मृदा के प्रकार:

निर्माण के आधार पर मृदा को दो मुख्य प्रकारों में बांटा गया है:

  1. अवशिष्ट मृदा (Residual soil): यह मृदा अपने मूल चट्टान के weathering (अपक्षय) से उसी स्थान पर बनती है। इस प्रकार की मिट्टी में मूल चट्टान के गुणधर्म पाए जाते हैं।

  2. वाहित मृदा (Transported soil): यह मृदा किसी बाह्य बल जैसे कि नदी, हवा, या हिमनदी द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाई जाती है। इस प्रकार की मिट्टी में विभिन्न प्रकार के चट्टानों के मिश्रण के गुणधर्म पाए जाते हैं।

भारत में मृदा के प्रकार:

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने भारत की मिट्टी को आठ मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया है:

  1. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial soil): यह मिट्टी नदियों द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी से बनती है और भारत में सबसे अधिक पाई जाने वाली मिट्टी है। यह बहुत उपजाऊ होती है और इसमें धान, गेहूं, गन्ना आदि फसलें उगाई जाती हैं।

  2. काली मिट्टी (Black soil): यह मिट्टी ज्वालामुखी चट्टानों के weathering से बनती है और कपास की खेती के लिए सबसे उपयुक्त है। इसे रेगुर मिट्टी भी कहा जाता है।

  3. लाल मिट्टी (Red soil): यह मिट्टी लोहे की अधिक मात्रा के कारण लाल रंग की होती है और इसमें बाजरा, रागी आदि फसलें उगाई जाती हैं।

  4. लैटेराइट मिट्टी (Laterite soil): यह मिट्टी उच्च तापमान और अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाती है और इसमें चाय, कॉफी आदि फसलें उगाई जाती हैं।

  5. मरुस्थलीय मिट्टी (Desert soil): यह मिट्टी शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है और इसमें कांटेदार झाड़ियां और कुछ घासें उगती हैं।

  6. पर्वतीय मिट्टी (Mountain soil): यह मिट्टी पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है और इसमें विभिन्न प्रकार के फल और सब्जियां उगाई जाती हैं।

  7. क्षारीय मिट्टी (Alkaline soil): यह मिट्टी में नमक की मात्रा अधिक होती है और यह खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है।

  8. दलदली मिट्टी (Peat soil): यह मिट्टी दलदली क्षेत्रों में पाई जाती है और इसमें जैविक पदार्थों की मात्रा अधिक होती है।

मृदा का महत्व:

मृदा हमारे जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह न केवल पौधों को सहारा देती है, बल्कि यह पानी और पोषक तत्वों का भी स्रोत है। मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की एक बड़ी संख्या भी पाई जाती है जो मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में मदद करते हैं।

मृदा संरक्षण:

मिट्टी के कटाव को रोकने और इसकी उर्वरता को बनाए रखने के लिए मृदा संरक्षण आवश्यक है। इसके लिए विभिन्न उपाय किए जा सकते हैं, जैसे कि वनीकरण, बांध बनाना और खेतों की मेड़बंदी करना।


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