देश में कार्य करने वाली जनशक्ति अधिक होती है और काम करने पर राजी भी होती है परंतु उन्हें प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य नहीं मिल पाता है तो इसी अवस्था को बेरोजगारी कहते है।

बेरोजगारी की परिभाषा –

बेरोजगारी से क्या आशय है ?

राफिन तथा ग्रेगोरी के अनुसार, एक बेरोजगार व्यक्ति वह व्यक्ति है जो (1) वर्तमान समय में काम नहीं कर रहा। (2) जो सक्रिय ढंग से कार्य की तलाश में है। (3) जो वर्तमान मजदूरी पर काम करने के लिए उपलब्ध है।

संपूर्ण विश्व अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी उत्पन्न होने के केवल दो कारण होते हैं।

  • वस्तु की मांग में कमी के कारण उत्पन्न बेरोजगारी।
  • पूंजी की कमी के कारण उत्पन्न बेरोजगारी।

बेरोजगारी का तकनीकी अर्थ –

हमें बेरोजगारी को समझने के लिए पहले श्रमबल और कार्यबल के बारे में पङना पङेगा –

तकनीकी अर्थ – किसी भी देश के आयु पिरामिड में 0-15 साल, 15-65 एवं 65+ ऐसे तीन वर्ग होते है इस वर्ग को उस देश का श्रम बल कहते है।

श्रम बल = कार्य करने के इच्छुक + कार्य करने में सक्षम।
इस श्रम बल में जितने लोगों को काम मिल गया है वह कार्य बल है।

किसी देश का वह श्रम बल जो कार्य बल में बदल नहीं सका बेरोजगार कहलाता है।

  • बेरोजगारी = श्रमबल – कार्यबल
  • पूर्ण रोजगार = श्रमबल = कार्यबल

जब किसी देश का पूर्ण श्रम बल कार्य बल में बदला जाये तो वह पूर्ण रोजगार कहलाता है।

श्रम बल – श्रम बल के अंतर्गत हमारे देश में 15 वर्ष से 65 वर्ष की आयु के लोग आते है। इसमें 15-65 वर्ष की आयु के लोग जो या तो रोजगार में लगे हुए है या फिर रोजगार की तलाश में है।
रोजगार + बेरोजगार

कार्य बल – श्रम बल में से वे लोग जिनको रोजगार अथवा कार्य मिल जाता है राष्ट्र का कार्य बल कहलाते हैं।

बेरोजगारी निकालने का सूत्र –

बेरोजगारी की संख्या = श्रम शक्ति – रोजगार लोगों की संख्या

बेरोजगारी की दर निकालने के लिए निम्न सूत्र लगाया जाता है –

बेरोजगारी की दर = बेरोजगारों की संख्या/श्रम शक्ति X 100

बेरोजगारी के प्रकार –

ऐच्छिक बेरोजगारी क्या है –

जब कोई व्यक्ति प्रचलित मजदूरी पर काम ना करना चाहता है, अर्थात जब किसी व्यक्ति को वर्तमान मजदूरी दर पर काम मिल रहा है लेकिन वह अपनी इच्छा से काम नहीं करना चाहता है, तो इसे ऐच्छिक या स्वैच्छिक बेरोजगारी कहते हैं।

अनैच्छिक बेरोजगारी क्या है –

यह बेरोजगारी का सबसे वीभत्स रूप है। यदि अर्थव्यवस्था में मजदूर प्रचलित मजदूरी पर कार्य करने के लिए तैयार है लेकिन फिर भी उसे प्रचलित मजदूरी पर उन्हें कोई काम ना मिले तो ऐसे लोगों को अनैच्छिक बेरोजगार कहा जाता है। इसमें श्रमिकों को बिना काम किए ही रहना पङता है, उन्हें थोङा काम भी नहीं मिल पाता है। इसे खुली बेरोजगारी भी कहते है। बेरोजगारी से हमारा अभिप्राय अनैच्छिक बेरोजगारी से ही है।

संरचनात्मक बेरोजगारी क्या है –

औद्योगिक क्षेत्रों में संरनात्मक परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाले बेरोजगारी को संरचनात्मक बेरोजगारी कहते हैं। जब किसी राष्ट्र में वित्तीय, भौतिक, और मानवीय संरचना कमजोर होती है तो रोजगारों का अभाव होता है तब उस बेरोजगारी को संरचनात्मक बेरोजगारी कहते हैं। यह बेरोजगारी लंबे समय तक रहती है। विकासशील देशों में संरनात्मक बेरोजगारी पाई जाती है। भारत में इसी प्रकार की बेरोजगारी अधिक पाई जाती है।

घर्षणात्मक बेरोजगारी क्या है –

जब कोई व्यक्ति एक रोजगार को छोङकर अपनी इच्छा से दूसरे रोजगार की ओर जाता है तो इस समय तक वह व्यक्ति बेरोजगार होता है यानी वह व्यक्ति कुछ दिनों, कुछ सप्ताहों, कुछ महीनों तक बेरोजगार रहेगा तो इस तरह की बेरोजगारी घर्षणात्मक बेरोजगारी कहलाती है।

बाजार की स्थितियों में परिवर्तन आने से उत्पन्न होने वाली बेरोजगारी घर्षणात्मक बेरोजगारी कहते हैं। इसके तहत मांग और पूर्ति को शामिल किया जाता है। इस प्रकार की बेरोजगारी अधिकतर विकसित देशों में पाई जाती है।
उदाहरणस्वरूप द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् युद्धकालीन उद्योगों की मांग में कमी आने से उद्योग बंद कर दिए गए थे, जिससे उसमें लगे सारे कामगार बेरोजगार हो गए।

छिपी बेरोजगारी क्या है –

जब किसी कार्य को करने में आवश्यकता से अधिक श्रमिक लगे होते हैं तब इन श्रमिकों की सीमांत उत्पादकता शून्य हो जाती है, इन श्रमिकों को काम से निकाल दिया जाये तो भी काम के उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पङता है। यानी आवश्यकता कम लोगों की है लेकिन अधिक व्यक्ति काम कर रहे है। आवश्यकता से अधिक लोग जो अनावश्यक ही काम कर रहे है तो ऐसे लोगों की छिपी हुई बेरोजगारी है। इसका सर्वप्रथम अवधारणात्मक उल्लेख जान राॅबिंसन ने किया था, मुख्यतः भारतीय कृषि क्षेत्र में प्रच्छन्न बेरोजगारी व्याप्त है।

उदाहरण के तौर पर यदि किसी काम के लिए 50 लोगों की आवश्यकता है और इसमें 60 लोग कार्य कर रहे हैं तो 10 लोग फालतू है तो 10 लोगों को छिपा हुआ बेरोजगार माना जाएगा।

चक्रीय बेरोजगारी क्या है –

इसमें बाजार की दशा में परिवर्तन होता है। जब अर्थव्यवस्था में आर्थिक सुस्ती, आर्थिक मंदी, तेजी तथा आर्थिक पुनरुत्थान होता है तो उस समय चक्रीय बेरोजगारी देखी जाती है। जब अर्थव्यवस्था के चक्र में मंदी आती है, तब मंदी के कारण उत्पादन कम हो जाता है और उत्पादन पर बुरा असर पङता है, जब उत्पादन कम होगा या प्रभावित होगा तो रोजगार भी प्रभावित होता है और रोजगार में कमी आती है तो रोजगार में लगे हुए लोगों को रोजगार से हटा दिया जायेगा, यही चक्रीय बेरोजगारी होती है। चक्रिय बेरोजगारी मांग व उत्पादन के व्युत्क्रमानुपाती होती है। चक्रीय बेरोजगारी विकसित देशों में पायी जाती है।

शहरी बेरोजगारी क्या है –

यदि कोई व्यक्ति शहर में काम करना चाहता लेकिन उसे शहर में काम नहीं मिल पाता है तो इसे ही शहरी बेरोजगारी कहते है। शहरी क्षेत्र में मुख्य रूप से औद्योगिक बेरोजगारी और शिक्षित बेरोजगारी पाई जाती है।

ग्रामीण बेरोजगारी क्या है –

ग्रामीण बेरोजगारी की परिभाषा

ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्य रूप से कृषि से संबंधित बेरोजगारी पाई जाती है । ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर कृषि ही लोगों का रोजगार होता है और कृषि का कार्य केवल सात-आठ महीने ही होता है बाकी के महीनों में कृषक को कोई काम नहीं होता है उन महीनों में कृषक बेरोजगार होता है तो इसे ही ग्रामीण बेरोजगारी कहते है।

मौसमी बेरोजगारी क्या है –

मौसमी बेरोजगारी के अंतर्गत किसी विशेष मौसम या अवधि में प्रति वर्ष उत्पन्न होने वाली बेरोजगारी को शामिल किया जाता है। इस प्रकार की बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में पाई जाती है। कृषि में लगे लोगों को कृषि की जुताई, बुवाई, कटाई आदि कार्यों के समय तो रोजगार मिलता है, लेकिन जैसे ही कृषि कार्य खत्म हो जाता है तो कृषि में लगे लोग बेरोजगार हो जाते है, इसे ही मौसमी बेरोजगारी कहते है। उदाहरण के तौर पर भारत में कृषि में सामान्यतः सात आठ महीने ही काम चलता है। शेष महीनों में लोगों को बेरोजगार बैठना पङता है।

शिक्षित बेरोजगारी क्या है –

शिक्षित बेरोजगार ऐसे बेरोजगार हैं जिन्हें शिक्षित करने में काफी अधिक संसाधन खर्च करने पङते है। किंतु जब इन शिक्षित लोगों को उनकी योग्यता के अनुरूप काम नहीं मिल पाता है तो इसे शिक्षित बेरोजगारी कहते हैं। अर्थात् जब किसी व्यक्ति को उसकी योग्यता के आधार पर काम ना मिले या फिर योग्यता से कम का काम करना पङे तो उसे शिक्षित बेरोजगार या अल्प रोजगार कहा जाता है।

औद्योगिक बेरोजगारी क्या है –

यह बेरोजगारी सफलता का परिणाम होती है बहुधा पूंजी की कमी को प्रबंध और तीव्र प्रतियोगिता के कारण उत्पादन बंद हो जाता है तथा उद्योगों में लगे हजारों श्रमिक बेरोजगार हो जाते हैं कभी-कभी श्रमिकों की हङताल के कारण अथवा फैक्ट्रियों में तालाबंदी हो जाने से भी इस तरह की बेरोजगारी करती है। इसे ही औद्योगिक बेरोजगारी कहते है।

अक्षमता बेरोजगारी क्या है –

जब कोई व्यक्ति शारीरिक अथवा मानसिक रूप से काम करने में सक्षम नहीं होता है तब ऐसी बेरोजगारी अक्षमता बेरोजगारी कहलाती है।

अल्प बेरोजगारी क्या है –

जब किसी व्यक्ति को उसकी कार्यक्षमता के अनुसार या सरकार द्वारा बनाये गये नियमों के अनुसार कार्य नहीं मिल पाता है तो इस तरह की बेरोजगारी अल्प बेरोजगारी कहलाती है। अल्प बेरोजगारी अविकसित देशों में देखने को मिलती है।

तकनीकी बेरोजगारी क्या है –

तकनीकी बेरोजगारी वह बेरोजगारी जो तकनीकी परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती है। आधुनिक तकनीक पूँजी प्रधान तकनीक है, पूँजी प्रधान तकनीक में श्रमिकों की जगह मशीनें ले रही है इस कारण श्रमिक बेरोजगार हो रहे है। इसे ही तकनीकी बेरोजगारी कहते है।

बेरोजगारी का मापन –

भगवती समिति – भारत में बेरोजगारी को मापने के लिए वर्ष 1973 में भगवती समिति का गठन किया गया था। इसके आधार पर बेरोजगारी को मापन के लिए तीन तरीके बताये गये –

दीर्घकालिक बेरोजगारी क्या है –

यदि किसी वित्तीय वर्ष में किसी व्यक्ति को 273 दिन (8 घंटे प्रति दिन) रोजगार नहीं मिलता है तो वह व्यक्ति दीर्घकालिक बेरोजगारी के अंतर्गत आता है, यानी व्यक्ति को लम्बे समय से रोजगार नहीं मिल रहा है तो उसे दीर्घकालिक बेरोजगारी कहते है।

साप्ताहिक बेरोजगारी क्या है –

साप्ताहिक बेरोजगारी के अंतर्गत किसी व्यक्ति को सप्ताह में 1 दिन (8 घंटे) का काम नहीं मिलता है।

दैनिक बेरोजगारी क्या है –

किसी व्यक्ति को यदि प्रति दिन आधे दिन (4 घंटे) का काम नहीं मिलता है तो उसे दैनिक बेरोजगारी कहते है।

बेरोजगारी के कारण –

  1. जनसंख्या में तीव्र वृद्धि – जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होने से बेरोजगारी बढ़ रही है। जिस तरह जनसंख्या में वृद्धि हो रही है उसी तरह रोजगार में तो वृद्धि नहीं होती है इसलिए अधिकांश लोग बेरोजगार है। जिससे दर से जनसंख्या बढ़ रही है उस दर से रोजगार नहीं मिल रहा है। साथ ही मशीनीकरण के कारण उद्योगों में मशीनों का प्रयोग होने लगा है तो श्रमिकों की जगह मशीनों ने ले ली है। जिससे अधिकतर श्रमिक बेरोजगार हो रहे है।
  2. पूँजी निर्माण की धीमी गति – जब पूँजी निर्माण की गति धीमी होगी तो भी बेरोजगारी बढ़ती है। पूँजी निर्माण की धीमी गति के कारण उद्योगों व सेवाओं का विस्तार भी धीमी गति से होता है। जिससे श्रमिकों के रोजगार में कम होगी जिससे श्रमिक बेरोजगार हो जायेगे।
  3. नियोजन में दोष – जिस प्रकार का नियोजन का कार्य होना चाहिए था उस प्रकार का सरकार ने नियोजन का कार्य नहीं किया जिससे भी बेरोजगारी बढ़ी है। नियोजन के त्रुटिपूर्ण होने से रोजगारमूलक नीति का प्रतिपादन नहीं हो रहा है।
  4. धीमा आर्थिक विकास – देश में आर्थिक विकास की गति धीमी होगी तो भी बेरोजगारी बढ़ेगी।
  5. प्राकृतिक आपदाएं – प्राकृतिक आपदाएँ जैसे – अकाल, बाढ़ आदि के कारण किसानों की फसल खराब हो जाती है जिससे उत्पादन में कमी होती है अगर उत्पादन कम होगा तो उससे रोजगार भी प्रभावित होता है। उत्पादन की कमी के कारण रोजगार में लगे हुए लोगों को हटा दिया जायेगा जिससे लोग बेरोजगार हो जायेगे।
  6. कुटीर उद्योगों का अल्प विकास – अगर देश में कुटीर उद्योगों का विकास नहीं होगा तो श्रमिकों को रोजगार नहीं मिलेगा तो भी श्रमिक बेरोजगार हो जाते है।
  7. यन्त्रीकरण एवं अभिनवीकरण – विकासशील देशों में यन्त्रीकरण एवं अभिनवीकरण बढ़ रहा है देश में स्वचालित मशीन लगाई जा रही है कृषि में यन्त्रीकरण का विस्तार हो रहा है इनका परिणाम है कि उत्पादन प्रक्रिया में जनशक्ति का स्थान मशीनें ले रही है किंतु रोजगार के वैकल्पिक अवसर उत्पन्न नहीं हो रहे है जिससे लोग बेरोजगार हो रहे है।

निष्कर्ष –

साधारण बोलचाल में बेरोजगारी का अर्थ होता है कि वे सभी व्यक्ति जो उत्पादक कार्यों में लगे हुए नहीं होते। आज बेरोजगारी की समस्या विकसित एवं अविकसित दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं की प्रमुख समस्या बनती जा रही है। भारत जैसी अल्पविकसित अर्थव्यवस्था में तो यह विस्फोटक रूप धारण किए हुए है। भारत में इसका प्रमुख कारण जनसंख्या वृद्धि, पूँजी की कमी आदि है।

यह समस्या आधुनिक समय में युवावर्ग के लिए घोर निराशा का कारण बनी हुई है। अर्थव्यवस्था विकसित हो या अल्पविकसित, बेरोजगारी का होना सामान्य बात हे। बेरोजगारी का सामधान करने के लिये सरकार द्वारा अनेक कारगर उपाय किये गये हैं। इस समस्या से तभी उबरा जा सकता है जबकि जनसंख्या को नियन्त्रित किया जाये और देश के आर्थिक विकास की ओर ढांचागत योजनाएँ लागू की जाए।

भारत में बेरोजगारी एक गम्भीर समस्या है। इस ओर सरकार गम्भीर रूप से प्रयास भी कर रही है। यह एक सामाजिक-आर्थिक समस्या है, जो आधुनिक युग की देन है। हमारे देश में इसने बङा गम्भीर रूप धारणा कर लिया है। इसके कारण देश में शान्ति और व्यवस्था को खतरा पैदा हो गया है। अतः इस समस्या के तत्काल निदान की आवश्यकता है।

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