जैन धर्म के 21वें तीर्थंकर नेमिनाथ थे, जिन्हें अरिष्टनेमि के नाम से भी जाना जाता है। वे भगवान कृष्ण के चचेरे भाई माने जाते हैं और यादव वंश से संबंधित थे। जन्म और परिवार: नेमिनाथ का जन्म सौरीपुर (द्वारका के निकट) में राजा समुद्रविजय और रानी शिवादेवी के घर हुआ था। चिह्न: उनका चिह्न शंख है। दीक्षा और तप: सांसारिक जीवन से विरक्त होकर उन्होंने युवावस्था में ही दीक्षा ले ली और तपस्या में लीन हो गए। केवल ज्ञान: गहन तपस्या के बाद उन्हें केवल ज्ञान (सर्वज्ञता) प्राप्त हुआ। उपदेश: उन्होंने अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (संयम), और अपरिग्रह (गैर-संलग्नक) के सिद्धांतों का प्रचार किया। उन्होंने लोगों को करुणा और सभी जीवों के प्रति सम्मान रखने का मार्ग दिखाया। निर्वाण: अंततः, गिरनार पर्वत पर उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया, जो जैन धर्म में मोक्ष की अवस्था है। महत्व: नेमिनाथ जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण तीर्थंकर हैं, जो त्याग, करुणा और धार्मिकता के प्रतीक हैं। उनकी शिक्षाएँ आज भी जैन अनुयायियों को प्रेरित करती हैं।

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