प्लासी का युद्ध

  Last Update - 2023-06-08

प्लासी का युद्ध 23 जून, 1757 ई. को अंग्रेजों और बंगाल के तत्कालीन नवाब सिराजुद्दौला के मध्य प्लासी नामक स्थान पर हुआ था। जिसमें अंग्रेजी सेना का नेतृत्व रॉबर्ट क्लाइव तथा नवाब की सेना का नेतृत्व मीर जाफर ने किया था। प्लासी युद्ध के परिणाम स्वरूप भारत में अंग्रेज शक्ति और प्रबल हो गयी, जिसने भारत के स्वरूप को ही बदल दिया और एक ऐसे अंग्रेजी शासन का उदय हुआ, जिसने भारत पर लगभग 200 वर्षों तक राज किया।

प्लासी की लड़ाई के बाद भारत में अनंत अंधकारमयी रात्रि का आरम्भ हुआ।

17 वीं-18 वीं शताब्दी में हुआ जिनका भारत में आने का मकसद व्यापार करना था, परन्तु अपनी बढ़ती महत्वकांक्षाओं के कारण उन्होंने भारत के विभिन्न क्षेत्रों पर राज करना शुरू कर दिया। की मृत्यु के पश्चात की नींव कमजोर पड़ गयी। जिसका फायदा उठाकर अलीवर्दी खाँ नामक व्यक्ति ने 1740 ई. में बंगाल को मुग़ल साम्राज्य से मुक्त घोषित कर, अपने आप को वहाँ का नवाब घोषित किया। मुगलों की शक्ति क्षीण होते देख अंग्रेजों ने भी इसका फायदा उठाया और भारत में जगह-जगह किले बंदी कर अपना अधिपत्य स्थापित करने की कोशिश की।

09 अप्रैल, 1756 ई. में अलीवर्दी खाँ की मृत्यु के पश्चात उसकी सबसे छोटी पुत्री का पुत्र नवाब बना। तब बंगाल का माहौल अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के आपसी द्वंद्व के कारण काफी अशांत था। अंग्रेजों और फ्रांसीसियों ने जगह-जगह किले बंदी करनी भी शुरू कर दी थी। इसके कारण सिराजुद्दौला काफी चिंतित था इसलिए सिराजुद्दौला ने अंग्रेज़ों और फ्रांसीसियों को तुरंत किले बंदी रोकने का आदेश दिया।फ्रांसीसियों ने तो नवाब का आदेश मानते हुए तत्काल प्रभाव से अपने द्वारा की जा रही किले बंदी को रोक दिया परन्तु अंग्रेजों ने नवाब के आदेश की अवहेलना करते हुए अपनी किले बंदी को जारी रखा।

यह देख सिराजुद्दौला ने 1756 ई. में अंग्रेजों की कासिम बाजार स्थित कोठी पर आक्रमण करके उस पर कब्ज़ा कर लिया, तत्पश्चात 20 जून, 1756 को कलकत्ता में हुगली नदी के निकट स्थित फोर्ट विलियम किले पर भी अपना अधिपत्य कर, अंग्रेजों को वहां से भागने पर मजबूर कर दिया और अंग्रेज गवर्नर ड्रेक को फुल्टा द्वीप पर जाकर शरण लेनी पड़ी। फोर्ट विलियम पर कब्ज़ा करने के दौरान 146 अंग्रेज बंदी बनाये गए जिनमें स्त्री और बच्चे भी शामिल थे, उन्हें नवाब सिराजुद्दौला के अधिकारीयों द्वारा एक छोटे अंधेरे कमरे में बंद कर दिया गया। जिनमें से अगली सुबह सिर्फ 23 लोग ही जीवित बच सके, बचने वालों में से एक हॉलवेल नामक अंग्रेज व्यक्ति ने इस घटना को अंग्रेज अफसरों तक पहुंचाया। इस घटना के कारण अंग्रेजों और नवाब सिराजुद्दौला के मध्य कड़वाहट और बढ़ गयी। इस घटना को इतिहास में काली कोठरी की घटना या काल कोठरी की घटना के नाम से जाना गया।

इस काली कोठरी की घटना के बारे में जानकर अंग्रेज काफी क्रोधित हुए और तथा एडमिरल वाटसन, मद्रास से सेना लेकर बंगाल की तरफ बढे। जिन्होंने फिर से कलकत्ता पर अपना अधिकार कर लिया और सिराजुद्दौला को संधि करने पर मजबूर कर दिया, जिसे ‘अली नगर की संधि‘ के नाम से जाना गया। इस संधि के फलस्वरूप अंग्रेजों को बंगाल में किले बंदी करने की अनुमति प्राप्त हो गयी। इस संधि के बाद अंग्रेज और आक्रामक हो गए और उन्होंने फ्रांसीसियों के अधिकार क्षेत्र चंद्रनगर पर आक्रमण कर उसे अपने कब्जे में ले लिया।

अंग्रेजों की ऐसी गतिविधियों को देख सिराजुद्दौला ने अंगेजों पर पुनः आक्रमण करने की तैयारी शुरू कर दी। वहीँ दूसरी तरफ अंग्रेजों ने नवाब सिराजुद्दौला के सेनापति को बंगाल का नवाब बनाने का लालच देकर अपनी तरफ कर लिया और मीर जाफर सिराजुद्दौला से विश्वासघात करने को तैयार हो गया।

23 जून, 1757 ई. को प्लासी नामक स्थल पर ईस्ट इंडिया कंपनी और नवाब सिराजुद्दौला की सेना के मध्य युद्ध हुआ, जिसमें अंग्रेजी सेना की कमान रॉबर्ट क्लाइव और नवाब सेना की कमान मीर जाफर ने संभाली। इस युद्ध में मीर जाफर के विश्वाशघात के कारण नवाब सेना की हार हुई और सिराजुद्दौला को बंदी बनाकर मृत्यु दंड स्वरूप गोली मार दी गयी।

प्लासी युद्ध में अंग्रेजों की जीत के फलस्वरूप व अंग्रेजों द्वारा मीरजाफर से किये गए वादे के अनुसार मीरजाफर को बंगाल का अगला नवाब बनाया गया। बंगाल का नवाब बनते ही मीर जाफर ने अंग्रेजो को 24 परगना की जमींदारी सौंप दी और बंगाल, ओडिशा तथा बिहार पर अंग्रेजो की ईस्ट इंडिया कंपनी को मुफ्त व्यापार करने की छूट प्रदान कर दी। मीर जाफर अंग्रेजों के हाथों की कठपुतली मात्र था, अंग्रेज जो चाहते वह उससे करवाते थे। जब मीर जाफर अंग्रेजों की मनमानी और मांगों को पूर्ण न कर सका तो उसको बंगाल के नवाब की गद्दी से हटाकर को बंगाल का नवाब बनाया गया।

प्लासी युद्ध के कुछ समय पश्चात हुआ, जिसके परिणामस्वरूप अंग्रेजों का बंगाल पर पूर्णतः नियंत्रण स्थापित हो गया और अंग्रेज एक व्यापारिक शक्ति से एक राजनीतिक शक्ति में बदल गए। इसी युद्ध के परिणाम स्वरूप अंग्रजों की भारत में अपनी सत्ता-स्थापित करने की प्रक्रिया की शुरुआत हुई और साम-दाम-दंड-भेद जैसे बन पड़े अंग्रेजों ने भारत पर अपनी सत्ता स्थापित करने की कोशिश की। अंग्रेजों द्वारा ‘फुट डालो राज करो‘ की निति का प्रयोग भी किया गया, जिसका प्रयोग कर तत्कालीन राजाओं और राजनीतिक शक्तियों को आपस में लड़वाकर कमजोर कर दिया गया। जिसके फलस्वरूप भारत पर अंग्रेजों का एकाधिकार स्थापित हुआ। जोकि 15 अगस्त, 1947 को भारत के अंग्रेजो से स्वतंत्र होने के पश्चात समाप्त हुआ।

प्लासी के युद्ध के उपरान्त बंगाल की स्थिति-

भारत के प्रमुख युद्धों में से एक है। यह युद्ध इस नजर से भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि यह वह पहला अवसर था जब अंग्रेजों ने खुलकर एक भारतीय शक्ति का विरोध किया और इसमें वे सफल भी रहे। 23 जून, 1757 को लड़े गए प्लासी के इस युद्ध में सिराजुद्दौला की हार हुई और रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना के ही सेनापति मीर जाफऱ की सहायता से विजयी हुई। इस युद्ध में मीर जाफर की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

मीर जाफर (1757-1760)

  • सिराजुद्दौला के सेनापति मीर जाफर ने एक गुप्त संधि कर अंग्रेजों से हाथ मिला लिया।
  • इस संधि के अनुसार मीरजाफर को बंगाल का नवाब बना दिया गया, जिसके बदले मीरजाफऱ ने अंग्रेजों को पौने दो करोड़ रूपये की विशाल धनराशि प्रदान की।
  • कम्पनी को 24 परगने की जमींदारी के साथ-साथ संपूर्ण बंगाल में मुक्त व्यापार करने का अधिकार दिया गया।
  • अब कम्पनी बंगाल में अपनी मुद्रा चलाने के लिए भी स्वतंत्र थी।
  • राबर्ट कलाइव को भी इस युद्ध का फायदा हुआ और उसे बंगाल का गवर्नर बना दिया गया।
  • मीर जाफऱ एक अयोग्य शासक था, जिसे भांपते अंग्रेजो को देर नहीं लगी तथा उसे गलत आरोप लगा कर हटा दिया गया। उसके दामाद मीर कासिम को अगला नवाब घोषित कर दिया गया।

मीर कासिम (1760-1763)

  • मीर कासिम मीर जाफर का दामाद था। मीर कासिम अलीवर्दी खां के बाद सबसे योग्य नवाब था।
  • मीर कासिम तथा अंग्रेजों के “मुंघेर की संधि” दिनांक 27 सितम्बर, 1760 को हुयी।
  • मीर कासिम के नवाब बनते ही अंग्रेजों तथा इसके बीच संघर्ष प्रारम्भ हो गया।
  • दोनो पक्षों के मध्य हुयी मुंघेर की संधि में शर्ते स्पष्ट नहीं थी, जिस कारण दोनों ने ही अपने-अपने अर्थ निकालने शुरू कर दिए।
  • इसने अपनी राजधानी को मुर्शिदाबाद से मुंघेर स्थानांतरित किया।
  • मुगल बादशाह द्वारा अंग्रेजों को प्रदान किए गए फरमान “दसतक” का दुरुपयोग रोका।
  • भारतीय व्यापारियों पर लगने वाला आंतरिक कर समाप्त कर दिया ।
  • अंग्रेज अधिकारियों से बचत के रूप में एक कर “खिरंजी” भी वसूला ।
  • बंदूक और तोप का कारखाना लगाया ।
  • अंग्रेजों को इसके सुधार पसंद नहीं आये और इसे हटाकर वापस मीर जाफर को नवाब घोषित कर दिया गया।

मीर जाफर (1763-1765)

  • मीर कासिम को नवाब के पद से हटाकर इसे पुनः बंगाल का नवाब बनाया गया।
  • मीर कासिम अवध के नवाब शुजाउद्दौला और दिल्ली के मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय से मिलकर युद्ध की तैयारी करने लगा।
  • 22 अक्तूबर, 1764 को हुआ, जिसके परिणाम स्वरूप-
    • मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय और शुजाउद्दौला ने अंग्रेजों के आगे घुटने टेक दिये और मीर कासिम भाग निकला।
    • अब बंगाल पर पूरी तरह से अंग्रेजों का ही राज हो गया।

नजमुद्दौला (1765-1766)

  • 1765 में मीर जाफऱ की मृत्यु के बाद नजमुद्दौला को बंगाल का नवाब बनाया गया।
  • इसके समय में क्लाइव ने इलाहबाद की दो अलग-अलग संधियां करी-
  • इलाहाबाद की प्रथम संधि– मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय से
    • ये संधि 12 अगस्त 1765 को हुयी।
    • इस संधि पर , शाह आलम द्वितीय एवं नजमुद्दौला के हस्ताक्षर हुए।
    • बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी अंग्रेजों को दे दी गयी ।
    • कम्पनी शाह आलम द्वितीय को 26 लाख रूपये वार्षिक पेंशन देगी। संधि के इस बिन्दु पर गुलाम हुसैन ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि “इस संधि को लिखने और हस्ताक्षर करने में उतना ही समय लगा जितना की एक गधे को खरीदने में लगता है”।
  • इलाहाबाद की दूसरी संधि- अवध के नवाब से
    • ये संधि 16 अगस्त, 1765 को हुयी थी।
    • इस संधि पर राबर्ट क्लाइव एवं शुजाउद्दौला के हस्ताक्षर हुए।
    • इलाहबाद तथा कड़ा के जिले अवध से लेकर मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय को दे दिये गये।
    • शुजाउद्दौला को युद्ध(बक्सर) हानी के रूप में 50 लाख रूपये अंग्रेजों को देने पड़े।
    • अवध के नवाब के राज्य में अंग्रेजों को स्वतंत्र व्यापार की छूट मिली।
    • नवाब अंग्रेजों के विरोधियों की सहायता नहीं कर सकता तथा विपत्ति के समय दोनों एक दूसरे का सहयोग करेंगे।
  • ब्रिटिश कम्पनी को संपूर्ण बंगाल की दीवानी प्राप्त हो चुकी थी। उसने नजमुद्दौला को और 53 लाख रूपये देकर बंगाल में “निजायत”(कानून और न्याय व्यवस्था) की शक्ति भी प्राप्त कर ली।

सैफुद्दौला (1766-1775)

  • नजमुद्दौला की मृत्यु के उपरान्त सैफुद्दौला बंगाल का नवाब बना।
  • सैफुद्दौला केवल एक कठपुतली नवाब था, इसने कोई विशेष कार्य नहीं किये, मुख्यतः शासन अंग्रेजों द्वारा ही चलाया गया।

मुबारकुद्दौला (1775)

  • मुबारकुद्दौला बंगाल का आखिरी नवाब था। इसके बाद अंग्रेजों ने गवर्नर जनरल की नियुक्ति करना शुरू कर दिया।
  • अंग्रेजों ने इलाहाबाद की द्वितीय संधि के बाद से बंगाल में द्वैध शासन (1765-1772) लागू कर दिया।
  • इस शासन में वास्तविक शक्ति कम्पनी के पास थी जबकि प्रशासन का उत्तरदायित्व नवाब के कन्धों पर था।
  • द्वैध शासन के अन्तर्गत कम्पनी ने तीन उप दीवान नियुक्त किये।
    • बंगाल में – मुहम्मद रजा खां
    • बिहार में – सिताब राम
    • उड़ीसा में – राम दुर्लभ

(1772-1774) बंगाल का अगला गवर्नर जनरल बना। गवर्नर जनरल बनते ही उसने द्वैध शासन को समाप्त कर बंगाल का शासन सीधे अंग्रेजी राज्य के नियंत्रण में कर दिया और इसके साथ ही बंगाल के नवाब के पद का अंत हो गया।

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