नालंदा विश्वविद्यालय के सबसे प्रसिद्ध कुलपति आचार्य शीलभद्र थे। वे एक प्रतिष्ठित बौद्ध विद्वान, दार्शनिक और योग के ज्ञाता थे। उनके समय में, नालंदा विश्वविद्यालय शिक्षा और ज्ञान का एक प्रमुख केंद्र बन गया था, जिसमें देश-विदेश से विद्यार्थी अध्ययन करने आते थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग भी उनके शिष्य थे और उन्होंने आचार्य शीलभद्र की विद्वत्ता और चरित्र की बहुत प्रशंसा की है।
आचार्य शीलभद्र के अलावा, नालंदा विश्वविद्यालय में कई अन्य विद्वान और आचार्य भी थे, जिन्होंने विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को बढ़ाया। इनमें धर्मपाल, चंद्रपाल, गुणमति, स्थिरमति, दिङ्नाग, और आर्यदेव जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं। इन आचार्यों ने विभिन्न विषयों में अपनी विशेषज्ञता के माध्यम से विश्वविद्यालय को एक अद्वितीय शैक्षिक संस्थान बनाया।
नालंदा विश्वविद्यालय की उत्कृष्टता का एक प्रमुख कारण यह था कि यहाँ विभिन्न धर्मों और विचारधाराओं के विद्यार्थियों को एक साथ शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलता था। इस विश्वविद्यालय में बौद्ध धर्म के साथ-साथ हिंदू धर्म, जैन धर्म और अन्य दार्शनिक परंपराओं का भी अध्ययन किया जाता था।
नालंदा विश्वविद्यालय का दुर्भाग्यवश कई बार आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट किया गया, लेकिन हर बार इसे पुनर्निर्मित किया गया। यहाँ तक कि 12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी के आक्रमण के बाद इसे पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया। फिर भी, नालंदा विश्वविद्यालय की गौरवशाली परंपरा और यहाँ के आचार्यों का योगदान भारतीय शिक्षा और संस्कृति के इतिहास में हमेशा अमर रहेगा।