Kothari Commission 1964-66 | कोठारी कमीशन

  Last Update - 2024-01-29

कोठारी कमीशन - Kothari Commission
गठन - 14 जुलाई 1964
अध्यक्ष - डाॅ. दौलत सिंह कोठारी
अन्य नाम - भारतीय शिक्षा आयोग 1964-66 (राष्ट्रीय शिक्षा आयोग)
सचिव - जे. पी. नाइक
संयुक्त सचिव - जे. एफ. मैकड्गल
सदस्य - 17 सदस्य (11 भारतीय, 6 सदस्य)
कार्य प्रारम्भ - 2 अक्टूबर, 1964
रिपोर्ट - 29 जून 1966
रिपोर्ट का नाम - शिक्षा एवं राष्ट्रीय प्रगति

पृष्ठभूमि

मुदालियर आयोग की सिफारिश पर देश में बहुउद्देशीय विद्यालय स्थापित हो चुके थे। उनकी कार्य प्रणाली तथा उपलब्धियों का मूल्यांकन करना आवश्यक हो गया था। यह अनुभव किया जा रहा था कि ये विद्यालय तथा इनमें प्रचलित पाठ्यक्रम को समय के साथ कदम नहीं मिला पा रहे हैं। इस समस्त तथ्यों को ध्यान में रखकर यह आवश्यक हो गया था कि भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्तिकारी सुधारात्मक परिवर्तन किये जाए। अतः भारत सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कोठारी आयोग (Kothari Aayog) गठित किया था।

कोठारी आयोग की स्थापना -

भारत सरकार द्वारा 14 जुलाई 1964 में डाॅ. दौलतसिंह कोठारी की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया। इसके अध्यक्ष के नाम पर इसे कोठरी आयोग (kothari commission) के नाम से जाना गया। डाॅ. दौलतसिंह कोठारी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के तत्कालीन अध्यक्ष थे।

कोठरी आयोग (kothari aayog) स्वतंत्रता के बाद भारत में छठा आयोग था, लेकिन यह पहला आयोग था जिसने भारत के शिक्षा क्षेत्र के संबंध में प्रमुख सुधारों और सिफारिशों का सुझाव देने का काम किया। कोठारी आयोग को भारतीय शिक्षा आयोग (indian education commission) अथवा राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के नाम से जाना जाता है। इसके सचिव जे. पी. नाइक और संयुक्त सचिव जे. एफ. मैकड्गल थे।

भारत में शैक्षिक क्षेत्र के सभी पहलुओं की जांच करने के लिए भारत सरकार द्वारा स्थापित एक तदर्थ आयोग था, इसका गठन भारत में शिक्षा का विकास, शिक्षा के एक सामान्य पैटर्न को विकसित करने और दिशा-निर्देशों और नीतियों को सलाह देने के लिए किया गया था। इस आयोग ने 2 अक्टूबर, 1964 को कार्य प्रारम्भ किया। कोठारी आयोग शिक्षा से सम्बन्धित सभी पक्षों प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा, विश्वविद्यालयी शिक्षा की जाँच हेतु गठित व पहला आयोग था, जिसने विस्तार से भारतीय शिक्षा पद्धति ( Education Commissions in India) का अध्ययन किया।

कोठारी आयोग के सदस्य - 

इस आयोग में कुल 17 सदस्य थे, जिनमें 11 भारतीय तथा 6 विदेशी सदस्य थे।

कोठारी आयोग के 17 सदस्यों के नाम
डाॅ. दौलत सिंह कोठारी (अध्यक्ष)
जे. पी. नाइक (सचिव)
जे. एफ. मैगड्गल (संयुक्त सचिव)
ए. आर. दावुड
एच. एल. इलविन
आर. ए. गोपालस्वामी
वी. एस. झा
पी. एन. कृपाल
एम. वी. माथुर
बी. पी. पाल
कुमारी एस. पनंदिकर
रोजर रिवेले
के. जी. सैय्यदैन
टी. सेन, जीन थाॅमस
एस. ए. शुमोवस्की
सदातोशी इहारा।

कोठारी कमीशन के उद्देश्य - 

भारत सरकार ने आयोग की नियुक्ति के उद्देश्य के सन्दर्भ में यह घोषणा की कि आयोग भारत सरकार को शिक्षा के राष्ट्रीय स्वरूप और उसके सभी स्तरों एवं पक्षों के सम्बन्ध में सामान्य सिद्धान्तों एवं नीतियों के विषयों में सुझाव देगा।

कोठारी कमीशन के उद्देश्य निम्नलिखित हैं -

  • भारतीय शिक्षा प्रणाली (Indian Education System) की गुणवत्ता हेतु शोध करना एवं सुधार हेतु भारत सरकार को उचित सुझाव प्रदान करना।
  • भारत में शिक्षा नीति के निर्माण में सरकार को उचित सुझाव प्रस्तुत करना, जिससे भारतीय शिक्षा के स्तर में वृद्धि की जा सके।
  • भारतीय शिक्षा की कमियों को उजागर करना एवं उन कमियों के कारणों का पता लगाकर उसकी सूचना भारत सरकार के समक्ष प्रस्तुत करना।
  • भारतीय शिक्षा को हर प्रान्त में समान रूप से लागू करने के लिए एवं शिक्षा स्तर को समान बनाने हेतु सुझाव प्रस्तुत करना, भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार लाना।

कोठारी आयोग का प्रतिवेदन - 

कोठारी आयोग (Kothari Commission in Hindi) ने इस बङे कार्य को सम्पन्न करने के लिए दो विधियों का अनुसरण किया - पहली निरीक्षण एवं साक्षात्कार और दूसरी प्रश्नावली। आयोग के सदस्यों ने सम्पूर्ण देश के राज्यों व केन्द्रशासित प्रदेशों का भ्रमण किया और विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, विद्यालयों तथा तकनीकी व अन्य संस्थानों का निरीक्षण करके, छात्रों तथा शिक्षकों से साक्षात्कार व प्रशासकों व शिक्षाविदों से विचार-विमर्श करने के बाद अपने कार्यक्षेत्र की व्यापकता को ध्यान में रखते हुए 13 कार्यदलों व 7 कार्य समितियों का संगठन किया, जिन्होंने 21 माह तक शिक्षा के सभी क्षेत्रों के सम्बन्ध में सभी प्रकार की सूचनायें संगृहीत की।

इसके अतिरिक्त आयोग ने शिक्षा की विभिन्न समस्याओं से सम्बन्धित एक लम्बी प्रश्नावली तैयार कराकर इसे शिक्षा से जुङे विभिन्न वर्ग के लगभग 5000 व्यक्तियों के पास भेजा। 2400 व्यक्तियों से प्राप्त आँकङों का सांख्यिकीय विश्लेषण तैयार किया गया। इसके बाद आयोग ने इन दोनों विधियों से प्राप्त सुझावों पर विचार-विमर्श किया और अन्त में 29 जून, 1966 को अपना प्रतिवेदन शिक्षा एवं राष्ट्रीय प्रगति शीर्षक से भारत सरकार को प्रेषित किया।

कोठारी कमीशन की रिपोर्ट - 

  • 29 जून 1966 को कोठारी आयोग न अपने सुझाव एवं संस्तुतियाँ का 18 अध्यायों एवं 692 पृष्ठों में एक प्रतिवेदन तैयार किया और अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को तत्कालीन शिक्षामंत्री श्री एस.सी. छागला के समक्ष प्रस्तुत किया।
  • 692 पृष्ठों का यह प्रतिवेदन एक वृहत दस्तावेज था, जो 3 खण्डों में विभाजित था।
  • प्रथम खण्ड में 6 अध्यक्ष, द्वितीय में 11 अध्यक्ष तथा तृतीय खण्ड में 2 अध्यक्ष थे। अन्त में सभी अध्यायों में वर्णित समस्याओं और उनके समाधानों को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया।
  • इसमें कुल 23 संस्तुतियाँ थीं।
  • इस रिपोर्ट को शिक्षा एवं राष्ट्रीय प्रगति का नाम दिया गया।
  • यह पहला आयोग बना, जिसने सामाजिक बदलावों को ध्यान में रखते हुए अपनी सिफारिशें दी थी। प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा, विश्वविद्यालयी शिक्षा पर अपने महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये।

कोठारी आयोग की सिफारिशें - 

राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (Indian Education Commission) ने तत्कालीन भारतीय शिक्षा का समग्ररूप से अध्ययन किया और उसके सम्बन्ध मे अपने सुझाव दिये। आयोग की मूल धारणा है कि शिक्षा राष्ट्र के विकास का मूल आधार है।

कोठारी आयोग ने अपने प्रतिवेदन का शुभारम्भ ही इस वाक्य से किया है - देश का भविष्य उसकी कक्षाओं में निर्मित हो रहा है।

कोठारी आयोग के सुझाव/सिफारिशें निम्नलिखित थे -

  • शिक्षा का राष्ट्रीय लक्ष्य
  • शिक्षा की संरचना संबंधित सुझाव
  • पाठ्यक्रम संबंधित सुझाव
  • पाठ्यपुस्तकों संबंधित सुझाव
  • मूल्यांकन संबंधित सुझाव
  • शिक्षा के प्रशासन-सम्बन्धी सुझाव
  • शिक्षक संबंधित सुझाव
  • विज्ञान विषय संबंधित सुझाव
  • व्यावसायिक व तकनीकी शिक्षा से संबंधित सुझाव
  • वित्त संबंधित सुझाव
  • शैक्षिक अवसरों की समानता
  • विश्वविद्यालय संबंधित सुझाव
  • स्त्री शिक्षा संबंधित सुझाव
  • प्रौढ़ शिक्षा संबंधित सुझाव

शिक्षा का राष्ट्रीय लक्ष्य (पंचमुखी कार्यक्रम)

  • शिक्षा के द्वारा उत्पादकता में वृद्धि करना।
  • शिक्षा के द्वारा सामाजिक तथा राष्ट्रीय एकता को बनाये रखना।
  • शिक्षा द्वारा लोकंतत्रीय गुणों का विकास करना।
  • शिक्षा द्वारा राष्ट्र का आधुनिकीकरण करना।
  • शिक्षा द्वारा सामाजिक, नैतिक, आध्यात्मिक मूल्यों का विकास करना।

NOTE - इन सुझावों को पंचमुखी कार्यक्रम की संज्ञा दी गई।

शिक्षा की संरचना संबंधित सुझाव 

  • समान पाठयक्रम के जरिए बालक और बालिकाओं को विज्ञान व गणित की शिक्षा दी जाए।
  • माध्यमिक शिक्षा के स्कूल 25 प्रतिशत व्यावसायिक शिक्षा के स्कूल में बदला जाये।
  • प्राथमिक शिक्षा (प्राइमरी कक्षा की शिक्षा) मातृभाषा में दी जाये व माध्यमिक (सैकण्डरी) स्तर पर स्थानीय भाषा में शिक्षा दी जाए।
  • 10 + 2 + 3 पैटर्न को पूरे देश में लागू किया जाए।
  • पूर्व प्राथमिक शिक्षा 1 से 3 वर्ष तक की होनी चाहिए।
  • बालक की उम्र 6 वर्ष होने पर ही प्रथम कक्षा में उसे प्रवेश एवं नामांकन दिया जाए।
  • निम्न प्राथमिक शिक्षा 4 से 5 वर्ष तक की होनी चाहिए।
  • उच्च प्राथमिक शिक्षा 4 वर्ष की अवधि तक होनी चाहिए।
  • माध्यमिक शिक्षा 2 वर्ष की होनी चाहिए।
  • उच्चतर माध्यमिक शिक्षा 2 वर्ष तक होनी चाहिए।
  • पहली सार्वजनिक प्रवेश 10 वर्षों की शिक्षा पूर्ण होने के बाद होनी चाहिए।
  • विषयों का विभाजन कक्षा 9 के बदले कक्षा 10 के पास होने के बाद हो।
  • स्नातक की शिक्षा 3 वर्ष तक की होनी चाहिए।
  • परस्नातक की शिक्षा 2 से 3 वर्ष तक ही होनी चाहिए।
  • अनुसंधान शिक्षा 2 या 3 वर्ष की होनी चाहिए।
  • शिक्षक की आर्थिक, सामाजिक व व्यावसायिक स्थित सुधारने की सिफारिशें की।
  • कोठारी आयोग ने कामन स्कूल सिस्टम लागू करने की सिफारिश की, इसके अन्तर्गत सभी वर्गों के लोगों को समान शिक्षा होनी चाहिए।
  • काम करने के घंटे (Working Hours) 1000 घंटों से कम नहीं होने चाहिए, बल्कि लगभग 1100 या 1200 घंटे होने चाहिए।
  • कार्य दिवसों की संख्या विद्यालयों के लिए 234 तथा काॅलेजों में 216 हो।
  • माध्यमिक विद्यालय दो प्रकार के होने चाहिए - जूनियर माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक।
  • डिग्री स्तर तक मातृभाषा शिक्षा का माध्यम लेकिन अंग्रेजी को संपर्क भाषा के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए।

कोठारी आयोग के पाठ्यक्रम संबंधित सुझाव 

  • कोठारी आयोग ने प्राथमिक विद्यालयों के सभी स्तरों की पाठ्यचर्या के निर्माण के लिए सिद्धान्त निश्चित किया। उसके बाद इन सिद्धान्तों के आधार पर पूर्व प्राथमिक, प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक, शिक्षा के पाठ्यचर्या की रूपरेखा प्रस्तुत की। इसके साथ ही आयोग ने त्रिभाषा सूत्र को संशोध्ाित रूप में प्रस्तुत किया।
  • प्राथमिक शिक्षा (Prathmik Shiksha in Hindi) की पाठ्यचर्या सरल होनी चाहिए और इसमें मातृभाषा और पर्यावरण के अध्ययन पर विशेष बल दिया जाना चाहिए।
  • प्राथमिक शिक्षा की पाठ्यचर्या पूरे देश के लिए समान होनी चाहिए।
  • माध्यमिक शिक्षा को पूरे देश के लिए एक आधारभूत पाठ्यचर्या होनी चाहिए।
  • व्यावसायिक वर्ग की पाठ्चर्या स्थान विशेष की आवश्यकताओं पर आधारित होनी चाहिए।
  • माध्यमि शिक्षा के सामान्य एवं व्यावसायिक, किसी भी वर्ग की पाठ्यचर्या अपने में पूर्ण इकाई होनी चाहिए।

विभिन्न स्तरों पर पाठ्यचर्या रूपरेखा -

1. पूर्व प्राथमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम - पूर्व प्राथमिक शिक्षा में छात्रों को खाने व पहनने के कौशल, सफाई करने, बातचीत करने, सामाजिक व्यवहार, खेलकूद और क्रियात्मक कार्यों में हिस्सा लेने संबंधित कौशलों का विकास किया जाना चाहिए।

2. प्राथमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम - प्राथमिक शिक्षा (Prathmik Shiksha in Hindi) में मातृभाषा, व्यवहारिक गणित, स्वास्थ्य शिक्षा, भौतिक पर्यावरण का अध्ययन, खेलकूद, व्यायाम एवं सृजनात्मक क्रियाएँ को शामिल किया गया है।

3. माध्यमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम - माध्यमिक शिक्षा में मातृभाषा, हिन्दी या अन्य संघीय भाषा, कोई यूरोपीय भाषा, गणित, सामान्य विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, कला, कार्यानुभव (कृषि कार्य), समाज सेवा, स्वास्थ्य शिक्षा, नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा आदि को शामिल किया गया है।

4. उच्च माध्यमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम - उच्च माध्यमिक शिक्षा में आधुनिक भारतीय संघीय भाषा, आधुनिक विदेशी भाषा तथा शास्त्रीय भाषा में से कोई दो भाषाएँ, तीसरी भाषा, इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, तर्कशास्त्र, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, कला, भौतिक शास्त्र, रसायनशास्त्र, गणित, जीवविज्ञान, भूगर्भशास्त्र (इनमें से कोई भी तीन) आदि को शामिल किया गया है।

5. त्रिभाषा सूत्र का संशोधित रूप - कोठारी आयोग ने प्रस्तावित त्रिभाषीय सूत्र में संशोधन कर उसे निम्नलिखित रूप् में लागू करने का सुझाव दिया -

  • मातृभाषा (क्षेत्रीय भाषा अथवा प्रादेशिक भाषा)
  • संघ की राजभाषा हिन्दी तथा अंग्रेजी
  • कोई आधुनिक भारतीय भाषा या कोई आधुनिक यूरोपीय भाषा या कोई शास्त्रीय भाषा जो प्रथम दो भाषाओं में न ली गई हो।

पाठ्यपुस्तकों संबंधित सुझाव 

  • आयोग ने पाठ्य-पुस्तकों के निर्माण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक योजना बनाई जाए।
  • पाठ्यपुस्तकों का निर्माण राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) द्वारा निर्धारित सिद्धान्तों के आधार पर किया जाए।
  • राष्ट्रीय स्तर पर पाठ्यपुस्तकों के लेखन के लिए प्रतिभावान व्यक्तियों को पारिश्रमिक देकर प्रोत्साहित किया जाए।
  • प्रत्येक राज्य में पाठ्यपुस्तक समितियों का निर्माण किया जाए।
  • पाठ्यपुस्तकों का निर्माण, उनका परीक्षण और मूल्यांकन राज्य सरकारों का उत्तरदायित्व होना चाहिए।
  • शिक्षा मंत्रालय पाठ्यपुस्तकों, विशेषकर विज्ञान एवं तकनीकी की पाठ्यपुस्तकों का निर्माण हेतु एक स्वायत्त संस्था का गठन करें।

कोठारी आयोग के मूल्यांकन संबंधित सुझाव

  • परीक्षाओं में वस्तुनिष्ठ प्रश्नों पर अधिक बल दिया जाए।
  • बोर्ड की परीक्षाओं में बच्चों का मूल्यांकन अंकों के स्थान पर ग्रेड प्रणाली (सांकेतिक) के आधार पर होना चाहिए, ताकि वैध एवं विश्वसनीयता बनी रहे।
  • माध्यमिक स्कूलों में मौखिक परीक्षाएँ होनी चाहिए।
  • प्राथमिक स्तर पर आंतरिक मूल्यांकन होना चाहिए।
  • 10 वीं कक्षा के बाद सार्वजनिक परीक्षा होनी चाहिए।

शिक्षा के प्रशासन-सम्बन्धी सुझाव 

  • शिक्षा को राष्ट्रीय महत्त्व का विषय माना जाए और उसकी राष्ट्रीय नीति घोषित की जाए। इसके लिए यदि आवश्यक हो तो केन्द्र सरकार नेशनल एजूकेशन एक्ट बनाए और राज्य सरकारें स्टेट एजूकेशन एक्ट बनाएँ।
  • केन्द्रीय शिक्षा मन्त्रालय में शिक्षा सलाहकार और शिक्षा सचिव के पदों पर सरकारी, गैरसरकारी, भारतीय शिक्षा सेवा और विश्वविद्यालयों में से योग्यतम व्यक्तियों का चयन किया जाए।
  • केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय के सांख्यिकीय विभाग को सुदृढ़ किया जाए।
  • भारतीय शिक्षा सेवा में उन व्यक्तियों को नियुक्त किये जाये, जिन्हें शिक्षण कार्य का अनुभव हो।
  • शिक्षा प्रशासन और शिक्षकों के प्रमोशन या ट्रांसफर संबंधी कार्यों की व्यवस्था की जाए।
  • केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड CABE (Contral Advisory Board of education) को और अधिक अधिकार प्रदान किये जाये।
  • राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) को अखिल भारतीय स्तर पर विद्यालयी शिक्षा का भार सौंपा जाए।
  • शिक्षा नीति का निर्माण किया जाए। इसके सुझाव पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 में अस्तित्व में आई।
  • शिक्षा से जुङे अधिकारी (शिक्षिक) योग्य एवं अनुभवी होने पर ही नियुक्त किये जाये।
  • शिक्षा प्रशंसकों और शिक्षकों के बीच स्थानान्तरण की व्यवस्था की जाए।

कोठारी आयोग के शिक्षक संबंधित सुझाव 

  • केन्द्र सरकार द्वारा सभी शिक्षकों के लिए समुचित वेतन निर्धारित किये जाए।
  • सरकारी व गैर सरकारी अनुदान प्राप्त विद्यालयों के शिक्षकों के वेतन समान होने चाहिए।
  • सभी नियमित शिक्षकों के भविष्य निधि पेंशन व बीमा आदि की सुविधायें दी जानी चाहिए।
  • शिक्षकों को प्रत्येक 5 वर्ष में एक बार पर्यटन के लिए किराया या रेलवे पास को व्यवस्था करायी जानी चाहिए।

विज्ञान विषय संबंधित सुझाव 

  • विज्ञान की शिक्षा प्रारंभिक कक्षाओं से ही शुरू की जाए।
  • गणित एवं विज्ञान की शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र-छात्रों को अनिवार्य किया जाए।
  • परन्तु उच्च माध्यमिक स्तर पर इसकी अनिवार्यता समाप्त कर दी जाए।
    व्यावसायिक व तकनीकी शिक्षा से संबंधित सुझाव -
  • माध्यमिक शिक्षा का व्यावसायिकरण किया जाए और 20 वर्ष के अन्दर माध्यमिक स्तर पर 25 प्रतिशत व उच्च माध्यमिक स्तर पर 50 प्रतिशत छात्रों को व्यावसायिक वर्ग में लाया जाए।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित पाॅलिटेक्निक काॅलेजों में कृषि व कृषि से सम्बन्धित उद्योगों की शिक्षा दी जाए। इन काॅलेजों में महिलाओं की रूचि के उद्योगों की शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
  • जूनियर Technical स्कूलों को Technical हाईस्कूलों में बदला दिया जाए।

वित्त संबंधित सुझाव 

  • केन्द्र सरकार अपनी आय का 6 प्रतिशत शिक्षा पर निवेश करे।
  • राज्य सरकारें भी अपनी आय का ज्यादा हिस्सा शिक्षा में निवेश करे।
  • व्यावसायिक शिक्षा पर बल दिया जाए, जिससे राजकोष को बढ़ावा मिलेगा।
  • ग्राम पंचायतों द्वारा भी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय निवेश किया जाना चाहिए।
  • नगरपालिका को भी शिक्षा के लिए वित्त की व्यवस्था करनी चाहिए।
  • शिक्षा हेतु आय के स्रोत बढ़ाने के उपयों की खोज की जाए, इस क्षेत्र में अनुसंधान किए जाए।

शैक्षिक अवसरों की समानता 

  • प्रथम कक्षा से 8 वीं तक की शिक्षा सभी के लिए निःशुल्क हो और अंत से 10 वीं तक की अवधि में उच्चतर माध्यमिक एवं विश्वविद्यालय की शिक्षा को योग्य व निर्धन छात्रों के लिए निःशुल्क कर दिया जाए।
  • प्राथमिक स्तर पर बच्चों को पाठ्यपुस्तकों एवं लेखन सामग्री भी निःशुल्क कर दिया जाए।
  • लङकियों को लङकों के समान किसी भी प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने का अवसर उपलब्ध करवाया जाए।
  • पिछङे एवं अपवंचित वर्गों के लिए छात्रवृत्तियों की व्यवस्था एवं योजनाएँ लागू की जाए।

विश्वविद्यालय संबंधित सुझाव 

  • भारत के सभी विश्वविद्यालयों को अन्तर्विश्वविद्यालय परिषद का सदस्य बनाना चाहिए।
  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) में 1/3 सदस्य विश्विद्यालयों के प्रतिनिधि होनेे चाहिए।
  • उच्च स्तर की शिक्षा पर केन्द्र सरकार को अधिक से अधिक आर्थिक सहायता देनी चाहिए।
  • नवीन विश्वविद्यालय बनाये जाये तो UGC की अनुमति लेना अनिवार्य है।
  • नवीन विश्वविद्यालय तभी बनाये जाये जब उनकी आवश्यकता हो।
  • केंद्र में और संस्थाओं की स्थापना की जाए।

स्त्री शिक्षा संबंधित सुझाव 

  • आयोग ने स्त्रियों की शिक्षा पुरूषों की शिक्षा से अधिक महत्त्वपूर्ण माना। अतः इसके लिए विशेष प्रयास होने चाहिए।

शिक्षा संस्थाओं की स्थापना -

  • बालिकाओं के लिए 20 वर्षों के अन्दर प्राथमिक शिक्षा हेतु पर्याप्त प्राथमिक विद्यालय खोले जाए।
  • 20 वर्षों के अन्ददर इतने माध्यमिक विद्यालय खोले जाएँ कि बालक-बालिका अनुपात 2ः1 हो जाए।
  • जहाँ महिलाओं की उच्च शिक्षा की अधिक मांग हो वहाँ अलग से महिला महाविद्यालय स्थापित किये जाये।
  • स्त्रियों के लिए पत्राचार पाठ्यक्रम की व्यवस्था।
  • प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम में स्त्रियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाए।

पाठ्यक्रम -

  • शिक्षा के सभी स्तरों का पाठ्यक्रम बालक-बालिकाओं के लिए समान होना चाहिए।
  • माध्यमिक स्तर के पाठ्यक्रम में बालिकाओं के लिए अलग से गृहविज्ञान की व्यवस्था की जाए।
  • बालिकाओं के लिए माध्यमिक स्तर की शिक्षा निःशुल्क, छात्रवृत्तियाँ, निशुल्क वाहन सेवा, कम खर्चीले छात्रावास की व्यवस्था की जाए।

प्रौढ़ शिक्षा संबंधित सुझाव

प्रौढ़ शिक्षा के संदर्भ में कोठरी आयोग ने तीन विचार प्रस्तुत किये -

  • प्रौढ़ शिक्षा काम/कौशल पर आधारित।
  • व्यक्ति के मन में राष्ट्र की सजीव समस्याओं के प्रति रूचि उत्पन्न करना।
  • लोगों में पढ़ने, लिखने और गणित की ऐसी कुशलता विकसित करनी चाहिए ताकि वह व्यक्तिगत साधनों द्वारा अपनी शिक्षा जारी रख सके।

इस संदर्भ में आयोग ने सुझाव दिये -

  • निरक्षता उन्मूलन - निरक्षता उन्मूलन को जङ से समाप्त करने का प्रयास किया जाए, इसको करने के लिए 20 वर्ष से अधिक समय नहीं लगना चाहिए।
  • अनवरत् शिक्षा - प्रौढ़ भी स्कूल, काॅलेज के समान डिग्री प्राप्त कर सकें।
  • संक्षिप्त पाठ्यक्रम - महिलाओं की साक्षरता हेतु विलेज सिस्टर की नियुक्ति की जाए।

कोठारी कमीशन के गुण -

  • उच्च शिक्षा के विचार पर अत्याधिक बल देना।
  • सैद्धान्तिक ज्ञान की अपेक्षा प्रायोगिक प्रशिक्षण पर अधिक ध्यान देना।
  • कोठारी आयोग (Kothari Commission 1964-66) को आवश्यकतानुसार व्यवसायिक व तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था करना।
  • कोठारी आयोग के द्वारा विकलांग बच्चों की शिक्षा, पिछङे वर्गों की शिक्षा और जनजातियों की शिक्षा के लिए विशेष प्रकार का आयोजन किया गया।
  • कोठारी समिति (Kothari Committee) ने विद्यालय स्तर पर भाषाओं के अध्ययन हेतु संशोधित त्रि-भाषा सूत्र प्रस्तुत किया था। जिससे भाषा समस्या का समुचित निदान किया जा सके।
  • कोठारी आयोग ने विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में नामांकन हेतु, राष्ट्र नामांकन नीति बनाने का सुझाव दिया था। इसके लिए आयोग ने विभिन्न प्रकार की छात्रवृत्तियों को दिये जाने की सिफारिश की।

कोठारी कमीशन के दोष -

  • कोठारी आयोग द्वारा प्रस्तुत शिक्षा संरचना उलझी हुई व अस्पष्ट है। यही कारण है कि अगली राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में 10 + 2 + 3 के समान शिक्षा संरचना घोषित की गयी।
  • कोठारी शिक्षा कमीशन (Kothari Education Commission) द्वारा प्रस्तावित शिक्षकों के वेतनमान और कार्य एवं सेवा दशाओं की संस्तुतियाँ शिक्षकों के लिए अधिक उपयोगी सिद्ध नहीं हुई।
  • कोठारी आयोग ने भाषा समस्या के समाधान हेतु जो त्रि-भाषा सूत्र प्रस्तुत किया उससे भी भाषा समस्या का सर्वमान्य हल नहीं निकल सका। इसके साथ ही संस्कृत भाषा की उपेक्षा भी हुई।
  • इसमें स्त्री शिक्षा से संबंधी सुझाव भी नहीं दिया गया, जिससे स्त्रियों की शिक्षा में विकास नहीं हो सका।
  • कोठारी आयोग की अधिकांश सिफारिश आदर्शवादी व व्यावहारिक होने के कारण इसका कार्य संभव न हो सका।

Note - कोठारी आयोग की सिफारिशों के आधार पर भारत की प्रथम शिक्षा नीति राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण कर 24 जुलाई 1968 को घोषित कर दिया गया। पूरे देश में 10 + 2 + 3 system of education शिक्षा संरचना लागू करने का प्रयास शुरु हुआ।

कोठारी आयोग का निष्कर्ष -

निष्कर्ष के आधार पर कहा जा सकता है कि कोठारी आयोग ने शिक्षा के सभी पहलुओं को अच्छे से देखा समझा और उन पर विचार किए। इन्होंने नारी शिक्षा पर भी जोर दिया। ग्रामीण क्षेत्रों में व्यावसाियक शिक्षा पर बल दिया। शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण की बात भी की गई। NCERT पाठ्यवस्तु लागू कराने पर विचार किए और इनके बहुत सारे सुझावों को लागू भी किया गया। कोठारी आयोग द्वारा शिक्षा को राष्ट्रीय महत्त्व का विषय माना गया, शिक्षा की नीति घोषित की गई और किसी भी स्तर की शिक्षा के प्रसार में कुछ तेजी आई और उसके उन्नयन की ओर कदम बढ़े। इसलिए राष्ट्रीय शिक्षा आयोग हमारे देश की शिक्षा-व्यवस्था के लिए एक वरदान है।

कोठारी आयोग से संबंधित प्रश्न -

1. कोठारी आयोग का गठन कब किया गया ?
उत्तर - 14 जुलाई 1964


2. कोठारी आयोग को अन्य किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर - भारतीय शिक्षा आयोग (राष्ट्रीय शिक्षा आयोग)


3. कोठारी आयोग के अध्यक्ष कौन थे ?
उत्तर - डाॅ. दौलतसिंह कोठारी


4. कोठारी आयोग के सचिव कौन थे ?
उत्तर - जे. पी. नाइक


5. कोठारी आयोग के संयुक्त सचिव कौन थे ?
उत्तर - जे. एफ. मैकड्गल


6. कोठारी आयोग जब गठित किया गया, उस समय डाॅ. कोठारी किस पद पर नियुक्त थे ?
उत्तर - डाॅ. दौलतसिंह कोठारी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के तत्कालीन अध्यक्ष थे।


7. स्वतंत्रता के बाद भारत में संपूर्ण शिक्षा पर बनने वाला पहला आयोग कौनसा था ?
उत्तर - कोठारी आयोग


8. कोठारी आयोग में कुल कितने सदस्य थे ?
उत्तर - 17 सदस्य (11 भारतीय व 6 विदेशी सदस्य)


9. कोठारी आयोग ने कितने पृष्ठों में प्रतिवेदन तैयार किया ?
उत्तर - 18 अध्यायों एवं 692 पृष्ठों में


10. कोठरी आयोग में कुल कितनी संस्तुतियाँ थी ?
उत्तर - 23 संस्तुतियाँ


11. कोठारी आयोग ने अपना प्रतिवेदन भारत सरकार को कब सौंपा ?
उत्तर - 29 जून 1966

12. कोठारी आयोग ने अपनी रिपोर्ट किस नाम से प्रस्तुत की ?
उत्तर - शिक्षा एवं राष्ट्रीय प्रगति


13. कोठारी आयोग ने अपना प्रतिवेदन किसे सौंपा था ?
उत्तर - एम. सी. छागला


14. वह कौनसा आयोग था, जिसने सामाजिक बदलावों को ध्यान में रखते हुए अपनी सिफारिशें दी थी ?
उत्तर - कोठारी आयोग


15. किस आयोग ने प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा व उच्चस्तरीय शिक्षा के विकास की सिफारिश की थी ?
उत्तर - कोठारी आयोग


16. कोठारी आयोग ने कितने प्रतिशत विद्यालयों को व्यावसायिक स्कूल में बदलने का सुझाव दिया ?
उत्तर - 25 प्रतिशत


17. राष्ट्रीय शिक्षा आयोग ने किस कक्षा के अंत में एक सार्वजनिक परीक्षा कराने का सुझाव दिया ?
उत्तर - कक्षा 10 वीं के बाद


18. कोठारी आयोग ने नये विश्वविद्यालयों की स्थापना के लिए किसकी अनुमति का सुझाव दिया ?
उत्तर - विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC)


19. कोठारी आयोग की सिफारिशों के आधार पर किस शिक्षा नीति का निर्माण किया गया ?
उत्तर - भारत की प्रथम शिक्षा नीति राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण 24 जुलाई 1968 में किया गया।


20. किस आयोग ने त्रिभाषा-सूत्र को संशोधित रूप प्रदान किया ?
उत्तर - कोठारी आयोग ने


21. कोठारी आयोग ने पहली कक्षा में नामांकन के लिए बच्चों की कितनी आयु पूर्ण करने का सुझाव दिया है ?
उत्तर - 6 वर्ष


22. कोठारी आयोग ने उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं हेतु कितनी अवधि का सुझाव दिया ?
उत्तर - 2 वर्ष


23. किस आयोग ने शिक्षा में 10 + 2 + 3 का फाॅर्मूला लागू करने का सुझाव दिया था?
उत्तर - कोठारी आयोग


24. किस आयोग ने शिक्षा में काॅमन स्कूल सिस्टम लागू करने की सिफारिश की थी ?
उत्तर - कोठारी आयोग


25. देश का भविष्य उसकी कक्षा-कक्ष में निर्मित हो रहा है यह कथन किससे संबंधित है ?
उत्तर - कोठारी आयोग से


26. पूर्व प्राथमिक शिक्षा का सुझाव किस आयोग द्वारा दिया गया ?
उत्तर - कोठारी आयोग


27. कोठारी आयोग के अनुसार केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय आय का कितना प्रतिशत शिक्षा में निवेश का सुझाव दिया गया?
उत्तर - 6 प्रतिशत


28. कोठारी आयोग ने अपना कार्य कब प्रारम्भ किया ?
उत्तर - 2 अक्टूबर, 1964


29. कोठारी आयोग के अनुसार बोर्ड की परीक्षाओं में बच्चों का मूल्यांकन अंकों के स्थान पर किस आधार पर किया गया?
उत्तर - ग्रेड प्रणाली (सांकेतिक) के आधार

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