19 अप्रैल, 1975 को भारत ने अपना पहला उपग्रह, आर्यभट्ट, अंतरिक्ष में भेजा। यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था, जिसने देश को अंतरिक्ष युग में प्रवेश कराया।
आर्यभट्ट का नाम 5वीं शताब्दी के भारतीय खगोलशास्त्री और गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था। इसका उद्देश्य अंतरिक्ष विज्ञान में प्रयोग करना था, जिसमें एक्स-रे खगोल विज्ञान, सौर भौतिकी और वायुमंडलीय अध्ययन शामिल थे। इस उपग्रह का निर्माण पूरी तरह से भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों द्वारा किया गया था, जो भारतीय तकनीकी कौशल का प्रमाण था।
हालांकि, आर्यभट्ट को सोवियत संघ द्वारा कॉस्मोस-3एम प्रक्षेपण यान का उपयोग करके लॉन्च किया गया था। उस समय, भारत के पास अपना उपग्रह प्रक्षेपण करने की क्षमता नहीं थी। सोवियत संघ का यह सहयोग भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के शुरुआती विकास में महत्वपूर्ण साबित हुआ।
आर्यभट्ट ने लगभग पांच दिनों तक सफलतापूर्वक डेटा भेजा, जिसके बाद बिजली की विफलता के कारण इसका संपर्क टूट गया। भले ही यह मिशन कम समय तक चला, लेकिन इसने भारत के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को बहुमूल्य अनुभव प्रदान किया, जो भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए नींव बना।
आर्यभट्ट की सफलता ने भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में आत्मविश्वास दिलाया और स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण क्षमता विकसित करने के लिए प्रेरित किया, जो बाद में SLV (Satellite Launch Vehicle) और PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से साकार हुआ। आज, भारत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में एक प्रमुख खिलाड़ी है, जिसका श्रेय आर्यभट्ट जैसे शुरुआती प्रयासों को जाता है।
Answered :- 2022-11-30 09:32:55
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