अकबर ने दीन-ए-इलाही या तौहीद-ए-इलाही की घोषणा 1582 ई० में की थी।
अकबर ने दीन-ए-इलाही, जिसका अर्थ है "ईश्वर का धर्म," या तौहीद-ए-इलाही, जिसका अर्थ है "ईश्वर की एकता," की घोषणा 1582 ई० में की थी। यह अकबर द्वारा स्थापित एक समन्वयवादी धार्मिक आंदोलन था। इसका उद्देश्य विभिन्न धर्मों के सर्वोत्तम तत्वों को मिलाकर एक सार्वभौमिक धर्म बनाना था।
दीन-ए-इलाही के पीछे का विचार:
अकबर का मानना था कि सभी धर्मों में कुछ सत्य हैं, और वह इन सत्यों को एक साथ लाकर एक ऐसा धर्म बनाना चाहता था जो सभी लोगों को स्वीकार्य हो। वह राजनीतिक एकता को बढ़ावा देने और धार्मिक असहिष्णुता को कम करने के लिए भी ऐसा करना चाहता था।
दीन-ए-इलाही के सिद्धांत:
दीन-ए-इलाही में एकेश्वरवाद, नैतिकता और सहिष्णुता पर जोर दिया गया था। इसमें सूर्य, अग्नि और प्रकाश की पूजा भी शामिल थी, जिन्हें ईश्वर के प्रतीक के रूप में देखा जाता था। इसमें किसी भी प्रकार के धार्मिक कट्टरवाद का विरोध किया गया था।
दीन-ए-इलाही का प्रभाव:
दीन-ए-इलाही को व्यापक रूप से स्वीकार नहीं किया गया, और अकबर के जीवनकाल के बाद यह धीरे-धीरे समाप्त हो गया। हालांकि, इसने मुगल साम्राज्य में धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने भारतीय संस्कृति पर भी गहरा प्रभाव डाला, और इसने भारतीय धर्म और दर्शन के विकास को प्रभावित किया।
कुछ अतिरिक्त बातें:
दीन-ए-इलाही में शामिल होने वाले लोगों को अकबर के प्रति अपनी निष्ठा की शपथ लेनी होती थी।
इस धर्म में कोई पवित्र ग्रंथ या पुजारी नहीं थे।
अकबर ने दीन-ए-इलाही को फैलाने के लिए कई उपाय किए, जैसे कि धार्मिक बहसें आयोजित करना और नए धार्मिक भवनों का निर्माण करना।
हालांकि, यह धर्म कभी भी व्यापक रूप से लोकप्रिय नहीं हो पाया, और अकबर की मृत्यु के बाद यह लगभग पूरी तरह से समाप्त हो गया।
संक्षेप में, दीन-ए-इलाही अकबर का एक महत्वाकांक्षी प्रयास था जो धार्मिक एकता और सहिष्णुता को बढ़ावा देना चाहता था। हालांकि यह सफल नहीं हुआ, लेकिन इसने मुगल साम्राज्य और भारतीय संस्कृति पर एक स्थायी प्रभाव डाला।
Answered :- 2022-12-12 08:13:00
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