गुप्तकाल में नगर का मुख्य अधिकारी पुरपाल होता था। पुरपाल, जिसे नगरपति भी कहा जाता था, नगर प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी होता था और नगर में शांति व्यवस्था बनाए रखने, करों का संग्रह करने, सार्वजनिक निर्माण कार्यों की देखरेख करने, और न्यायिक कार्यों को संपादित करने जैसे महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन करता था। पुरपाल की नियुक्ति अक्सर राजा या प्रांतीय शासक द्वारा की जाती थी, जो उसकी प्रशासनिक क्षमता और निष्ठा पर निर्भर करती थी। पुरपाल के कार्यों में नगर की सुरक्षा सुनिश्चित करना, अपराधों को रोकना और अपराधियों को दंडित करना शामिल था। वह व्यापारियों और नागरिकों के हितों की रक्षा करता था, और यह सुनिश्चित करता था कि नगर में व्यापार और वाणिज्य सुचारू रूप से चले। इसके अतिरिक्त, पुरपाल नगर में सार्वजनिक सुविधाओं जैसे कि कुओं, तालाबों, सड़कों, और मंदिरों की मरम्मत और रखरखाव का ध्यान रखता था। वह नगर में त्योहारों और उत्सवों के आयोजन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। न्यायिक कार्यों के अंतर्गत, पुरपाल छोटे-मोटे विवादों का निपटारा करता था और न्याय प्रदान करता था। इस प्रकार, पुरपाल गुप्तकाल में नगर के सामाजिक, आर्थिक, और प्रशासनिक जीवन में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति होता था।

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