जैन धर्म के 7वें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ थे। उनका जन्म वाराणसी (वर्तमान बनारस) में हुआ था। उनके पिता राजा प्रतिष्ठ थे और माता पृथ्वी देवी थीं। जैन धर्म के अनुसार, सुपार्श्वनाथ ने श्रावण शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को दीक्षा ली थी और फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को उन्हें कैवल्य ज्ञान (सर्वज्ञता) प्राप्त हुआ था।
सुपार्श्वनाथ का चिह्न स्वास्तिक है, जो जैन धर्म में शुभता और कल्याण का प्रतीक माना जाता है। उन्होंने अपने अनुयायियों को अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (संयम) और अपरिग्रह (गैर-अनुattachment) के सिद्धांतों का पालन करने के लिए प्रेरित किया। उनके उपदेशों का मुख्य उद्देश्य आत्मा को कर्मों के बंधन से मुक्त करना और मोक्ष प्राप्त करना था।
जैन ग्रंथों में सुपार्श्वनाथ के जीवन और शिक्षाओं का विस्तृत वर्णन मिलता है। माना जाता है कि उन्होंने अपने जीवनकाल में कई चमत्कार किए और लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। जैन समुदाय में उन्हें बड़े आदर और श्रद्धा के साथ पूजा जाता है। उनके मंदिर और तीर्थस्थल भारत में कई स्थानों पर स्थित हैं, जहां भक्त दर्शन के लिए जाते हैं।
Answered :- 2022-12-08 07:59:58
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