जैनियों द्वारा शरीर को भूखा रखकर प्राण त्यागने की विधि को 'सल्लेखना विधि' कहा जाता है। इसे संथारा भी कहते हैं। यह जैन धर्म में मृत्यु को प्राप्त करने का एक सम्मानित तरीका माना जाता है। सल्लेखना का अभ्यास तब किया जाता है जब व्यक्ति को लगता है कि उसका जीवन अब सार्थक नहीं रहा है, या वह किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है जिससे ठीक होने की संभावना नहीं है। सल्लेखना एक क्रमिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति धीरे-धीरे भोजन और तरल पदार्थों का सेवन कम कर देता है, अंततः पूरी तरह से बंद कर देता है। इस प्रक्रिया के दौरान, व्यक्ति को अपने मन और आत्मा पर ध्यान केंद्रित करने और सांसारिक इच्छाओं से खुद को मुक्त करने की सलाह दी जाती है। यह प्रक्रिया कुछ दिनों से लेकर कई हफ्तों तक चल सकती है। सल्लेखना को जैन धर्म में आध्यात्मिक शुद्धि और मोक्ष प्राप्त करने का एक तरीका माना जाता है। यह आत्महत्या से अलग है क्योंकि यह किसी मजबूरी या निराशा में नहीं की जाती है, बल्कि सचेत रूप से और धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार की जाती है। सल्लेखना का अभ्यास करने वाले व्यक्ति को समाज और धार्मिक नेताओं का समर्थन प्राप्त होता है। हालांकि, भारत में सल्लेखना की वैधता को लेकर विवाद रहा है, कुछ लोगों का तर्क है कि यह आत्महत्या का एक रूप है और इसे अवैध घोषित किया जाना चाहिए।