चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु 298 ईसा पूर्व में हुई थी, श्रवणबेलगोला (वर्तमान कर्नाटक) में। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्ष जैन धर्म स्वीकार कर एक तपस्वी के रूप में बिताए। उन्होंने अपने पुत्र बिंदुसार के लिए सिंहासन त्याग दिया और आचार्य भद्रबाहु के साथ दक्षिण भारत चले गए। श्रवणबेलगोला में, उन्होंने सल्लेखना (संथारा) नामक जैन उपवास पद्धति का पालन करके अपने प्राण त्याग दिए। यह जैन धर्म में मृत्यु का एक धार्मिक तरीका है, जिसमें व्यक्ति भोजन और पानी का त्याग करके धीरे-धीरे मृत्यु को प्राप्त होता है। चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन का यह अंतिम चरण उनके साम्राज्य के त्याग और आध्यात्मिक खोज की ओर उनके झुकाव को दर्शाता है। श्रवणबेलगोला में चंद्रगिरि पहाड़ी पर उनका स्मारक भी बना हुआ है।

चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना के कितने अंग थे?

चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना के छः अंग कौन-कौन से थे?

चन्द्रगुप्त मौर्य के दक्षिण विजय की जानकारी किन-किन तमिल ग्रंथों से मिलती है?

चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र का क्या नाम था?

चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यपाल पुष्यगुप्त वैश्य ने किस झील का निर्माण करवाया था?

चन्द्रगुप्त मौर्य को जैन एवं बौद्ध साहित्य में किस कुल का मानते थे?

चन्द्रगुप्त मौर्य को सैंड्रोकोट्स किसने कहा था?

चन्द्रगुप्त मौर्य तथा सेल्यूकस के बीच संधि कब हुई थी?

चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपनी सैनिक शिक्षा कहां से ग्रहण की थी?

चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने जीवन के अन्तिम समय में किस धर्म को स्वीकार किया था?

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