जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर अरिष्टनेमि थे, जिन्हें नेमिनाथ के नाम से भी जाना जाता है। वे भगवान कृष्ण के चचेरे भाई माने जाते हैं और हिंदू धर्म में भी उनका महत्वपूर्ण स्थान है। जैन धर्म में, तीर्थंकर वे आध्यात्मिक शिक्षक होते हैं जिन्होंने संसार के दुखों से मुक्ति पा ली है और दूसरों को भी मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं। अरिष्टनेमि का जन्म सौरीपुर नामक स्थान पर हुआ था। माना जाता है कि उनका विवाह तय होने के दौरान, उन्होंने जानवरों को वध के लिए तैयार देखकर विवाह करने से इनकार कर दिया और तपस्या का मार्ग चुना। उन्होंने गिरनार पर्वत पर कठोर तपस्या की और कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया। जैन धर्म में अरिष्टनेमि का विशेष महत्व है। उन्हें अहिंसा, त्याग और करुणा के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। उनकी शिक्षाएं जैन धर्म के मूल सिद्धांतों को दर्शाती हैं।

New Questions