गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी सदी के अंत में हुआ था, जो कि लगभग 275 ईस्वी के आसपास माना जाता है। इस साम्राज्य की नींव श्रीगुप्त नामक एक राजा ने रखी थी, लेकिन इसे वास्तविक शक्ति और प्रतिष्ठा चंद्रगुप्त प्रथम के शासनकाल (लगभग 320-335 ईस्वी) में मिली। गुप्त साम्राज्य का उदय मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद उत्तरी भारत में राजनीतिक अस्थिरता और विखंडन के दौर के बाद हुआ। इस समय, कई छोटे-छोटे राज्य और गणराज्य अस्तित्व में थे। गुप्तों ने धीरे-धीरे इन राज्यों को जीतकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। चंद्रगुप्त प्रथम ने लिच्छवी राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह करके अपनी स्थिति मजबूत की और 'महाराजाधिराज' की उपाधि धारण की। उनके पुत्र समुद्रगुप्त (लगभग 335-380 ईस्वी) एक महान योद्धा और कुशल शासक थे। उन्होंने पूरे उत्तरी भारत को जीता और अपने साम्राज्य को दक्षिण की ओर भी विस्तारित किया। समुद्रगुप्त को 'भारत का नेपोलियन' भी कहा जाता है। गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग माना जाता है। इस दौरान कला, साहित्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई। इस काल में कालिदास, आर्यभट्ट और वराहमिहिर जैसे महान विद्वान हुए। गुप्तों ने एक मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की, जिससे साम्राज्य में शांति और समृद्धि आई।

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