अकबर ने इलाही संवत 1583 ईस्वी में जारी किया था। यह संवत अकबर द्वारा प्रचलित एक नया पंचांग था, जिसका उद्देश्य मुगल साम्राज्य में एक एकीकृत और धर्मनिरपेक्ष कैलेंडर स्थापित करना था। इससे पहले, मुगल साम्राज्य में हिजरी कैलेंडर का उपयोग होता था, जो एक चंद्र कैलेंडर है। इलाही संवत एक सौर कैलेंडर था, जो सूर्य की गति पर आधारित था, और इसे फ़ारसी नववर्ष, नवरोज़ के साथ शुरू किया गया था। इस संवत का पहला वर्ष 1556 ईस्वी था, जो अकबर के सिंहासन पर बैठने का वर्ष था। इलाही संवत को जारी करने के पीछे अकबर का उद्देश्य धार्मिक और सांस्कृतिक समन्वय स्थापित करना था। यह संवत सभी धर्मों और संस्कृतियों के लोगों के लिए समान रूप से स्वीकार्य था, क्योंकि यह किसी विशेष धार्मिक मान्यता पर आधारित नहीं था। हालांकि, इलाही संवत को व्यापक रूप से स्वीकार नहीं किया गया, और हिजरी कैलेंडर का उपयोग मुगल साम्राज्य में जारी रहा। इलाही संवत का उपयोग मुख्य रूप से आधिकारिक दस्तावेजों और अभिलेखों में किया जाता था। अकबर की यह कोशिश विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों को एक साथ लाने के उनके प्रयासों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी। इलाही संवत, भले ही पूरी तरह से सफल न हो पाई, मुगल इतिहास में अकबर के धर्मनिरपेक्ष और समावेशी दृष्टिकोण का प्रतीक बनी रही।

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