फ्रानहॉफर रेखाएं सूर्य के कोरोना में नहीं, बल्कि सूर्य के प्रकाश के स्पेक्ट्रम में दिखाई देने वाली काली रेखाएं हैं। कोरोना सूर्य का सबसे बाहरी वातावरण है, जो बहुत ही पतला और गर्म होता है। स्पेक्ट्रम में दिखने वाली ये रेखाएं असल में अवशोषण रेखाएं हैं।
अधिक जानकारी:
उत्पत्ति: ये रेखाएं तब बनती हैं जब सूर्य के प्रकाशमंडल (photosphere), जो कि सूर्य की दिखाई देने वाली सतह है, से निकलने वाला प्रकाश सूर्य के चारों ओर की अपेक्षाकृत ठंडी गैसों से गुजरता है। ये गैसें विशिष्ट तरंग दैर्ध्य के प्रकाश को अवशोषित करती हैं, जो उस विशेष तत्व की परमाणुओं द्वारा उत्सर्जित या अवशोषित होने वाली विशिष्ट तरंग दैर्ध्य से मेल खाती हैं।
खोज: जर्मन भौतिक विज्ञानी जोसेफ वॉन फ्रानहॉफर ने 1814 में इन रेखाओं का विस्तार से अध्ययन किया और उन्हें वर्णानुक्रम में नाम दिया। हालाँकि, उनसे पहले 1802 में विलियम हाइड वोलास्टन ने भी इन रेखाओं को देखा था, लेकिन फ्रानहॉफर ने ही इनकी व्यवस्थित रूप से व्याख्या की।
महत्व: फ्रानहॉफर रेखाएं खगोल भौतिकी में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि:
ये सूर्य और अन्य तारों की रासायनिक संरचना का निर्धारण करने में मदद करती हैं। प्रत्येक तत्व एक अद्वितीय अवशोषण पैटर्न बनाता है, जिससे वैज्ञानिकों को यह पता चलता है कि तारों में कौन-कौन से तत्व मौजूद हैं।
ये रेखाएं तारों के तापमान, घनत्व और वेग के बारे में भी जानकारी प्रदान करती हैं।
इन रेखाओं का उपयोग रेडशिफ्ट और ब्लूशिफ्ट को मापने के लिए किया जा सकता है, जिससे खगोलविदों को ब्रह्मांड के विस्तार और दूर की वस्तुओं की गति का अध्ययन करने में मदद मिलती है।
संक्षेप में, फ्रानहॉफर रेखाएं सूर्य के प्रकाश के स्पेक्ट्रम में पाई जाने वाली अवशोषण रेखाएं हैं, जो हमें सूर्य और अन्य तारों की संरचना और गुणों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं। ये रेखाएं कोरोना में नहीं, बल्कि प्रकाशमंडल से निकलने वाले प्रकाश के अवशोषण के कारण बनती हैं।
Answered :- 2022-11-30 09:32:55
Academy