मानव नेत्र #8211; हमारे नेत्र का आकृति लगभग गोलाकार है। नेत्र का बाहरी आवरण सफेद होता है। यह कठोर होता है ताकि यह नेत्र के आंतरिक भागों की दुर्घटनाओं से बचाव कर सके। इसके पारदर्शी अग्र भाग को कॉर्निया या स्वच्छ मंडल कहते हैं। कॉर्निया के पीछे हम एक गहरे रंग की पेशियों की संरचना पाते हैं जिसे परितारिका (आइरिस) कहते हैं। आइरिस में एक छोटा सा द्वार होता है जिसे पुतली कहते हैं। पुतली के साइज को परितारिका से नियंत्रित किया जाता है। परितारिका नेत्र का वह भाग है जो इसे इसका विशिष्ट रंग प्रदान करती है। परितारिका नेत्र में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है। पुतली के पीछे एक लेंस है जो केन्द्र पर मोटा है। लेंस प्रकाश को आँख के पिछे एक परत पर फोकसित करता है। इस परत को रेटिना (दृष्टि पटल) कहते हैं। रेटिना अनेक तंत्रिका कोशिकाओं का बना होता है। तंत्रिका कोशिकाओं द्वारा अनुभव की गई संवेदनाओं को दृक् तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचा दिया जाता है। तंत्रिका कोशिकाएँ दो प्रकार की होती हैं। (i) शंकु, जो तीव्र प्रकाश के लिए सुग्राही होते हैं तथा (ii) शलाकाएँ, जो मंद प्रकाश के लिए सुग्राही होती हैं। इसके अतिरिक्त, शंकु रंगों (वर्णो) की सूचनाएँ भी भेजते हैं। दृक् तंत्रिकाओं तथा रेटिना की संधि पर कोई तंत्रिका कोशिका नहीं होती है। चूँकि इस बिन्दु पर बना प्रतिबिम्ब दिखाई नहीं देता अतः इस बिन्दु को अंध बिंदु कहते है।