अकबर के शासनकाल में प्रधान न्यायाधीश 'प्रधानकाजी' कहलाता था, जिसे 'काजी-उल-कुजात' भी कहा जाता था। वह साम्राज्य का सर्वोच्च न्यायिक अधिकारी होता था और इस्लामी कानून (शरीयत) के अनुसार न्याय करता था। अतिरिक्त जानकारी: कार्य और दायित्व: प्रधानकाजी का मुख्य कार्य न्याय प्रदान करना था, लेकिन उसके दायित्वों में इस्लामी कानूनों का पालन सुनिश्चित करना, धार्मिक मामलों पर सलाह देना और वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन करना भी शामिल था। नियुक्ति: प्रधानकाजी की नियुक्ति सीधे बादशाह द्वारा की जाती थी और यह पद साम्राज्य में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता था। अन्य न्यायिक अधिकारी: प्रधानकाजी के अलावा, प्रांतों और शहरों में भी काजी नियुक्त किए जाते थे, जो स्थानीय स्तर पर न्याय करते थे। ये काजी प्रधानकाजी के अधीन होते थे। मुकदमे: मुख्य रूप से इस्लामी कानूनों के अनुसार पारिवारिक मामले, संपत्ति विवाद और आपराधिक मामले काजियों के सामने आते थे। अकबर की भूमिका: अकबर ने न्याय प्रणाली में सुधार करने और उसे निष्पक्ष बनाने के लिए कई कदम उठाए। उन्होंने गैर-मुस्लिमों को भी अपनी समस्याओं के निवारण के लिए काजियों से संपर्क करने की अनुमति दी थी। हालांकि, गैर-मुस्लिमों के लिए पंचायतें भी अपने पारंपरिक तरीके से मामलों को सुलझा सकती थीं। महत्व: प्रधानकाजी का पद मुगल साम्राज्य में न्याय और नैतिकता के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।

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