जैन धर्म के 6वें तीर्थंकर पद्यमप्रभुजी थे। उन्हें 'सुपार्श्वनाथ' के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म इक्ष्वाकु वंश में पौष कृष्ण एकादशी को कौशाम्बी नगरी में हुआ था। उनके पिता का नाम धरण राजा और माता का नाम सुसीमा देवी था। पद्यमप्रभुजी का प्रतीक चिह्न लाल कमल है। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने वैराग्य धारण करके कठोर तपस्या की और अंततः कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के पांच व्रतों का पालन करने का उपदेश दिया। जैन धर्म में, तीर्थंकर वे आध्यात्मिक गुरु होते हैं जिन्होंने संसार के दुखों से मुक्ति का मार्ग खोजा है। पद्यमप्रभुजी का जैन धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है और उनके उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं।

New Questions