पुराण के रचयिता लोमहर्ष अथवा उनके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते है। पुराण के रचयिता विभिन्न हैं और इसका स्पष्ट निर्देश उपलब्ध नहीं है। पुराणों का विस्तृत संग्रह उपलब्ध होने से पहले, इसे बातचीत, गाथा, गीत और उपन्यासों के रूप में संवादों के माध्यम से संस्कृति के विभिन्न पहलुओं का आभास कराने के लिए उपयोग किया जाता था।
पुराण शब्द का अर्थ होता है "पुरातन कथा" और इनमें धर्म, इतिहास, संस्कृति, सभ्यता, वैज्ञानिक ज्ञान, राजनीति और साहित्यिक कथाओं का संग्रह होता है। पुराणों के बारे में विभिन्न कल्पनाओं और अनुमानों के बावजूद, संगठित रूप से इनके विस्तारित संग्रह का काम कई लोगों ने किया होगा।
वैदिक काल में, ऋषियों और ब्राह्मणों के माध्यम से अतीत के इतिहास, दिव्यता और धर्म की शिक्षा को संजोए जाने का प्रयास किया जाता था। इन शिक्षाओं को शास्त्रों, सूत्रों और उपनिषदों के रूप में व्यक्त किया जाता था।
पुराण शब्द संस्कृत भाषा में पुरातन या प्राचीन का अर्थ होता है। पुराणों का अर्थ होता है प्राचीन कथाओं का संग्रह। पुराण भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण भाग हैं जो धर्म और संस्कृति से जुड़ी जानकारियों को संजोए हुए हैं। पुराणों के अनुसार, जगत का उत्पत्ति और सृष्टि देवी आदि शक्ति द्वारा हुई। इनमें देवताओं, ऋषियों, राजाओं और लोक कथाओं की कहानियां और उनके अद्भुत कर्म दर्शाए गए हैं।
पुराणों की संख्या 18 मानी जाती है, जिनमें ब्रह्मपुराण, विष्णुपुराण, शिवपुराण आदि शामिल हैं। पुराणों में विभिन्न धार्मिक और सामाजिक विषयों पर ज्ञान प्रदान किया जाता है। इनके अंतर्गत महाभारत और रामायण की कथाएं भी होती हैं।
वैदिक साहित्य के अतिरिक्त, पुराण भारतीय संस्कृति के इतिहास, धर्म, दार्शनिक विचार, समाज और संस्कृति की विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं। पुराण भारतीय संस्कृति के अधिकांश विषयों को विस्तार से दर्शाते हैं, जिसमें कथाओं और विविध विषयों पर विस्तृत विवरण दिया जाता है।
पुराणों के रचयिता के बारे में बहुत से अवधारणाएं हैं। कुछ लोग मानते हैं कि वेदों के व्याख्याताओं द्वारा रचित हुए हैं, तो कुछ अन्य लोग मानते हैं कि ये महार्षि वेदव्यास द्वारा लिखे गए हैं। वेदव्यास भारतीय संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। उनके नाम से प्रचलित तीन पुराण हैं, जो उनके नाम पर विशेष रूप से जाने जाते हैं। इन पुराणों में वेदों के विषय में विस्तृत जानकारी दी गई है, जिसमें वेदों की व्याख्या और उनका महत्व बताया जाता है। इन पुराणों के अलावा, बहुत से अन्य पुराण भी हैं|
द्वापर युग में उत्पन्न हुए महाभारत युद्ध के बाद समय के साथ-साथ पुराणों का भी विकास हुआ। पुराण शब्द संस्कृत शब्द पुराणम् से आया है, जिसका अर्थ होता है पुराना कहानी। पुराणों में ब्रह्माण्ड सृष्टि, मानव जीवन और धर्म से संबंधित ज्ञान का विस्तृत वर्णन होता है। पुराणों में सृष्टि की कथाएं, देवताओं और देवीदेवताओं का वर्णन, धर्म और नैतिकता से संबंधित नीतिसत्यों का उल्लेख, महाकाव्यों से जुड़े चरित्रों और इतिहास की घटनाओं का उल्लेख, पौराणिक विचारधारा और ज्ञान का वर्णन शामिल होता है।
पुराणों के रचयिता कौन थे इसके बारे में निश्चित जानकारी नहीं है। हालांकि, पुराणों के रचयिता के बारे में कुछ मान्यताएं हैं। वेद व्यास के नाम से जाने जाने वाले महर्षि व्यास को पुराणों के रचयिता माना जाता है। उन्होंने आठ पुराण रचना की थीं जो निम्नलिखित हैं।
अगस्त्य मुनि द्वारा रचित अगस्त्य संहिता, वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत, ऋषि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण, वेद व्यास द्वारा रचित वेद, ब्रह्माजी द्वारा रचित ब्रह्मपुराण, राजा परीक्षित द्वारा शुकदेव जी के उपदेशों पर रचित भागवत पुराण आदि पुराणों के रचयिता हैं। पुराण वेदों की दृष्टि से अधिक उपयोगी होते हैं क्योंकि वे भारतीय संस्कृति और धर्म की ज्ञानवर्धक विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं।
पुराणों में देवताओं और देवीयों के चरित्रों, जीवनी, उनके शक्तियों और प्रतिरूपों के विस्तृत विवरण, भगवान विष्णु और शिव के अवतारों, सृष्टि की विवरण, मन्त्रों और वेदों के अर्थ आदि शामिल होते हैं। पुराणों के रचयिता उन श्रुतिस्मृतियों और पौराणिक कथाओं को सम्मिलित करते हैं जो भारतीय संस्कृति और धर्म का मूलभूत अंग होते हैं।
वैसे तो पुराणों के रचयिता के बारे में कुछ निश्चित नहीं है, लेकिन अनुमानों के अनुसार इन्हें वेदों के अवतार माना जाता है। पुराणों के रचयिताओं की विभिन्न गिनती होती है लेकिन मुख्यतः चार वेदों के अवतार माने जाने वाले ब्रह्मा, विष्णु, शिव और व्यास को पुराणों के रचयिता माना जाता है।
वेद और पुराण दोनों ही हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ होते हैं। पुराणों के रचयिता के बारे में विभिन्न राय हैं, कुछ लोग इन्हें वेदों के अवतार मानते हैं जबकि कुछ अन्य इन्हें वेदों के आधार पर लिखे गए उपनिषदों की टिप्पणियों के रूप में देखते हैं। दूसरे सिद्धांत के अनुसार, पुराणों के रचयिता ने वेदों को समझाने और संवारने के लिए अपने ज्ञान को उनके अंगों में व्यक्त किया।
पुराणों में देवताओं, ऋषियों, महापुरुषों और धर्म की उपदेशों के बारे में जानकारी दी गई है। पुराणों में कुल 18 पुराण हैं जिनमें विविध विषयों पर चर्चा की गई है।
पुराणों के रचयिता के बारे में निश्चित रूप से जानकारी नहीं है। यह अनुमान है कि पुराणों की रचना बहुत पूर्व में हुई होगी और उनके रचयिता वर्तमान समय से बहुत पहले मर चुके होंगे। यह भी माना जाता है कि पुराणों के अलग-अलग भागों के लेखक भिन्न-भिन्न हो सकते हैं।
पुराणों की रचना अनुमानित रूप से 3,000 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व के बीच हुई होगी। पुराणों का लेखन संस्कृत भाषा में किया गया था जो तब भारत की मूल भाषा थी। ये बहुत ही महत्वपूर्ण हिंदू धर्म ग्रंथ हैं जो हमें अपने धर्म और संस्कृति के बारे में जानकारी देते हैं