सूर्य के कोरोना से बाहर की ओर प्रवाहित होने वाली प्रोटॉन की धाराओं को सौर पवन (Solar Wind) कहा जाता है। यह सही है। अतिरिक्त जानकारी: सौर पवन केवल प्रोटॉन की धारा नहीं है, बल्कि यह प्लाज्मा (Plasma) की एक सतत धारा है जिसमें मुख्य रूप से प्रोटॉन, इलेक्ट्रॉन और कुछ अल्फा कण (हीलियम नाभिक) शामिल होते हैं। यह प्लाज्मा सूर्य के कोरोना, जो कि सूर्य का सबसे बाहरी वातावरण है, से लगातार बाहर की ओर बहता रहता है। उत्पत्ति: सौर पवन की उत्पत्ति का कारण कोरोना का अत्यधिक उच्च तापमान है। यह तापमान इतना अधिक होता है कि सूर्य का गुरुत्वाकर्षण पूरी तरह से इन आवेशित कणों को बांधे रखने में सक्षम नहीं होता है, जिसके परिणामस्वरूप वे अंतरिक्ष में पलायन कर जाते हैं। गति और तीव्रता: सौर पवन की गति और तीव्रता में काफी भिन्नता होती है। आमतौर पर, इसकी गति लगभग 300 से 800 किलोमीटर प्रति सेकंड होती है, लेकिन सौर ज्वालाओं और कोरोनल मास इजेक्शन (CMEs) जैसी घटनाओं के दौरान यह बहुत अधिक हो सकती है। पृथ्वी पर प्रभाव: सौर पवन का पृथ्वी पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। यह पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर (चुंबकीय क्षेत्र) के साथ इंटरैक्ट करता है, जिसके परिणामस्वरूप भू-चुंबकीय तूफान आते हैं। ये तूफान संचार प्रणालियों, उपग्रहों और विद्युत ग्रिड को बाधित कर सकते हैं। इसके अलावा, सौर पवन ध्रुवीय क्षेत्रों में ऑरोरा (Aurora) का कारण भी बनता है। अन्य ग्रहों पर प्रभाव: सौर पवन अन्य ग्रहों के वातावरण को भी प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, इसने माना जाता है कि मंगल ग्रह के वातावरण को छीन लिया है, जिससे वह रहने योग्य नहीं रहा। संक्षेप में, सौर पवन एक जटिल घटना है जो सूर्य और पूरे सौर मंडल पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है। इसका अध्ययन अंतरिक्ष मौसम की भविष्यवाणी और ग्रहों के विकास को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।