उत्क्रम अभिनती #8211; यदि बैटरी का धन-ध्रुव n-क्षेत्र से तथा ऋण धुव्र p-क्षेत्र से, जोड़ा जाये तो बाह्य E, n से p की ओर दिष्ट होता है तथा अब यह आन्तरिक क्षेत्र E<sub>i</sub> का सहायक होता है। अब, p-क्षेत्र में कोटर तथा n-क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन सन्धि से दूर धकेल दिये जाते हैं तथा उनकी गति रूक जाती है। अतः उनसे कोई धारा निर्मित नहीं होती। इस दशा में सन्धि ‘उत्क्रम अभिनती’ में कही जाती है। किन्तु, उत्क्रम अभिनती में अल्प-संख्यक-वाहकों की गति के कारण बहुत क्षीण उत्क्रम धारा विद्यमान रहती है। यह धारा ताप बढ़ाने पर बढ़ती है।