जैन साहित्य को 'आगम' या 'अंग' कहा जाता है। आपका उत्तर सही है, लेकिन इसे और अधिक विस्तार से समझा जा सकता है:
जैन आगम साहित्य वास्तव में जैन धर्म के सिद्धांतों और शिक्षाओं का संग्रह है। यह साहित्य दो मुख्य संप्रदायों - दिगंबर और श्वेतांबर - में विभाजित है, और दोनों के आगमों में कुछ भिन्नता है।
श्वेतांबर आगम: श्वेतांबर आगमों को 45 ग्रंथों में विभाजित किया गया है, जिन्हें 12 अंगों, 12 उपांगों, 10 प्रकीर्णों, 6 छेद सूत्रों, 4 मूल सूत्रों और 2 स्वतंत्र सूत्रों में वर्गीकृत किया गया है। ऐसा माना जाता है कि ये ग्रंथ महावीर स्वामी के उपदेशों का संकलन हैं, जिसे उनके शिष्यों ने मौखिक रूप से संरक्षित रखा और बाद में लिपिबद्ध किया।
दिगंबर आगम: दिगंबर संप्रदाय श्वेतांबर आगमों को प्रामाणिक नहीं मानता है। दिगंबरों का मानना है कि मूल आगम खो गए हैं। वे अपने साहित्य को 'कर्म सिद्धांत' पर केंद्रित मानते हैं और इसमें 'षट्खण्डागम' और 'कषायपाहुड' जैसे प्रमुख ग्रंथ शामिल हैं।
आगम साहित्य विभिन्न विषयों को शामिल करता है, जैसे कि जैन दर्शन, ब्रह्मांड विज्ञान, नैतिकता, आचार संहिता, कथाएं और ऐतिहासिक विवरण। यह साहित्य जैन धर्म को समझने और उसके सिद्धांतों को व्यवहार में लाने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है। आगमों की भाषा मुख्य रूप से अर्धमागधी प्राकृत है, जिसमें कुछ अंश संस्कृत में भी हैं।