चन्द्रगुप्त मौर्य ने मौर्य वंश की स्थापना 323 ईसा पूर्व में की थी। यह एक महत्वपूर्ण घटना थी जिसने भारतीय इतिहास को एक नया मोड़ दिया। स्थापना की पृष्ठभूमि: 323 ईसा पूर्व में, चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु चाणक्य (कौटिल्य) की सहायता से नंद वंश के अंतिम शासक धनानंद को हराया और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। साम्राज्य का विस्तार: चन्द्रगुप्त मौर्य ने धीरे-धीरे अपने साम्राज्य का विस्तार किया, जिसमें आधुनिक बिहार, बंगाल, उत्तर-पश्चिम भारत और दक्कन का कुछ हिस्सा शामिल था। चाणक्य की भूमिका: चाणक्य, जिन्हें विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है, एक कुशल रणनीतिकार और राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्य को साम्राज्य स्थापित करने और उसे कुशलतापूर्वक चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने प्रसिद्ध पुस्तक 'अर्थशास्त्र' भी लिखी, जो राजनीति, अर्थशास्त्र और सैन्य रणनीति पर एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। महत्व: मौर्य वंश भारत का पहला बड़ा साम्राज्य था जिसने देश को राजनीतिक रूप से एकजुट किया। इसने व्यापार, कला और संस्कृति को बढ़ावा दिया और एक मजबूत प्रशासनिक प्रणाली की स्थापना की। उत्तराधिकार: चन्द्रगुप्त मौर्य के बाद, उनके पुत्र बिंदुसार और फिर उनके पोते अशोक ने साम्राज्य को आगे बढ़ाया। अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म अपना लिया और धम्म के सिद्धांतों का प्रचार किया। वंश का अंत: मौर्य वंश लगभग 185 ईसा पूर्व तक चला। अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या उनके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने की, जिसके बाद शुंग वंश की स्थापना हुई।

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