वयस्क मताधिकार का विचार समानता के विचार पर आधारित है क्योंकि यह घोषित करता है कि देश के हर नागरिक 18 वर्ष या 18 वर्ष से अधिक आयु के स्त्री हो या पुरुष, किसी भी धर्म, क्षेत्र, रंग, आर्थिक स्तर या जाति कुछ भी क्यों न हो एक ही वोट का हकदार है। देश के सभी नागरिकों को अपनी इच्छा से अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार ही वयस्क मताधिकार है।
वयस्क मताधिकार किसे कहते है -
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में सभी वयस्कों अर्थात् 18 वर्ष की आयु या उससे अधिक आयु के नागरिक को वोट देने का अधिकार है। चाहे उनका धर्म कोई भी हो। हिंदू हो या मुस्लिम हो या ईसाई हो। शिक्षा का स्तर या जाति कुछ भी हो, गरीब हो या अमीर हो। सभी को वोट देने का अधिकार है। इसे सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार कहा जाता है यह लोकतंत्र का महत्त्वपूर्ण पहलू है। वयस्क मताधिकार लोकतांत्रिक समाज का अत्यंत महत्त्वपूर्ण पहलू है। इसका अर्थ यह है कि सभी वयस्क नागरिकों को वोट देने का अधिकार हो। यानी 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के। चाहे वह गरीब हो या अमीर हो या उनकी सामाजिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो।
भारत में मताधिकार की आयु क्या है -
भारत में जिन नागरिकों की आयु 18 वर्ष या 18 वर्ष से अधिक है उनका नाम निर्वाचन नामावली में शामिल हो जाता है और उन नागरिकों को मतदान करने का अधिकार मिलता है। भारत में मत देने का अधिकार एक वैधानिक अधिकार है।
अलग-अलग देशों में वयस्क मताधिकार की आयु -
अलग-अलग देशों में वयस्क मताधिकार की आयु अलग-अलग निर्धारित है।
वयस्क मताधिकार की शुरूआत कब हुई -
- सर्वप्रथम वयस्क मताधिकार 1848 में फ्रांस में शुरु हुआ और 1867 में ब्रिटेन में शुरू हुआ लेकिन यह मताधिकार केवल सीमित कुलीन लोगों तक ही सीमित था।
- आधुनिक सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की शुरूआत 1893 में न्यूजीलैण्ड से हुई थी।
- भारत में वयस्क मताधिकार की शुरुआत 1919 मांटेग्यू चेम्सफोर्ड से हुई थी।
- भारत में सुचारु रूप से वयस्क मताधिकार की शुरूआत 1950 से संविधान लागू हुआ तब से हुई थी। 1950 में 21 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों को मतदान करने का अधिकार था।
वयस्क मताधिकार का काल क्रम -
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का काल क्रम
अनुच्छेद- 325 में लिखा है कि धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग के आधार पर कोई भी व्यक्ति निर्वाचित बनने से नहीं हो सकता है, किसी भी व्यक्ति को निर्वाचक नामावली से हटाया नहीं जा सकता है और सभी लोग को सम्भेद किया जाना है जो निर्धारित आयु उससे ऊपर के जितने भी लोग वे सभी सम्भेद होंगे।
अनुच्छेद- 326 में लिखा है कि लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं इनमें निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर होगा। बिना किसी भेदभाव के आधार पर सभी भारतीयों को मतदान का अधिकार प्राप्त है। जो एक निश्चित आयु 18 वर्ष पर प्राप्त होता है।इस प्रकार अनुच्छेद- 326 में वयस्क मताधिकार शब्द को स्पष्ट किया गया है।
61 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1989 के द्वारा मतदान करने की उम्र 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
महिलाओं को वयस्क मताधिकार -
महिलाओं को सबसे पहले वोट देने का अधिकार 28 नवंबर 1893 में न्यूजीलैंड ने दिया था।
1918 में ब्रिटेन में 30 वर्ष या इससे अधिक आयु की महिलाओं को मताधिकार दिया गया। ब्रिटेन में सभी वयस्क महिलाओं को मताधिकार दिया गया।
भारत में महिलाओं को वोट देने का अधिकार भारत शासन अधिनियम 1919 ने दिया गया था।
- 1920 - संयुक्त राज्य अमेरिका
- 1945 - फ्रांस
- 1950 - भारत
- 2015 - सऊदी अरब
जेरेमी बेन्थम ने एक व्यक्ति - एक वोट सिद्धान्त का समर्थन किया।
जेरेमी बेन्थम, जे.एस. मिल, थाॅमस हेयर जैसे विचारकों ने महिला मताधिकार का खुला समर्थन किया।
जे.एस. मिल ने अपनी पुस्तक Subjection of Women में महिला मताधिकार के पक्ष में तर्क प्रस्तुत किये है।
स्किनर के अनुसार मतों को गिना नहीं जाना चाहिए, बल्कि तोला जाना चाहिए।
अनिवार्य मतदान - कुछ देशों में नागरिकों के लिए निर्वाचन में मताधिकार/मतदान करना अनिवार्य घोषित किया गया है।
जैसे -
- आस्ट्रेलिया
- ब्राजील
- मैक्सिको
- अर्जेण्टीना
- बेल्जियम
- फिजी
- ग्रीस
- तुर्की।
वयस्क मताधिकार के गुण -
(1) लोकतंत्र का आधार -
लोकतंत्र को जनता का शासन कहा जाता है। इसलिए सार्वजनिक निर्वाचनों का मत देने का अधिकार राज्य के सापेक्ष नागरिकों को प्राप्त होना चाहिए, वयस्क मताधिकार से इस आवश्यकता की पूर्ति होती है।
प्रो. गार्नर ने कहा है कि जनता की सत्ता की सर्वश्रेष्ठ आय-व्यक्ति वयस्क मताधिकार प्रदान करने पर ही हो सकती है।
(2) राष्ट्रीय एकता की वृद्धि -
सभी वयस्कों को मताधिकार मिलने से देश में एकता की भावना बन रहती है। इससे समाज के सभी वर्ग सन्तुष्ट रहते है और उनमें विद्रोह तथा विघटन की भावना नहीं पनपती। इससे सार्वजनिक विषयों के प्रति रुचि उत्पन्न करके राष्ट्र की शक्ति एवं एकता में वृद्धि की जा सकती है। सभी लोग राष्ट्र के प्रति पूर्ण भक्ति एवं निष्ठा रखते है।
(3) व्यक्ति के स्वाभिमान के अनुकूल -
मताधिकार से मतदाताओं का स्वाभिमान बढ़ता है। वे ये अनुभव करते है कि देश के शासन में उनका भी हाथ है। देश की सरकार उन्हीं के मत से बनी है। निर्वाचनों के समय बङे-बङे लोग उनके पास मत माँगने के लिए पहुँचते है तो वे अपना महत्त्व समझते है। साथ ही उनकी सहभागिता राष्ट्र के कार्यों में बढ़ती है और उन्हें राष्ट्र पर गर्व होता है, इस प्रकार वयस्क मताधिकार नागरिकों में स्वाभिमान की भावना विकसित करता है।
(4) अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा -
वयस्क मताधिकार में अल्पसंख्यकों को भी मत देने का अधिकार प्राप्त रहता है। मताधिकार से उन्हें अपने अधिकारों की रक्षा करने का अवसर प्राप्त हो जाता है। विधानमण्डलों में उन्हें अपने प्रतिनिधियों को भेजने का अवसर प्राप्त होता है। इससे अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा होती है।
(5) राजनीति जागृति के साधन -
चुनाव से नागरिकों को राजनीति की शिक्षा प्राप्त होती है। चुनावों में भाग लेने वाले राजनीतिक दल मतदाताओं के सम्मुख विभिन्न राजनीतिक कार्यक्रम उपस्थित करके उनमें राजनीतिक जागृति उत्पन्न करते है। साथ ही नागरिक की राजनीतिक उदासीनता समाप्त होती है।
(6) देशभक्ति की भावना में वृद्धि -
वयस्क मताधिकार से नागरिकों में देश और सरकार के प्रति अपनत्व की भावना पैदा होती है। इससे उनमें देश-प्रेम की भावना विकसित एवं दृढ़ होती है।
(7) शासन-कार्यों में रुचि -
मताधिकार प्राप्त होने से नागरिक शासनकारियों में रुचि तथा भाग लेते है। जिससे राष्ट्र शक्तिशाली बनता है और नागरिकों में स्वदेश की भावना उत्पन्न होती है।
वयस्क मताधिकार के दोष -
(1) मूर्खों के हाथ में शक्ति -
भारत के अधिकांश मतदाता मूर्ख एवं अशिक्षित है। वे उम्मीदवार की योग्यता की परख ठीक प्रकार से नहीं कर पाते इस कारण भी वे अपने मत का सदुपयोग करने में असमर्थ रहते है। गलत व्यक्तियों के चुने जाने से शासन-व्यवस्था दूषित हो जाती है।
सर हेनरी मैन का विचार है कि अशिक्षित यह नहीं जान पाता कि कौनसा उम्मीदवार योग्य और कौनसा अयोग्य अतः सभी को मताधिकार दिये जाने से परिणाम अच्छा नहीं होता।
प्रोफेसर लाॅवेल ने कहा है कि अज्ञानियों को मताधिकार दो, आज भी उनमें अराजकता फैल जायेगी और कल भी उन पर निरकुंश शासन होने लगेगा, इस प्रकार मूर्खों के हाथ में सत्ता जाने का भय बना रहता है।
(2) भ्रष्टाचार को बढ़ावा -
मतदाताओं की अधिकांश संख्या निर्धन होती है, धनी लोग उनके मत को पैसा देकर खरीद लेते है, इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
(3) वयस्क मताधिकार दोषपूर्ण -
वर्तमान काल में शासन सम्बन्धी प्रश्न अधिक जटिल होते जा रहे है। साधारण मतदाता में इतनी योग्यता नहीं होती कि वह उन्हें आसानी से समझ सके। इसलिए मत देने का अधिकार सब नागरिकों को नहीं देना चाहिए।
(4) मतदान एक पवित्र कर्त्तव्य -
मताधिकार एक पवित्र कर्त्तव्य की भाँति है इसका प्रयोग बङा सावधानी व बुद्धिमता के साथ किया जाना चाहिए। इसलिए मत देने का अधिकार केवल उन्हीं लोगों को मिलाना चाहिए जो एक पावन कर्त्तव्य समझकर इसका प्रयोग सामाजिक हित में करे।
(5) अधिकारों की सुरक्षा के लिए अनिवार्य नहीं -
यह धारणा गलत है कि वयस्क मताधिकार से अधिकारों की रक्षा नहीं हो सकती, वास्तव में निष्पक्ष न्यायालय, स्वतन्त्र प्रेस एवं शक्तिशाली विरोधी दल इनकी रक्षा के लिए अधिक शक्तिशाली साधन है।
(6) धनी वर्ग के हित असुरक्षित -
वयस्क मताधिकार की दशा में बहुसंख्यक, निर्धन तथा मजदूर जनता-प्रतिशोध की भावना से ऐसी प्रतिनिधियों का चुनाव करती है जिनसे धनिकों एवं पूँजीपतियों के हितों को हानि पहुँचने की संभावना रहती है।
(7) मतों का क्रय-विक्रय -
अधिकांश जनता जो कि निर्धन और अशिक्षित होती है अतः वयस्क मताधिकार की स्थिति में उसकी निर्धनता तथा अज्ञानता को लाभ उठाकर अनेक प्रत्याशी उनके वोट को धन व सुविधाओं का लालच देकर खरीद लेते है। वयस्क मताधिकार का यह बहुत बङा दोष है।