जैन धर्म के 8वें तीर्थंकर चन्द्रप्रभु थे।
चन्द्रप्रभु जैन धर्म के महत्वपूर्ण तीर्थंकरों में से एक हैं। उनका जन्म चंद्रपुरी में राजा महासेन और रानी लक्ष्मणा देवी के यहाँ हुआ था। जैन ग्रंथों के अनुसार, वे पौष कृष्ण एकादशी को गर्भ में आए थे और माघ कृष्ण द्वादशी को उनका जन्म हुआ था।
चन्द्रप्रभु का वर्ण श्वेत था और उनका चिह्न अर्द्धचंद्र (आधा चंद्रमा) है, जिससे उन्हें चन्द्रप्रभु नाम मिला। उन्होंने दीक्षा लेने के बाद कठोर तपस्या की और फाल्गुन कृष्ण सप्तमी को कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह (संग्रह न करना) के सिद्धांतों का पालन करने के लिए प्रेरित किया।
चन्द्रप्रभु ने अपने उपदेशों से समाज को शांति और सद्भाव का मार्ग दिखाया। माना जाता है कि उन्होंने लम्बे समय तक धर्म का प्रचार किया और अंत में सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त किया। जैन धर्म में चन्द्रप्रभु का महत्वपूर्ण स्थान है और उन्हें श्रद्धा के साथ याद किया जाता है। उनके मंदिर पूरे भारत में फैले हुए हैं, जहाँ भक्त उनकी पूजा-अर्चना करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
Answered :- 2022-12-08 07:59:58
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