जैन परम्परा के अनुसार अरिष्टनेमि, जिन्हें नेमिनाथ भी कहा जाता है, जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर थे। यह मान्यता है कि वे भगवान कृष्ण के समकालीन थे। इस मान्यता को जैन ग्रंथों, विशेषकर हरिवंश पुराण और त्रिलोकसार में समर्थन मिलता है। इन ग्रंथों में, अरिष्टनेमि को कृष्ण का चचेरा भाई बताया गया है। यह भी वर्णित है कि द्वारका में यादव वंश से उनका गहरा संबंध था। जैन धर्मग्रंथों के अनुसार, अरिष्टनेमि का विवाह तय हो गया था, लेकिन उन्होंने पशु बलि की प्रथा को देखकर वैराग्य धारण कर लिया और संन्यास ले लिया। कृष्ण और अरिष्टनेमि की समकालीनता जैन धर्म के भीतर एक महत्वपूर्ण विषय है, क्योंकि यह दो महान धार्मिक हस्तियों के बीच एक संबंध स्थापित करता है। यह जैन धर्म और हिंदू धर्म के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को भी दर्शाता है। कुछ विद्वान इस समकालीनता को ऐतिहासिक तथ्य मानते हैं, जबकि अन्य इसे प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण मानते हैं जो दोनों धर्मों के बीच साझा मूल्यों और दार्शनिक विचारों को उजागर करता है।

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