प्रदूषण कितने प्रकार के होते हैं

  Last Update - 2024-01-11

प्रदूषण क्या है -

जब भौतिक, रासायनिक या जैविक कारणों से पर्यावरण के तत्त्वों की गुणवत्ता में विपरीत परिवर्तन होता है, तो वह स्थिति प्रदूषण कहलाती है। यह एक वांछनीय और असामान्य स्थिति है जो हमारे जीवन को प्रगति के रास्ते में रोकती है और हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है। प्रदूषण की यह समस्या हमारे जीवन के लिए बड़ी चिंता का विषय बन चुकी है।

इस स्थिति में प्रदूषक तत्त्व सीमा से अधिक पर्यावरण के तत्त्वों में समाहित होकर उसकी गुणवत्ता को समाप्त करने लगते हैं। अतः जिस क्रिया से हवा, पानी, मिट्टी एवं वहाँ के संसाधनों के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में किसी अवांछनीय परिवर्तन से जैव जगत एवं सकल परिवेश पर हानिप्रद प्रभाव पहुँचे, उसे प्रदूषण (Pradushan) कहते हैं।

प्रदूषण किसे कहते हैं -

वायु-जल या भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाले ऐसे अनचाहे परिवर्तन जो मनुष्य एवं अन्य जीवधारियों, उनकी जीवन परिस्थितियों, औद्योगिक प्रक्रियाओं एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों के लिए हानिकारक हो, प्रदूषण (Pollution) कहलाते है।

प्रदूषण की परिभाषा -

ओडम के अनुसार, हवा, पानी एवं मिट्टी के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों को किसी ऐसे अवांछनीय परिवर्तन से जिससे कि आदमी स्वयं को सकल परिवेश के प्राकृतिक, जैविक एवं सांस्कृतिक तत्त्वों को हानि पहुँचाता है, प्रदूषण कहते हैं।

डी. एम. डिक्सन के अनुसार, प्रदूषण के अन्तर्गत मनुष्य एवं उसके पालतू मवेशियों के उन समस्त इच्छित एवं अनिच्छित कार्यों तथा उनसे उत्पन्न प्रभावों एवं परिणामों को सम्मिलित किया जाता है, जो मनुष्य को अपने पर्यावरण से आनन्द एवं पूर्ण लाभ प्राप्त करने की उसकी क्षमता को कम करते हैं।

लार्ड केनेट के अनुसार, पर्यावरण में उन तत्त्वों या ऊर्जा की उपस्थिति को प्रदूषण कहते हैं जो मनुष्य द्वारा अनचाहे उत्पादित किये गये हों, जिनके उत्पादन का उद्देश्य अब समाप्त हो गया हो, जो अचानक बच निकले हों या जिनका मनुष्य के स्वास्थ्य पर अकथनीय हानिकारक प्रभाव पङता हो।

राष्ट्रीय पर्यावरण खोज परिषद के अनुसार, मनुष्य के क्रिया-कलापों से उत्पन्न अपशिष्ट उत्पादों के रूप में पदार्थों एवं ऊर्जा के विमोचन से प्राकृतिक पर्यावरण में होने वाले हानिकारक परिवर्तनों को प्रदूषण कहते हैं।

अमेरिकी राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के अनुसार, प्रदूषण जल, वायु या भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाला कोई भी अवांछनीय परिवर्तन है। जिससे मनुष्य, अन्य जीवों, औद्योगिक प्रक्रियाओं या सांस्कृतिक तत्त्वों तथा प्राकृतिक संसाधनों को कोई हानि हो या होने की संभावना हो। प्रदूषण में वृद्धि का कारण मनुष्य द्वारा वस्तुओं के प्रयोग करने के बाद फेंक देने की प्रवृत्ति और मनुष्य की बढ़ती जनसंख्या के कारण आवश्यकताओं में वृद्धि है।

प्रदूषण के प्रकार -

  1. जल प्रदूषण: नदियों, झीलों और समुद्रों में धूल, औषधि, उड़ता धूंध, और औषधियों के निर्माण से होने वाला प्रदूषण जल परिसंचरण को प्रभावित करता है। इससे पानी की गुणवत्ता कम होती है और जलमार्गों के जीवदायी प्राणियों को प्रभावित करता है।

  2. वायु प्रदूषण: हवा में मौजूद विषाणुओं, धूल, धुआं, और यातायात के वाहनों के इमिशन के कारण वायु प्रदूषण होता है। इसके परिणामस्वरूप हमारे श्वसन तंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है और बीमारियों का कारक बनता है।

  3. भूमि प्रदूषण: अपशिष्ट, कृषि रसायन, और औषधियों के उपयोग से माटी की गुणवत्ता में कमी आती है और खेती को प्रभावित करता है। इससे उत्पादकता में गिरावट होती है और खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ता है।

  4. ध्वनि प्रदूषण: (Dhwani Pradushan)

प्रदूषण के प्रभाव

  1. स्वास्थ्य पर प्रभाव: प्रदूषित वातावरण में रहने से हमारे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वायु प्रदूषण के कारण श्वसन संबंधी बीमारियाँ, जल प्रदूषण के कारण पेट्रोलियम उत्पादों से होने वाली बीमारियाँ, और माटी प्रदूषण के कारण खाद्य संबंधी बीमारियाँ हो सकती हैं।

  2. पर्यावरण पर प्रभाव: प्रदूषण के कारण पृथ्वी के पानी, वनस्पति, और जीवधारियों को नुकसान पहुंचता है। यह पर्यावरणीय संतुलन को अस्थिर करके जीवन की संभावनाओं को कम करता है और बाढ़, जलवायु परिवर्तन, और प्राकृतिक आपदाओं के आंकड़े बढ़ाता है।

प्रदूषण से बचाव और कमी के उपाय

  1. प्रदूषण नियंत्रण: सभी वाहनों के लिए श्रेणी के नियमों का पालन करना, और प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों का उपयोग करना।

  2. जल संरक्षण: बरताव के साथ पानी का उपयोग करें, बारिश का पानी संचयित करें, और जल संचयन तंत्रों का उपयोग करें।

  3. पर्यावरण शुद्धि: ध्यान दें कि अपशिष्टों को सही ढंग से नष्ट करें, औषधियों को सही ढंग से छोड़ें, और पारिस्थितिकी संरक्षण को बढ़ावा दें।

सकारात्मक परिवर्तन के लिए साझेदारी

प्रदूषण को कम करने और पर्यावरण संरक्षण को सुदृढ़ करने के लिए हमें सभी मिलकर काम करना होगा। सरकार, नागरिक समुदाय, और व्यापारी इकाई सबको सक्रिय रूप से योगदान देना चाहिए। हमें स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करना, पर्यावरण मित्रों के साथ काम करना, और जागरूकता कार्यक्रमों को संचालित करना चाहिए।

नए जीवन की ओर

प्रदूषण को कम करने और पर्यावरण संरक्षण को महत्वपूर्ण बनाने से हम नए और स्वस्थ जीवन की ओर बढ़ सकते हैं। हमें साथ मिलकर संघर्ष करना होगा और प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में अपना योगदान देना होगा। साफ़ और स्वस्थ पर्यावरण की एक स्थापिति बनाने के लिए हमारी प्रयासों को मजबूत बनाएंगे।

इस प्रदूषण के खतरे से बचने और इसे कम करने की ओर हमारा सबसे पहला कदम होना चाहिए। हम सभी को यह जागरूकता फैलानी चाहिए कि हमारे कार्यों का पर्यावरण पर क्या प्रभाव हो सकता है और हम कैसे सुधार कर सकते हैं। प्रदूषण के विरुद्ध एक संघर्ष में एकजुट होकर हम सभी एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।

जल प्रदूषण क्या है -

जल प्रदूषण वह स्थिति है जब जल में आवश्यकता से अधिक खनिज लवण, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ तथा औद्योगिक संयन्त्रों से निकले रासायनिक पदार्थ, अपशिष्ट पदार्थ तथा मृत जन्तु नदियों, झीलों, सागरों तथा अन्य जलीय क्षेत्रों में विसर्जित किये जाने से ये पदार्थ जल के प्राकृतिक व वास्तविक रूप को नष्ट करके उसे प्रदूषित कर देते हैं और जल की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे प्राकृतिक जल स्रोतों, जैव जीवन, और मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। इस प्रकार जल का दूषित होना जल प्रदूषण (Jal Pradushan ) कहलाता है।

जल प्रदूषण किसे कहते हैं -

मानव क्रियाकलापों या प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा जल के रासायनिक, भौतिक तथा जैविक गुणों में परिवर्तन को जल प्रदूषण (Water Pollution) कहते है।

जब झीलों, नहरों, नदियों, समुद्र तथा अन्य जल निकायों में विषैले पदार्थ प्रवेश करते हैं और यह इनमें घुल जाते है अथवा पानी में पङे रहते हैं या नीचे इकट्ठे हो जाते हैं। जिसके परिणामस्वरूप जल प्रदूषित हो जाता है और इससे जल की गुणवत्ता में कमी आ जाती है तथा जलीय पारिस्थितिकी प्रणाली प्रभावित होती है। प्रदूषकों को भूमि में रिसन भी हो सकता है जिसके कारण भूमि-जल भी प्रभावित होता है।

जल प्रदूषण के प्रकार

  1. जल में थोड़ा प्रदूषण: इसमें जल में अल्कोहल, अमोनिया, नाइट्रेट्स, निट्राइट्स, और निकोटीन जैसे केमिकल तत्वों की छोटी मात्रा होती है। यह बाथरूम, लॉन, और रंग के उपयोग से हो सकता है।

  2. जल में संक्रमण: इसमें जल में वायरस, बैक्टीरिया, पारजीविक, और महिला संक्रमण के कारण होने वाले कीटाणु होते हैं। यह सड़कों से निकलने वाले निकासी, कूड़े, और अन्य अपशिष्टों से हो सकता है।

  3. जल में रासायनिक प्रदूषण: इसमें जल में तत्वों की भारी मात्रा होती है, जैसे कि लिएची, आर्सेनिक, फ्लोराइड, निकेल, जिंक, और प्लास्टिक। यह औषधियों, कारख़ानों, और गैर-सत्यापित नलियों के छिड़काव के कारण हो सकता है।

जल प्रदूषण के कारण -

प्राकृतिक स्रोत द्वारा उत्पन्न जल प्रदूषण के कारण –

  • प्राकृतिक रूप से भी जल प्रदूषित होता रहता है।
  • इस प्रदूषण का कारण जल में मिश्रित होने वाली विभिन्न गैस, मृदा, खनिज, ह्यूमस पदार्थ तथा जीव-जन्तुओं का मल-मूत्र आदि होते हैं।
  • यह प्रदूषण मंद और कभी-कभी सामयिक होता है, जैसे वर्षा ऋतु में नदियों, तालाबों का जल मृदा के कणों के मिश्रण से अत्यधिक मटमैला हो जाता है।
  • प्राकृतिक अशुद्धियाँ अति सूक्ष्म कणों में घुलित रूप में होती हैं।
  • यह जैव अथवा अजैव, कार्बनिक अथवा अकार्बनिक, रेडियोंयो-सक्रिय अथवा निष्क्रिय, विषैले अथवा हानि रहित हो सकती हैं।

मानव क्रियाओं द्वारा उत्पन्न जल प्रदूषण के कारण –

(1) औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ – नगरों व महानगरों में अनेक उद्योग होते हैं जो कि सामान्यतया जल स्रोतों, यथा-झीलों, नदियों, सागरों इत्यादि के पास अम्ल, क्षार, तेल, वसा, विभिन्न रासायनिक लवण, खनिज धुलाई, चर्म शोधन, रंग रोगन, कीटनाशक, रासायनिक उर्वरक, पारा, सीसा, उष्ण जल आदि को निकटवर्ती नदियों में बहाया जाता है जिससे नदी का जल प्रदूषित हो जाता है। यही अपशिष्ट पदार्थ नदियों के माध्यम से झीलों, सागरों तथा महासागरों आदि में पहुँचते हैं तो वहाँ का जल प्रदूषित हो जाता है।

(2) घरेलू बहिस्राव – जल मनुष्य की आधारभूत जीवनदायी आवश्यकता है। जल स्नान करने, सफाई के लिए, भोजन पकाने व वातानुकूलित यंत्रों के काम में के रूप में स्थानीय क्षेत्रों से प्रवाहित कर दिया जाता है। इस जल में कपङे धोने से मिले अपमार्जक, सङी-गली सब्जियाँ एवं फल, चूल्हे की राख, घर का कूङा-करकट, कपङों के अंश आदि मिले रहते हैं। यह मलिन जल खुली नालियों से होकर निकटवर्ती जल स्रोतों से मिलकर प्रदूषण (Pollution) फैलता है।

(3) वाहित मल जल – नगरों का वाहित मल नदियों, झीलों, सागरों इत्यादि में पहुंचकर उसे प्रदूषित करता है। घरेलू गन्दा पानी, मानव का मलमूत्र, कूङा-कचरा आदि वाहित मल के स्रोत है। इस मलिन जल में बैक्टीरिया, वाइरस, प्रोटोजोआ, शैवाल, कवक इत्यादि सूक्ष्म जीव शीघ्रता से पैदा होते हैं तथा जल में जैविक संदूषण पैदा करते हैं।

जैसे – वाराणसी में लगभग 71 नालों द्वारा 15 मिलियन गैलन वाहित मल जल प्रतिदिन गंगा नदी में बहाया जा रहा है जिससे वहाँ का जल प्रदूषित हो गया है।

(4) अणु विस्फोट – अणु शक्ति से सम्पन्न देश परमाणु बमों का परीक्षण समुद्री द्वीपों में करते हैं जिससे समुद्री जल में विषैले पदार्थ मिलकर उसे प्रदूषित कर देते हैं और अनेक जीव-जन्तुओं का जीवन खतरे में पङ जाता है।

जल प्रदूषण के प्रभाव -

जल प्रदूषण के मुख्य प्रभाव निम्न है –

  • जब मनुष्य प्रदूषित जल का सेवन करता है तो उसमें उपस्थित जीवाणुओं से अनेक प्रकार की बीमारियाँ तथा हैजा, टाइफाइड, डायरिया, पेचिश आदि रोग फैल जाते हैं जो कि कभी-कभी महामारी का रूप भी ले लेते हैं। पीलिया, यकृत शोथ एवं पीलियो जैसी बीमारियाँ भी दूषित जल में उपस्थित वायरस से होती है।
  • प्रदूषित जल का जलीय जीवों पर कई प्रकार से कुप्रभाव पङता है। जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में जैव व अजैव पदार्थ भोजन शृंखला के द्वारा आपस में जुङे हुए रहते हैं तथा तंत्र की कार्यशीलता को बनाये रखते हैं। लेकिन उनमें अस्थिरता या असन्तुलन उत्पन्न होने पर कई प्रदूषण कुप्रभाव पङने लगते हैं।
  • जल प्रदूषण जलीय वनस्पति को भी अनेक प्रकार से प्रभावित करता है। ताप विद्युत गृहों अथवा धातु कारखानों से जो बहिःस्राव होता है वह जल में मिलकर उसके तापमान में वृद्धि कर देता है जिससे शैवालों व कवक में तीव्र वृद्धि होने लगती है।
  • प्रदूषित जल द्वारा सिंचाई करने पर मिट्टी की गुणवत्ता में ह्रास होता है, फसलें नष्ट हो जाती हैं तथा उसमें उत्पन्न खाद्य पदार्थ हानिकारक होते हैं। खारे पानी से सिंचाई के कारण मिट्टी में क्षारीय अंश बढ़ जाता है। बालुयुक्त जल से सिंचाई करने पर मिट्टी में बालू की मात्रा बढ़ जाती है।
  • जलीय प्रजाति के नष्ट होने: जल में प्रदूषक तत्वों के उपसर्ग के कारण, जलीय प्रजाति जैसे मछलियों और अन्य जीवों की संख्या में कमी होती है।

  • मानव स्वास्थ्य पर असर: प्रदूषित जल पीने और स्नान करने से लोगों को विभिन्न संक्रमण और बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है।

  • जल स्रोतों का नष्ट होना: जल प्रदूषण के कारण, नदियों, झीलों, और अन्य जल स्रोतों की गुणवत्ता खराब होती है और यह पानी जीवन के लिए उपयोगी नहीं रहता।

जल प्रदूषण के उपाय -

जल प्रदूषण वर्तमान में एक विश्वव्यापी समस्या बना हुआ है। इसे विभिन्न निवारक उपायों द्वारा नियंत्रित करने के लिए जनसामान्य, सामाजिक संगठनों, राष्ट्रीय सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठनों का सहयोग आवश्यक है।

जल प्रदूषण की रोकथाम के कुछ उपाय –

  • जल संरक्षण: जल का संयमित उपयोग करें, बाथरूम और नहाने का पानी सुधारें, और बारिश का पानी संचयित करें।

  • सड़कों का साफ़ रखें: अवैध निकासी और अपशिष्टों को सड़कों पर न फेंकें और उचित तरीके से उन्हें नष्ट करें।

  • जल शोधन: जल शोधन प्रणालियों का उपयोग करें जो प्रदूषित जल को शुद्ध करती हैं और उपयोगी बनाती हैं।

  • सचेतता फैलाएं: जल प्रदूषण के बारे में जागरूकता फैलाएं और लोगों को संवेदनशील बनाएं।

  • उपचारित गन्दे जल का उपयोग सिंचाई के लिए किया जा सकता है क्योंकि इसमें उर्वरकता होती है, विशेष रूप से सब्जियों के उत्पादन में इसे उपयोग में लिया जा सकता है।
  • पेयजल स्रोतों के पास गन्दगी एकत्रित नहीं होनी चाहिए, उनके चारों तरफ पक्की दीवार बनाई जाये तथा उसमें नहाने तथा कपङे धोने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना चाहिए।
  • उद्योगों के द्वारा वाहित प्रदूषित जल को जलस्रोतों में डालने पर रोक का कठोरता से पालन किया जाये। जो उद्योग प्रदूषित जल को जलस्रोतों में डालते हैं, उनके लिए जल उपचार संयंत्र लगाना जाना आवश्यक किया जाये और उपचारित जल ही नदी आदि में छोङा जाये।
  • सरकारी स्तर पर जल के प्रदूषण की नियमित जाँच होनी चाहिए। उसका स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर क्या प्रभाव पङ रहा है इसका अध्ययन किया जाना चाहिए। साथ ही इस कार्य पर समुचित निगरानी करके नियमों का उल्लंघन करने वालों को कठोर सजा दी जानी चाहिए।

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वायु प्रदूषण क्या है -

वायु प्रदूषण एक गंभीर पर्यावरणिक मुद्दा है जो हमारे प्राकृतिक वातावरण को बाधित करता है और मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। यह वायुमंडल में विभिन्न विषाणु, धुएं, धूल, और गैसों की मात्रा के बढ़ने के कारण होता है। वायु प्रदूषण जीवनीय क्षेत्र, जलवायु और आर्थिक प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

वायुमण्डल में पायी जाने वाली गैसें एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात मेें होती हंै। जब वायु के अवयवों में अवांछित तत्त्व प्रवेश कर जाते हैं तो उसका मौलिक सन्तुलन बिगङ जाता है जो मानव तथा अन्य जीवधारियों के लिए घातक होता है। इसमें विभिन्न प्रकार की गैसें, कार्बन के कण, धुआँ, खनिजों के कण आदि सम्मिलित हैं।

वायु के दूषित होने की यही प्रक्रिया वायु प्रदूषण (Vayu Pradushan ) कहलाती है। इस प्रकार असन्तुलित वायु की गुणवत्ता में ह्रास हो जाता है तथा वह जीवीय समुदाय के लिये सामान्य रूप में तथा मानव समुदाय के लिये विशेष रूप से हानिकारक होती है।

वायु प्रदूषण किसे कहते हैं -

सामान्य अर्थों में प्राकृतिक तथा मानव-जनित स्रोतों से उत्पन्न बाहरी तत्त्वों के वायु में मिश्रण के कारण वायु की असन्तुलित दशा को वायु प्रदूषण (Air Pollution) कहते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वायु प्रदूषण एक ऐसी स्थित है जिसमें बाह्य वातावरण में मनुष्य और उसके पर्यावरण को हानि पहुँचाने वाले तत्त्व सघन रूप से एकत्रित हो जाते है।

वायु प्रदूषण के प्रकार

  1. कार्बन मोनोक्साइड (CO) प्रदूषण: इसमें वायुमंडल में कार्बन मोनोक्साइड गैस की मात्रा बढ़ जाती है, जो वाहनों, उद्योग, और जला हुआ ईंधन के उपयोग से उत्पन्न होता है। यह वायुमंडल में विषाणुओं के साथ मिश्रित होकर सेहत पर हानिकारक प्रभाव डालता है।

  2. सल्फ़र डाइऑक्साइड (SO2) प्रदूषण: इसमें वायुमंडल में सल्फ़र डाइऑक्साइड गैस की मात्रा बढ़ जाती है, जो उद्योग, ईंधन जलने, और उर्वरक उत्पादन से उत्पन्न होता है। यह पारितंत्रिक और पादप स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है।

  3. नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) प्रदूषण: इसमें वायुमंडल में नाइट्रोजन ऑक्साइड गैस की मात्रा बढ़ जाती है, जो वाहनों, उद्योग, और कृषि के कारण उत्पन्न होता है। इसका सीधा प्रभाव वायुमंडलीय साँचों के निर्माण में होता है और वायुमंडल की साफ़ता को कम करता है।

वायु प्रदूषण के कारण -

प्राकृतिक स्रोतों द्वारा वायु प्रदूषण के कारण –

  • वायु प्रदूषण में प्राकृतिक स्रोत भी जिम्मेदार होते है।
  • ज्वालामुखी उद्गार से उत्पन्न प्रदूषक- धूल-कण, राख, हाइड्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड व अन्य गैंसे।
  • अन्तरिक्ष से प्राप्त तत्व-उपग्रह व अवान्तर ग्रह आदि की ऑक्साइड व अन्य गैसें, अन्तरिक्ष से प्राप्त तत्व-उपग्रह व अवान्तर ग्रह आदि की ऑक्साइड व अन्य गैसें, अन्तरिक्ष से प्राप्त तत्व-उपग्रह व अवान्तर ग्रह आदि की टक्कर से उत्पन्न धूल आदि,
  • प्राथमिक उत्पादक हरे पौधों से वाष्पोत्सर्जन के दौरान निःसृत जलवाष्प व श्वसन द्वारा निर्मुक्त Co2 वनाग्नि से उत्पन्न गैसें व धुआँ, कवकों व बैक्टीरिया से उत्पन्न बीजाणु व वायरस आदि प्रमुख हैं।

मानव क्रियाओं द्वारा उत्पन्न वायु प्रदूषण के कारण –

  • वर्तमान में मानवीय क्रिया-कलाप वायु प्रदूषण का प्रमुख स्रोत बनते जा रहे हैं।
  • कल-कारखानों से छोङा गया धुआँ एवं अनेक प्रकार के सूक्ष्म कण।
  • आटोमोबाइल व डीजल ईंधन से निकाल धुआँ, गैस व धातुओं के सूक्ष्म कण।
  • वायुयान व राकेटों का धुआँ।
  • रासायनिक पदार्थ, पेट्रोल, डीजल, कोयला, लकङी आदि का धुआँ।
  • ताप विद्युत गृहों से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड।
  • खनिज तत्त्वों के कण।
  • कृषि क्रियाओं में कार्बन डाई ऑक्साइड की बढ़ती मात्रा।
  • विभिन्न उद्योगों व तापगृहों से निकली जहरीली गैस, धूल कण आदि।

वायु प्रदूषण के प्रभाव

वायु प्रदूषण के कारण निम्नलिखित प्रभाव हो सकते हैं:

  1. संप्रेक्षण की समस्या: वायुमंडल में प्रदूषक गैसों की मात्रा बढ़ने से वायुमंडलीय संप्रेक्षण होती है, जो स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती है।
  2. वनस्पति और फसलों के प्रभाव: वायु प्रदूषण से वनस्पतियों और फसलों के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  3. स्वास्थ्य समस्याएं: वायु प्रदूषण से संक्रमण, श्वास नली की समस्याएं, दमा, हृदय रोग, और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
  4. वायु प्रदूषण से वायुमंडलीय एवं स्थानीय तापमान में वृद्धि होती है, जिसका प्रभाव अनेक जलवायविक व मौसमी घटनाओं पर पङता है। अनेक उद्योगों से CFC एवं सुपरजेट विमानों से नाइट्रोजन ऑक्साइड गैसों का उत्सर्जन होता है, जिनके कारण सूर्य की पराबैंगनी किरणों का शोषण करने वाली ओजोन परत क्षीण हो रही है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव सम्पूर्ण जीवमंडल पर पङेगा।
  5. वायु प्रदूषण के कारण मानव में दमा, श्वसनी शोध, गले का दर्द, निमोनिया जैसे हानिकारक रोग हो रहे है।
  6. वाहनों, उद्योगों जैसे कारकों से उत्सर्जित CO2 गैस से वायुमंडल की सांद्रता में वृद्धि हो रही है। फलस्वरूप हरित गृह प्रभाव बढ़ जायेगा, जिससे भूतल का तापमान बढ़ जायेगा, धु्रवों की बर्फ पिघल जायेगी, महासागरों का जल स्तर बढ़ जायेगा, तटवर्ती क्षेत्र जल में डूब जायेंगे तथा वनस्पतियाँ, मानव व जीव-जन्तु प्रभावित होंगे।
  7. वायु प्रदूषण के कारण अम्लीय वर्षा व धूम्र कोहरा जैसी विनाशक मौसमी घटनाएँ घट रही हैं, जिनका प्रभाव मानव के साथ-साथ जीव-जन्तु व वनस्पतियों पर भी पङ रहा है। अम्ल वर्षा के कारण मृदा उत्पादकता का भी ह्रास होता है।

वायु प्रदूषण को कम करने रोकथाम के कुछ उपाय -

  1. वाहनों का उपयोग कम करें: सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें और कम्पाउंड के साथ यातायात करें।
  2. जला हुआ ईंधन छोड़ें: पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले ईंधन का उपयोग छोड़ें और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करें।
  3. उद्योग के प्रदूषण नियंत्रण: उद्योग को प्रदूषण नियंत्रण नियमों का पालन करना चाहिए और साफ़ प्रदूषण तकनीकों का उपयोग करें।
  4. वृक्षारोपण: अधिक से अधिक वृक्षारोपण करें और पर्यावरण को शुद्ध करने में मदद करें।
  5. जल्दी से गर्मी छोड़ें: वायुमंडलीय प्रदूषण को कम करने के लिए उचित उपायों की जरूरत है, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र की पारिस्थितिकी सम्मेलन में समझौतों का पालन करना।
  6. उद्योगों की स्थापना घनी आबादी क्षेत्रों से दूर की जानी चाहिए। नवीन उद्योग स्थापित करने से पूर्व प्रदूषणकारी क्रियाविधियों के प्रबन्ध को ध्यान में रखा जाना चाहिए तथा निर्धारित मापदण्डों के अन्तर्गत ही इनका विकास किया जाए।
  7. सम्पूर्ण भौगोलिक क्षेत्र के 33 प्रतिशत भाग में वनों को विकसित करके वायु प्रदूषण पर नियंत्रण किया जा सकता है।
  8. पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहनों का प्रयोग कम करना चाहिए अथवा उनकी वायु प्रदूषक उत्पन्न करने की क्षमता में कमी लाना चाहिये, जिससे कि वायुमंडल में SO2 एवं CO जैसी विषैली गैसों की मात्रा में वृद्धि न हो।
  9. वायु प्रदूषण के नियन्त्रण हेतु कानून बनाना चाहिए एवं जनचेतना को जागरूक करने का प्रयास करना चाहिए।

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भूमि प्रदूषण क्या है -

भूमि प्रदूषण वह समस्या है जिसमें भूमि की गुणवत्ता और उपयोगिता को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया जाता है। यह वातावरण के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जो मानव समुदायों और प्राकृतिक जीवन को प्रभावित करता है। भूमि प्रदूषण के कारण भूमि की फलन, उपज और प्राकृतिक संतुलन में बिगड़ होती है।

मिट्टी खनिज लवणों तथा अपघटित पदार्थों का समूह मात्र न होकर स्वयं में एक जटिल तंत्र है जो लम्बे समय में जलवायु, जीवों व अन्य भौतिक कारकों की अन्योन्याश्रित क्रियाओं से उत्पन्न होती है। लेकिन मानवीय हस्तक्षेप या प्राकृतिक प्रकोपों के परिणामस्वरूप भूमि में बाहरी तत्त्वों का समावेश हो जाने से भूमि प्रदूषण (Bhumi Pradushan ) उत्पन्न होता है।

भूमि प्रदूषण किसे कहते हैं -

सामान्यतः भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में ऐसा कोई भी अवांछित परिवर्तन जिसका प्रभाव मानव तथा अन्य जीवों पर पङे या जिससे भूमि की प्राकृतिक गुणवत्ता तथा उपयोगिता नष्ट हो, भूमि-प्रदूषण (Land Pollution) कहते है।

भूमि प्रदूषण के प्रमुख कारक-

भूमि प्रदूषण के निम्न कारण है -

  1. औद्योगिक प्रदूषण: औद्योगिक गतिविधियों से उत्पन्न विषाणु, धुल, ध्वनि, रासायनिक और जलीय पदार्थों का विसर्जन भूमि प्रदूषण का मुख्य कारण है।
  2. उर्वरकों का उपयोग: अधिक मात्रा में उर्वरकों का उपयोग करने से भूमि की उपज में वृद्धि होती है, लेकिन इसके साथ ही उपयोग की गई उर्वरकों द्वारा भूमि प्रदूषण का खतरा बढ़ जाता है।
  3. कृषि प्रथाओं का प्रभाव: अनुचित कृषि प्रथाएं जैसे कि अतिरिक्त खेती, खाद्य शोषण, परमाणु खाद्य और कीटनाशकों का अधिक उपयोग भूमि प्रदूषण को बढ़ाती हैं।
  4. मनुष्य द्वारा वनों को काटकर साफ किया जा रहा है, जिससे मिट्टी के जैविकीय गुण समाप्त होते जा रहे है। मिट्टी में वनस्पति का मूल समाप्त होने के कारण भूमि का उपजाऊपन कम होता जा रहा है।
  5. वर्तमान समय में यंत्रीकृत प्रगति कृषि का आवश्यक अंग बन चुका है। यद्यपि रासायनिक उर्वरक फसलों के लिये आवश्यक पोषक तत्त्व प्रदान करते हैं, लेकिन इनके अत्यधिक प्रयोग के कारण मिट्टियों के भौतिक तथा रासायनिक गुणों में भारी परिवर्तन हो जाते हैं। जिससे भी भूमि प्रदूषित होती है।
  6. औद्योगिक एवं नगरीय क्षेत्रों से निकले वाले अपशिष्ट पदार्थों के खेतों में डम्पिंग तथा नगरीय गन्दे नालों के प्रदूषित सीवरेज जल से फसलों की सिंचाई के कारण मिट्टियों के भौतिक एवं रासायनिक गुणों में परिवर्तन हो जाने के कारण मिट्टियों का अवनयन शुरू हो जाता है।
  7. अम्ल वर्षा के कारण भूमि की उत्पादकता में कमी आ जाती है। धात्विक कणिकीय पदार्थों के कारण भी मिट्टियों के भौतिक तथा रासायनिक गुणों में परिवर्तन हो जाता है।

भूमि प्रदूषण के प्रभाव -

भूमि प्रदूषण के कारण निम्नलिखित प्रभाव हो सकते हैं:

  1. जल और धरातल की गुणवत्ता का ह्रास: भूमि प्रदूषण से मिट्टी की गुणवत्ता कम होती है और जल के प्रवाह में अपव्यवस्था होती है।
  2. जैव विविधता की क्षति: भूमि प्रदूषण के कारण जैविक जीवन और जैविक विविधता पर अस्थायी और स्थायी प्रभाव पड़ता है।
  3. स्वास्थ्य प्रभाव: भूमि प्रदूषण से जनसंख्या के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जैसे कि बीमारियाँ, श्वास नली की समस्याएं, और मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं।
  4. कीटाणुनाशक, शाकनाशक तथा कवकनाशक विषैली दवायें भूमि की उर्वरा शक्ति को कम कर देती हैं, जिससे फसलों की वृद्धि रुक जाती है।
  5. कीटनाशी डी.डी.टी. के उपयोग पर अनेक देशों में प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। ये रासायनिक प्रदूषक भोजन के साथ मानव शरीर में पहुँचकर अनेक रोग उत्पन्न करते हैं।
  6. रासायनिक उर्वरकों एवं जैव रसायनों के प्रयोग से मृदा की उर्वरता में क्षणिक वृद्धि होती है, परन्तु कालान्तर में मिट्टी के गुणों में ह्रास होता है। फलस्वरूप जा रही है।
  7. भूमि में लवणीकरण तथा पानी एकत्रित होने से कृषि भूमि नष्ट होती जा रही है।

भूमि प्रदूषण के उपाय -

भूमि प्रदूषण की रोकथाम के कुछ उपाय -

  1. जल संरक्षण: भूमि प्रदूषण को कम करने के लिए जल संरक्षण को महत्व दें और उचित जल उपयोग करें।
  2. संयोजन और गोदामीकरण: उपयुक्त संयोजन और भूमि के गोदामीकरण का उपयोग करें ताकि प्रदूषक पदार्थों का बहाव कम हो सके।
  3. कृषि प्रथाओं में सुसंगती: संयुक्त खेती और कृषि तकनीकी का उपयोग करें जो भूमि प्रदूषण को कम करती है और उपज को बढ़ाती है।
  4. अधिकारिक नियंत्रण: औद्योगिक क्षेत्रों में प्रदूषण नियंत्रण नियमों का पालन करें और प्रदूषण के नियंत्रण के लिए नवाचारी तकनीकों का उपयोग करें।
  5. संवेदनशीलता बढ़ाना: जनसंख्या को भूमि प्रदूषण के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए जागरूकता और शिक्षा को प्रमुखता दें।
  6. रासायनिक उर्वरकों एवं जैव रसायनों के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगाया जाए।
  7. रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर कम्पोस्ट या गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि इनसे मिट्टी के मौलिक गुण कालान्तर तक विद्यमान रहेंगे।
  8. लवणता की अधिकता वाली मृदा के सुधार के लिए वैज्ञानिकों के सुझाव के अनुसार रासायनिकों का प्रयोग किया जाए।
  9. वनाच्छादित क्षेत्रों में वन विनाश पर प्रतिबंध लगाया जाये। वन विकास जैसे परियोजनाओं को प्रारंभ किया जाये जिससे मिट्टी निर्माण की प्रक्रिया में गतिरोध पैदा न हो तथा भू-क्षरण भी नियंत्रित हो सके।

संबंधित शब्द

भूमि प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण, कृषि प्रथाएं, जल संरक्षण, जैव विविधता, स्वास्थ्य प्रभाव, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषित मिट्टी, संयोजन, गोदामीकरण।

ध्वनि प्रदूषण क्या है -

ध्वनि प्रदूषण एक महत्वपूर्ण पर्यावरणिक मुद्दा है जो आधुनिक जीवनशैली के साथ जुड़ा हुआ है। यह ध्वनि के अतिरिक्त और अनावश्यक प्रवाह की वजह से होता है जो जनसंख्या के विकास, औद्योगिकी, ट्रांसपोर्टेशन और आवास के विकास के साथ जुड़ा होता है। यह प्रदूषण न केवल मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, बल्कि पशुओं, पक्षियों और पर्यावरण के अन्य तत्वों को भी प्रभावित करता है।

ध्वनि प्रदूषण औद्योगीकरण, आधुनिक तकनीकीकरण तथा तकनीकी यातायात के साधनों के विकास से उत्पन्न समस्या है। जैसे-जैसे मानव जीवन में गतिशीलता बढ़ रही हैं, वैसे-वैसे ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है। सामान्यतः अनावश्यक, असुविधाजनक और निरर्थक आवाज ही ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) है।

ध्वनि प्रदूषण किसे कहते हैं -

डाॅ. वी राय के अनुसार, अइच्छापूर्ण ध्वनि जो कि मानवीय सुविधा, स्वास्थ्य तथा गतिशीलता में हस्तक्षेप करती है अथवा प्रभावित करती है, ध्वनि प्रदूषण (Dhwani Pradushan ) है।

ध्वनि प्रदूषण के कारण -

प्राकृतिक स्रोत द्वारा उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण के कारण -

  1. ट्रांसपोर्टेशन: मोटर वाहनों, हवाई जहाजों, रेलगाड़ी और उड़ानों के उच्च ध्वनि स्तर ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारक हैं।
  2. औद्योगिक गतिविधियाँ: औद्योगिक क्षेत्रों में उत्पन्न उच्च ध्वनि स्तर ध्वनि प्रदूषण का कारण बनते हैं।
  3. नागरिक जीवन: उच्च संख्या में लोगों के आवास, वाणिज्यिक क्षेत्रों और सार्वजनिक स्थानों में ध्वनि प्रदूषण की समस्या उत्पन्न करती है।
  4. इन कारणों में बादलों का गरजना एवं गङगङाहट।
  5. बिजली का कङकना।
  6. तूफानी हवाओं के विभिन्न रूप जैसे – हरिकेन, झंझावात, तङित झंझा, टारनेडो।
  7. उच्च तीव्रता वाली जल वर्षा।
  8. ओलावृष्टि, जल प्रपात।
  9. सागरीय सिर्फ तरंगें।
  10. ज्वालामुखी विस्फोट।
  11. भूकम्प।

यद्यपि इनका प्रभाव क्षेत्रीय एवं अल्पकालिक होता है, फिर भी ध्वनि प्रदूषण(Dhwani Pradushan) में इनकी भूमिका अहम होती है।

मानव क्रियाओं द्वारा उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण के कारण -

  • मानवीय या कृत्रिम स्रोतों में मानव द्वारा की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं को शामिल किया जाता है।
  • मानव जनित औद्योगीकरण एवं नगरीकरण से अनेक ध्वनि प्रदूषण कारकों का जन्म हुआ है।
  • इसके अन्तर्गत सामान्यतः कल-कारखानों में कार्यरत मशीनों व यंत्रों से उत्पन्न शोर।
  • यातायात के विभिन्न साधनों से उत्पन्न शोर, टीवी, रेडियो, वीडियो जैसे मनोरंजन के साधनों।
  • अन्य ध्वनि प्रसारक यंत्रों से उत्पन्न शोर।
  • मन्दिर-मस्जिदों व गुरुद्वारों में पूजा के समय, विवाहादि संस्कारों, भजन-कीर्तन आदि धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक समारोहों में लाउडस्पीकरों के उपयोग से उत्पन्न शोर।
  • राजनैतिक गतिविधियों आदि विभिन्न कारणों से उत्पन्न शोर को शामिल किया जाता है।

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव -

ध्वनि प्रदूषण के मुख्य प्रभाव निम्न है -

  1. मानसिक तथा शारीरिक समस्याएं: ध्वनि प्रदूषण निरंतर उच्च ध्वनि स्तर के कारण मानसिक तनाव, सुयोग्य नींद की कमी, सुनने की क्षमता में कमी, तनाव, मानसिक तनाव, उदासीनता, इत्यादि जैसी समस्याएं पैदा कर सकता है।
  2. पर्यावरण प्रभाव: ध्वनि प्रदूषण जीवनीय प्रजातियों के लिए खतरा पैदा कर सकता है और पक्षियों, पशुओं और मानवों के वातावरण में परिवर्तन कर सकता है।
  3. शोर से मस्तिष्क में तनाव की उत्पत्ति होती है तथा निरन्तर तनावग्रस्त रहने पर मानव में उच्च रक्तचाप व हृदय रोगों की उत्पत्ति होती है।
  4. 90 डेसीबल से अधिक ध्वनि वाले वातावरण में रहने वाले मनुष्यों में बहरापन, मानसिक तनाव, चिङचिङापन एवं हृदय रोगों में वृद्धि तथा सोचने की क्षमता में कमी आती है। तीव्र शोर से श्रवण शक्ति का ह्रास होता है।
  5. तीव्र ध्वनि से जीव-जन्तुओं के यकृत, हृदय एवं मस्तिष्क को भी हानि पहुँचती है।
  6. दीर्घकाल तक अधिक ध्वनि प्रदूषित क्षेत्रों में रहने से व्यक्ति में न्यूरोटिक मेण्टल डिसऑर्डर उत्पन्न हो जाता है। व्यक्ति विक्षिप्त अवस्था में पहुँच जाता है।

ध्वनि प्रदूषण के उपाय -

ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के कुछ उपाय -

  1. प्रदूषण नियंत्रण कानून: सरकार को ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने और समुचित मापदंड निर्धारित करने के लिए प्रभावी कानूनों का निर्माण करना चाहिए।
  2. ध्वनि संशोधन: उच्च ध्वनि स्तर वाले क्षेत्रों में ध्वनि संशोधन तकनीकों का उपयोग करना चाहिए जिससे कि ध्वनि स्तर को कम किया जा सके।
  3. संज्ञाना और शिक्षा: ध्वनि प्रदूषण के बारे में जनसंख्या को जागरूक करने और उच्चतम स्तर पर संज्ञाना और शिक्षा प्रदान करना चाहिए।
  4. औद्योगिक इकाइयों व ध्वनि उत्पन्न करने वाले कल-कारखानों को शहरी व ग्रामीण बस्तियों से दूर स्थापित करना चाहिये। उद्योगों में काम करने वाले मजदूरों को इयरप्लग तथा हैलमेट का उपयोग करना चाहिए।
  5. मोटरगाङियों व अन्य वाहनों में लगे तीव्र ध्वनि वाले हार्न को बजाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना आवश्यक है। मशीनों तथा वाहनों में साइलेन्सर का उपयोग किया जाना चाहिए।
  6. आग्नेय शस्त्रों व अन्य विस्फोटक पदार्थों के प्रयोग पर भी प्रतिबंध होना चाहिए। ध्वनि तरंगों के संचरण पथ को नियंत्रित करके भी ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
  7. सङकों के दोनों किनारों पर आम, इमली, नारियल, नीम, ताङ, शीशम आदि के हरे वृक्षों की कतार खङी करके ध्वनि प्रदूषण से बचा जा सकता है क्योंकि हरे पौधे ध्वनि की तीव्रता को 10 डेसीबल से 16 डेसीबल तक कम कर सकते हैं।

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प्रदूषण को रोकने के उपाय -

प्रदूषण (Pollution) एक बङी पर्यावरणीय समस्या बनती जा रही है। जो ईश्वर रूपी प्रकृति व मानवीय जीवन को विनाश की खाई में दकेल रही है यदि इसके निवारण व नियंत्रण को नजरअंदाज किया तो यह समस्या मानव जीवन व अन्य प्राणियों के लिए एक बङा खतरा बन कर उभरेगी जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी शुद्ध भोजन, हवा, पानी आदि अनेक चीजों के लिए तरसेगी।

इसलिए हमें पर्यावरण संरक्षण की तरफ कदम बढ़ाने होंगे तथा हमें जन-मन में प्रदूषण नियंत्रण संबंधित जानकारी के प्रति जागरूकता फैलानी होगी। जब तब हमारे पूरे देश में लोग व सरकार प्रदूषण को रोकने के प्रति जिम्मेदारी नहीं होगे तब तक किसी भी प्रकार के प्रदूषण को कम नहीं किया जा सकता।

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