Academy Last Update - 2024-01-11
जब भौतिक, रासायनिक या जैविक कारणों से पर्यावरण के तत्त्वों की गुणवत्ता में विपरीत परिवर्तन होता है, तो वह स्थिति प्रदूषण कहलाती है। यह एक वांछनीय और असामान्य स्थिति है जो हमारे जीवन को प्रगति के रास्ते में रोकती है और हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है। प्रदूषण की यह समस्या हमारे जीवन के लिए बड़ी चिंता का विषय बन चुकी है।
इस स्थिति में प्रदूषक तत्त्व सीमा से अधिक पर्यावरण के तत्त्वों में समाहित होकर उसकी गुणवत्ता को समाप्त करने लगते हैं। अतः जिस क्रिया से हवा, पानी, मिट्टी एवं वहाँ के संसाधनों के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में किसी अवांछनीय परिवर्तन से जैव जगत एवं सकल परिवेश पर हानिप्रद प्रभाव पहुँचे, उसे प्रदूषण (Pradushan) कहते हैं।
वायु-जल या भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाले ऐसे अनचाहे परिवर्तन जो मनुष्य एवं अन्य जीवधारियों, उनकी जीवन परिस्थितियों, औद्योगिक प्रक्रियाओं एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों के लिए हानिकारक हो, प्रदूषण (Pollution) कहलाते है।
ओडम के अनुसार, हवा, पानी एवं मिट्टी के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों को किसी ऐसे अवांछनीय परिवर्तन से जिससे कि आदमी स्वयं को सकल परिवेश के प्राकृतिक, जैविक एवं सांस्कृतिक तत्त्वों को हानि पहुँचाता है, प्रदूषण कहते हैं।
डी. एम. डिक्सन के अनुसार, प्रदूषण के अन्तर्गत मनुष्य एवं उसके पालतू मवेशियों के उन समस्त इच्छित एवं अनिच्छित कार्यों तथा उनसे उत्पन्न प्रभावों एवं परिणामों को सम्मिलित किया जाता है, जो मनुष्य को अपने पर्यावरण से आनन्द एवं पूर्ण लाभ प्राप्त करने की उसकी क्षमता को कम करते हैं।
लार्ड केनेट के अनुसार, पर्यावरण में उन तत्त्वों या ऊर्जा की उपस्थिति को प्रदूषण कहते हैं जो मनुष्य द्वारा अनचाहे उत्पादित किये गये हों, जिनके उत्पादन का उद्देश्य अब समाप्त हो गया हो, जो अचानक बच निकले हों या जिनका मनुष्य के स्वास्थ्य पर अकथनीय हानिकारक प्रभाव पङता हो।
राष्ट्रीय पर्यावरण खोज परिषद के अनुसार, मनुष्य के क्रिया-कलापों से उत्पन्न अपशिष्ट उत्पादों के रूप में पदार्थों एवं ऊर्जा के विमोचन से प्राकृतिक पर्यावरण में होने वाले हानिकारक परिवर्तनों को प्रदूषण कहते हैं।
अमेरिकी राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के अनुसार, प्रदूषण जल, वायु या भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाला कोई भी अवांछनीय परिवर्तन है। जिससे मनुष्य, अन्य जीवों, औद्योगिक प्रक्रियाओं या सांस्कृतिक तत्त्वों तथा प्राकृतिक संसाधनों को कोई हानि हो या होने की संभावना हो। प्रदूषण में वृद्धि का कारण मनुष्य द्वारा वस्तुओं के प्रयोग करने के बाद फेंक देने की प्रवृत्ति और मनुष्य की बढ़ती जनसंख्या के कारण आवश्यकताओं में वृद्धि है।
जल प्रदूषण: नदियों, झीलों और समुद्रों में धूल, औषधि, उड़ता धूंध, और औषधियों के निर्माण से होने वाला प्रदूषण जल परिसंचरण को प्रभावित करता है। इससे पानी की गुणवत्ता कम होती है और जलमार्गों के जीवदायी प्राणियों को प्रभावित करता है।
वायु प्रदूषण: हवा में मौजूद विषाणुओं, धूल, धुआं, और यातायात के वाहनों के इमिशन के कारण वायु प्रदूषण होता है। इसके परिणामस्वरूप हमारे श्वसन तंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है और बीमारियों का कारक बनता है।
भूमि प्रदूषण: अपशिष्ट, कृषि रसायन, और औषधियों के उपयोग से माटी की गुणवत्ता में कमी आती है और खेती को प्रभावित करता है। इससे उत्पादकता में गिरावट होती है और खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ता है।
प्रदूषण के प्रभाव
स्वास्थ्य पर प्रभाव: प्रदूषित वातावरण में रहने से हमारे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वायु प्रदूषण के कारण श्वसन संबंधी बीमारियाँ, जल प्रदूषण के कारण पेट्रोलियम उत्पादों से होने वाली बीमारियाँ, और माटी प्रदूषण के कारण खाद्य संबंधी बीमारियाँ हो सकती हैं।
पर्यावरण पर प्रभाव: प्रदूषण के कारण पृथ्वी के पानी, वनस्पति, और जीवधारियों को नुकसान पहुंचता है। यह पर्यावरणीय संतुलन को अस्थिर करके जीवन की संभावनाओं को कम करता है और बाढ़, जलवायु परिवर्तन, और प्राकृतिक आपदाओं के आंकड़े बढ़ाता है।
प्रदूषण से बचाव और कमी के उपाय
प्रदूषण नियंत्रण: सभी वाहनों के लिए श्रेणी के नियमों का पालन करना, और प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों का उपयोग करना।
जल संरक्षण: बरताव के साथ पानी का उपयोग करें, बारिश का पानी संचयित करें, और जल संचयन तंत्रों का उपयोग करें।
पर्यावरण शुद्धि: ध्यान दें कि अपशिष्टों को सही ढंग से नष्ट करें, औषधियों को सही ढंग से छोड़ें, और पारिस्थितिकी संरक्षण को बढ़ावा दें।
सकारात्मक परिवर्तन के लिए साझेदारी
प्रदूषण को कम करने और पर्यावरण संरक्षण को सुदृढ़ करने के लिए हमें सभी मिलकर काम करना होगा। सरकार, नागरिक समुदाय, और व्यापारी इकाई सबको सक्रिय रूप से योगदान देना चाहिए। हमें स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करना, पर्यावरण मित्रों के साथ काम करना, और जागरूकता कार्यक्रमों को संचालित करना चाहिए।
नए जीवन की ओर
प्रदूषण को कम करने और पर्यावरण संरक्षण को महत्वपूर्ण बनाने से हम नए और स्वस्थ जीवन की ओर बढ़ सकते हैं। हमें साथ मिलकर संघर्ष करना होगा और प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में अपना योगदान देना होगा। साफ़ और स्वस्थ पर्यावरण की एक स्थापिति बनाने के लिए हमारी प्रयासों को मजबूत बनाएंगे।
इस प्रदूषण के खतरे से बचने और इसे कम करने की ओर हमारा सबसे पहला कदम होना चाहिए। हम सभी को यह जागरूकता फैलानी चाहिए कि हमारे कार्यों का पर्यावरण पर क्या प्रभाव हो सकता है और हम कैसे सुधार कर सकते हैं। प्रदूषण के विरुद्ध एक संघर्ष में एकजुट होकर हम सभी एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।
जल प्रदूषण वह स्थिति है जब जल में आवश्यकता से अधिक खनिज लवण, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ तथा औद्योगिक संयन्त्रों से निकले रासायनिक पदार्थ, अपशिष्ट पदार्थ तथा मृत जन्तु नदियों, झीलों, सागरों तथा अन्य जलीय क्षेत्रों में विसर्जित किये जाने से ये पदार्थ जल के प्राकृतिक व वास्तविक रूप को नष्ट करके उसे प्रदूषित कर देते हैं और जल की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे प्राकृतिक जल स्रोतों, जैव जीवन, और मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। इस प्रकार जल का दूषित होना जल प्रदूषण (Jal Pradushan ) कहलाता है।
मानव क्रियाकलापों या प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा जल के रासायनिक, भौतिक तथा जैविक गुणों में परिवर्तन को जल प्रदूषण (Water Pollution) कहते है।
जब झीलों, नहरों, नदियों, समुद्र तथा अन्य जल निकायों में विषैले पदार्थ प्रवेश करते हैं और यह इनमें घुल जाते है अथवा पानी में पङे रहते हैं या नीचे इकट्ठे हो जाते हैं। जिसके परिणामस्वरूप जल प्रदूषित हो जाता है और इससे जल की गुणवत्ता में कमी आ जाती है तथा जलीय पारिस्थितिकी प्रणाली प्रभावित होती है। प्रदूषकों को भूमि में रिसन भी हो सकता है जिसके कारण भूमि-जल भी प्रभावित होता है।
जल प्रदूषण के प्रकार
जल में थोड़ा प्रदूषण: इसमें जल में अल्कोहल, अमोनिया, नाइट्रेट्स, निट्राइट्स, और निकोटीन जैसे केमिकल तत्वों की छोटी मात्रा होती है। यह बाथरूम, लॉन, और रंग के उपयोग से हो सकता है।
जल में संक्रमण: इसमें जल में वायरस, बैक्टीरिया, पारजीविक, और महिला संक्रमण के कारण होने वाले कीटाणु होते हैं। यह सड़कों से निकलने वाले निकासी, कूड़े, और अन्य अपशिष्टों से हो सकता है।
जल में रासायनिक प्रदूषण: इसमें जल में तत्वों की भारी मात्रा होती है, जैसे कि लिएची, आर्सेनिक, फ्लोराइड, निकेल, जिंक, और प्लास्टिक। यह औषधियों, कारख़ानों, और गैर-सत्यापित नलियों के छिड़काव के कारण हो सकता है।
प्राकृतिक स्रोत द्वारा उत्पन्न जल प्रदूषण के कारण –
मानव क्रियाओं द्वारा उत्पन्न जल प्रदूषण के कारण –
(1) औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ – नगरों व महानगरों में अनेक उद्योग होते हैं जो कि सामान्यतया जल स्रोतों, यथा-झीलों, नदियों, सागरों इत्यादि के पास अम्ल, क्षार, तेल, वसा, विभिन्न रासायनिक लवण, खनिज धुलाई, चर्म शोधन, रंग रोगन, कीटनाशक, रासायनिक उर्वरक, पारा, सीसा, उष्ण जल आदि को निकटवर्ती नदियों में बहाया जाता है जिससे नदी का जल प्रदूषित हो जाता है। यही अपशिष्ट पदार्थ नदियों के माध्यम से झीलों, सागरों तथा महासागरों आदि में पहुँचते हैं तो वहाँ का जल प्रदूषित हो जाता है।
(2) घरेलू बहिस्राव – जल मनुष्य की आधारभूत जीवनदायी आवश्यकता है। जल स्नान करने, सफाई के लिए, भोजन पकाने व वातानुकूलित यंत्रों के काम में के रूप में स्थानीय क्षेत्रों से प्रवाहित कर दिया जाता है। इस जल में कपङे धोने से मिले अपमार्जक, सङी-गली सब्जियाँ एवं फल, चूल्हे की राख, घर का कूङा-करकट, कपङों के अंश आदि मिले रहते हैं। यह मलिन जल खुली नालियों से होकर निकटवर्ती जल स्रोतों से मिलकर प्रदूषण (Pollution) फैलता है।
(3) वाहित मल जल – नगरों का वाहित मल नदियों, झीलों, सागरों इत्यादि में पहुंचकर उसे प्रदूषित करता है। घरेलू गन्दा पानी, मानव का मलमूत्र, कूङा-कचरा आदि वाहित मल के स्रोत है। इस मलिन जल में बैक्टीरिया, वाइरस, प्रोटोजोआ, शैवाल, कवक इत्यादि सूक्ष्म जीव शीघ्रता से पैदा होते हैं तथा जल में जैविक संदूषण पैदा करते हैं।
जैसे – वाराणसी में लगभग 71 नालों द्वारा 15 मिलियन गैलन वाहित मल जल प्रतिदिन गंगा नदी में बहाया जा रहा है जिससे वहाँ का जल प्रदूषित हो गया है।
(4) अणु विस्फोट – अणु शक्ति से सम्पन्न देश परमाणु बमों का परीक्षण समुद्री द्वीपों में करते हैं जिससे समुद्री जल में विषैले पदार्थ मिलकर उसे प्रदूषित कर देते हैं और अनेक जीव-जन्तुओं का जीवन खतरे में पङ जाता है।
जल प्रदूषण के मुख्य प्रभाव निम्न है –
जलीय प्रजाति के नष्ट होने: जल में प्रदूषक तत्वों के उपसर्ग के कारण, जलीय प्रजाति जैसे मछलियों और अन्य जीवों की संख्या में कमी होती है।
मानव स्वास्थ्य पर असर: प्रदूषित जल पीने और स्नान करने से लोगों को विभिन्न संक्रमण और बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है।
जल स्रोतों का नष्ट होना: जल प्रदूषण के कारण, नदियों, झीलों, और अन्य जल स्रोतों की गुणवत्ता खराब होती है और यह पानी जीवन के लिए उपयोगी नहीं रहता।
जल प्रदूषण वर्तमान में एक विश्वव्यापी समस्या बना हुआ है। इसे विभिन्न निवारक उपायों द्वारा नियंत्रित करने के लिए जनसामान्य, सामाजिक संगठनों, राष्ट्रीय सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठनों का सहयोग आवश्यक है।
जल प्रदूषण की रोकथाम के कुछ उपाय –
जल संरक्षण: जल का संयमित उपयोग करें, बाथरूम और नहाने का पानी सुधारें, और बारिश का पानी संचयित करें।
सड़कों का साफ़ रखें: अवैध निकासी और अपशिष्टों को सड़कों पर न फेंकें और उचित तरीके से उन्हें नष्ट करें।
जल शोधन: जल शोधन प्रणालियों का उपयोग करें जो प्रदूषित जल को शुद्ध करती हैं और उपयोगी बनाती हैं।
सचेतता फैलाएं: जल प्रदूषण के बारे में जागरूकता फैलाएं और लोगों को संवेदनशील बनाएं।
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वायु प्रदूषण एक गंभीर पर्यावरणिक मुद्दा है जो हमारे प्राकृतिक वातावरण को बाधित करता है और मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। यह वायुमंडल में विभिन्न विषाणु, धुएं, धूल, और गैसों की मात्रा के बढ़ने के कारण होता है। वायु प्रदूषण जीवनीय क्षेत्र, जलवायु और आर्थिक प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
वायुमण्डल में पायी जाने वाली गैसें एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात मेें होती हंै। जब वायु के अवयवों में अवांछित तत्त्व प्रवेश कर जाते हैं तो उसका मौलिक सन्तुलन बिगङ जाता है जो मानव तथा अन्य जीवधारियों के लिए घातक होता है। इसमें विभिन्न प्रकार की गैसें, कार्बन के कण, धुआँ, खनिजों के कण आदि सम्मिलित हैं।
वायु के दूषित होने की यही प्रक्रिया वायु प्रदूषण (Vayu Pradushan ) कहलाती है। इस प्रकार असन्तुलित वायु की गुणवत्ता में ह्रास हो जाता है तथा वह जीवीय समुदाय के लिये सामान्य रूप में तथा मानव समुदाय के लिये विशेष रूप से हानिकारक होती है।
सामान्य अर्थों में प्राकृतिक तथा मानव-जनित स्रोतों से उत्पन्न बाहरी तत्त्वों के वायु में मिश्रण के कारण वायु की असन्तुलित दशा को वायु प्रदूषण (Air Pollution) कहते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वायु प्रदूषण एक ऐसी स्थित है जिसमें बाह्य वातावरण में मनुष्य और उसके पर्यावरण को हानि पहुँचाने वाले तत्त्व सघन रूप से एकत्रित हो जाते है।
वायु प्रदूषण के प्रकार
कार्बन मोनोक्साइड (CO) प्रदूषण: इसमें वायुमंडल में कार्बन मोनोक्साइड गैस की मात्रा बढ़ जाती है, जो वाहनों, उद्योग, और जला हुआ ईंधन के उपयोग से उत्पन्न होता है। यह वायुमंडल में विषाणुओं के साथ मिश्रित होकर सेहत पर हानिकारक प्रभाव डालता है।
सल्फ़र डाइऑक्साइड (SO2) प्रदूषण: इसमें वायुमंडल में सल्फ़र डाइऑक्साइड गैस की मात्रा बढ़ जाती है, जो उद्योग, ईंधन जलने, और उर्वरक उत्पादन से उत्पन्न होता है। यह पारितंत्रिक और पादप स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है।
नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) प्रदूषण: इसमें वायुमंडल में नाइट्रोजन ऑक्साइड गैस की मात्रा बढ़ जाती है, जो वाहनों, उद्योग, और कृषि के कारण उत्पन्न होता है। इसका सीधा प्रभाव वायुमंडलीय साँचों के निर्माण में होता है और वायुमंडल की साफ़ता को कम करता है।
वायु प्रदूषण के कारण -
प्राकृतिक स्रोतों द्वारा वायु प्रदूषण के कारण –
मानव क्रियाओं द्वारा उत्पन्न वायु प्रदूषण के कारण –
वायु प्रदूषण के प्रभाव
वायु प्रदूषण के कारण निम्नलिखित प्रभाव हो सकते हैं:
वायु प्रदूषण को कम करने रोकथाम के कुछ उपाय -
वायु प्रदूषण, वायुमंडल, प्रदूषित गैसें, संक्रमण, स्वास्थ्य प्रभाव, जलवायु, स्वास्थ्य समस्या, वनस्पति, ऊर्जा स्रोत।
भूमि प्रदूषण वह समस्या है जिसमें भूमि की गुणवत्ता और उपयोगिता को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया जाता है। यह वातावरण के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जो मानव समुदायों और प्राकृतिक जीवन को प्रभावित करता है। भूमि प्रदूषण के कारण भूमि की फलन, उपज और प्राकृतिक संतुलन में बिगड़ होती है।
मिट्टी खनिज लवणों तथा अपघटित पदार्थों का समूह मात्र न होकर स्वयं में एक जटिल तंत्र है जो लम्बे समय में जलवायु, जीवों व अन्य भौतिक कारकों की अन्योन्याश्रित क्रियाओं से उत्पन्न होती है। लेकिन मानवीय हस्तक्षेप या प्राकृतिक प्रकोपों के परिणामस्वरूप भूमि में बाहरी तत्त्वों का समावेश हो जाने से भूमि प्रदूषण (Bhumi Pradushan ) उत्पन्न होता है।
सामान्यतः भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में ऐसा कोई भी अवांछित परिवर्तन जिसका प्रभाव मानव तथा अन्य जीवों पर पङे या जिससे भूमि की प्राकृतिक गुणवत्ता तथा उपयोगिता नष्ट हो, भूमि-प्रदूषण (Land Pollution) कहते है।
भूमि प्रदूषण के निम्न कारण है -
भूमि प्रदूषण के कारण निम्नलिखित प्रभाव हो सकते हैं:
भूमि प्रदूषण की रोकथाम के कुछ उपाय -
संबंधित शब्द
भूमि प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण, कृषि प्रथाएं, जल संरक्षण, जैव विविधता, स्वास्थ्य प्रभाव, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषित मिट्टी, संयोजन, गोदामीकरण।
ध्वनि प्रदूषण एक महत्वपूर्ण पर्यावरणिक मुद्दा है जो आधुनिक जीवनशैली के साथ जुड़ा हुआ है। यह ध्वनि के अतिरिक्त और अनावश्यक प्रवाह की वजह से होता है जो जनसंख्या के विकास, औद्योगिकी, ट्रांसपोर्टेशन और आवास के विकास के साथ जुड़ा होता है। यह प्रदूषण न केवल मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, बल्कि पशुओं, पक्षियों और पर्यावरण के अन्य तत्वों को भी प्रभावित करता है।
ध्वनि प्रदूषण औद्योगीकरण, आधुनिक तकनीकीकरण तथा तकनीकी यातायात के साधनों के विकास से उत्पन्न समस्या है। जैसे-जैसे मानव जीवन में गतिशीलता बढ़ रही हैं, वैसे-वैसे ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है। सामान्यतः अनावश्यक, असुविधाजनक और निरर्थक आवाज ही ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) है।
डाॅ. वी राय के अनुसार, अइच्छापूर्ण ध्वनि जो कि मानवीय सुविधा, स्वास्थ्य तथा गतिशीलता में हस्तक्षेप करती है अथवा प्रभावित करती है, ध्वनि प्रदूषण (Dhwani Pradushan ) है।
प्राकृतिक स्रोत द्वारा उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण के कारण -
यद्यपि इनका प्रभाव क्षेत्रीय एवं अल्पकालिक होता है, फिर भी ध्वनि प्रदूषण(Dhwani Pradushan) में इनकी भूमिका अहम होती है।
मानव क्रियाओं द्वारा उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण के कारण -
ध्वनि प्रदूषण के मुख्य प्रभाव निम्न है -
ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के कुछ उपाय -
ध्वनि प्रदूषण, ध्वनि संशोधन, जनसंख्या, ट्रांसपोर्टेशन, औद्योगिकी, जनसंख्या, स्वास्थ्य, शोर, ध्वनि स्तर, पर्यावरण प्रभाव।
प्रदूषण (Pollution) एक बङी पर्यावरणीय समस्या बनती जा रही है। जो ईश्वर रूपी प्रकृति व मानवीय जीवन को विनाश की खाई में दकेल रही है यदि इसके निवारण व नियंत्रण को नजरअंदाज किया तो यह समस्या मानव जीवन व अन्य प्राणियों के लिए एक बङा खतरा बन कर उभरेगी जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी शुद्ध भोजन, हवा, पानी आदि अनेक चीजों के लिए तरसेगी।
इसलिए हमें पर्यावरण संरक्षण की तरफ कदम बढ़ाने होंगे तथा हमें जन-मन में प्रदूषण नियंत्रण संबंधित जानकारी के प्रति जागरूकता फैलानी होगी। जब तब हमारे पूरे देश में लोग व सरकार प्रदूषण को रोकने के प्रति जिम्मेदारी नहीं होगे तब तक किसी भी प्रकार के प्रदूषण को कम नहीं किया जा सकता।