सल्‍तनत काल

  Last Update - 2024-01-05

सल्तनत काल भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण काल है, जो मुख्य रूप से १२वीं से १८वीं शताब्दी तक स्थानित है। इस काल में भारत पर मुस्लिम सल्तनतें शासन कर रही थीं, जो मुग़ल साम्राज्य के आगमन तक जारी रही। सल्तनत काल भारत के इतिहास में भारतीय साम्राज्यों के अधीन विदेशी शासन का आविर्भाव और उनके सांस्कृतिक एवं राजनीतिक प्रभाव का काल माना जाता है।

सल्तनत काल की शुरुआत १२वीं सदी में दिल्ली सल्तनत से हुई, जिसे इल्तुतमिश ने स्थापित किया था। दिल्ली सल्तनत के चंद्रगुप्त मौर्य के समान विख्यात सुल्तान अल्तमश भी इतिहास में विख्यात हुए। इसके बाद दिल्ली सल्तनत का शासन मुग़ल साम्राज्य के अगले सूबे बने।

सल्तनत काल में कई महत्वपूर्ण सल्तनतें उभरीं जैसे कि खिलजी सल्तनत, तुग़लक़ सल्तनत, सैयद सल्तनत और लोदी सल्तनत। इन सल्तनतों ने भारत में अपना स्वामित्व स्थापित किया और विभिन्न क्षेत्रों में आपसी संघर्ष किया।

सल्तनत काल में सभी सल्तनतें धार्मिक, सांस्कृतिक, लेखानिक और कलात्मक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दे चुकी थीं। मुग़ल साम्राज्य के आगमन से पहले, सल्तनत काल भारतीय इतिहास में एक यथार्थ सांस्कृतिक और साहित्यिक राष्ट्रीयता का संकेत था। सल्तनतों ने अपने शासन क्षेत्रों में मस्जिद, पुल, मकबरे, मदरसे, किले और अन्य साम्राज्यिक भवन निर्माण किए।

सल्तनत काल भारतीय इतिहास की एक रोमांचक काल थी, जिसमें राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तन घटे और उसने भारतीय सभ्यता को गहरे प्रभावित किया। यह काल भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसका अध्ययन हमें समझने में मदद करता है कि भारत कैसे उस समय से विकसित हुआ और इसके बाद की इतिहासिक घटनाओं की स्थापना की गई।

सल्‍तनत काल की महत्‍वपूर्ण रचनायें-

सल्तनत काल में कई महत्वपूर्ण रचनाएं लिखी गईं, जो भारतीय साहित्य और संस्कृति के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। कुछ महत्वपूर्ण रचनाएं निम्नलिखित हैं:

  1. दीवान-ए-हफ़ीज़ (Divan-e-Hafiz): यह फ़ारसी रचना ख्वाजा हफ़ीज़ नामक सूफ़ी कवि की है। इसमें उनकी ग़ज़लें, शेर और नग़्मे शामिल हैं। दीवान-ए-हफ़ीज़ उनकी प्रसिद्धतम और प्रमुख काव्यरचना है, जो अपनी खूबसूरती और सूफ़ी भावनाओं के लिए प्रसिद्ध है।
  2. दीवान-ए-ग़ालिब (Divan-e-Ghalib): ग़ालिब, एक मशहूर उर्दू कवि थे और उनका यह दीवान उनकी मशहूरत की वजह से प्रसिद्ध हुआ। यह दीवान उनकी उर्दू शायरी का संग्रह है, जिसमें उनकी उदारता, दर्द भरे शेर और तात्कालिक समाजिक मुद्दों पर आलोचनात्मक विचार शामिल हैं।
  3. तुजुक-ए-जहाँगीरी (Tuzuk-e-Jahangiri): इस रचना का लेखक मुग़ल सम्राट जहाँगीर थे। यह एक आत्मकथा है जिसमें उन्होंने अपने जीवन की कई घटनाओं के बारे में विस्तार से बताया है। इसमें राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक मामलों पर जहाँगीर के दृष्टिकोण को प्रदर्शित किया गया है।
  4. फ़तेहपुर सीक़री के खुशरू के ख़त (Khushro ke Khat): फ़तेहपुर सीक़री के खुशरू एक मुग़ल सम्राट थे और उनके ख़त इस्लामी संस्कृति, साहित्य और कला पर उनके दृष्टिकोण को प्रकट करते हैं। उनके ख़त में समाज, राजनीति, कला, भावनाएँ और सामरिक मुद्दे पर उनकी विचारधारा व्यक्त होती है।
  5. तुजुक-ए-आकबरी (Tuzuk-e-Akbari): यह अकबर मुग़ल के शासनकाल की एक महत्वपूर्ण रचना है। इसमें विस्तृत रूप से उनके शासन, सामरिक प्रगति, न्याय व्यवस्था, संगठन और सामाजिक रूपरेखा का वर्णन है। तुजुक-ए-आकबरी एक महत्वपूर्ण इतिहासी और साम्राज्यिक रचना है जो अकबर के राजनीतिक और सांस्कृतिक योगदान को दर्शाती है।
  6. मुसद्दस-ए-हालत-ए-इंटक़ाल (Musaddas-e-Halat-e-Inteqal): इसमें मुग़ल के शासक बाबर के इंतक़ाल के बाद की स्थिति पर आधारित उर्दू कविता है। इसमें उनके जीवन की घटनाओं और उनकी आत्मकथा का वर्णन किया गया है।

  7. रामायण आंदोलन के कविता: सल्तनत काल में रामायण के कई अनुवाद और कविताएं लिखी गईं, जैसे तुलसीदास के रामचरितमानस, कृष्ण दास के रामायण, भवभूति के रामायण और बहुत से अन्य। ये रचनाएं रामकथा को मुस्लिम समाज में प्रचारित करती हैं।

  8. दीवान-ए-नज़ीर (Divan-e-Nazir): नज़ीर अहमद, एक मशहूर उर्दू शायर थे और उनका यह दीवान उनकी कविताओं का संग्रह है। इसमें उनकी शायरी के मधुर और प्रभावशाली अंदाज़ में मुस्लिम सल्तनत के समाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर आलोचना की गई है।

  9. तुझुक-ए-आख़ीरी (Tuzuk-e-Akhirri): इस रचना का लेखक मुग़ल सम्राट अब्दुल हमीद लाहौरी थे। यह एक महत्वपूर्ण आत्मकथा है जिसमें उन्होंने अपने जीवन की अंतिम वर्षों के बारे में विस्तार से लिखा है। यह रचना उनके धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाती है।

पुस्‍तक लेखक विषय
ताजूल मासिर हसन निजामी कुतुबुद्दीन ऐबक से लेकर इल्‍तुतमिश के शासनकाल तक का इतिहास
तबकाते नासिरी मिनहाजुद्दीन सिराज यह पुस्‍तक सुल्‍तान नासिरुद्दीन महमूद को समर्पित कर लिखी गई
खजाई उल फुतूह अमीर खुसरो अलाउद्दीन के दरबारी इतिहासकार के रुप में
आशिकी अमीर खुसरो देवल रानी (गुजरात के शासक की पुत्री) और अलाउद्दीन के पुत्र खिज्र खां के बीच प्रेम सम्‍बन्‍धो का उल्‍लेख
तारीख ए फिरोजशाही बरनी बलबन से लेकर फिरोज तुगलक के शासन काल का इतिहास
फतवा-ए-जहांदारी बरनी इस पुस्‍तक मे राज्‍य की नीति के सम्‍बन्‍ध मे विचार व्‍यक्‍त किये गये है
तारीख-ए-फिरोजशाही शम्‍से सिराज फिरोज तुगलक के शासन काल से सम्‍बन्धित
फुतूहाते फिरोजशाही फिरोज तुगलक अध्‍यादेशों का संग्रह

सल्‍तनतकालीन साहित्‍य -

सल्तनतकालीन भारत में साहित्य और स्थापत्य क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण विकास हुआ। सल्‍तनतकालीन प्रमुख साहित्‍यकारों मे अल्‍बरुनी मिनहाजुद्दीन-सिराज,शम्‍से-सिराज,जियाउद्दीन बरनी तथा अमीर खुसरो शामिल थें इस काल में उर्दू, फ़ारसी और हिंदी भाषा में कविताएं, कथाएं, काव्यांश, नाटक आदि लिखे गए। यहां कुछ महत्वपूर्ण साहित्यिक कार्य दिए जा रहे हैं जो सल्तनतकालीन साहित्य के उदाहरण हैं:

  1. फ़ुतूहात-ए-आलमगीरी (Futuhat-e-Alamgiri): यह मुग़ल सम्राट अलमगीर द्वितीय (औरंगज़ेब) की आत्मकथा है। इसमें उन्होंने अपने शासनकाल की विस्तृत घटनाओं और उनके धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण को वर्णित किया है।
  2. आकबरनामा (Akbarnama): आकबरनामा मिर्ज़ा हैदर दुल्ला की रचना है जो मुग़ल सम्राट अकबर के शासनकाल की एक महत्वपूर्ण इतिहासिक और आत्मकथा है। इसमें उनके शासन, सामाजिक प्रगति, धर्म नीति और उनकी विचारधारा का वर्णन है।
  3. रजतरंगिनी (Rajatarangini): रजतरंगिनी कल्हण की रचना है, जो कश्मीर के इतिहास को वर्णित करती है। यह काव्यात्मक इतिहास है और सल्तनतकाल में लिखा गया है।
  4. दीवान-ए-हाफ़िज़ (Divan-e-Hafiz): हाफ़िज़ शीराज़ी का दीवान उर्दू और पर्सियाई कविताओं का संग्रह है। वे एक मशहूर सूफ़ी कवि थे और उनकी कविताएं प्रेम, भक्ति और रूहानीता पर आधारित हैं।
  5. ख़ुशरू की दीवान (Diwan-e-Khushro): अमीर ख़ुशरू का यह दीवान उर्दू की महत्वपूर्ण रचनाओं का संग्रह है। ख़ुशरू एक मशहूर सुफ़ी कवि थे और उनकी कविताएं प्रेम, सुख-दुख और दर्द पर आधारित हैं।

सल्‍तनतकालीन स्‍थापत्‍य-

  1. अल्‍बरुनी महमूद गजनवी के साथ भारत आया था उसने 11वीं शताब्‍दी के भारत की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति का वर्णन अपनी पुस्‍तक तारीख-उल-हिन्‍द (किताब उल हिन्‍द) मे किया है यह पुस्‍तक अरबी भाषा मे लिखी गई है
  2. सद्रहसन निजामी ने ताज-उल-मासिर की रचना की। यह कुतुबुद्दीन ऐबक का दरबारी कवि था।
  3. तारीखे फिरोजशाही जियाउद्दीन जियाउद्दीन बरनी द्वारा लिखित है जिसमे बलबन से फिरोज तुगलक तक के शासन का वर्णन है
  4. सल्‍तनत का प्रारंभिक इतिहास तबकाते नासिरि मे मिलता है जो मिनहाजुद्दीन सिराज की कृति है ।
  5. तुगलक काल के बाद का इतिहास तारीखे मुबारकशाही मे मिलता है जिसे इतिहासकार याहिया बिन अहमद सरहिन्‍दी ने लिखा है
  6. खडी बोली हिन्‍दी का विकास सल्‍तनत काल मे हुआ। इसका श्रेय अमीर खुसरो को जाता है। अमीर खुशरो का जन्‍म एटा के पास हुआ था। यह बलबन से गयासुद्दीन तुगलक तक के सभी सुल्‍तानों के दरबार मे रहा था और अनेक किताबों की रचना की जिनमे नूहसिफर,आशिकी, तुगलकनामा, खजाइन-उल-फुतूह( अलाउद्दीन का वर्णन) प्रमुख थी।
  7. अमीर खुसरो ने वीणा तथा ईरानी तम्‍बूरा से सितार का निर्माण किया ।
  8. पृथ्‍वीराज चौहान के दरबारी कवि चन्‍दबरदाई ने पृथ्‍वीराज रासो सारंगघर ने हम्‍मीर काव्‍य तथा हम्‍मीर रासो की रचना की।
  9. महोबा के चन्‍देल शासक परमर्दिदेव और आल्‍हा तथा ऊदल की कहानी आल्‍हाखण्‍ड की रचना जगनिक ने की।
  10. सल्‍तनत काल मे स्‍थापत्‍य कला के क्षेत्र मे भी कुछ नये प्रयोग हुए जिन्‍हे इण्‍डो-इस्‍लामिक या इण्‍डो साटसेनिक शैली कहा गया। यह हिन्‍दू मुस्लिम शैली थी जिसमे भारतीय और ईरानी शैलियों का मिश्रण हुआ।
  11. इस दौरान इमारतों मे नुकीले महराबों,गुम्‍बदों तथा उंची मीनारो का प्रयोग हुआ
  12. मकबरे निर्माण की परम्‍परा इसी दौरान प्रारम्‍भ हुई। सुल्‍तानो,अमीरों तथा सूफी संतो की मजार पर मकबरे बनने लगे।
  13. मकबरे बनाने की कला अरब मे भारत आई और इसके प्रयोग से बडी और मजबुत इमारतें बनने लगीं।
  14. इमारतों की साज-सज्‍जा मे फूल-पत्तियों, ज्‍यामितीय आकार तथा कुरान की आयतों का प्रयोग होने लगा। बाद मे हिन्‍दू साज-सज्‍जा की वस्‍तुओं जैसे-घंटियां, कमल,स्‍वास्तिक का प्रयोग भी होने लगा।यह संयुक्‍त कला ‘अरबस्‍क विधि’ कहलाई।

सल्‍तनत कालीन कुछ प्रमुख इमारतें निम्‍नलिखित है-

सल्तनत काल के दौरान, भारत में कई महत्वपूर्ण इमारतें निर्माण की गईं। इन इमारतों में आर्किटेक्चरल धार्मिक संगठन, राजमहल, किला, मस्जिद, मकबरा और बाग़ शामिल हो सकते हैं। यहां कुछ महत्वपूर्ण सल्तनत कालीन इमारतें हैं:

  1. कुतुबमीनार- कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206 ई. मे अपने गुरु कुतुबुद्दीन बख्तियार खिलजीकी याद मे इसका निर्माण दिल्‍ली के पस महरौली मे करवाया। इसका निर्माण इल्‍तुतमिश के द्वारा 1231ई. मे पूरा हुआ। पर्सी ब्राउन के अनुसार यह इस्‍लाम शक्ति के उद्घोष के रुप मे स्‍थापित कराई गई । यह विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है और यह दिल्ली की एक प्रमुख पर्यटन स्थल है।
  2. कुव्‍वत-उल-इस्‍लाम मस्जिद - इस मस्जिद का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1192ई. मे तराइन के दूसरे युद्ध की विजय के बाद इस्‍लाम की विजय के उपलक्ष्‍य मे राय पिथोरा मे करवाया। इल्‍तुतमिश तथा अलाउद्दीन ख्लिजी ने इसका विस्‍तार करवाया। यह भारत में निर्मित पहली तुर्की मस्जिद है।
  3. अढाई दिन का झोपडा - कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा अजमेर मे निर्मीत यह इमारत वास्‍तव मे एक मस्जिद है। यह मस्जिद कुव्‍वत उल इस्‍लाम से भी लगभग दुगुने आकार की है। इसका विस्‍तार भी इल्‍तुतमिश ने करवाया।
  4. अलाई दरवाजा - यह कुव्‍वत उल इस्‍लाम मस्जिद का चौथा दरवाजा है जिसका निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने 1310-11 ई. मे करवाया।
  5. ताज महल, आगरा: ताज महल भारत की सल्तनतकालीन इमारतों में सबसे प्रसिद्ध और मशहूर है। इसे मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज़ महल की याद में सन् 1632 ई. में बनवाया था। ताज महल विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है और यह आगरा का प्रमुख पर्यटन स्थल है।
  6. गोल गुम्बद, दिल्ली: गोल गुम्बद दिल्ली के निजामुद्दीन महल के करीब स्थित है और यह मुग़ल काल की एक महत्वपूर्ण इमारत है। इसका निर्माण सन् 1481 ई. में हुआ था और इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  7. जामा मस्जिद, दिल्ली: जामा मस्जिद दिल्ली में स्थित है और यह मुग़ल सम्राट शाहजहाँ द्वारा 1656 ई. में बनवाई गई है। यह भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है और एक प्रमुख पर्यटन स्थल है।

सल्‍तन कालीन अन्‍य इमारतें-

भवन निर्माता
कुव्‍वत-उल-इस्‍लाम मस्जिद कुतुबुद्दीन ऐबक
कुतुब मीनार ऐबक व इल्‍तुतमिश
अढाई दिन का झोपडा ऐबक
दरगाह मुइनुद्दीन चिश्‍ती इल्‍तुतमिश
सीरी का किला अलाउद्दीन खिलजी
अलाई दरवाजा अलाउद्दीन खिलजी
दरगाह शेख निजामुद्दीन खिज्र खां
अदीना मस्जिद सिकन्‍दर शाह
अटाला मस्जिद इब्राहिम शाह शर्की
चॉद मीनार (चार मीनार) अहमदशाह बहमनी
कीर्ति स्‍तम्‍भ (विजय स्‍तम्‍भ) राणा कुम्‍भा

सल्‍तनत कालीन प्रशासनिक व्‍यवस्‍था

दीवान-ए-इसराफ लेखा, परीक्षक विभाग।
दीवान-ए-विजारत राजस्‍व ।
आरिजे-मुमालिक सेना का प्रधान ।
दीवाने मुस्‍तखराज वित्‍त विभाग ।
सद्र उस सद्र धार्मिक मामले ।
मुस्‍तौफी महालेखा परीक्षक ।
बरीद-ए-मुमालिक गुप्‍तचर ।
बारबक राजदरबार का प्रबंध देखने वाला ।
सर-ए-जहांदार सुल्‍तान के व्‍यक्तिगत अंगरक्षको का प्रधान ।
अमीर-ए-आखुर घुडसाल का प्रधान ।

बहमनी साम्राज्‍य (1347-1518ई. )

  • संस्‍थापक-अलाउद्दीन हसन बहमन शाह(हसनगंगू) 1347-1358
  • अंतिम- शिहाबुद्दीन मुहम्‍मद (दक्षिण की लोमडी) 1482-1518

बहमनी के 5 स्‍वतंत्र राज्‍य

वंश राजधानी स्‍थापना
इमादशाही बरार 1484ई.
आदिलशाही बीजापुर 1489ई.
निजामशाही अहमदनगर 1490ई.
कुतुबशाही गोलकुण्‍डा 1512ई.
रीदशाहीब बीदर 1526ई.
हरिहर प्रथम 1336-1356
बुक्‍का प्रथम 1356-1377
देवराय प्रथम 1406-1422
देवराय द्वितीय 1422-1446
सालुव वंश 1484-1505
नर‍सिंह सालुव 1485-1491
तुलुव वंश 1505-1507
वीर नरसिंह 1505-1509
कृष्‍णदेवराय 1509-1529
अरिविडु वंश 1570-1652
तिरुमल 1570-1572
श्रीरंग 1572-1585
विजय नगर साम्राज्‍य 1336-1652
संगम वंश 1336-1485

भक्ति आंदोलन -

उत्‍तर भारत मे भक्ति आन्‍दोलन का प्रचार दो संप्रदायों सगुण संप्रदाय और निर्गुण संप्रदाय के द्वारा किया गया।

निर्गण संप्रदाय के संप्रदाय के संत निम्‍न है-

  1. रामानंद (14वीं -15वी शताब्‍दी) को भक्ति आन्‍दोलन को उत्‍तर भारत में लाने का श्रेय प्राप्‍त है। यह आचार्य रामानुज पिढी के ये पहले संत थें। इनके 12 शिष्‍यो मे चार निम्‍न जाति के थें कबीर-जुलाहा, रैदास-चमार, सेन-नाई तथा धन्‍ना-जाट।
  2. कबीरदास (1398-1518) ने निराकार ईश्‍वर तथ ईश्‍वर की एकता को महत्‍ता दी। इन्‍होने हिन्‍दू-मुस्लिम एकता पर जोर दिया। इन्‍होने हिन्‍दु-मुस्लिम एकता पर जोर दिया।इनके शिष्‍य’भागदास’ ने ‘बीजक’ का संकलन किया। इनकी मृतयु मगहर में हुई।
  3. गुरु नानक(1469-1539ई. )का जन्‍म लाहौर के पास तलवंडी नामक स्‍थान मे हुआ था। यह सिकखों के प्रथम गुरु थें। इन्‍होने आदिग्रंथ का संकलन किया। गुरुनानक के बाद निम्‍न गुरु हुए-
  4. गुरु अंगद(1538-1552ई.) गुरुमुखी लिपि के जनक
  5. गुरु अमरदास (1552-1574ई.)गद्दियों की स्‍थापना, लंगर की स्‍थापना
  6. गुरु रामदास(1552-1574ई.) गुरु पद वंशानुगत, अमृतसर की स्‍थापना(1577)
  7. गुरु अर्जुनदेव (1581-1606ई.)गुरु ग्रंथ साहब का संकलन, आध्‍यात्मिक कर लगाया एवं स्‍वर्ण मंदिर की नींव डाली। जहांगीर द्वारा 1606ई; मे फांसी की सजा दी गई।
  8. गुरु हरगोविन्‍द सिंह (1606-1645ई.)जहांगीर द्वारा कैद की सजा दी गयी (1611तक)
  9. गुरु हरराय (1645-1661ई.) अकाल तख्‍त की स्‍थापना( सिक्‍खो का सैन्‍यीकरण
  10. गुरु ह‍रकिशन (1661-1664ई.) अल्‍पव्‍यस्‍कता में ही मृत्‍यु
  11. गुरु तेगबहादुर (1664-1675ई.) प्रशासनिक पद कबुल किया। इस्‍लाम धर्म न कबुल करने के कारण औरंगजेब द्वारा फांसी।
  12. गुरु गोविन्‍द सिंह (1675-1708ई.) अंतिम गुरु, खालसा पंथ की स्‍थापना, पाहुल नामक त्‍योहार प्रारंभ।
  13. दादू दयाल (1544-1603ई.) ने अहमदाबाद में भक्ति आंदोलन का प्रचार किया। इन्‍होने कबीर के उपदेशो को व्‍यावहारिक रुप दिया। यह ब्रम्‍ह संप्रदाय के संस्‍थापक थे।
  14. जगजीवन दास ने बाराबंकी क्षेत्र मे भक्ति आंदोलन का प्रचार किया। यह सतनामी संप्रदाय के प्रवर्तक थे। निर्गण संत होने के बावजूद कृष्‍ण की उपासना पर जोर दिया। इनके उल और करणदास दो शिष्‍य थे।
  15. बाबा मलूक दास (इलाहाबाद) गरीबदास रैदास तथा सुंदरदास निर्गण संप्रदायक के प्रमुख स्रोत थे।
  16. ज्ञानदेव ने तेरहवी शताब्‍दी मे महाराष्‍ट्र धर्म कहा गया ये विठोवा के पुजारी थे। भागवत गीता पर इन्‍होने ज्ञानेश्‍वरी नामक भाष्‍य लिखा। इन्‍हे ज्ञानेश्‍वर भी कहा जाता है
  17. नामदेव चौदहवीं शताब्‍दी के महाराष्‍ट्र के सन्‍त थे। नामदेव पेशे से दर्जी थ। इन्‍होन मराठों के राजनैतिक उत्‍थान के लिए कार्य किया।
  18. एकनाथ सोलहवीं शताब्‍दी के सन्‍त थें। इन्‍होने जाति-विभेदो का विरोध किया। यह बरकरी संप्रदाय से संबंधित थे।
  19. तुकाराम सत्रहवी शताब्‍दी के महाराष्‍ट्र के पंढरपुर के संत थे। यह विट्वल के महान उपासक थे तथा बरकरी संप्रदाय से संबंधित थें। यह शिवाजी के समकालीन थे।
  20. समर्थ गुरु रामदास ने दासबोध नामक ग्रंथ की रचना की। यह शिवाजी के गुरु भी थें ।
  21. रामनुज ग्‍यारहवीं शताब्‍दी के सन्‍त थे। इन्‍होने विशिष्‍टाद्वैतवाद के सिध्‍दांत का प्रतिपादन किया ।
  22. माधवाचार्य तेरहवी शताब्‍दी के संत थे। इन्‍होने द्वैत-दर्शन संप्रदाय का प्रतिपादन किया। इनके अनुसार जगत एक भ्रम नही बल्कि एक वास्‍तविकता है।
  23. निम्‍बार्क ने द्वैताद्वैत के सिध्‍दांत का प्रतिपादन किया। इनके अनुसार ब्रम्‍हा सत्‍ता स्‍वयं को आत्‍मा और जगत मे रुपातरित करती है, इसलिए वह ब्रम्‍हा से भिन्‍न है ।
  24. बल्‍लभाचार्य पंद्रहवी तथा सोलहवी शताब्‍दी के संत थें। इन्‍होने शुध्‍द-अद्वैत मत का प्रतिपादन किया। यह कृष्‍ण के उपसक थे। इसके अनुसार गृहस्‍थ आश्रम मे रहते हुए भी भक्ति मार्ग के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति संभव है । वल्‍लभ का मत पुष्टिमार्ग या दया के मार्ग के नाम से भी जाना जाता था।

प्रमुख मत एवं उसके प्रवर्तक-

द्वैतवाद माधवाचार्य
शैव विशिष्‍टाद्वैतवाद श्रीकंठ
वीर शैव विशष्‍टाद्वैतवाद श्रीपति
भेदाभेदवाद भास्‍कराचार्य
अचिन्‍त्‍यभेदाभेदवाद बलदेव
विशिष्‍टाद्वैतवाद रामानुजाचार्य
द्वैताद्वैतवाद निम्‍बकाचार्य
शुद्ध द्वैतवाद वल्‍लभाचार्य


सगुण संप्रदाय के संत-

  1. चैतन्‍य (1486-1533) ने बंगाल के नदिया जिले मे भक्ति आंदोलन में संकीर्तन प्रणाली को प्रचलित किया। यह गौरांग महाप्रभु के नाम से जाने जाते थें। यह जयदेव और विद.यापति की परंपरा से भी जुडे हुए थें तथा इन्‍हे कृष्‍ण का अवतार भी माना जाता था। इनके गुरु ईश्‍वरपुरी थें।
  2. सूरदास (1483-1563) दक्षिण भारत के संत बल्‍लभाचार्य के शिष्‍य थें। इन्‍होने सूरसागर तथा सूर सारावली ग्रंथ की रचना की।
  3. मीराबाई (1498-1569ई.) सिसौदिया वंश की बहु थीं यह कृष्‍ण की उपासिका थी इन्‍होने राजस्‍थान मे कृष्‍ण का प्रचार किया
  4. तुलसीदास (1532-1623) ने राम भक्ति का प्रचार किया। इन्‍होने रामचरितमानस, विनय पत्रिका, कवितावली, गीतावली, रत्‍नावली, पार्वती मंगल, जानकी मंगल जानकी मंगल आदि ग्रंथो की रचना की।
  5. शंकरदेव (1532-1523) ने असम मे भक्ति आन्‍दोलन का प्रचार किया। यह शरण संप्रदाय या महापुरुषीय संप्रदाय कि प्रवर्तक थे।
  6. इस्‍लाम की मूर्तिभंजक नीति, निम्‍न वर्ग की आर्थिक स्थिति मे सुधार ने लोगो की सामाजिक उपेक्षाओं को जगाया, इस्‍लाम के सृजनात्‍मक प्रभाव एवं एकेश्‍वरवाद एवं समानता की भावना के कारण भक्ति आन्‍दोलन का उदय हुआ। ब्रजभाषा, खडी बाली, राजस्‍थानी, बंगाली, पंजाबी, अरबी आदि भाषाओ में भक्ति आन्‍दोलन के संतो ने उपदेश दिये, जिनसे आगे चलकर आधुनिक भारतीय भाषा का विकास हुआ।

प्रमुख संप्रदाय एवं उसके प्रवर्तक

रामवत संप्रदाय रामानंद
उदासी संप्रदास श्री चंद(गुरु नानक के पुत्र)
विश्‍नोई संप्रदाय जंभनाथ
श्री संप्रदाय रामानुज
ब्रम्‍हा संप्रदाय माधवाचार्य
हरिदासी संप्रदाय माधवाचार्य

सूफी संत

सूफी शब्‍द की उत्‍पत्ति अरबी शब्‍द सफा से हुई है जिसका अर्थ पवित्रता और विशुध्‍दता होता है । कुछ विद.वानो का मत है कि सफा शब्‍द का अर्थ भेड के बाल होता है । सूफी लोग भेंड की उन का वस्‍त्र पहनते थे। इसलिए सूफी कहलाये। भारत में सूफी मत का विकास तुर्की राज्‍य की स्‍थापना के बाद हुआ। सूफी मत के मानने वाले एक ही ईश्‍वर मे विश्‍वास करते थे और भौतिक जीवन के त्‍याग पर विशेष बल देते थे। इन्‍होने कर्मकाण्‍डो का घोर विरोध किया और शांति, अहिंसा तथा धार्मिक सहिष्‍णुता पर विशेष बल दिया। वहादतुल वुजूद अथवा आत्‍मा–परमात्‍मा की एकता का सिद्धांत सूफी मत का आधार था। भारत में सूफी धर्म कई संप्रदायों मे बंटा हुआ था जिसे सिलसिला कहा जाता था। ये सिलसिले दो वर्गों मे विभाजित थे।

  • बा-शरा अर्थात इस्‍लामी विधी(शरा) का अनुकरण करने वाला।
  • बे-शरा अर्थात जो इस्‍लामी विधी से बंधे हुए नहीं थे।

पहली महिला सूफी संत रबिया थी।

पीर-गुरु, मुरीद-शिष्‍य, वली-उत्‍तराधिकारी को कहते थें।

खानकाह का अर्थ है- सूफी संत के रहने की जगह।

सिलसिला काल एवं संत संस्‍थापक
चिश्‍ती 12वीं शताब्‍दी शिष्‍य-कुतुबुद्दीन बख्‍त्‍यार काकी निजामुद्दीन औलिया अमीर खुसरो, शेख बुरहानुद्दीन ख्‍वाजा मोइनुद्दीन चिश्‍ती
सुहरावर्दी 12वीं श्‍ताब्‍दी (संगीत और शानों शौकत पसंद) शिहाबुद्दीन सुहरावर्दीग (भारत मे बहाउद्दीन जकारिया)
शत्‍तारी 15वीं शताब्‍दी शेख अब्‍दुल कादिर
नक्‍शवंदी 16वी शताब्‍दी ख्‍वाजावाकी विल्‍लाह
फिरदौसी 16वी शताब्‍दी बदरुद्दीन

विदेशी यात्री-

यात्री देश शासक
निकालो कोंटी इटली देवराय प्रथम
अब्‍दुर्रज्‍जाक फारस देवराय व्दितीय
नूनिज पुर्तगाल मल्लिकार्जुन
पायस पुर्तगाल कृष्‍णदेवराय
बारबोसा पुर्तगाल कृष्‍णदेवराय

मुगल वंश (1526-1540तथा 1555-1707)

जहीरुद्दीन बाबर 1526-1530ई.
हूमायॅू 1530-1540ई. तथा 1555-1556ई.
अकबर 1556-1605ई.
जहांगीर 1605-1627ई.
शाहजहॉ 1627-1658ई.
औरंगजेब 1658-1707ई.

सूरवंश (1540-1555ई.)

शेरशाह सूरी 1540-1545ई.
इस्‍लाम शाह 1545-1553ई.
आदिल शाह 1553-1555ई.

शेरशाह का प्रशासन

शेरशाह ने अलाउद्दीन खिलजी की शासन पद्धति के आधार पर अफगान राज्‍य की स्‍थापना की। इसके काल मे पॉच प्रमुख विभाग थे

दीवान-ए-विजारत भू-राजस्‍व
दीवान-ए-आरिज सैन्‍यविभाग
दीवान-ए-रिसालत धार्मिक
दीवान-ए-कजा न्‍याय

Academy

Share on Facebook Twitter LinkedIn