जैन साहित्य में मूल सूत्रों की संख्या 4 है। ये सूत्र जैन धर्म के सिद्धांतों और आचरणों के सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण अंग माने जाते हैं। इन सूत्रों का अध्ययन जैन मुनियों और विद्वानों के लिए अनिवार्य माना जाता है। ये 4 मूल सूत्र हैं: 1. आचारांग सूत्र (Ācārāṅga Sūtra): यह जैन भिक्षुओं के आचरण और नैतिक नियमों से संबंधित है। इसमें भिक्षुओं के दैनिक जीवन, आहार, विहार, और दूसरों के साथ व्यवहार के नियमों का विस्तृत वर्णन है। यह सूत्र अहिंसा के सिद्धांत पर विशेष जोर देता है। 2. सूत्रकृतांग सूत्र (Sūtrakṛtāṅga Sūtra): यह जैन धर्म के सिद्धांतों का प्रतिपादन करता है और अन्य धार्मिक मतों की आलोचना करता है। इसमें विभिन्न दार्शनिक विचारों और धार्मिक प्रथाओं का खंडन किया गया है, और जैन धर्म के सिद्धांतों की श्रेष्ठता स्थापित की गई है। 3. स्थानांग सूत्र (Sthānāṅga Sūtra): यह सूत्र जैन धर्म के सिद्धांतों को संख्यात्मक रूप से वर्गीकृत करता है। इसमें विभिन्न विषयों को 1 से 10 तक की संख्याओं के आधार पर समझाया गया है, जिससे उन्हें याद रखना और समझना आसान हो जाता है। 4. समवायांग सूत्र (Samavāyāṅga Sūtra): यह स्थानांग सूत्र के समान है और इसमें भी जैन सिद्धांतों को संख्यात्मक रूप से प्रस्तुत किया गया है। यह विभिन्न विषयों के समूहों और उनके अंतर्संबंधों का वर्णन करता है, जो जैन दर्शन को समझने में मदद करते हैं। इन मूल सूत्रों के अलावा, जैन साहित्य में कई अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथ भी हैं, लेकिन ये 4 सूत्र सबसे प्राचीन और प्रामाणिक माने जाते हैं। इनका अध्ययन जैन धर्म की मूल शिक्षाओं को समझने के लिए आवश्यक है।